हिडिम्बा देवी मंदिर का इतिहास, कहानी और रोचक तथ्य

हिडिम्बा देवी मंदिर का इतिहास, कहानी और रोचक तथ्य – Hidimba Devi Temple everything

हिडिम्बा देवी मंदिर उत्तर भारत में हिमाचल प्रदेश राज्य के मनाली में स्थित है। यह एक प्राचीन गुफा मंदिर है, जो भारतीय महाकाव्य महाभारत के भीम की पत्नी हिडिम्बी देवी को समर्पित है। यह मनाली में सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। इसे ढुंगरी मंदिर (Dhungiri Temple) के नाम से भी जाना जाता है। मनाली घूमने आने वाले सैलानी इस मंदिर को देखने जरूर आते हैं। यह मंदिर एक चार मंजिला संरचना है जो जंगल के बीच में स्थित है। स्थानीय लोगों ने मंदिर का नाम आसपास के वन क्षेत्र के नाम पर रखा है। हिल स्टेशन में स्थित होने के कारण बर्फबारी के दौरान इस मंदिर को देखने के लिए भारी संख्या में सैलानी यहां जुटते हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति स्थापित नहीं है बल्कि हिडिम्बा देवी मंदिर में हिडिम्बा देवी के पदचिह्नों की पूजा की जाती है।’

हिडिम्बा देवी मंदिर का इतिहास – Hidimba Devi Temple History 

हिडिम्बा देवी मंदिर का इतिहास - Hidimba Devi Temple History In Hindi
हिडिम्बा देवी मंदिर का निर्माण हिमालय पर्वतों के कगार पर डुंगरी शहर के पास एक पवित्र देवदार के जंगल के बीच में कराया गया है। माना जाता है कि भीम और पांडव मनाली से चले जाने के बाद हिडिम्बा राज्य की देखभाल के लिए वापस आ गए थे। ऐसा कहा जाता है कि हिडिम्बा बहुत दयालु और न्यायप्रिय शासिका थी। जब उसका बेटा घटोत्कच बड़ा हुआ तो हिडिम्बा ने उसे सिंहासन पर बैठा दिया और अपना शेष जीवन बिताने के लिए ध्यान करने जंगल में चली गयी। हिडिम्बा अपनी दानवता या राक्षसी पहचान मिटाने के लिए एक चट्टान पर बैठकर कठिन तपस्या करती रही।
कई वर्षों के ध्यान के बाद उसकी प्रार्थना सफल हुई और उसे देवी होने का गौरव प्राप्त हुआ। हिडिम्बा देवी की तपस्या और उसके ध्यान के सम्मान में इसी चट्टान के ऊपर इस मंदिर का निर्माण 1553 में महाराजा बहादुर सिंह ने करवाया था। मंदिर एक गुफा के चारों ओर बनाया गया है। मंदिर बनने के बाद यहां श्रद्धालु हिडिम्बा देवी के दर्शन पूजन के लिए आने लगे।

हिडिंबा देवी की कहानी 

हिडिम्बा मंदिर पांडवों के दूसरे भाई भीम की पत्नी हिडिम्बा को समर्पित है। हिडिम्बा एक राक्षसी थी जो अपने भाई हिडिम्ब के साथ इस क्षेत्र में रहती थी। उसने कसम खाई थी कि जो कोई उसके भाई हिडिम्ब को लड़ाई में हरा देगा, वह उसी के साथ अपना विवाह करेगी। उस दौरान जब पांडव निर्वासन में थे, तब पांडवों के दूसरे भाई भीम ने हिडिम्ब की यातनाओं और अत्याचारों से ग्रामीणों को बचाने के लिए उसे मार डाला और इस तरह महाबली भीम के साथ हिडिम्बा का विवाह हो गया। भीम और हिडिम्बा का एक पुत्र घटोत्कच हुआ, जो कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों के लिए लड़ते हुए मारा गया था। देवी हिडिम्बा को समर्पित यह मंदिर हडिम्बा मंदिर के नाम से जाना जाता है।

