हुण दस्स चौकीदारा! : हिमाचल प्रदेश की लोक-कथा Hun Dass Chaukidara : Lok-Katha (Himachal Pradesh)

हुण दस्स चौकीदारा! : हिमाचल प्रदेश की लोक-कथा

Hun Dass Chaukidara : Lok-Katha (Himachal Pradesh)
एक चोर था । छोटी-मोटी चोरियां करके अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहा था पर गुज़ारा वामुश्किल होता । चोर ने एक योजना बनाई और एक बड़ा हाथ मारने की ठानी । अपने काम को अंजाम देने के लिये उसने राजमहल को चुना और एक दिन मौका ताड़कर महल में घुस गया । चूंकि मालखाने पर पहरा लगा था प्रहरी सजग थे सो उसने राजा के शयनकक्ष को चुना और चुपके से वहां घुसकर पर्दे की ओट से भीतर देखने लगा । परदे की ओट उसने देखा कि राजा तो अलमस्त सो रहा है पर रानी उनींदी सी अर्धनग्न पास बैठी शून्य में ताके जा रही थी । वो रानी के सोने का इंतजार करने लगा ।
 
कुछ पल यूं ही बीते । टोह लेने के लिये उसने फिर से पर्दे की ओट से झांकना चाहा पर तभी पर्दे के हिलते ही उसके पास रखा फूलदान गिर गया और रानी की नज़र चोर पर पड़ गई । इससे पहले की चोर निकल भागता ,रानी तलवार निकाल उसके सामने खड़ी हो गई । चोर तुरंत रानी के कदमों में गिर पड़ा और प्राणों की भीख मांगने लगा । रानी ने कड़क आवाज़ में महल में घुसने का कारण पूछा तो चोर ने सारी बात सच-सच बतला दी और छोड़ने की गुहार लगाता रोने लगा ।

 रानी ने कहा-मैं एक शर्त पर तुम्हें छोड़ सकती हूं
आस भरे चोर ने विना शर्त सुने कहा- मुझे मंजूर ।
रानी ने कहा- तुम्हें मुझसे संभोग करना होगा ।
हक्का-वक्का चोर मिमियाते वोला -यह मुझसे न होगा रानी । मैं चोर हूं कामी नहीं ।
पर रानी पर तो काम सवार था उसने तलवार चोर के गले पर रख दी और कहा -तो मरने के लिये तैयार हो जाओ ।
चोर गिड़गिड़ाने लगा पर रानी कहां माने । थक हार चोर ने सोचते कहा जैसी आपकी मर्जी पर मैं लघुशंका जाना चाहता हूं । हाथ मुहं धोना चाहता हूं ।
रानी ने उसे आज्ञा दे दी और गुसलखाने का रास्ता बता दिया ।
 
चोर गुसलखाने में न घुसकर गलियारे से निकल भागा लेकिन दरवाजे के पास खड़े चौकीदार के हत्थे चढ़ गया । चौकीदार ने कड़ाई से सारी बात पूछी तो चोर ने जान की गुहार लगाते सारी बात बता दी ।
चौकीदार ने कहा मैं एक शर्त पर तुम्हें छोड़ सकता हूं ।
आस भरा चोर बोला मंजूर ।
चौकीदार ने कहा तुम रानी के पास लौटकर जाओ और कहो कि पहले आप राजा को मार दो या मुझे मारने दो फिर मैं आपसे संभोग करुंगा ।
 
चोर ने शर्त सुनी तो ना-नुकर करता गिड़गिड़ाया । पर चौकीदार ने एक न सुनी और उसे शयनकक्ष की ओर धकेल दिया । चोर की हालत आगे कुंआ पीछे खाई जैसी हो गई । वह डरता-झिझकता कमरे में घुसा और रानी से कहा रानी साहिबा मैं आपकी इच्छा का मान रखने के लिये तैयार हूं पर उससे पहले आप राजा को मार दें क्योंकि राजा ने अगर हमें देख लिया तो हम दोनों मारे जायेंगे ।
रानी पर काम सवार था । उसने न आव देखा न ताव और सोते हुये राजे की गर्दन काट दी । चहूं और खून विखरा कुछ छींटे रानी के वस्त्रों, मुहं पर पड़े तो उसको अपने किये का वोध हुआ वो वहीं चीख मारकर वेहोश होकर गिर पड़ी ।
उधर चोर यह सारा वाकया देख पहले तो घबराया फिर जिस रास्ते से घुसा था उसी से निकल भागा ।
 
रानी की चीख सुनकर दास-दासियां दौड़े चले आये और पलभर में राजा के मरने की खबर सारे महल में फैल गई । चौकीदार भी दौड़ता- भागता वहां पंहुचा ,राजा-रानी की हालत देखी पर सारे वाकये से अंजान बना चुपचाप खड़ा रहा ।
 
