ब्रिटिश कुमाऊँ में कार्य रामजे के सुधार

रामजे के सुधार

हेनरी रामजे ने लगभग 44 वर्षों तक विभिन्न पदों पर ब्रिटिश कुमाऊँ में कार्य किया। इसमें से 28 वर्ष वे कुमाऊँ के छठे कमिश्नर रहे। इसके अतिरिक्त वे वरिष्ठ सहायक कमिश्नर गढ़वाल और कुमाऊँ के पद पर भी कार्यरत रहे। 1857 के विद्रोह से 15 माह पूर्व उन्हें कुमाऊँ के कमिश्नर पद पर नियुक्ति मिली थी। रामजे मूलतः स्कॉटलैंड के निवासी और लॉर्ड डलहौली के चचेरे भाई थे। लुशिंगटन की बेटी से इनका विवाह हुआ था। ईसाई मत के वे बड़े प्रचारक थे। पहाड़ी भाषा भी बोल लेते थे एवं कृषकों के घर की मंडवे की रोटी भी खा लेते थे। इसी कारण वे सम्पूर्ण कुमाऊँ में 'रामजी साहब' के नाम से लोकप्रिय हुए। अंग्रेज लेखकों ने तो उन्हें 'कुमाऊँ का राजा' की संज्ञा से भी विभूषित किया है। वे 1884 ई0 में सेवानिवृत्त हुए और 1892 तक अल्मोड़ा में ही रहे।
 ब्रिटिश कुमाऊँ में कार्य रामजे के सुधार 

रामजे नवाबी तरीके से शासन करते थे। वे चार माह विन्सर, चार माह अल्मोड़ा तथा चार माह भावर में रहते थे। उनका सबसे प्रशंसनीय कार्य तराई-भावर को आबाद करना था। उनके प्रयासों से इस क्षेत्र में मलेरिया का प्रकोप कम हुआ। सड़को, नहरों एवं नगरों के विकास के साथ ही तराई-भावर में खेती का खूब विस्तार हुआ। लॉर्ड मेयो जब कुमाऊँ आए तो उन्होंने रामजे के तराई-भावर प्रबन्धन की खूब प्रंशसा की।

1857 के सैनिक विद्रोह के अवसर पर रामजे के अधीन यह क्षेत्र अपेक्षाकृत शांत रहा। बरेली एवं रूहेलखण्ड के अधिकारियों और यूरोपियों ने मई 1858 तक नैनीताल में प्रवास किया। इनमें रूहेलखण्ड के कमिश्नर ऐलेक्जेण्डर भी थे। इन सभी को वेतन आदि का भुगतान भी कुमाऊँ कमिश्नरी ने किया। रामजे ने सैन्य छुट्टी निरस्त कर कुमाऊँ में मार्शल लॉ लगाया। बागियों को जेल में बंद कर दिया गया अथवा फाँसी पर लटका दिया गया। नैनीताल का 'फाँसी गधेरा' तभी से प्रसिद्ध है। नये बंदोबस्त कार्य को रोककर डिप्टी कलेक्टर को पर्वतीय घाटों / द्वारों पर चौकसी की जिम्मेदारी दी गई। टिहरी नरेश, कुन्दन लाल शाह इत्यादि से स्थानीय सहयोग व राशन आपूर्ति की आवश्यकता सुनिश्चित की गई। नेपाल में सेना की भर्ती एवं नेपाल से सैन्य सहायता के रूप में 'रनवीर सेना' का सहयोग प्राप्त किया गया।

गदर के समय में कुली नहीं मिल पा रहे थे। अतः रामजे ने बन्दियों से यह कार्य लिया और उनसे कहा गया कि यदि वे ठीक से कार्य करेगें तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा। सैन्य विद्रोह की अवधि में विद्रोह के केन्द्र के इतने निकट होते हुए भी रामजे कुमाऊँ, टिहरी क्षेत्र में शान्ति बहाल रखने में सफल रहे। इसी कार्य के पुरस्कार स्वरूप वे अगले 26 वर्षों तक कुमाऊँ के निर्बाध शासक रहे।

