श्री वैष्णो देवी चालीसा / Shri Vaishno Devi Chalisa

 श्री वैष्णो देवी चालीसा

श्री वैष्णो देवी चालीसा" का पाठ करने की सामान्य विधि निम्नलिखित हो सकती है:
विधि:
  1. शुभ मुहूर्त का चयन: शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
  2. पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
  3. वैष्णो देवी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें: वैष्णो देवी की मूर्ति, चित्र, या यंत्र के सामने बैठें।
  4. शुद्धि और स्नान: स्नान करें और शुद्धि धारण करें।
  5. पूजा का आरंभ: वैष्णो देवी की पूजा का आरंभ करें, जैसे कि कलश पूजा, चौघड़िया पूजा, और देवी पूजा।
  6. मंत्र उच्चारण: फिर, "श्री वैष्णो देवी चालीसा" का पाठ करें, मन्त्र को ध्यानपूर्वक और भक्तिभाव से उच्चारित करें।
  7. आरती और प्रशाद: पूजा के बाद, वैष्णो देवी की आरती करें और प्रशाद बाँटें।
  8. भक्ति भाव: पूरे पाठ के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से भगवान की अनुपस्थिति में समर्पित रहना चाहिए।
इस प्रकार, आप श्री वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करने के लिए उपयुक्त विधि का पालन कर सकते हैं।

॥ दोहा ॥

गरुड़ वाहिनी वैष्णवी त्रिकूटा पर्वत धाम । 
कालीलक्ष्मीसरस्वती शक्ति तुम्हें प्रणाम ॥

॥ चौपाई ॥

नमोः नमोः वैष्णो वरदानीकलि काल में शुभ कल्याणी ।
मणि पर्वत पर ज्योति तुम्हारीपिंडी रूप में हो अवतारी ।
देवी देवता अंश दियो हैरत्नाकर घर जन्म लियो है।
करी तपस्या राम को पाऊँत्रेता की शक्ति कहलाऊँ ।
कहा राम मणि पर्वत जाओकलियुग की देवी कहलाओ ।
विष्णु रूप से कल्की बनकरलूंगा शक्ति रूप बदलकर |
तब तक त्रिकुटा घाटी जाओगुफा अंधेरी जाकर पाओ ।
काली - लक्ष्मी-सरस्वती माँकरेंगी शोषण – पार्वती माँ ।
ब्रह्माविष्णुशंकर द्वारेहनुमतभैरों प्रहरी प्यारे ।
रिद्धि सिद्धि चंवर डुलावेंकलियुग वासी पूजन आवें ।
पान सुपारी ध्वजा नारियलचरणामृत चरणों का निर्मल ।
दिया फलित वर माँ मुस्काईकरन तपस्या पर्वत आई 
कलि कालकी भड़की ज्वालाइक दिन अपना रूप निकाला 
कन्या बन नगरोटा आईयोगी भैरों दिया दिखाई  
रूप देख सुन्दर ललचायापीछे-पीछे भागा आया ।
कन्याओं के साथ मिली माँकौल-कंदौली तभी चली माँ 
देवा माई दर्शन दीनापवन रूप हो गई प्रवीणा ।
नवरात्रों में लीला रचाईभक्त श्रीधर के घर आई ।
योगिन को भण्डारा दीनासबने रुचिकर भोजन कीना ।
मांसमदिरा भैरों मांगीरूप पवन कर इच्छा त्यागी ।
बाण मारकर गंगा निकालीपर्वत भागी हो मतवाली 
चरण रखे आ एक शिला जबचरण पादुका नाम पड़ा तब ।
पीछे भैरों था बलकारीछोटी गुफा में जाय पधारी ।
नौ माह तक किया निवासाचली फोड़कर किया प्रकाशा ।
आद्या शक्ति-ब्रह्म कुमारीकहलाई माँ आद कुंवारी ।
गुफा द्वार पहुंची मुस्काईलांगुर वीर ने आज्ञा पाई 
भागा-भागा भैरों आयारक्षा हित निज शस्त्र चलाया 
पड़ा शीश जा पर्वत ऊपरकिया क्षमा जा दिया उसे वर ।
अपने संग में पुजवाऊंगीभैरों घाटी बनवाऊंगी  
पहले मेरा दर्शन होगापीछे तेरा सुमरन होगा 
बैठ गई माँ पिण्डी होकरचरणों में बहता जल झर-झर ।
चौंसठ योगिनी-भैरों बरवनसप्तऋषि आ करते सुमरन ।
घंटा ध्वनि पर्वत पर बाजेगुफा निराली सुन्दर लागे 
भक्त श्रीधर पूजन कीनाभक्ति सेवा का वर लीना ।
सेवक ध्यानूं तुमको ध्यायाध्वजा व चोला आन चढ़ाया 
सिंह सदा दर पहरा देतापंजा शेर का दुःख हर लेता ।
जम्बू द्वीप महाराज मनायासर सोने का छत्र चढ़ाया 
हीरे की मूरत संग प्यारीजगे अखंड इक जोत तुम्हारी ।
आश्विन चैत्र नवराते आऊँपिण्डी रानी दर्शन पाऊँ ।
सेवक 'शर्माशरण तिहारीहरो वैष्णो विपत हमारी।

॥ दोहा ॥

कलियुग में महिमा तेरीहै माँ अपरम्पार । 
धर्म की हानि हो रहीप्रगट हो अवतार।

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