हिसालू वानस्पतिक नाम ( rubus elipticus)
इसे हिमालय रसबेरी भी कहा जाता है,
यह कटीली झांडियो में उगने वाला ,रसदार फल है, यह पीले रंग का फल होता है और पकने के बाद बहुत मीठा होता है, यह फल बहुत ही कोमल होता है जीभ पर रखने पर पिघलने लग जाता है,
यह फल उतराखंड के पहाड़ी जनपदों में पाया जाता है,
यह फल ने गढ़वाली कुमाऊंनी गानो में भी विषेश स्थान है,
यह फल ने गढ़वाली कुमाऊंनी कहि रोचक कथा भी हैं
यह फल तोड़ने के एक से दो घंटे के बीच खराब हो जाता है,
हिसालू में प्रचुर मात्रा में एंटी आक्सीडेंट होने के कारण यह शरीर के लिऐ काफी गुणकारी होता है
इसकी जडों को, बिच्छू घास की जड और जरूल ( lagerstroemia parviflora) की छाल के साथ कूटकर काढा बनाकर पिलाने से बुखार के लिये रामबाण दवा है,
इसके फल का रस बुखार, पेटदर्द, खासी और गले के दर्द में भी फायदेमंद होता है,
आजकल हो रहे इस का फल का आनंद ले
हिसाऊ/हिसालू/हिसारु/हिसर |
कल रात #काफल सा शरीर मेरे सामने वृक्षवत रूप में आया उसके साथ उसके छोटे भाई #हिसालू (हिंसर), किंगोड़ा (#किल्मोड़ा), #घिंघारू भी थे। काफल बोला तुम चौनालिया इंटर कॉलेज में काफल पाको चैता की धुन पर बड़ा नाच रहे थे! तुम्हारे उत्तराखंडी भाई-बंधु भी काफल पाको चैता-काफल पाको चैता की धुन पर मटकते रहते हैं। मगर जहां काफल पक रहा है वहां आकर भी क्या मेरा स्वाद चखा? मेरा छोटा भाई हिसालू (हिंसर) और किंगोडा (किल्मोड़ा) हजारों कांटों के साथ तुम्हारे लिए अपने फलों की रक्षा करता है, तुम्हें तब भी उसकी याद नहीं आती है! काफल ने मुझसे कहा जब ज्यादा शराब पीने से तुम्हें लीवर सिरोसिस हो जाता है, तब भी तुम्हे किंगोड़े की और मेरी याद नहीं आती है, मुझसे कहा कि बेकार है तुम्हारी प्रसिद्धी, कुछ करो तो मैं जानूं!
मैंने आंख खुलते ही फैसला लिया है कि इस साल मोहनरी में काफल मेला होगा। उम्मीद करता हूं श्री धामी धाकड़, श्री त्रिवेंद्र सिंह मक्कड़ आदि सभी पूर्व वर्तमान बड़े-बड़े नाम चारी लोग भी अपने-अपने गांव जाकर काफल का स्वाद चखें और रात केरुवा (asparagus) की सब्जी के साथ रोटी खाएं, यकीन मानिए काफल 500 रुपए से ऊपर बिकने लग जायेगा। हमारा उत्तराखंड और हरा-भरा हो जायेगा।
उत्तराखंड के स्थानीय फल
पिछले एक छोटे से लेख में मैंने पहाड़ी सीढ़ीदार खेतों को बेहतरीन ओर्गानिक उत्पादों के उत्पादक केन्द्र में कैसे बदला अपने अनुभव आप लोगों के साथ साझा किए ।
किन्तु मै आप लोगों को बताना चाहूँगा की सीढ़ीदार खेत मात्र कृषि और पुष्प उत्पादन मात्र के उपयोग ही नहीं अपितु एक खेत से नीचे दूसरे खेत के बीच की जगह भी हम उत्पादकता में बदल सकते है यह कोई नयी चीज़ में नहीं बता रहा हु हमारे पहाड़ में इस जगह में अधिकतर घास या जंगली फल उग जाते है जो अव्यवस्थित रूप में होते है ।
किन्तु जब हम इसी चीज़ को स्वरोज़गार और आर्थिकी से जोड़ते है हमें इस जगह का सदुपयोग भी बहुत समझदारी से करना चाहिए । दानापानी फार्म में फ़सलो के साथ साथ गोल्डन Himalayan रैस्पबेरी जिसे हम सभी “हिसालू” के रूप जानते है के भी बहुत सारे झाड़ियाँ(Shrubs) भी लगायी है, इसका वानस्पतिक नाम “रुबूस एल्लिपटिकस (Rubus ellipticus) भी कहते है । हम इसकी आयुर्वेदिक ख़ासियत बाहरी प्रदेश के मेहमानो को समझाते है की गर्मी के मौसम में यह शरीर में फ़्लूइड बैलेन्स या डीहायड्रेशन रोकने के काम आते है और इसका रस कॉफ़ सिरप के रूप में भी इस्तेमाल हो सकता है ।
अतः हमें अपने कृषि उत्पादों के साथ साथ प्राकृतिक रूप से प्रदत्त फलो को भी मार्केट करना चाहिए ताकि हमारे प्रकृति का लाभ बाहर से आए हमारे अतिथि ले सके, इन फलो का स्वाद अनुभव करे और हम इन फलो की माँग बाहरपैदा कर सके फिर इनको इस लेवल पर उत्पादन कर पाए ताकि डिमांड पूरी हो सके यह हाइपथेटिकल है पर यही वो मार्केटिंग है जो हमें मिलकर करनी होगी ।
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हिसालू - hisalu |
एक और फल है “तिमील” जिसका वानस्पतिक नाम फायकस औरिक्यूलाता लोऊर (Ficus auriculata Lour) इसके भी बहुत सारे पेड़ हमने प्लांट किए है तथा इसे फल और सब्ज़ी तथा आचार के रूप में भी प्रयोग कर सकते है, तथा यह डायजेस्टिव दवाईके रूप में भी प्रयोग हो सकता है ।
छनाई छन् मेवा रत्न सगला पर्वतन में,
हिसालू का तोपा छन बहुत तोफा जनन में।
पहर चौथा ठंडा बखत जनरो स्वाद लिण में,
अहो मैं समझछुं अमृत लग वस्तु क्या हुनलो ।
#हिसालू प्रकृति की अत्यंत गुणकारी देन।
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