रामजे ने बैकेट महोदय को बंदोबस्त का कार्य सौंपा क्योंकि बैटन का 8वाँ बंदोबस्त 20 वर्षों के लिए था और 1860 ई0 में इसकी अवधि समाप्त हो रही थी। बैकेट जो कि वरिष्ठ सहायक        
आयुक्त पद पर थे, ने प्रत्येक पट्टी का व्यक्तिगत निरीक्षण किया एवं 1864 तक गढ़वाल का बंदोबस्त पूर्ण किया। बैकेट द्वारा किया गया बंदोबस्त गढ़वाल-कुमाऊँ का एक ही अधिकारी द्वारा किया गया अन्तिम बंदोबस्त था। इसमें गढ़वाल के 4392 व कुमाऊँ के 6333 ग्रामों की पैमाइश हुई। खाम स्टेट प्रबन्धन के माध्यम से रामजे को सफल वन प्रबन्धन का श्रेय जाता है। रामजे ने 1861 में हिमालय के तराई क्षेत्र के जंगलों की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करवाई। पहले वन संरक्षक के रूप में उन्होंने ठेकेदारी प्रथा का अंत किया एवं वृक्षपातन से पूर्व ही चिन्हीकरण के कार्य को अन्जाम देने की व्यवस्था को प्रारम्भ किया। ज्ञातव्य रहे कि रामजे साहब 1868 ई0 तक कुमाऊँ कमिश्नर के साथ-साथ वन संरक्षक भी रहे।

इस प्रकार हम पाते हैं कि कुमाऊँ पर 1815 ई0 से लेकर

स्वतन्त्रता प्राप्ति तक क्रमशः गार्डनर, ट्रेल गोबान, लुशिंगटन, बैटन, रामजे, फिशर, रौस, ग्रिग, अर्सकिन, रावर्टस, डेभिस, ग्रेसी, केम्पबैल, बिनढक, स्टाइफ, ओयन और इबॅस्टन महोदय ने कमिश्नर के पद पर कार्य किया। कुछ लोगों ने अस्थायी कमिश्नर के तौर पर भी कार्यभार ग्रहण किया था। उनकी सूची उपलब्ध नहीं हैं। जो भी हो एक बात साफ है कि लगभग सभी शासकों ने इस क्षेत्र में एकतंत्र की ही स्थापना की।

संक्षेप में वर्तमान प्रशासनिक ढाँचा, जिसमें कलेक्टर के अधीन डिप्टी कलेक्टर अथवा डिवीजन के अफसर होते हैं। इनके नीचे तहसील के प्रशासक तहसीलदार होते हैं। तहसीलदार के नीचे क्रमशः नायब तहसीलदार, कानूनगो और पटवारी कार्य करते हैं एवं ग्राम प्रधान शासन में पटवारी को सहायता करते हैं। इन सबका विकास ट्रेल, बैटन और रामजे साहब के अधीन ही हुआ। 1869 ई0 में पी व्हेले को इस क्षेत्र के कानूनों की समीक्षा के लिए नियुक्त किया गया जो इस प्रान्त के कानूनों के विनियमन की दिशा में प्रथम प्रयास था। उनकी रिर्पोट 1870 ई0 में प्रकाशित हुई। ब्रिटिश संसद द्वारा अधिसूचित जिला अधिनियम, 1874 ई० पारित हुआ। इस अधिनियम में व्यवस्था दी गई कि गर्वनर जनरल की परिषद् के अनुमोदन से विशिष्ट क्षेत्रों के लिए प्रभावी कानूनों की व्यवस्था गजट अधिसूचना से की जा सकती है। इस अधिनियम की धारा-5 के अनुसार ऐसे विशिष्ट क्षेत्रों में राजस्व, दीवानी और फौजदारी  
 मामलो के निस्तारण के लिए अधिकारियों की तैनाती और निस्तारण प्रक्रिया के लिए उन्हें ही अधिकृत किया जा सकता है। दुर्गम, पिछड़े एवं कठिन क्षेत्रों के लिए यह अपेक्षाकृत व्यवाहरिक व्यवस्था थी। अधिसूचित जिला अधिनियम, 1874 को प्रथम अनुसूची में गैर विनियमित क्षेत्र रखे गए थे। इन क्षेत्रों के लिए अधिनियम की धारा 3 व 4 के अन्तर्गत अधिसूचनाएँ और नियम प्राख्यापित किए जा सकते थे। कुमाऊँ गढ़वाल के लिए जारी इन नियमों को 'कुमाऊँ रूल्स' के नाम से लम्बे समय तक जाना जाता रहा। इस अधिनियम के तहत जारी अन्य नियम इस प्रकार हैं-

  • राजस्व पटवारियों की पुलिस शक्तियों के सम्बन्ध में नियम (मार्च 1916)
  • रेस्ट व टिनेन्सी मामलों के कुमाऊँ न्यायालयों के लिए नियम, जनवरी, 1918
  • सिंचाई गूलों व घराटों के लिए नियम, अक्टूबर 1930 नयाबाद व वेस्टलैण्ट नियम, अगस्त 1943

