उत्तराखण्ड में ब्रिटिश प्रशासनिक व्यवस्था(British Administrative System in Uttarakhand)

उत्तराखण्ड में ब्रिटिश प्रशासनिक व्यवस्था(British Administrative System in Uttarakhand)


उत्तराखंड में ब्रिटिश कुमाऊं के कमिश्नर | Commissioner of British Kumaon in Uttarakhandi

1815 में गोरखों को पराजित करने के पश्चात् उत्तराखण्ड में ईस्ट इण्डिया कंपनी के माध्यम से अंग्रेजी राज्य प्रारम्भ हो गया। 03 मई 1815 को एडवर्ड गार्डनर को पहला कुमाउं कमिश्नर बनाया गया। 1802 में लार्ड बेलेजली ने गॉट महोदय को कुमाउं की जलवायु, जंगल एवं परिस्थितियों का संकलन करने के लिये भेजा गया था। उत्तराखण्ड पर अधिकार करने के बाद गढ़वाल को दो भागों में बांटा गया। पहला ब्रिटिश गढ़वाल और दूसरा टिहरी गढ़वाल राज्य में बांटा था।अंग्रेजों ने अलकनंदा नदी के पूर्व के भू-भाग पर अधिकार कर उसे ब्रिटिश गढ़वाल की संज्ञा दो तथा कुमाऊँ कमिश्नरी में शामिल कर लिया गया था। अलकनंदा के पश्चिमी भू-भाग में टिहरी गढ़वाल राज्य की स्थापना की गई थी। टिहरी रियासत में अंग्रेजी सरकार का एक एजेंट भी नियुक्त किया जाता था। प्रारंभ में यह एजेंट कुमाऊं का कमिश्नर होता था। परंतु 1825 ई से 1842 ई तक देहरादून के डिप्टी कमिश्नर को यह जिम्मेदारी सौंपी गयी। 

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नरी

1842 में पुनः कुमाऊं कमिश्नर को यह जिम्मेदारी दे दी गयी थी। टिहरी रियासत को 1837 ई में पंजाब हिल स्टेट एजेंसी के साथ मिला दिया गया था। 1815 में ब्रिटिश कुमाऊँ को गैर विनियमित क्षेत्र (नॉन रेग्यलेशन प्रान्त) घोषित किया गया था। इस क्षेत्र में बंगाल प्रेशीडेंशी के अधिनियम पूर्ण से रूप से लागू नहीं किए गए थे। स्थानीय अधिकारियों को अपने नियम बनाकर प्रभावी करने की अनुमति दी गई थी। गैर-विनियमित प्रान्तों के जिला प्रमुखों को डिप्टी कमिश्नर कहा जाता था। जिन प्रांतों को किसी गवर्नर या लेफ्टिनेंट के अधीन रखा गया और जहां एक्ट द्वारा अधिकृत रेग्यूलेशन प्रस्थापित होते थे। तो उन्हें रेग्यूलेशन प्रान्त कहा जाता था।क्षअन्य प्रान्त जो मुख्य आयुक्त के अधीन रखे गए और जहां ये रेग्यूलेशन लागू नहीं होते थे उन्हें गैर विनियमित क्षेत्र की संज्ञा दी जाती थी। ब्रिटिश शासन की वास्तविक आधारशिला इसके दूसरे कमिश्नर जॉर्ज विलियम ट्रेल के कार्यकाल (1817-1835) रखी गई थी। प्रारंभ में उत्तराखंड में एक ही शक्तिशाली पद था पर 1839 ई में गढवाल जिले का निर्माण किया गया। इस प्रकार उत्तराखंड में दो जिले कुमाऊं एवं गढवाल हो गये थे। 1842 ई में तराई जिले का निर्माण किया गया था। उत्तराखंड को ब्रिटिश नियंत्रण में रखने का स्वप्न सर्वप्रथम हेस्टिंगस का था।

ब्रिटिश कुमाऊं के कमिश्नर और उनके महत्वपूर्ण कार्य(Commissioner of British Kumaon and his Important Works)

  • कुमाऊं पर कुल 24 कमिश्नरों ने शासन किया। जिसमे से 23 ब्रिटिश कमिश्नर और 1 भारतीय कमिश्नर रहे है। कुमाऊं के पहले कमिश्नर एडवर्ड गार्डनर और 23 वे कमिश्नर डब्ल्यू फिनले जो 1947 तक कुमाऊं कमिश्नर रहे थे। फिर स्वतंत्रता के बाद के. एल. मेहता कुमाऊं के कमिश्नर बने थे।

एडवर्ड गार्डनर(Edward Gardner) (1815-16 ई.)