दिन चढ़ा ,राजा के दाह की तैयारियां हुई । एक तो अपराधवोध दूसरा रीति। रानी ने भी सती होने का फैसला लिया और चिता में जाकर बैठ गई ।
 
रीत अनुसार सभी नातेदार और नौकर-चाकर वारी-वारी चिता के पास जाकर लकड़ी डालते माथा टेकने लगे । चौकीदार सबसे आखिर में गया ,माथा टेका और रानी से कहने लगा रानी साहिबा! यह तो बताती जाओ कि राजा को किसने मारा ?
 
सवाल सुन रानी चौंकी और आंखें खोल बोली राज्य की सीमा के पास लगते जंगल में एक कुटिया है ।वहां जाओ , वहां एक बूढ़ी औरत मिलेगी, उससे पूछना , वह बता देगी राजा को किसने मारा ।
 
चिता जल उठी । रानी सती हो गई । सवाल सबके मन में रह गया कि राजा को किसने मारा ?
 
चौकीदार कुछ दिन बाद रानी के बताये पते पर पंहुचा और बुढ़िया से मिलकर अपने सवाल को दोहराया । सवाल सुनकर बुढ़िया उसे कुटिया के बाहर ले गई और कहा वो सामने एक बकरा बंधा है । तुम्हें उस बकरे का सिर काटना है । सिर कटते ही उड़ने लगेगा ।तुम बकरे का कान पकड़ लेना । उड़ता सिर तुम्हें जिस जगह ले जायेगा वहां तुम्हें तुम्हारे सवाल का जबाब मिल जायेगा ।
 
चौकीदार ने वैसा ही किया जैसा बुढ़िया ने कहा और कटे सिर का कान पकड़कर उड़ता-उड़ता जंगल के बीच एक मनोरम स्थान पर पंहुच गया ।
 
जंगल की यह जगह एक राक्षस का ठिकाना था । वह वहां अपनी बेटी के साथ रहता था और इस समय कहीं बाहर गया हुआ था । राक्षस की बेटी को मानस गंध आई तो उसने अपनी खोह से बाहर निकलकर देखा । चौकीदार को देखकर वह मोहित हो गई और सुंदर रुपसी का रुप धारण कर उसके सम्मुख पंहुच गई ।
उसकी सुंदरता देख चौकीदार हक्का -वक्का रह गया और उसके मोहजाल में फंस सबकुछ भूलभाल वहीं का होकर रह गया ।रात को राक्षस के लौटने पर लड़की कभी उसे तोता बना देती कभी कौवा कभी कबूतर कभी मच्छर और जब दिन में राक्षस बाहर निकल जाता तो वह उसे फिर से मनुष्य बना देती ।
 
चौकीदार कुछ दिन तो बड़े मजे में रहा पर दिन बीतते उसे अपने घर- परिवार की चिंता सताने लगी । उधर राक्षसी भी उससे उक्ता चली थी । चौकीदार एक दिन मौका देखकर वहां से निकल भागा और किसी तरह अपने घर पंहुचकर अपनी पत्नी ,बेटे से मिलकर बड़ा प्रसन्न हुआ ।
दिन बीते, महीने बीते । चौकीदार को एक बार फिर रुपसी की याद सताने लगी । आंखों के आगे रह रहकर उसका सुंदर चेहरा आने लगा ।वो एक बार फिर उसके पास पंहुचने को उतावला हो उठा और एक दिन चुपचाप घर से जंगल की ओर निकल पड़ा । जंगल में पंहुचकर उसने उस स्थान पर पंहुचने का लाख प्रयत्न किया पर रास्ता न मिला ।
 
थकहार कर वह वापिस फिर बुढ़िया के ठिकाने पर पंहुच गया और रास्ता बताने की गुहार लगाई । बुढ़िया ने कहा तुम फिर से उस जगह पंहुच सकते हो पर उसके लिये तुम्हें फिर से बलि देनी पड़ेगी ।
चौकीदार ने पूछा -किसकी?
बुढ़िया ने कहा- अपने बेटे की ।
कामांध चौकीदार दौड़ता हुआ घर गया और अपने अबोध बेटे को उठाकर ले आया ।
बुढ़िया ने उसे बलि की वही प्रक्रिया बताई ।
कामांध चौकीदार ने जैसे ही तलवार उठाकर बेटे की गर्दन काटनी चाही, बुढ़िया ने उसका हाथ पकड़ लिया और धीरे से पूछा -हुण दस्स चौकीदारा ! राजा कुनी मारेया’ ?

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