जयकृतशाह के शासनकाल के दौरान प्रद्युम्नशाह ने गढराज्य पर आक्रमण

प्रद्युम्नशाह
प्रद्युम्नशाह ने गढराज्य पर आक्रमण
During the reign of Jayakritshah, Pradyumnashah invaded Garhrajya. 

जयकृतशाह के शासनकाल के दौरान प्रद्युम्नशाह ने गढराज्य पर आक्रमण किया और तीन वर्ष श्रीनगर में रहकर शासन को संभालने का कार्य किया किन्तु तत्कालीन आंतरिक कलह के कारण उसने वापस कुर्मांचल जाने का निर्णय किया। किन्तु जयकृतशाह की मृत्यु के पश्चात् प्रद्युम्न अपने अनुज पराक्रमशाह के साथ गढ़वाल आया। डॉ० डबराल के अनुसार हर्षदेव जोशी भी उनके साथ था। बद्रीदत्त पाण्डे के अनुसार प्रद्युम्नशाह ने स्वयं को गढ़वाल एवं कुमाऊँ का शासक घोषित 
 किया और दोनो राज्यों की प्रजा ने इसका स्वागत किया। परन्तु प्रद्युम्न का अनुज पराक्रम शाह इससे निराश हुआ क्योंकि उसे आशा थी कि प्रद्युम्न शाह उसे गढ़राज्य की गद्दी पर आसीन कर वापस कुर्मांचल चले जायेगें। प्रद्युम्नशाह ने पराकमशाह की बजाय हर्षदेव जोशी को अपना प्रतिनिधि बनाकर कुमाऊँ की बागडोर सौप दी तो पराक्रमशाह अत्यधिक क्षुब्ध हुआ। अब पराक्रम शाह ने मोहनचन्द्र रौतेला का सर्मथन करना शुरू कर दिया।
मोहनचन्द ने अपने भाई लालसिंह की सहायता से 1786 पाली गाँव के युद्ध में हर्षदेव को पराजित कर कुमाऊँ पर अधिकार कर लिया। हर्षदेव जोशी भागकर श्रीनगर पहुँचे।
कुमाऊँ में राजनीतिक अस्थिरता बनी रही। मोहनचन्द भी अधिक समय तक सत्ता नहीं सभांल सका क्योंकि हर्षदेव जोशी 1788 ई0 में एक बड़ी सेना के साथ वापस आया उसने मोहनचन्द और लालसिंह दोनो को परास्त कर कैद कर लिया। मोहनचन्द की कुछ समय पश्चात् हत्या कर दी गई। सम्पूर्ण कुमाऊँ पर अधिकार करने के बाद हर्षदेव ने प्रद्युम्न को कुमाऊँ आमंत्रित किया।

प्रद्युम्नशाह ने आमन्त्रण स्वीकार नहीं किया। पराकमशाह ने भी प्रद्युम्नशाह को कुमाऊँ न लौटने की सलाह दी। अतः हर्षदेव सर्वेसर्वा बन बैठा। उसने शिवसिंह रौतेला नाम के व्यक्ति को 'शिवचन्द' नाम से गद्दी पर बैठा दिया जो कि हर्षदेव के हाथों की कठपुतली था।

इस बीच लाल सिंह ने रामपुर के नवाब फैजउल्लाखाँ की सहायता से कुमाऊँ पर आक्रमण किया। हर्षदेव पराजित हो गढ़राज्य की ओर भागा। लालसिंह उसका पीछा करता हुआ उल्कागढ पहुँचा जहाँ हर्षदेव ने उसे पराजित कर कोसी नदी तक खदेड़ दिया था।

अब पराक्रम शाह ने अपनी सेनाओं के साथ लालसिंह की सेना की कमान संभाली। हर्षदेव परास्त हो गढ़वाल भाग गया जबकि शिवचन्द का इसके बाद कुछ पता नहीं चला। इसके पश्चात् पराक्रमशाह ने अल्मोड़ा पहुँचकर मोहनचन्द के पुत्र महेन्द्र सिंह को कुमाऊँ की गद्दी पर आसीन किया। पराकमशाह ने कुछ विद्रोहियों को समाप्त किया एवं इसके पश्चात् नजराना लेकर लौट गया। हर्षदेव जोशी को गढराज्य में 'पैडलस्यु' की जागीर प्रद्युम्नशाह ने प्रदान की। 1786 ई० में गढ़नरेश बनने के पश्चात् प्रद्युम्नशाह के भाग्य ने पलटा खाया और वह निरन्तर षडयंत्रों, समस्याओं में ही घिरा रहा। उसका अनुज पराकमशाह इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार था।

मौलाराम' ने अपनी रचनाओं में पराक्रमशाह के चरित्र का वर्णन किया है। वह विलासी, दुराचारी एवं चरित्रहीन राजकुमार था। उसने मौलाराम की गणिका और जागीर दोनो छीन ली थी। इसने ही प्रद्युम्न के वफादार अधीनस्थों खण्डुरी भाई, रामा एवं धारणा की हत्या करवाई। सम्भवतः प्रद्युम्न को बन्दी बना लिया जिसने कालान्तर में प्रद्युम्न के उत्तराधिकारी सुदर्शनशाह एवं पराकमशाह के मध्य भीषण युद्ध को जन्म दिया। गढराज्य में गृहयुद्ध का वातावरण उत्पन्न हुआ। इस राजनीतिक अस्थिरता की सूचना पाकर नेपाल नरेश ने गढ़राज्य में हस्तक्षेप किया। गोरखे इससे पूर्व 1791 ई० में गढ़वाल पर आक्रमण कर चुके थे परन्तु नेपाल पर चीनी आक्रमण के कारण वे वापस लौट गए थे। यद्यपि इससे पूर्व गोरखे 1790 ई0 में कुमाऊँ का राज्य हस्तगत कर चुके थे।

गढ़राज्य की निरन्तर गिरती साख के कारण गोरखों को पुनः आक्रमण का सुअवसर मिला। 1803 ई० में उन्होंने गढ़राज्य पर आक्रमण किया। प्रद्युम्नशाह श्रीनगर छोड़ भागे। 'बाराहाट' (उत्तरकाशी) में प्रद्युम्नशाह दुबारा पराजित हुए। इसके पश्चात 'चमुआ' (चम्बा) नामक स्थान पर पुनः गढसेना परास्त हुई। गढनरेश एवं गोरखों के मध्य अंतिम और निर्णायक युद्ध खुड़बुड़ा (देहरादून) नाम स्थल पर हुआ। इसमें प्रद्युम्नशाह वीरगति को प्राप्त हुए। गोरखों ने उनकी अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ हरिद्वार में की। इस प्रकार गढराज्य को पंवार वश से गोरखों ने सता हस्तगत कर अपने हाथों में ले ली। 

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गढ़वाल क्षेत्र में प्रचलित एक लोकगीत में भी यही वंशावली मिलती है जिसे पंवार राजाओं की विरूद्धावली गाने वाले भाटों के वंशज पिंगलदास' आज भी विशेष अवसर पर गाते हैं। इसके अतिरिक्त पंवार वंशावली उत्तरकाशी के परशुराम एवं विश्वनाथ मन्दिर में भी उपलब्ध है जिनमें प्रदीपशाह से सुदर्शनशाह तक के नरेशों के नाम अंकित हैं।

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