  • 03 मई 1815 में एडवर्ड गार्डनर को ब्रिटिश कुमाऊँ का प्रथम कमिश्नर नियुक्त किया गया था। उनका कार्यकाल 11 महीने का रहा। गार्डनर के कमिश्नर बनने के 2 महीनों के अंतराल में ही ट्रेल को उसके सहायक के रूप में कुमाऊँ भेज दिया गया था। 08 जुलाई 1815 को जॉर्ज विलियम ट्रेल को गार्डनर का सहायक नियुक्त किया गया था।

एडवर्ड गार्डनर के महत्वपूर्ण कार्य (Important Works of Edward Gardner)

  • इसने उत्तराखंड को कंपनी में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • जून 1815 में गार्डनर ने बच्चों का विक्रय अवैध घोषित कर दिया और विक्रय पर लगाया गया टैक्स भी समाप्त कर दिया था।
  • 1815 में एडवर्ड गार्डनर ने अल्मोड़ा व श्रीनगर के बीच पहली बार डाक व्यवस्था की शुरूआत की गई थी।
  • नोट- उत्तराखंड में सर्वप्रथम नियमित रूप से डाक व्यवस्था स्थापित करने का श्रेय अल्मोड़ा के मनोरथ भट्ट को दिया जाता है। 1893 में इन्हीं के प्रयास से अल्मोड़ा व गढवाल में डाक व्यवस्था प्रारंभ हो सकी थी।
  • नोट- मैं देश का प्रथम डाकिया हूं यह कथन हेमवंती नंदन बहुगुणा का है।
  • गार्डनर के समय ब्रिटिश कुमाउं गढवाल में कुल 9 तहसीलें थी।
  • कुमाऊं में ब्रिटिश कालीन प्रथम भूमि बंदोबस्त 1815-16 में इन्हीं के कार्यकाल में हुआ था।
  • गोरखा युद्ध के पश्चात् संगौली की संधि की पुष्टि करते ही गार्डनर को काठमाण्डु कोर्ट में राजनीतिक एजेंट के रूप में कार्यभार ग्रहण करने का आदेश प्राप्त हुआ। अतः गार्डनर को 13 अप्रैल 1816 को नेपाल भेजा गया।

जार्ज विलियम ट्रेल(George William Trail) (1816-35 ई.)

  • 13 अप्रैल 1816 को गार्डनर को नेपाल में रेजीडेंट बनाकर भेज दिया गया था। इसलिये ट्रेल को कुमाऊं के कार्यवाहक कमिश्नर के रूप में कार्य करना पड़ा था। कमिश्नर ट्रेल को कुमाऊं का वास्तविक कमिश्नर माना जाता है। 01 अगस्त 1817 को ट्रेल को कुमाऊं का पूर्ण कमिश्नर नियुक्त किया गया था। ब्रिटिश शासन की वास्तविक आधारशिला ट्रेल के कार्यकाल में रखी गयी थी। इसे वास्तविक रूप से कुमाऊं का प्रथम कमिश्नर माना जाता है।

जी डब्ल्यू ट्रेल के महत्वपूर्ण कार्य( Important Works of G.W.Trail)

