( हे दर्जी दिदा मैकू तू अंगडी बणे दे,) गढ़वाली गीत जो सदाबहार हैं ( he darji dida maiku tu angadi bane de,) garhwali geet jo sadabahar hain

गढ़वाली सदाबहार गीत - "हे दर्जी दिदा मैकू तू अंगडी बणे दे"

उत्तराखंड की लोक संस्कृति में गढ़वाली और कुमाऊंनी गीतों का एक अहम स्थान है। इन गीतों में हमारी संस्कृति, परंपराएँ और हमारी भावनाएँ गहरी छुपी होती हैं। एक ऐसा ही गढ़वाली गीत है “हे दर्जी दिदा मैकू तू अंगडी बणे दे,” जिसे लोकप्रिय गायिका रेखा धस्माना उनियाल जी ने अपनी मधुर आवाज़ में गाया है। इस गीत के बोल जीत सिंह नेगी जी द्वारा लिखे गए हैं और यह गीत गढ़वाली लोक संगीत की परंपरा को जीवित रखता है।

गीत के बोल:

हे दर्जी दिदा मैकू तू अंगडी बणे दे,
मेरी घघरी पर चमकदार मगज़ लगे दे।
हे दर्जी दिदा मैकू तू अंगडी बणे दे,
मेरी घघरी पर चमकदार मगज़ लगे दे।

मिन आज नैनी डांडा देवी का पास जाण,
देवी का नौकु बुगठ्या मिन आज वख चडाँण।।

मिन आज नैनी डांडा देवी का पास जाण।
देवी का नौकु बुगठ्या मिन आज वख चडाँण।
इन आज मन च मेरु सोंजड्या भी मिलालु,
सोंजड्या मेरी अंगडी घघरी पर मोहेलु।
ये घघरी पर नौ गजा कू खोल लगे दे,
मेरी घघरी पर चमकदार मगज़ लगे दे।

हे दर्जी दिदा मैकू तू अंगडी बणे दे ,
मेरी घघरी पर चमकदार मगज़ लगे दे।
इन फिट दरजी दादा अंगडी सीली तू,
मोटी सी कमर मा जू पट की चिपकी जौ ,
इन फिट दरजी दादा अंगडी सीली तू।
मुट्ठी सी कमर मा जू पट की चिपकी जौ
उ म्यारू सोंजड्या त श्रृंगार शौकिया च,
फूलों मा वेकु प्यार रंगीला मन वलु च।

ईं अंगडी पर फूल दार तैणी लगे दे,
मेरी घघरी पर चमकदार मगज़ लगे दे।

हे दर्जी दिदा मैकू तू अंगडी बणे दे,
मेरी घघरी पर चमकदार मगज़ लगे दे।

मे आज रात एक सुपिनु प्यारु होया,
फूलों क बण म गौं मी घघरी घूमे क,
मे आज रात एक सुपिनु प्यारु होया।

फूलों क बण म गौं मी घघरी घूमे क,
उ म्यारा समणी आया बांसुली बजांद।

ईं घघरी पैरीक नाचण लग्युं च,
मेरी अंगडी पर टिच दार बटण लगे दे,
मेरी घघरी पर चमकदार मगज़ लगे दे।

हे दर्जी दिदा मैकू तू अंगडी बणे दे ,
मेरी घघरी पर चमकदार मगज़ लगे दे।
जन्नी उ म्यारा समणी हैंसदा आला दीदा।

घूँघट क्यांकू करलु चदरि तिनीच,
जन्नी उ म्यारा समणी हैंसदा आला दीदा।

घूँघट क्यांकू करलु चदरि तिनीच,
चदरि हो त इन्नी जु जालीदार हो.
घूँघट बटे उन्कु मुक भल कै दिखे हो।

ये चदरि पर रंगबिरंगी टुफ्की लगे दे,
मेरी घघरी पर चमकदार मगज़ लगे दे।

हे दर्जी दिदा मैकू तू अंगडी बणे दे।
मेरी घघरी पर चमकदार मगज़ लगे दे।

हे दर्जी दिदा मैकू तू अंगडी बणे दे गढ़वाली गीत के बोल –
जीत सिंह नेगी जी द्वारा लिखा गया ,पारम्परिक गढ़वाली गीत  गीत जिसको गाया है , रेखा धस्माना उनियाल जी ने।  गीत के बोल हैं “हे दर्जी दिदा मैकू तू अंगडी बणे दे”

यह गीत एक महिला की भावनाओं और उसकी सुंदरता की प्रतीक है। गीत में दर्जी से उसकी अंगड़ी (अंगवस्त्र) की बात की जा रही है, जो उसकी सजावट और श्रृंगार का एक अहम हिस्सा होती है। गीत में नायिका की घघरी (साड़ी) पर चमकदार मगज़ (सिलाई) की बात की जा रही है, जो उसकी सुंदरता को और निखारता है।

गीत का भावार्थ:

गीत में महिला का अपनी सुंदरता को संजोने का इरादा है, जिसमें वह अपनी घघरी और अंगड़ी के माध्यम से अपनी व्यक्तित्व की सुंदरता और खासियत को उजागर करती है। गीत में देवी के मंदिर जाने का भी जिक्र है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि महिला अपनी पूजा और आस्था को भी सम्मान देती है।

मिन आज नैनी डांडा देवी का पास जाण,
देवी का नौकु बुगठ्या मिन आज वख चडाँण।।

गीत में महिला की इच्छाएँ और उसकी जिंदगी के खास पल भी झलकते हैं। उसे अपने प्यार के साथ सुपिनु (सपना) देखने का भी ख्वाब है, और फूलों की महक में खोकर अपनी घघरी पहनने का सपना संजोती है।

मे आज रात एक सुपिनु प्यारु होया,
फूलों क बण म गौं मी घघरी घूमे क।

इस गीत के माध्यम से उत्तराखंड की लोक संस्कृति, महिलाओं की संवेदनाओं और उनकी सुंदरता को व्यक्त किया गया है। रेखा धस्माना उनियाल जी की आवाज़ ने इस गीत को और भी मधुर बना दिया है। गीत में रचनात्मकता और लोक संगीत का संगम है जो आज भी हर गढ़वाली घर में सुनने को मिलता है।

इस गीत की विशेषता:

  1. पारंपरिक गढ़वाली संगीत: गीत में पारंपरिक गढ़वाली धुन और बोल हैं जो उत्तराखंड की लोक संगीत परंपरा को जीवित रखते हैं।

  2. लोक संस्कृति की झलक: गीत में महिलाओं की परंपराएँ, श्रृंगार, और धार्मिक आस्थाओं की सुंदरता को व्यक्त किया गया है।

  3. रेखा धस्माना उनियाल की आवाज़: गायिका रेखा धस्माना उनियाल ने इस गीत में अपनी मधुर आवाज़ से जान डाल दी है, जो गढ़वाली संगीत के प्रेमियों के दिलों में एक खास स्थान बनाती है।

गीत का प्रभाव:

“हे दर्जी दिदा मैकू तू अंगडी बणे दे” एक ऐसी काव्यात्मक रचना है जो न केवल गढ़वाली संगीत प्रेमियों के बीच लोकप्रिय है, बल्कि यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित करती है। यह गीत महिलाओं की सुंदरता, उनकी चाहतों और उनकी पूजा के प्रति आस्था को दर्शाता है। इस गीत को सुनने से न केवल गढ़वाली संस्कृति का अहसास होता है, बल्कि यह हमारी जड़ों से जुड़ने का एक माध्यम भी है।

समाप्त।

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