उत्तराखंड हिमालय के ऐतिहासिक- पौराणिक मंदिरों बूढ़ा केदार (वृद्ध केदारेश्वर)

उत्तराखंड हिमालय के ऐतिहासिक- पौराणिक मंदिरों बूढ़ा केदार (वृद्ध केदारेश्वर)

उत्तराखंड हिमालय के ऐतिहासिक- पौराणिक मंदिरों बूढ़ा केदार (वृद्ध केदारेश्वर)

 एक केदार बूढ़े भी
उत्तराखंड हिमालय के ऐतिहासिक- पौराणिक मंदिरों की श्रेणी में एक है बूढ़ा केदार (वृद्ध केदारेश्वर) धाम। टिहरी जिले में समुद्रतल से 4400 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर हालांकि पंचकेदार समूह का हिस्सा नहीं 

उत्तराखंड हिमालय के ऐतिहासिक- पौराणिक मंदिरों बूढ़ा केदार (वृद्ध केदारेश्वर)

है, लेकिन ऐतिहासिक-पौराणिक दृष्टि से इसका महत्व भी पंचकेदार सरीखा ही है। वृद्ध केदारेश्वर की चर्चा स्कंद पुराण के केदारखंड में सोमेश्वर महादेव के रूप में मिलती है। मान्यता है कि गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति पाने को पांडव इसी मार्ग से स्वर्गारोहण यात्रा पर गए थे। यहीं
बालगंगा-धर्मगंगा के संगम पर भगवान शिव ने बूढ़े ब्राह्मण के रूप में पांडवों को दर्शन दिए थे। इसलिए बूढ़ा केदारनाथ कहलाए। बूढ़ा केदार मंदिर के गर्भगृह में विशाल लिंगाकार फैलाव वाले पाषाण पर भगवान शिव की मूर्ति और लिंग विराजमान है। इतना बड़ा शिवलिंग शायद ही देश के किसी मंदिर में हो। इस पर उभरी पांडवों की मूर्ति आज भी रहस्य बनी हुई है। बगल में ही भू-शक्ति, आकाश शक्ति और पाताल शक्ति के रूप में विशाल त्रिशूल विराजमान है। बूढ़ा केदार मंदिर के पुजारी नाथ जाति के राजपूत होते हैं। वह भी, जिनके कान छिदे  हों। 


टिप्पणियाँ