  • 1816 में कुमाऊं कमिश्नरी का गठन कर इसे बोर्ड ऑफ फर्रुखाबाद के अधीन कर दिया गया।
  • ट्रेल के कार्यकाल में अपराध को कम करने हेतु 1816 में अल्मोड़ा व 1821 में पौढ़ी में जेलों की स्थापना की गई।
  • अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल की स्थापना 1872 में व पौढी की ऐतिहासिक जेल की स्थापना 1850 में को की गयी थी।
  • 1817 में कुमाऊं में रेगुलेशन-10 लगाया गया जिसमें कुमाऊं कमिश्नर को खून व डकैती के मामलों को छोड़कर सभी प्रकार के मुकदमे निपटाने का अधिकार मिल गया था।
  • ट्रेल ने 1817 में जार प्रथा के अंतर्गत की जाने वाली हत्याओं को अपराध घोषित किया गया। ट्रेल के शासन से पूर्व कुमाऊं में पति अपनी पत्नी के उपपति अर्थात जार की हत्या भी कर सकता था। वह बस सरकार को सूचना देता था। कि मैं हत्या करने जा रहा हु। ट्रेल ने इस प्रकार की हत्याओं को अपराध घोषित करते हुये मृत्युदंड देने का आदेश दिया था।
  • ट्रेल ने 1819 में पटवारियों के 09 नए पद सृजित किए। जिन्हें रिवेन्यू पुलिस की संज्ञा दी गई। क्योंकि ये राजस्व व्यवस्था के साथ-साथ पुलिस व्यवस्था भी देखता था।
  • नोट चंद व परमार राजाओं के शासनकाल में कानूनगो के पद सृजित किए गए थे।
  • 1822 में ट्रेल ने कुमाऊं में आबकारी व्यवस्था की शुरूआत की गई थी।
  • कुली बेगार का अंत करने के लिये पहला प्रयास ट्रेल ने किया। ट्रेल उत्तराखंड के लोगों का हिमायती था। उसने सन् 1822 में इस प्रथा को हटाने तथा खच्चर सेना विकसित करने का प्रयास किया।
  • ग्लिन नामक अधिकारी ने ट्रेल को खच्चर समिति गठित करने को कहा था।
  • सन् 1823ई० अस्सी साला बंदोबस्त या पंचसाला बंदोबस्त किया गया था।
  • नोट- क्योंकि यह बंदोबस्त संवत 1880 में हुआ था इस कारण इसे अस्सी साला बंदोबस्त कहते है।
  • इसके ही काल में प्रथम भू व्यवस्था की गयी थी।
  • ट्रेल के कार्यकाल में कुल 7 भूमि बंदोबस्त हूये थे।
  • सरकारी खजानों का नियंत्रण भी इनके द्वारा प्रारम्भ किया गया था। इसके लिये ट्रेल ने 1824 में डबल लॉक व्यवस्था लागू की गई थी।
  • इस व्यवस्था के द्वारा खजाने की एक कुंजी कलैक्टर के पास तथा दूसरी ट्रेजर के पास रहती थी।
  • 1824 में ब्रिटिश लेखक विशप हेबर द्वारा कुमाऊं में चाय की खेती सम्भावना व्यक्त की। जिसके लिये 1834 ई में लार्ड विलियम बैंटिंक ने चाय कमेटी का गठन किया। ट्रेल द्वारा इस कमेटी को हर संभव मदद देने का आश्वासन दिया गया था।
  • 1826 ई में ट्रेल ने सरकारी उपयोग हेतु थापला भूमि को आरक्षित कर दिया और साल काटने पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • इस तरह सरकारी वनों की नींव ट्रेल के कार्यकाल में पड़ी थी।
  • 1827-28 में ट्रेल ने हरिद्वार से बद्रीनाथ व केदारनाथ जाने वाले बद्रीनाथ केदारनाथ मार्ग का निर्माण किया। इस कारण उस पर ईसाई होकर हिन्दू धर्म का प्रचार-प्रसार करने का आरोप लगाया गया था।
  • 1828 में ट्रेल ने जन्म-मृत्यु व विवाह को पंजीकृत करने की प्रथा की शुरूआत की गई थी।
  • 1829 में ट्रेल को बद्री-केदार समिति का अध्यक्ष बनाया गया।
  • ट्रेल ने 1829-30 में नदियों पर लोहे के संस्पेंशन पुलों का निर्माण में हल्द्वानी की स्थापना ट्रेल द्वारा ही की गयी थी।
  • 1835 में इन्होंने हल्द्वानी में एक मंडी की स्थापना की गई थी।
  • 1 दिसम्बर 1835 को ट्रेल सेवानिवृत्त हो गए थे।
  • अजय रावत ट्रेल को ही नैनीताल के प्राचीन पाषाण देवी मंदिर की स्थापना का श्रेय भी देते हैं।
  • ट्रेल नैनीताल आने वाले प्रथम अंग्रेज थे। जो 1823 में नैनीताल आये थे।
  • ट्रेल ने अपनी रचना स्टेटिस्टीकल स्केच ऑफ कुमाऊं में 1828 ई में नैनीताल का जिक नागनी ताल के रूप में किया था।
  • कुमाऊं में गौ हत्या पर प्रतिबंध ट्रेल द्वारा लगाया गया था।
  • ट्रेल के शासनकाल को कुमाऊं में "न वकील, न अपील, न दलील" के नाम से जाना जाता है।
  • एटकिंसन ने ट्रेल के कार्यकाल को कुमाऊं के शासन में मां बाप सरकार कहा है।
  • स्थायी बंदोबस्त ट्रेल द्वारा ही किया गया था।
  • ट्रेल द्वारा कुमाऊँ को 26 परगनों में बांटा गया था।
  • पत्नी के विक्रय तथा विधवा को उसके पति के परिवार के लोगों द्वारा बेचे जाने की प्रथा को समाप्त किया था।

