एक रहस्यमयी नाग मन्दिर- एतिहासिक व भौगौलिक परिदृश्य (A mysterious serpent temple – historical and geographical landscape)

एक रहस्यमयी नाग मन्दिर- एतिहासिक व भौगौलिक परिदृश्य


 उत्तराखंड के पिथौरागढ जिले में  थल कस्बे की उत्तरी दिशा की ओर का एक ऊँचा पर्वत शिखर। कहा जाता है यह पर्वत कभी पूरा स्वर्ण का बना था। पूरे पर्वत का एक ही पत्थर का बना होना इस बात को प्रमाणित करता प्रतीत होता है।  इसी पर्वत शिखर पर विराजते है नागराज श्री कालीयनाग जी। 

ये वही नाग हैं जो द्वापर युग  में नारायण अवतार भगवान श्रीकृष्ण द्वारा यमुना नदी से निकालकर यहाँ पर गरुड़ भय से अभय दान प्रदान किया था। 

      इस बात की प्रमाणिकता इस बात से भी सिद्ध होती है कि इस मन्दिर तक जाने वाले रास्ते में महाभारत कालीन कई अवशेष देखे जा सकते हैं। जैसे भीम द्वारा अपने बल से किये कई चमत्कारिक कार्य, जो आम जनमानस की शक्ति से कई परे हैं। भीम द्वारा बड़े पत्थर को तोड़कर नदी पर पुल बनाने का प्रयास, जो उजाला होने पर पूर्ण नही हो पाया। इसके साथ ही  इस पर्वत शिखर पर  या इसके सामने आसमान पर गरुड़ों का  घुमते हुये ना देखा जाना गरुड़ भय से आजादी की प्रमाणिकता सिद्ध करता है। 
  • भीम द्वारा अपनी शक्ति से कई विशालकाय पत्थरों को खड़ा कर बिरखम का रूप प्रदान किया जाना। द्वापर युग में कब पाण्डव अज्ञातवास या स्वर्गारोहण के समय  यहाँ आये ,ये रसिकों या इतिहासकारों के लिये शोध का विषय हो सकता है। 
  •  पानी के लिये  एक ही सूखे पत्थर की चट्टान पर पत्थर के बीचों बीच पानी के ताजे स्रोत का होना किसी अद्भुत चमत्कार से कम प्रतीत नही होता है, यह स्रोत भू वैज्ञानिकों के लिये भी शोध का विषय है। 
  •  इस मन्दिर में प्राचीन काल से अब तक किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य  न होना भी जादुई प्रतीत होता है कहा जाता है कि नाग एक भवन में नही रह सकते इसलिये वहाँ निर्माण कार्य की अनुमति नही मिलती है। 
  •  वर्ष मे बैशाख पूर्णिमा, ऋषि पंचमी, शरदीय नवरात्रि की पंचमी तिथि , कार्तिक पूर्णिमा, माघ पूर्णिमा को ही मन्दिर में पूजा करने के लिये जाने की प्रथा है। 
  • सात्विकता से ही १०-१२ किमी की खड़ी चढाई पार कर मन्दिर के दर्शन किये जा सकते हैं। 
  • #कालीयनाग,

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