हिसालू The caste of Hisalu is very risalu, but its poetry is very rosy

हिसालू की जात बड़ी रिसालू है,  पर उसका काव्यफल बड़ा रसालू है

The caste of Hisalu is very risalu, but its poetry is very rosy

वनौषधि के रूप में हिसालू 

जिस भी पर्वतीय बन्धु का बचपन पहाड़ों में बीता है तो उसने हिसालू का खट्टा-मीठा स्वाद भी जरूर चखा होगा और इस फल को तोड़ते समय इसकी टहनियों में लगे टेढ़े और नुकीले काटों की खरोंच भी जरूर खाई होगी। वे दिन अब भी याद हैं जब गर्मियों में स्कूल की दो महीनों की छुट्टियों में अपने गांव  जोयूं जाना होता था तो उसका एक अनोखा परम सुख हिसालू टीपने और उसकी खरोंच खाने का भी मिला था। गर्मियों के महीने में सुबह सुबह और फिर दोपहर के बाद गांव के हम बच्चे हिसालू के फल तोड़ने जंगलों की तरफ निकल पड़ते और ताजे ताजे फलों का स्वाद लेते समय हमारे हाथ हिसालू के काँटों से छिल जाया करते थे। तब इतना पता नहीं था कि कुमाऊं के आदिकवि गुमानी ने भी बचपन में हिसालू टीपे होंगे और हिसालू की मां उसकी टहनी ने गुमानी का हाथ धदोड़ दिया होगा। उसी का बदला लेते हुए  गुमानी ने यह द्वयर्थक कविता लिख दी-
"हिसालू की जात बड़ी रिसालू ,
जाँ जाँ जाँछ उधेड़ि खाँछ |
यो बात को क्वे गटो नी माननो,
दुद्याल की लात सौणी पड़ंछ |"
    अर्थात हिसालू की जात बड़ी गुसैल होती है, जहां-जहां जाती है, बुरी तरह उधेड़ देती है, तो भी कोइ इस बात का बुरा नहीं मानता, क्योंकि दूध देने वाली गाय की लातें भी खानी ही पड़ती हैं।  
हिसाऊ/हिसालू/हिसारु/हिसर Himalaya Raspberry 