मोसले स्मिथ(Moseley Smith) (1835-36 ई)

  • ट्रेल के बाद मोसले स्मिथ ने कमिश्नर का कार्यभार संभाला था।
  • अजय रावत के अनुसार इन्होंने प्रथम कार्यवाहक कमिश्नर के रूप में कार्यभार संभाला था। 

जार्ज गोबान(George Goban) (1836-38 ई)

  • कुमाऊँ में तीसरे कमिश्नर के रूप में कर्नल जॉर्ज गोबान (1836-38) नियुक्त हुए थे। 
  • ये एक सेना अधिकारी थे। उनके पास इस प्रकार के सिविल क्षेत्रों के प्रशासन का अनुभव नहीं था।
  • गोबान की अनेक शिकायतें बोर्ड ऑफ रेवेन्यू तक पहुंच रही थी।
  • सन् 1837 में बोर्ड ऑफ रेवेन्यू ने अपने वरिष्ठ सदस्य राबर्ट मार्टिन बर्ड को गोबान की जांच के लिये कुमाऊं भेजा था।
  • बर्ड ने अपनी रिपोर्ट में गोबान के प्रशासन की कटु आलोचना की थी।
  • जार्ज गोबान ने 1836 में दास विक्रय पर प्रतिबंध लगाया था।
  • गोबान के समय हलिये, छयोडो/छयोडियों का बेचना बंद कर दिया गया था।
  • इसी के समय माफी जमीनों की जांच हुयी और दफतरों की व्यवस्था सुधारी गयी थी।

जॉर्ज टॉमस लुशिंगटन(George Thomas Lushington) (1838-48 ई)

  • 30 नवंबर 1838 को जॉर्ज टॉमस लुशिंगटन की नियुक्ति की गयी थी। लुशिंगटन के कार्यकाल को शांतिकाल के नाम से भी जाना जाता है। इनकी मृत्यु 1948 में पद पर रहते हुये नैनीताल नगर में हुयी थी। यह अपने मृत्यु तक इस पद पर रहे थे।

जॉर्ज टॉमस लुशिंगटन के महत्वपूर्ण कार्य(Important Works of George Thomas Lushington)

  • इनके द्वारा बद्रीनाथ-केदारनाथ यात्रा मार्ग में यात्रियों की चिकित्सा व स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए 1840 में एक स्वदेशी चिकित्सक की नियुक्ति की गई।
  • 1842 में नैनीताल नगरपालिका गठन हेतु एक्ट 'x' 1842 पारित किया गया था।
  • इनके काल में नैनीताल में नगरीकरण प्रारम्भ हुया और 1843 से भूमि आवंटन के प्रार्थना पत्र प्राप्त होने लगे।
  • 1842 में भाबर और तराई कुमाऊं में शामिल किये गये और तराई अलग जिला बनाया गया था।
  • 1842 में उपरी गंग नहर का निर्माण लुशिंगटन के समय शुरू हुआ।
  • 1843 में डां जेमिसन कुमाऊं भ्रमण पर आये।
  • लुशिंगटन ने 12 अप्रैल 1845 में नैनीताल नगरपालिका के प्रथम बाई लॉज का अनुमोदन किया।
  • 1845 में लुशिगटन द्वारा खैरना नैनीताल मार्ग पर कार्य प्रारंभ किया गया था।
  • अक्टूबर 1847 में नैनीताल में एक असिस्टेंट सर्जन की तैनाती की गयी।
  • कमिश्नर की अध्यक्षता में अल्मोड़ा में मार्च 1848 में डिसपेन्सरी कमेटी गठित की गई। साथ ही अल्मोड़ा में एक औषधालय की स्थापना की गई थी।
  • इनके द्वारा 1848 में बागेश्वर में गोमती नदी पर पुल का निर्माण किया गया था।
  • लुशिंगटन ने भी ट्रेल की भांति भोटिया व्यापारियों के मुकदमों की सुनवाई क्षेत्रीय भ्रमण के दौरान बागेश्वर में की। 

