उत्तराखंड के प्रयाग रुद्रप्रयाग के अधिक जानकारी

उत्तराखंड के प्रयाग रुद्रप्रयाग के अधिक जानकारी 

उत्तराखंड के प्रयाग रुद्रप्रयाग के अधिक जानकारी
उत्तराखंड के प्रयाग रुद्रप्रयाग 
उत्तराखंड” जो कि ऐसे ही कई धार्मिक और पौराणिक कथाओं के लिए प्रसिद्द है। यहाँ के कई स्थल सिर्फ पर्यटक स्थल के रूप में ही नहीं, पवित्र तीर्थस्थलों के रूप में भी लोकप्रिय हैं। उत्तराखंड के पंचप्रयागों में से एक “रुद्रप्रयाग” का अपना महत्व है | केदारनाथ धाम की ओर से आती मंदाकनी और दूसरी ओर से आती अलकनंदा जिस स्थान में मिलती है | उस स्थान को “रुद्रप्रयाग” के नाम से जाना जाता है | भगवान शिव को “रूद्र” नाम से भी संबोधित किया जाता था | इसलिए “रूद्र” नाम से इस संगम का नाम “रुद्रप्रयाग” रखा गया है | इस क्षेत्र में अलकनंदा व मन्दाकिनी नदियों के संगम पर भगवान रूद्रनाथ का प्राचीन मंदिर भी स्थित है | केदारनाथ भी रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है | प्रसिद्ध धर्मस्थल “केदारनाथ धाम” रुद्रप्रयाग से 76 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है |
रुद्रप्रयाग जिले का निर्माण 16 सितम्बर 1997 में किया गया | इस जनपद का निर्माण चमोली और पौड़ी के कुछ हिस्सों को मिलाकर किया गया था | आजादी से पहले यह स्थान टिहरी क्षेत्र के आधीन था | टिहरी का प्रमुख क्षेत्र नागपुर कहलाता है | रुद्रप्रयाग के बारे में यह माना जाता है कि यहाँ नागवंशी राजा राज्य करते थे | बाद में पंवार वंशी शासको ने अपना शासन स्थापित किया | 1804 में यह क्षेत्र गोरखा व 1815 में अंग्रेजो के आधीन रहा | पुराणों में केदार-खण्ड को भगवान का निवास कहा जाता था | यह वेदों और भारतीय पुराणों, रामायण और महाभारत के तथ्यों से लगता है कि इन हिंदू शास्त्रों को केदार-खण्ड में लिखा गया हैं।

रुद्रप्रयाग की पौराणिक मान्यताये 

रुद्रप्रयाग की पौराणिक मान्यताये
रुद्रप्रयाग की पौराणिक मान्यताये 


1. स्कन्दपुराण केदारखंड के अनुसार महाभारत के समय में पांडवो के युद्ध में विजय होने के उपरांत अपने कौरव भाइयो की हत्या का पश्चाताप करने के लिए पांडव अपना राज्य छोड़ कर मन्दाकिनी नदी के तट पर केदारनाथ पहुँच गये। और इसी स्थान से पांडव ने स्वर्गारोहिणी के द्वारा स्वर्ग को प्रस्थान किया।
2. केदारखंड के अनुसार रुद्रप्रयाग में महर्षि नारद ने भगवान शिव की एक पाँव पर खड़े होकर उपासना की थी और उनकी उपासना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने महर्षि नारद को रूद्र रूप में दर्शन दिए और महर्षि नारद ने रूद्र रूप में भगवान शिव से संगीत की शिक्षा ली एवम् भगवान शिव ने उन्हें वीणा प्रदान करी | और कहा जाता है कि तभी से इस जगह को रुद्रप्रयाग कहा जाने लगा।

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