फूलदेई उत्तराखंड का लोक पर्व || फूलदेई की शुभकामनाएं || Phool dei 2025 | Phuldei | phool dei photo

फूलदेई उत्तराखंड का लोक पर्व || फूलदेई की शुभकामनाएं ||  Phool dei 2025 | Phuldei | phool dei photo

फूलदेई उत्तराखंड का लोक पर्व || फूलदेई की शुभकामनाएं || Phool dei 2025 | Phuldei | Phool dei Photo

उत्तराखंड वासियों का प्रकृति प्रेम जगविख्यात है। चाहे पेड़ बचाने के लिए चिपको आंदोलन हो या पेड़ लगाने के लिए मैती आंदोलन, या फिर प्रकृति का त्योहार हरेला हो। इसी तरह से प्रकृति को प्रेम प्रकट करने का पर्व या प्रकृति का आभार प्रकट करने का प्रसिद्ध त्योहार फूलदेई मनाया जाता है।

फूलदेई त्योहार का महत्व
फूलदेई मुख्यतः बच्चों द्वारा मनाया जाता है और इसे उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोक पर्व माना जाता है। इसे लोक बाल पर्व भी कहा जाता है। यह त्योहार चैत्र मास के पहले दिन मनाया जाता है, जो मार्च 14 या 15 के आसपास पड़ता है। यह पर्व उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल मंडल के साथ-साथ जौनसार में भी मनाया जाता है।

फूलदेई के दिन, बच्चे घर-घर जाकर ताजे फूल और चावल रखते हैं और इस दिन का विशेष गीत गाते हैं। घरवाले बदले में उन्हें चावल, गुड़ और पैसे देते हैं। यह त्योहार बच्चों द्वारा नववर्ष के स्वागत के रूप में मनाया जाता है।

फूलदेई मनाने की विधि
उत्तराखंड में फूलदेई का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। बच्चे ताजे फूलों से घरों की देहरी सजाते हैं। खासकर प्योंली और बुरांश के फूलों का प्रयोग इस दिन बड़े श्रद्धा भाव से किया जाता है।

इस दिन महिलाएं सुबह-सुबह घरों की साफ-सफाई करती हैं और देहरी पर ताजे गोबर से लीप कर उसे शुद्ध करती हैं। इसके बाद बच्चे घरों में फूलों और चावलों को लेकर जाते हैं और गाते हैं, "फूलदेई छम्मा देई दैणी द्वार भर भकार," और इसके बदले में लोग बच्चों को गुड़, चावल और पैसे देते हैं।

उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में इस पर्व को मनाने का तरीका अलग-अलग है। कुछ जगहों पर यह एक दिन मनाया जाता है जबकि केदार घाटी में यह आठ दिन तक चलता है। गढ़वाल क्षेत्र में बच्चे पूरे महीने विभिन्न प्रकार के फूल इकट्ठा कर उन्हें देहरियों और आंगन में सजाते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

फूलदेई के गीत
उत्तराखंड के लोक गीतों में फूलदेई के दिन बच्चे विशेष गीत गाते हैं, जैसे कि:

  • कुमाउनी गीत
    "फूलदेई छम्मा देई,
    दैणी द्वार भर भकार।
    यो देली सो बारम्बार।"

  • गढ़वाली गीत
    "ओ फुलारी घौर।
    झै माता का भौंर।
    क्यौलिदिदी फुलकंडी गौर।"

फूलदेई का इतिहास
फूलदेई का इतिहास भी बहुत रोचक है। इस त्योहार से जुड़ी एक लोककथा के अनुसार, प्योंली नामक एक वनकन्या थी जो जंगल में रहती थी। एक दिन एक राजकुमार उससे प्रेम करने लगा और उसे अपने साथ ले गया। लेकिन प्योंली को अपने जंगल और पेड़ों की याद आने लगी। दुखी होकर वह मर गई और उसके दफनाने के स्थान पर पीले रंग के फूल उग आए, जिन्हें प्योंली फूल कहा जाता है। तब से ही इस दिन को फूलदेई के रूप में मनाया जाने लगा।