जॉन हैलिट बैटन(John Hallett Batten) (1848-56 ई)

  • लुशिंगटन के पश्चात् जॉन हैलिट बैटन (1848-56) को कुमाऊँ के पांचवे कमिश्नर के रूप नियुक्त किया गया था।कमिश्नर के रूप में इनका शासन काल ब्रिटिश शासन का कुमाऊँ में स्वर्णिम युग माना जाता है। ये गोबान व लुशिंगटन के साथ सहायक के रूप में भी कार्य कर चुके थे।

जॉन हैलिट बैटन के महत्वपूर्ण कार्य (Important Works of John Hallett Batten)

  • सन् 1840 में बैटन ने 8वॉ भूमि बंदोबस्त 20 सालों के लिए गढवाल में किया जिसे 20 साला बंदोबस्त के नाम से जानते हैं। यह बंदोबस्त रैम्जे के कार्यकाल में ही पूरा हुआ था।
  • इस बंदोबस्त की विशेषता यह थी कि इसमें खशरा (खेतों) की पैमाइश भी की गयी थी।
  • बैटन के काल में खसरा सर्वेक्षण प्रमुख उपलब्धि थी।
  • 1849 में अल्मोडा के दवाखाने की पिथौरागढ़ व लोहाघाट में शाखाएं स्थापित की गई थी।
  • अल्मोड़ा के दवाखाने तथा अन्य स्वास्थ्य कार्यों के लिए तुलाराम शाह नियमित रूप स चंदा दिया करते थे।
  • इनके कार्यकाल में कोसिला से होते हुये बमोरी अल्मोड़ा मार्ग का सर्वेक्षण कार्य सितंबर 1850 में किया गया था।
  • बैटन के काल में ही उत्तराखंड में पहली बार 22 दिसंबर 1851 को रेल चली थी।
  • 1852 में बैटन ने चाय की खेती के लिये जमीनें लोगों को प्रदान की गई थी।
  • 1854 में अल्मोड़ा में एक कुष्ठ आश्रम व चिकित्सालयों की स्थापना की गई थी।
  • 1855 में बैटन ने कुमाऊँ कमिश्नरी के कार्यालय को अल्मोड़ा से नैनीताल स्थानांतरित किया गया।
  • बैटन के कार्यकाल में डाक बंगलों के रख रखाव की ओर विशेष ध्यान दिया गया।
  • नैनीताल को एक सुंदर पर्यटन नगरी के रूप में स्थापित करने का प्रयास बैटन ने किया।
  • इनके कार्यकाल में असिस्टेंट कमिश्नर स्ट्रची द्वारा गढवाल मे लोहे के प्रथम सस्पेंशन पुल का निर्माण श्रीनगर करवाया गया। जो 1853 में पूर्ण हुआ था।
  • टिहरी के शासक ने भी उनसे सहायता मांगी व टिहरी नगर में सस्पैंशन पुल निर्माण हेतु धनराशि प्रेषित की गई थी।

हैनरी रैम्जे(Henry Ramsey) (1856-84)

  • बैटन के पश्चात हैनरी रैम्जे (1856-84) कमिश्नर बने थे। ये स्कॉटलैंड के निवासी थे और डलहौजी के चचेरे भाई थे। लुशिंगटन की बेटी से रैम्जे का विवाह हुआ था। ये सर्वाधिक समय 28 वर्ष तक कमिश्नर रहे थे। 1850 में रैम्जे ने अपने नाम से रैम्जेनगर या रामजीनगर की स्थापना की। जिसे बाद में रामनगर के नाम से जाना गया। रैम्जे ने सर्वप्रथम कुष्ठरोगियों की ओर ध्यान दिया और गणेश की गैर नामक स्थान पर उनके रहने की व्यवस्था पत्थर के छोटे-छोटे मकानों में की गई थी। बैटन के बाद रैम्जे कुमाऊँ के सर्वाधिक लोकप्रिय कमिश्नर हुए। 17 सितंबर 1857 को खान बहादुर खां (बरेली का नवाब) ने 1000 सैनिकों के साथ हल्द्वानी पर कब्जा कर लिया। इस सेना का नेतृत्व काले खां कर रहा था। 18 सितंबर 1857 को कप्तान मैक्सवेल ने काले खां की सेना को हरा दिया था। 16 अक्टूबर 1857 को खान बहादुर खां द्वारा फजल हक के नेतृत्व में सेना भेजी गयी। लेकिन अंग्रेजी सेना ने इसे भी हरा दिया था। इन्होंने 1857 की क्रान्ति के दौरान न केवल बरेली मण्डल से भागकर आए सिविल व सैन्य अधिकारियों को अपितु पर्यटकों व मिशनरियों को भी नैनीताल में सुरक्षा प्रदान की व आर्थिक सहायता दी।