    👌दरअसल, हिसालू इतना रसीला होता कि उसके आगे सारे फल फीके ही लगते हैं। इसलिए गुमानी ने हिसालू के बारे में इतना ही नहीं लिखा बल्कि उसकी तुलना अमृत फल से भी की है-
"छनाई छन मेवा रत्न सगला पर्वतन में,
हिसालू का तोपा छन बहुत तोफा जनन में,
पहर चौथा ठंडा बखत जनरौ स्वाद लिंण में,
अहो में समझछुं, अमृत लग वस्तु क्या हुनलो ?"
   अर्थात पहाड़ों में तरह-तरह के अनेक रत्न हैं, हिसालू के फल भी ऐसे ही बहुमूल्य तोहफे हैं,चौथे पहर में ठंड के समय हिसालू खाएं तो क्या कहने मैं समझता हूँ इसके आगे अमृत का स्वाद भी क्या होगा !
  1.  हिसालू का दाना कई छोटे-छोटे नारंगी रंग के कणों का समूह जैसा होता है,जिसे कुमाऊंनी भाषा में 'हिसाउ गुन' कहते हैं। नारंगी रंग के हिसालू के अलावा लाल हिसालू की भी एक प्रजाति पाई जाती है। दूनागिरि क्षेत्र में पाण्डुखोली में लाल हिसालू के पेड़ देखे। तब वहां महाराज बलवंत गिरी जी ने लाल हिसालू के कई फायदे बताए उनमें एक फायदा होमोग्लोबिन की कमी को दूर करना और बुखार के बाद आई कमजोरी को दूर करना भी बताया। 
  2.  तब मुझे पहाड़ों की जड़ी बूटियों में नया नया शौक चढ़ा था। लगभग चार पांच सौ कुमाऊं गढ़वाल की जड़ी-बूटियों की खोज भी की,उनके लैटिन बोटेनिकल नाम भी खोजे और फिर आयुर्वेद के निघण्टुओं से उनका मिलान भी किया। किन्तु शौक खत्म हो गया और उसका आजतक  कोई सदुपयोग नहीं कर सका। उसी दौरान अमृत फल हिसालू और उसके भाई किलमॉड से भी मुलाकात हुई। किलमॉड भी हिसालू की तरह एक पहाड़ी फल है,किन्तु उसका विश्व स्तर पर जो आयुर्वैदिक विकास हुआ वैसा हिसालू का नहीं हो सका। हिसालू और काफल ऐसे ऋतुफल हैं,जो ज्यादा समय तक नहीं टिक सकते बस दो तीन घन्टे तक ही इन फलों का रसमय जीवन होता है। 
  3.  उत्तराखण्ड के लोग हिसालु को अपनी जन्मभूमि के फल के रूप में बहुत याद करते हैं,क्योंकि उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों के अलावा यह फल शायद कहीं और नहीं मिलता है। इस रसभरे फल को पहाड़ से अन्य महानगरों में ले जाना भी संभव नहीं है क्योंकि यह फल तोड़ने के 2-3 घन्टे के बाद खराब हो जाता है और खाने लायक नहीं रह पाता। 
  4.  मई-जून के महीने में पहाड़ की कंटीली झाड़ियों में फलने फूलने वाला खट्टे मीठे स्वाद वाला हिसालु उत्तराखंड का अत्यंत ही रसीला स्थानीय ऋतुफल है। इसे कुछ स्थानों पर 'हिंसर' या 'हिंसरु' के नाम से भी जाना जाता है। Rosaceae कुल की झाडीनुमा इस वनस्पति का लैटिन वानस्पतिक नाम Rubus ellipticus, है जिसे अंग्रेजी में golden Himalayan raspberry  अथवा  yellow Himalayan raspberry के नाम से भी जाना जाता है।
  5.  'आयुष दर्पण' द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार हिसालु का फल अब अपने औषधीय गुणों के कारण वास्तव में अमृततुल्य ही है। मेडिसिनल हर्ब्स के रूप में हिसालु को आई.यू.सी.एन. द्वारा 'वर्ल्ड्स हंड्रेड वर्स्ट इनवेसिव स्पेसीज' की लिस्ट में शामिल कर लिया गया है I उत्तराखंड का यह वानस्पतिक पौधा 'एंटीआक्सीडेंट' प्रभावों से युक्त पाया गया है। जर्नल आफ डायबेटोलोजी' के अनुसार हिसालु के फलों का रस बुखार,पेट दर्द, खांसी एवं गले के दर्द में बड़ा ही लाभकारी माना गया है। 
  6.  हिसालु की जड़ों को बिच्छुघास (Indian stinging nettle) की जड़ एवं जरुल (Lagerstroemia parviflora) की छाल के साथ कूट कर काढा बनाकर बुखार में दिया जाता है। इसकी ताजी जड़ से प्राप्त स्वरस का प्रयोग पेट से सम्बंधित बीमारियों में लाभकारी होता है। इसकी पत्तियों की ताज़ी कोपलों को ब्राह्मी की पत्तियों एवं 'दूर्वा' (Cynodon dactylon) के साथ  स्वरस निकालकर सेवन करने से पेप्टिक अल्सर की चिकित्सा की जाती है।
  7.  आयुर्वैदिक दृष्टि से हिसालु का पौधा किडनी-टोनिक की बेहतरीन दवा मानी गई है। नाडी-दौर्बल्य, बहुमूत्र (पोली-यूरिया ), योनि-स्राव, शुक्र-क्षय एवं बच्चों के शय्या-मूत्र आदि के लिए भी इस वनस्पति का चिकित्सीय प्रयोग लाभकारी है। इसके फलों से प्राप्त मूलार्क में एंटी-डायबेटिक तत्त्व पाए जाते हैं। 
  8.  तिब्बती चिकित्सा पद्धति में इसकी छाल का प्रयोग सुगन्धित एवं कामोत्तेजक प्रभाव के लिए किया जाता है। उत्तराखंड हिमालय अनेक प्राकृतिक जड़ी-बूटियों एवं औषधीय गुणों से युक्त ऋतुफलों से समृद्ध है।उनमें से हिसालु एक जंगली फल नहीं अमृत फल भी है। 
  9.   हमारा पहाड़ी रसबरी फल #हिंसोलू

  10.  पर ध्यान इस ओर भी दिया जाना चाहिए कि  हिसालू के कुछ साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं,जिन्हें मैंने स्वयं भोगा है। जब कभी पहाड़ी क्षेत्रों में हिसालु तोड़कर लाते हैं तो गर्म-गर्म हिसालु नहीं खाने चाहिए। ज्यादा हिसालू खाने से नींद भी आ जाती है। ज्यादा मात्रा में हिसालू खाने से लूज मोशन (पेचिस) भी लग जाते हैं।  
     आज बस इतना ही। अपने पहाड़ के पुराने रजिस्टरों और डायरियों में हिसालू के बारे में जो लिखा था, नमक मिर्च के साथ उसे फेसबुक मैं परोस दिया। और भी जड़ी-बूटियों के बारे में शोधपरक सामग्री मिली है,उसे आगे शेयर करता रहूंगा।
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