Shri Narmada Chalisa / श्री नर्मदा चालीसा

  श्री नर्मदा चालीसा

श्री नर्मदा चालीसा" का पाठ करने की सामान्य विधि निम्नलिखित हो सकती है
विधि:
  1. शुभ मुहूर्त का चयन: शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
  2. पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
  3. नर्मदा माँ की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें: नर्मदा माँ की मूर्ति, चित्र, या यंत्र के सामने बैठें।
  4. शुद्धि और स्नान: स्नान करें और शुद्धि धारण करें।
  5. पूजा का आरंभ: नर्मदा माँ की पूजा का आरंभ करें, जैसे कि कलश पूजा, चौघड़िया पूजा, और देवी पूजा।
  6. मंत्र उच्चारण: फिर, "श्री नर्मदा चालीसा" का पाठ करें, मन्त्र को ध्यानपूर्वक और भक्तिभाव से उच्चारित करें।
  7. आरती और प्रशाद: पूजा के बाद, नर्मदा माँ की आरती करें और प्रशाद बाँटें।
  8. भक्ति भाव: पूरे पाठ के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से भगवान की अनुपस्थिति में समर्पित रहना चाहिए।
इस प्रकार, आप श्री नर्मदा चालीसा का पाठ करने के लिए उपयुक्त विधि का पालन कर सकते हैं।

॥ दोहा ॥
देवि पूजिता नर्मदामहिमा बड़ी अपार । 
चालीसा वर्णन करतकवि अरु भक्त उदार ॥
इनकी सेवा से सदामिटते पाप महान । 
तट पर कर जप दान नर पाते हैं नित ज्ञान ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय नर्मदा भवानीतुम्हरी महिमा सब जग जानी 
अमरकण्ठ से निकलीं मातासर्व सिद्धि नव निधि की दाता ।
कन्या रूप सकल गुण खानीजब प्रकटीं नर्मदा भवानी ।
सप्तमी सूर्य मकर रविवाराअश्वनि माघ मास अवतारा 
वाहन मकर आपको साजैंकमल पुष्प पर आप विराजै ।
ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैंतब ही मनवांछित फल पावैं ।
दर्शन करत पाप कटि जातेकोटि भक्त गण नित्य नहाते ।
जो नर तुमको नित ही ध्यावैवह नर रुद्र लोक को जावैं ।
मगरमच्छ तुम में सुख पावैंअन्तिम समय परमपद पावैं ।
मस्तक मुकुट सदा ही साजैंपांव पैंजनी नित ही राजें 
कल-कल ध्वनि करती हो मातापाप ताप हरती हो माता ।
पूरब से पश्चिम की ओराबहतीं माता नाचत मोरा ।
शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैंसूत आदि तुम्हरौ यश गावैं ।
शिव गणेश भी तेरे गुण गावैंसकल देव गण तुमको ध्यावैं ।
कोटि तीर्थ नर्मदा किनारेये सब कहलाते दुःख हारे ।
मनोकामना पूरण करतीसर्व दुःख माँ नित ही हरतीं ।
कनखल में गंगा की महिमाकुरूक्षेत्र में सरसुति महिमा ।
पर नर्मदा ग्राम जंगल मेंनित रहती माता मंगल में ।
एक बार करके असनानातरत पीढ़ी है नर नाना ।
मेकल कन्या तुम ही रेवातुम्हरी भजन करें नित देवा ।
जटा शंकरी नाम तुम्हारातुमने कोटि जनों को तारा ।
समोद्भवा नर्मदा तुम होपाप मोचनी रेवा तुम हो ।
तुम महिमा कहि नहिं जाईकरत न बनती मातु बड़ाई ।
जल प्रताप तुममें अति माताजो रमणीय तथा सुख दाता ।
चाल सर्पिणी सम है तुम्हारीमहिमा अति अपार है तुम्हारी ।
तुम में पड़ी अस्थि भी भारीछुवत पाषाण होत वर वारी ।
यमुना में जो मनुज नहातासात दिनों में वह फल पाता 
सरसुति तीन दिनों में देतींगंगा तुरत बाद ही देतीं 
पर रेवा का दर्शन करकेमानव फल पाता मन भर के ।
तुम्हरी महिमा है अति भारीजिसको गाते हैं नर-नारी ।
 जो नर तुम में नित्य नहाता रुद्र लोक में पूजा जाता । 
जड़ी बूटियां तट पर राजेंमोहक दृश्य सदा ही साजें ।
वायु सुगन्धित चलती तीराजो हरती नर तन की पीरा ।
घाट घाट की महिमा भारीकवि भी गा नहिं सकते सारी ।
नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजाऔर सहारा नहीं मम दूजा ।
हो प्रसन्न ऊपर मम मातातुम ही मातु मोक्ष की दाता ।
जो मानव यह नित है पढ़ताउसका मान सदा ही बढ़ता ।
जो शत बार इसे है गातावह विद्या धन दौलत पाता ।
अगणित बार पढ़े जो कोईपूरण मनोकाम ना होई ।
सबके उर में बसत नर्मदायहां वहां सर्वत्र नर्मदा ।
॥ दोहा ॥
भक्ति भाव उर आनि केजो करता है जाप । माता जी की कृपा सेदूर होत सन्ताप ॥

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