हैनरी रैम्जे के महत्वपूर्ण कार्य (Important Works of Henry Ramsey)

  • ब्रिटिश लेखकों ने रैम्जे को कुमाऊं का राजा की उपाधि दी। जबकि बी डी पांडे ने रैम्जे को कुमाऊं केसरी कहा जाता है। क्योंकि इन्होंने कुमाऊं में रेवेन्यू पुलिस का विस्तार किया था।
  • 1857 के संग्राम के दौरान रैम्जे ने अहम भूमिका का निर्वाह किया। उनके प्रयासों से कुमाऊँ एक शांत क्षेत्र बना रहा।
  • 1857 के संग्राम को असफल करने हेतु नेपाल से सैनिक सहयोग के रूप में रनवीर सेना प्राप्त की गई।
  • उन दिनों रूहेलखण्ड के कमिश्नर अलेक्जेंडर व बरेली डिवीजन के कई अधिकारियों ने नैनीताल में शरण ले रखी थी। इस अवधि में उनके प्रवास तथा आंशिक वेतन आदि की व्यवस्था भी रैम्जे द्वारा ही की गई।
  • नोट- 1857 के समय गढवाल का डिप्टी कमिश्नर बैकेट था।
  • रैम्जे पूरे कुमाऊँ को ईसाई धर्म में बदलना चाहता था।
  • 1857 के पश्चात् नैनीताल को स्कूली शिक्षा के केंद्र के रूप में विकसित करने का श्रेय हेनरी रैम्जे को जाता है।
  • नोट- 1850 में नैनीताल में मिशन स्कूल की स्थापना हुयी जो आज सीआरएसटी (चेतराम शाह ठुलघरिया) इण्टर कॉलेज नैनीताल के नाम से जाना जाता है।
  • 1869 में शेरवुड कॉलेज, 1869 में ऑल सेन्ट्स कॉलेज, 1877 में स्टेनले स्कूल जो आज बिड़ला मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है।
  • 1878 में सेंट मैरीज कॉनवेन्ट, 1884 में वैलेजली हाईस्कूल तथा 1888 में सेंट जोसेफ कॉलेज स्थापित हुए।
  •  रैम्जे के कार्यकाल में पादरी विलियम बटलर ने नैनीताल में 1858 में भारत के प्रथम मैथोडिस्ट चर्च की स्थापना की सन् 1861 में रैम्जे ने पहला वन बंदोबस्त लागू किया था।
  • 1861 में रैम्जे ने अटूर के कृषकों के लिए बारह आना बीसी की भू-व्यवस्था भवानी शाह के काल में ब्रिटिश सरकार द्वारा इनके कार्यकाल में 1864 में जर्मन विशेषज्ञों की सहायता से वन विभाग की स्थापना की गयी थी।
  • नोट- कुमाऊं में वन विभाग की स्थापना 1868 में व गढ़वाल में वन विभाग की स्थापना 1869 में इनके काल में की गयी थी।
  • उत्तराखण्ड में आपदा प्रबंधन का प्रथम प्रयास हेनरी रैम्जे द्वारा ही किया गया था।