फूलदेई की शुभकामनाएं
इस त्यौहार को लेकर लोग एक दूसरे को फूलों से भरी शुभकामनाएं भेजते हैं और सभी की समृद्धि की कामना करते हैं। उत्तराखंड का यह लोक पर्व हमें प्रकृति के प्रति आभार और प्रेम सिखाता है।

निष्कर्ष
फूलदेई उत्तराखंड का एक अनूठा लोक पर्व है जो न केवल बच्चों के लिए, बल्कि पूरे परिवार और समाज के लिए खुशी और समृद्धि का संदेश लेकर आता है। इस दिन की रौनक और बच्चों की मासूमियत इस पर्व को और भी खास बनाती है।

फूलदेई के इस विशेष पर्व के दौरान, प्राकृतिक सौंदर्य का सम्मान करना और उसका आनंद लेना सचमुच में एक अद्भुत अनुभव है।

फूलदेई क्या है?

उत्तर: फूलदेई उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोक पर्व है, जिसे मुख्यतः बच्चों द्वारा मनाया जाता है। यह चैत्र मास की पहली तिथि को मनाया जाता है और इस दिन बच्चे ताजे फूलों से घरों के द्वार सजाकर मंगलकामनाएँ करते हैं।

फूलदेई कब मनाया जाता है?

उत्तर: फूलदेई त्योहार हर साल चैत्र माह के पहले दिन, यानी मार्च 14 या 15 को मनाया जाता है। यह त्योहार उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों में मनाया जाता है।

फूलदेई मनाने की परंपरा क्या है?

उत्तर: फूलदेई पर बच्चे ताजे फूल जैसे प्योंली और बुरांश के फूल लाकर घरों के द्वार पर चढ़ाते हैं और फूलदेई के गीत गाते हैं। इसके बदले में घरवाले उन्हें गुड़, चावल और पैसे देते हैं।

फूलदेई के गीत क्या होते हैं?

उत्तर: फूलदेई के दिन बच्चे कुमाऊंनी या गढ़वाली भाषा में लोक गीत गाते हैं। कुछ प्रसिद्ध गीत हैं:

  • "फूलदेई छम्मा देई, दैणी द्वार भर भकार।"
  • "ओ फुलारी घौर, झै माता का भौंर।"

फूलदेई का धार्मिक महत्व क्या है?

उत्तर: फूलदेई का धार्मिक महत्व प्रकृति और बच्चों के प्रति आभार व्यक्त करना है। यह त्योहार नववर्ष के स्वागत के रूप में मनाया जाता है और यह समाज में समृद्धि और खुशहाली की कामना करता है।

फूलदेई के त्योहार में कौन से पकवान बनाए जाते हैं?

उत्तर: फूलदेई के दिन बच्चों को गुड़, चावल और पैसे मिलते हैं। इसके अलावा, विशेष पकवान जैसे हलवा, छोई, शाइ, साया (कुमाऊं के भोटांतिक क्षेत्र में) बनाए जाते हैं।

फूलदेई का क्या इतिहास है?

उत्तर: फूलदेई का इतिहास एक लोककथा से जुड़ा हुआ है, जिसमें प्योंली नामक वनकन्या का उल्लेख है, जिसकी मृत्यु के बाद उसके नाम पर पीले रंग का फूल खिलने लगा, जिसे अब फूलदेई के रूप में मनाया जाता है।

फूलदेई के अन्य नाम क्या हैं?

उत्तर: फूलदेई को कुछ क्षेत्रों में फूल संक्रांति, फुलारी और फूलों का त्योहार भी कहा जाता है। यह उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।

फूलदेई का सामाजिक महत्व क्या है?

उत्तर: फूलदेई बच्चों और समाज के बीच रिश्तों को प्रगाढ़ करने का एक अवसर है। यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने और समाज में समृद्धि लाने का एक तरीका है।

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