हमारा पहाड़ी रसबरी फल #हिंसोलू
- 👉हिसालू फलों में प्रचुर मात्र में एंटी ऑक्सीडेंट की अधिक मात्रा होने की वजह से यह फल शरीर के लिए काफी गुणकारी माना जाता है |
- 👉इस फलो की जड़ों को बिच्छुघास (Indian stinging nettle) की जड़ एवं जरुल (Lagerstroemia parviflora) की छाल के साथ कूटकर काढा बनाकर बुखार की स्थिति में रामबाण दवा है |
- 👉हिसालू फलो की ताजी जड़ से प्राप्त रस का प्रयोग करने से पेट सम्बंधित बीमारियों दूर हो जाती है एवम् इसकी पत्तियों की ताज़ी कोपलों को ब्राह्मी की पत्तियों एवं दूर्वा (Cynodon dactylon) के साथ मिलाकर स्वरस निकालकर पेप्टिक अल्सर की चिकित्सा की जाती है |
- 👉इसके फलों से प्राप्त रस का प्रयोग बुखार,पेट दर्द,खांसी एवं गले के दर्द में बड़ा ही फायदेमंद होता है |
- 👉इसकी छाल का प्रयोग तिब्बती चिकित्सा पद्धतिमें भी सुगन्धित एवं कामोत्तेजक प्रभाव के लिए किया जाता है |
- 👉हिसालू फल के नियमित उपयोग से किडनी-टोनिक के रूप में भी किया जाता है एवम् साथ ही साथ नाडी-दौर्बल्य , अत्यधिक है |
- 👉मूत्र आना (पोली-यूरिया ) , योनि-स्राव,शुक्र-क्षय एवं शय्या-मूत्र ( बच्चों द्वारा बिस्तर गीला करना ) आदि की चिकित्सा में भी किया जाता है
- 👉हिंसर में पोषक तत्व, जैसे कॉर्बोहाइड्र्रेट, सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, आयरन, जिंक व एसकारविक एसिड प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें विटामिन सी 32 प्रतिशत, मैगनीज 32 प्रतिशत, फाइबर 26 फीसदी व शुगर की मात्रा चार फीसदी तक आंकी गई है।
- 👉हिसालू जैसी वनस्पति को सरंक्षित किये जाने की आवश्यकता को देखते हुए इसे आई.यू.सी.एन . द्वारा वर्ल्ड्स हंड्रेड वर्स्ट इनवेसिव स्पेसीज की लिस्ट में शामिल किया गया है एवम् इसके फलों से प्राप्त एक्सट्रेक्ट में एंटी-डायबेटिक प्रभाव भी देखे गए हैं |
- 👉हिंसर का उपयोग जैम, जेली, विनेगर, वाइन, चटनी आदि बनाने में भी किया जा रहा है। इसके बावजूद गर्मियों में नैनीताल जैसे हिल स्टेशन की सड़कों पर 30 रुपया प्रति सौ ग्राम की दर से हिसालू बिकता दिखता हैण् सैलानी जिसे 300 रुपया किलो खरीद कर खा रहे हैं
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hissau/hisalu/hisaru/hissar उत्तराखण्ड के पारम्परिक परिधान व आभूषण (uttarakhand ke paramparik paridhan v abhushan) |
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हिसालू - hisalu |
हिसालू .... प्रकृति का यह वरदान हमें फलों के रूप में भी प्राप्त होता है ... उत्तराखंड के इन फलों को उगाया नहीं जाता है बल्कि प्राकृतिक रूप से जंगल में स्वयं उत्पन्न होते हैं
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