  • 1867 में नैनीताल में जब प्रथम बार भूस्खलन हुआ तो प्रशासन द्वारा हिल साइड सेफ्टी कमेटी गठित की गई। जिसका उद्देश्य भूस्खलन के कारणों को जानना तथा पर्वतों को सुरक्षित रखने का प्रयास करना था।
  • नैनीताल मे जब 1880 में भयंकर भूस्खलन हुआ जिसमें 151 लोग मारे गए तो प्रशासन ने 79 किमी लम्बी निकासी नालियों की स्थापना की गई थी।
  • रैम्जे 1868 तक कमिश्नर के साथ-साथ कुमाऊँ मंडल के कन्जरवेटर अर्थात वन संरक्षक भी रहे थे।
  • वनों के संरक्षण के संबंध में संवेदनशीलता लाने का श्रेय रैम्जे को जाता है।
  • वन विभाग की स्थापना से पूर्व ही उन्हें उत्तराखण्ड में कन्जरवेटर के पद पर नियुक्त किया गया था।
  • पहले कन्जरवेटर के रूप में रैम्जे ने ठेकेदारी प्रथा को समाप्त किया तथा वृक्ष पातन से पहले उसकी मार्किंग की व्यवस्था अथवा घन लगाने की प्रथा आरम्भ की गई थी।
  • रैम्जे ने वन क्षेत्र के अंदर कृषि करने पर रोक लगा दी थी।
  • रैम्जे ने ही सर्वप्रथम वनों को अग्नि से बचाने के लिये समुचित कदम उठाये थे।
  • नोट- रैम्जे की कार्यकुशलता को देखते हुये एटकिंशन ने रैम्जे को कुमाऊं का प्रथम वन संरक्षक कहा है।
  • कुमाऊं का सर्वप्रथम इंटर कॉलेज रैम्जे इंटर कॉलेज के नाम से 1871 में अल्मोड़ा खुला था।
  • रैम्जे के कार्यकाल में 1874 में अधिसूचित जिला अधिनियम / शिडयूल डिस्ट्रोक्ट एक्ट पारित किया गया था।
  • काठगोदाम नैनीताल रोड का निर्माण 1882 में रैम्जे के काल में हुआ था।
  • तराई भावर के विकास हेतु तराई इम्प्रूवमेंट फण्ड 1883 में स्थापित किया गया था।
  • इन्होंने तराई क्षेत्र में नहरों का जाल बिछा दिया तथा इनके काल में 219.6 किमी पत्थर की लंबी नहरों का निर्माण हो चुका था।
  • इस प्रकार तराई क्षेत्र में सर्वाधिक विकास रैम्जे के समय किया गया था।
  • लार्ड मेयो ने रैम्जे की तराई भाबर के प्रबंधन की तारीफ की गई थी।
  • इन्होंने तराई में मलेरिया पर नियंत्रण किया।
  • भाबर का विश्वकर्मा रैम्जे को कहा जाता है।
  • रैम्जे ने हल्द्वानी में गौला नदी से सिंचाई के लिये नहरें निकाली गई थी।
  • 1883-84 में बरेली से लेकर हल्द्वानी काठगोदाम तक रेल लाइन बिछायी गयी थी।
  • रैम्जे को उनके जीवनकाल में ही कुमाऊँ का बेताज बादशाह, कुमाउं का मुकुटरहित राजा जैसी उपाधि से अलंकृत किया गया था।