हिडिम्बा मंदिर के बारे में रोचक तथ्य 

  1. हिडिम्बा देवी मंदिर की खासियत यह है कि इस मंदिर का निर्माण पगोडा शैली (Pagoda Style) में कराया गया है जिसके कारण यह सामान्य मंदिर के काफी अलग और लोगों के आकर्षण का केंद्र है।
  2. यह मंदिर लकड़ी से बनाया गया है और इसमें चार छतें हैं। मंदिर के नीचे की तीन छतें देवदार की लकड़ी के तख्तों से बनी हैं और चौथी या सबसे ऊपर की छत का निर्माण तांबे एवं पीतल से किया गया है।
  3. मंदिर के नीचे की छत यानि पहली छत सबसे बड़ी, उसके ऊपर यानि दूसरी छत पहले से छोटी, तीसरी छत दूसरे छत से छोटी और चौथी या ऊपरी छत सबसे छोटी है, जो कि दूर से देखने पर एक कलश के आकार की नजर आती है।
  4. हिडिम्बा देवी मंदिर 40 मीटर ऊंचे शंकु के आकार का है और मंदिर की दीवारें पत्थरों की बनी हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार और दीवारों पर सुंदर नक्काशी की गई है।
  5. मंदिर में एक लकड़ी का दरवाजा लगा है जिसके ऊपर देवी, जानवरों आदि की छोटी-छोटी पेंटिंग हैं। चौखट के बीम में भगवान कृष्ण की एक कहानी के नवग्रह और महिला नर्तक हैं।
  6. मंदिर में देवी की मूर्ति नहीं है लेकिन उनके पदचिन्ह पर एक विशाल पत्थर रखा हुआ है जिसे देवी का विग्रह रूप मानकर पूजा की जाती है।
  7. मंदिर से लगभग सत्तर मीटर की दूरी पर देवी हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच को समर्पित एक मंदिर है।

हडिम्बा मंदिर में महोत्सव 

हर साल श्रावण के महीने में मंदिर में हिडिम्बा देवी मंदिर में एक उत्सव का आयोजन किया जाता है। माना जाता है कि यह उत्सव राजा बहादुर सिंह की याद में मनाया जाता है जिसने इस मंदिर का निर्माण कराया था। इसलिए स्थानीय लोगों ने इस मेले का नाम रखा है- बहादुर सिंह रे जातर (Bahadur Singh Re Jatar)। इसके अलावा यहां 14 मई को हिडिम्बा देवी के जन्मदिन के अवसर पर एक अन्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस दौरान स्थानीय महिलाएं डूंगरी वन क्षेत्र में संगीत और नृत्य के साथ जश्न मनाती हैं।
कहा जाता है कि मंदिर लगभग 500 साल पुराना है। श्रावण मास में आयोजित होने वाले मेले को सरोहनी मेला (Sarrohni Mela) के नाम से जाना जाता है। यह मेला धान की रोपाई पूरा होने के बाद आयोजित होता है। इसके अलावा नवरात्र के दौरान भी मंदिर में दशहरा महोत्सव का आयोजन होता है जिसमें दर्शन के लिए भक्तों की लंबी लाइन लगती है।

हिडिम्बा देवी मंदिर में पूजा का समय 

यह मंदिर पूरे हफ्ते खुला रहता है और किसी भी दिन बंद नहीं होता है। हिडिम्बा देवी मंदिर में प्रवेश के लिए किसी तरह की फीस नहीं लगती है। मंदिर सुबह आठ बजे खुलता है और शाम को छह बजे तक बंद हो जाता है।
इस दौरान पूजा और दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं और मंदिर को देखने के लिए सैलानी यहां जमा होते हैं। इस मंदिर के अंदर आप बिना किसी रोक टोक के फोटो खींच सकते हैं और दो से तीन घंटे का समय भी बिता सकते हैं।

टिप्पणियाँ