उत्तराखंड के प्रयाग विष्णुप्रयाग के अधिक जानकारी
देवभूमि उत्तराखंड के प्रसिद्ध पंच प्रयागों और प्रमुख तीर्थ स्थलों में से विष्णुप्रयाग एक है। यह भारत के प्रसिद्ध संगम स्थलों में से मुख्य है। समुद्र तल से 1372 मी की ऊँचाई पर स्थित “विष्णुप्रयाग” विष्णु गंगा (धौली गंगा) तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर स्थित है। अलकनंदा का उद्गम स्थल “सतोपंथ” है और धौलीगंगा नदी का उद्गम स्थल “नीति पास” है और यह बड़े वैग से अलकनंदा में मिलती है । यह जोशीमठ-बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर स्थित है जोशीमठ से आगे मोटर मार्ग से 12 km और पैदल मार्ग से 3 km की दुरी पर विष्णुप्रयाग स्थित है । मंदाकिनी एवं धौली गंगा के संगम पर स्थित इस पवित्र स्थान पर नारद ने अष्टाक्षरी जप से भगवान विष्णु को प्रसन्न किया था और यह भी कहा जाता है कि यहाँ भगवान् विष्णु नरसिंह अवतार में समाधिस्थ हुए थे । संगम पर भगवान विष्णु जी प्रतिमा से सुशोभित प्राचीन मंदिर और विष्णु कुण्ड दर्शनीय हैं । पंच प्रयाग में देवप्रयाग के बाद “विष्णुप्रयाग” का विशेष महत्व माना जाता है ।उत्तराखंड के प्रयाग विष्णुप्रयाग |
विष्णुप्रयाग की पौराणिक मान्यताये
"प्रयाग" शब्द संस्कृत में "संगम" या "मिलन" का अर्थ होता है, और भारत में कई स्थानों पर इस नाम से जाने जाते हैं, जिनमें विष्णुप्रयाग भी शामिल है। विष्णुप्रयाग एक प्रमुख तीर्थ स्थल है जो उत्तराखंड, भारत में स्थित है। यहां कुछ महत्वपूर्ण जानकारी है:
स्थान: विष्णुप्रयाग, जिसे आमतौर पर प्रयाग राजा भी कहा जाता है, उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है। यह गंगा और अलकनंदा नदियों के संगम पर है।
तीर्थ स्थल: विष्णुप्रयाग एक प्रमुख तीर्थ स्थल है जहां लोग आध्यात्मिक तपस्या, पूजा, और स्नान के लिए यात्रा करते हैं।
नदियों का संगम: इस स्थान पर गंगा और अलकनंदा नदियों का संगम होता है, जिसे लोग त्रिवेणी संगम भी कहते हैं। इस संगम का दृश्य बहुत ही प्राकृतिक सौंदर्यपूर्ण है।
धार्मिक महत्व: विष्णुप्रयाग को हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है और यहां विभिन्न मंदिर और तीर्थ स्थल हैं जो श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं।
कुम्भ मेला: विष्णुप्रयाग ने कुम्भ मेला को भी मेजबूत किया है, जो हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आयोजनों में से एक है।
विष्णुप्रयाग एक अद्वितीय स्थल है जो प्राकृतिक सौंदर्य, आध्यात्मिकता, और संतान धर्म के साथ जुड़ा हुआ है।
विष्णुप्रयाग की पौराणिक मान्यताये |
1. जैसा की नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि विष्णुप्रयाग का नाम “भगवान विष्णु” के नाम पर रखा गया है विष्णुप्रयाग की मान्यता के अनुसार यह कहा जाता है कि नारद मुनि ने इसी स्थान पर भगवान् विष्णु की तपस्या की थी और तपस्या में नारद मुनि ने पंचाक्षरी मंत्र का जाप किया और खुद भगवान विष्णु नारद मुनि को दर्शन देने के लिए इस स्थान में नारद मुनि के समक्ष पधारे थे
2. पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह जगह है जहां साधु नारद तप है, जिसके बाद भगवान विष्णु से पहले उसे दिखाई दिया विष्णुप्रयाग में भगवान विष्णु का मंदिर भी है । जिसके निर्माण का सारा श्रेय इंदौर की महारानी अहिल्याबाई को दिया जाता है महारानी ने सन 1889 में भगवान् विष्णु के मंदिर का निर्माण कराया था ।
3. विष्णुप्रयाग में दायीं और बायीं ओर दो पर्वत हैं, जिन्हें भगवान विष्णु के द्वारपालों, “जय” और “विजय” के रूप में जाना जाता है। इनमें से दायें पर्वत को “जय” और बायें पर्वत को “विजय” माना जाता है
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