पहाड़ों की ओर चलो (pahadi ki or chalo)

पहाड़ों की ओर चलो

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कहाँ थपेड़े खाते हो तुम,
       पहाड़ों की ओर चलो|
ढोल,दम्मू,तुतरी,हुड़का,
        नगाड़ों की ओर चलो||
देवी के पावन मंदिर में,
       यज्ञ करैंगे सब मिलकर|
जागर और भागवत होगा,
      भोज करैंगे सब मिलकर||

गर्मी का कटु दंश छोड़ दो,
         तुम जाड़ों की ओर चलो|
कहाँ थपेड़े खाते हो तुम,
          पहाड़ों की ओर चलो||

गाँवों की होगी खुशहाली,
       मिलकर जब हम काम करैं|
अपने धन का कुछ हिस्सा तो,
       हम गाँवों के नाम करैं||

कहीं बनाऐं शौचालय तो,
      व मन्दिर का कहीं सुधार|
कहीं रास्ते ठीक करैंगे,
        बाँट कर आऐंगे प्यार||

यहाँ मिलावटी खाना है,
        तुम फाणू की ओर चलो|
कहाँ थपेड़े खाते हो तुम,
       पहाड़ों की ओर चलो||

दूध विदेशी गायों का है,
            दही,खीर में स्वाद नहीं|
सब्जी भी है रसायनों से,
             गोबर की जब खाद नहीं||

देशी गाय का दूध वहाँ है,
             बकरी खाड़ू की ओर चलो|
कहाँ थपेड़े खाते हो तुम,
              पहाड़ों की ओर चलो||

कारबेट से पके हुए सब,
           केला हो या आम हो|
ताकत कहाँ मिलेगी तुमको,
            काजू या बादाम हो||

पुलम खुबानी़ काफल होंगे,
            तुम आड़ू की ओर चलो|
कहाँ थपेड़े खाते हो तुम,
              पहाड़ों की ओर चलो||
👏👏👏👏👏👏👏👏👏
©डा०विद्यासागर कापड़ी

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