सिमट गए नौले धारे, घट गया गधेरों का पानी मित्रों!

 सिमट गए नौले धारे, घट गया गधेरों का पानी मित्रों!🤔

पहाड़ गाँव का प्राचीन जल स्रोत "नौला" जो अब बहुत कम गाँवों में दिखते हैं अब हमारी ये धरोहरें विलुप्ति की कगार पर हैं....अभी भी हमारे पहाड़ के लोग इस गर्मी के मौसम में इन्ही नौलो के भरोसे में अपनी प्यास बुझा रहा है ....आने वाली पीढ़ी के लिए ये जल स्रोत इतिहास के पन्नो एक अध्याय के रूप में रह जायेगा .....मानव जीवन में जल स्रोतों की अहमियत की बात की जाए तो पहाड़ में जलस्रोत जंगल के बीच खेतों की बीच, चट्टानों के बीच या फिर आबादी के बीच भी दिखाई देती हैं। पहाड़ के जलस्रोतों के संवर्धन की बात करें तो यहां हर जंगल में अनेक जलस्रोत प्राकृतिक रूप से दिखाई देते,
सिमट गए नौले धारे, घट गया गधेरों का पानी मित्रों!🤔

हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारा परम्परागत ज्ञान तभी सुरक्षित रह सकता है, जब हम नौले के पास जाएँगे और उस आत्मीयता को महसूस करेंगे। देखने में आ रहा है कि नौलों के प्रति चिन्तित लोग अधिक हैं। लेकिन नौलों के प्रति उनकी चिन्ता कम और परियोजना के प्रति उसमें आकर्षण अधिक नजर आता है। यदि ईमानदारी से काम किया जाये तो समाज की सहभागिता और प्रशासन के सहयोग से यह काम किया जा सकता है

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नौलों में जूता पहनकर जाने की सख्त मनाही थी, इसलिये पानी लेने आने वाला शख्स जूतों को खोलकर, जल में रखे गए देवता की मूर्ति को प्रणाम करके ही पानी लेेता था। इसका अर्थ है कि पुराने समय में स्वच्छता का विशेष ख्याल रखा गया था। जो शहर में पानी का पाइप-लाइन आने के बाद लगभग खत्म ही हो गया। अब तो पानी के लिये लोगों ने बाहर निकलना भी बन्द कर दिया है।

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