लगभग 50 वर्षों तक अधिसूचित जिला अधिनियम 1974 के अन्तर्गत शासित होने के उपरांत अनुभव किया गया कि स्थानीय जनता इससे असंतुष्ट थी। स्थानीय जनता के द्वारा प्रतिवेदन के माध्यम से इसे विशिष्ट प्रावधान से हटा लेने का आग्रह भी समय-समय पर होता रहा। शेष संयुक्त प्रांत के अनुरूप ही इसको शासित किये जाने की माँग भी उठती रही। अन्ततः संयुक्त प्रांत की विधान परिषद् के एक संकल्प द्वारा सन् 1925 में एक कमेटी का गठन किया गया। इस समिति ने 1927 ई0 की ग्रीष्म ऋतु में अपना कार्य प्रारम्भ किया। समिति ने सुझाव दिया कि अधिसूचित जिला अधिनियम, 1974 से बाहर लाने के लिए केवल दो विधेयक पारित किए जाने पर्याप्त हैं। प्रथम जिसमें कुमाऊँ को उक्त अधिनियम से हटाए जाने की घोषणा की जायेगी कि कुछ अपवादों को छोड़ वे सभी अधिनियम जो रूहेलखण्ड मण्डल में प्रभावी हैं, वह कुमाऊँ में भी प्रभावी होंगे। द्वितीय यह कि ऐसा करने पर जिन कठिनाईयों का अनुभव होगा उन्हें दूर किया जा सकेगा। साइमन कमीशन के आगमन व अन्य कारणों के चलते हुए विलम्बन के पश्चात् कुमाऊँ लॉ कमेटी ने निम्नांकित विधेयकों का प्रारूप तैयार किया- 

  1. दि शिड्यूल डिस्ट्रिक्ट्स (कुमाऊँ) रिमूवल बिल, 1932 ई0
  2. दि कुमाऊँ रेवेन्यू पुलिस बिल, 1932 ई0
  3. दि यूनाइटेड प्रोविन्स लैण्ड रेवेन्यू (कुमाऊँ एमेंण्डमेण्ट) बिल, 1932 ई0
  4. दि बंगाल, आगरा एण्ड असम सिविल कोर्ट्स (कुमाऊँ एमेंण्डमेण्ट) बिल, 1932 ई0
  5. कुमाऊँ टिनेन्सी (जूरिस्डिकशन एण्ड प्रोसिजर) बिल, 1931.

उपरोक्त में से क्रम संख्या 4 वाले बिल को छोड़कर शेष चारों बिलों पर सलेक्ट कमेटी ने विचार अवश्य किया किन्तु 1935 ई० के उपरान्त इस पर कोई अग्रेत्तर कार्यवाही नहीं की गई। 1937 के गर्वमेण्ट ऑफ इंडिया (एडेप्टशन ऑफ इण्डियन लॉज) के आने के साथ ही अधिसूचित जिला अधिनियम, 1874 का अस्तित्व ही समाप्त हो गया। गर्वमेंण्ट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 की धारा 91 व 92 में किसी पिछड़े क्षेत्र को पूर्ण या आंशिक रूप से उस प्रान्त के शेष भाग पर लागू कानून से मुक्त रखा जा सकता था किन्तु इसके तहत निर्गत आदेश में कुमाऊँ का नाम सम्मिलित न था।

सन् 1839 ई0 तक ब्रिटिश गढ़वाल को कुमाऊँ के एक परगने के रूप में रखा गया। इसके उपरान्त इसे जनपद बना दिया गया। 1854 ई0 में कुमाऊँ का मुख्यालय ओसग्रोव, नैनीताल में स्थापित हुआ। 1854 से 1890 तक कुमाऊँ मण्डल में अल्मोड़ा व ब्रिटिश गढ़वाल दो जनपद थे। ब्रिटिश गढ़वाल का मुख्यालय 'श्रीनगर' गढ़वाल था जिसे 1840 ई० में पौडी स्थान्तरित कर दिया गया। 1890 ई0 में अल्मोड़ा जनपद को पुनः दो जनपद नैनीताल एवं अल्मोड़ा में विभक्त कर दिया गया। सन् 1890 से स्वतन्त्रता प्राप्ति तक कुमाऊँ मण्डल में नैनीताल, अल्मोड़ा व गढ़वाल तीन जनपद शामिल थे। यद्यपि सन् 1901 में इस भाग को संयुक्त प्रान्त का हिस्सा बना दिया गया था फिर भी 1904 ई0 के नैनीताल गजेटियर में इस क्षेत्र के लिए 'हिल स्टेट' शब्द का प्रयोग हुआ है।

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