कुमाऊं के अन्य कमिश्नरः(Other Commissioners of Kumaon)

  • फिशर (1884-85 ई)
  • एच जी रौस(H. G.Ross) (1885-87 ई)
  • 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन हुआ था।
  • 1887 में लैंसडाउन में गढ़वाल राइफल की स्थापना हुई थी।
  • जे. आर. ग्रिग (1888-89 ई)
  • जी. ई. अर्सकिन (1889-92 ई)
  • डी. टी. राबर्टस् (1892-94 ई)
  • ई. ई. ग्रिज (1894-98 ई )
  • आर. ई. हैम्बलिन (1899-1902 ई)
  • ए. एम. डब्ल्यू. शेक्सपेयर (1903-05 ई)
  • जे. एस. कैम्पबेल (J.S. Campbell)(1906-14 ई)
  • कैम्पबेल 1907 में कीर्तिशाह के शासनकाल में टिहरी आये थे।
  • यह ब्रिटिश कुमाऊं का 15वा कमिश्नर था। 
  • जोध सिंह नेगी द्वारा 1908 में कुली एजेंसी की शुरुआत की थी। 
  • कुमाऊं में अल्मोड़ा कांग्रेस(1912) की स्थापना की गयी थी।
  • 1913 में अल्मोड़ा होमरूल लीग की स्थापना हुई थी।
  • पी. विंढम(P. Wyndham) (1914-24 ई)
  • पी. विंढम के समय 30 सितंबर 1916 को कुमाऊं परिषद की स्थापना की गयी थी।
  • इनके समय असहयोग आंदोलन (1920) शुरू हुआ था।
  • कुली बेगार का अंत इन्हीं के समय 1921 में इन्हीं के समय हुआ था।
  • 1923 में कुली एजेंसी की समाप्ति हुई थी।
  • एन. सी. स्टिफ(N.c.stiff) (1925-31 ई)
  • एन सी स्टिफ के कार्यकाल के समय पेशावर कांड 23 अप्रैल 1930 हुआ था। 
  • 30 मई 1930 में टिहरी में रवाई कांड घटना हुई थी।
  • एल. एम. स्टब्स (1931-33 ई)
  • एल ओ गोयन (1933-35 ई)
  • इबटसन(Ibtson)(1935-39 ई)
  • इनके कार्यकाल में सन 1937 में अल्मोड़ा के चनौदा में शांतिलाल त्रिवेदी ने गांधी आश्रम की स्थापना की थी।
  • जी.एल.विवियन(G.L.Vivian) (1939-41 ई)
  • इनके कार्यकाल में उत्तराखण्ड में पहला व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन शुरू हुआ था जो की जगमोहन सिंह नेगी ने शुरू किया था।
  • जे. सी. एक्टन(J. C.Acton) (1941-43 ई)

भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के समय ये कमिश्नर थे।

  • 5 सितंबर 1942 को अल्मोड़ा के सल्ट क्षेत्र के खुमाड़ गांव में कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर गोलियां चलाई गई थी जो बाद में सल्ट कांड के नाम से जाना जाता है।
  • डब्ल्यू डब्ल्यू फिनले(W.W.Finley) (1943-47 ई)
  • ये स्वतंत्रता के समय कुमाऊं के कमिश्नर थे।
  • ये कुमाऊं के अंतिम अंग्रेज कमिश्नर थे।
  • के.एल. मेहता(K.L.Mehta) (1947-1948ई)
  • ये स्वतंत्रता के बाद पहले भारतीय कमिश्नर थे।
  • इन्होंने 1947 से 1948 तक लगभग एक साल कार्यभार संभाला था।
  1. उत्तराखंड का इतिहास Uttarakhand history
  2. उत्तराखण्ड(उत्तरांचल) राज्य आंदोलन (Uttarakhand (Uttaranchal) Statehood Movement )
  3. उत्तराखंड में पंचायती राज व्यवस्था (Panchayatiraj System in Uttarakhand)
  4. उत्तराखंड राज्य का गठन/ उत्तराखंड का सामान्य परिचय (Formation of Uttarakhand State General Introduction of Uttarakhand)
  5. उत्तराखंड के मंडल | Divisions of Uttarakhand
  6. उत्तराखण्ड का इतिहास जानने के स्त्रोत(Sources of knowing the history of Uttarakhand)
  7. उत्तराखण्ड में देवकालीन शासन व्यवस्था | Vedic Administration in Uttarakhand
  8. उत्तराखण्ड में शासन करने वाली प्रथम राजनैतिक वंश:कुणिन्द राजवंश | First Political Dynasty to Rule in Uttarakhand:Kunind Dynasty
  9. कार्तिकेयपुर या कत्यूरी राजवंश | Kartikeyapur or Katyuri Dynasty
  10. उत्तराखण्ड में चंद राजवंश का इतिहास | History of Chand Dynasty in Uttarakhand
  11. उत्तराखंड के प्रमुख वन आंदोलन(Major Forest Movements of Uttrakhand)
  12. उत्तराखंड के सभी प्रमुख आयोग (All Important Commissions of Uttarakhand)
  13. पशुपालन और डेयरी उद्योग उत्तराखंड / Animal Husbandry and Dairy Industry in Uttarakhand
  14. उत्तराखण्ड के प्रमुख वैद्य , उत्तराखण्ड वन आंदोलन 1921 /Chief Vaidya of Uttarakhand, Uttarakhand Forest Movement 1921
  15. चंद राजवंश का प्रशासन(Administration of Chand Dynasty)
  16. पंवार या परमार वंश के शासक | Rulers of Panwar and Parmar Dynasty
  17. उत्तराखण्ड में ब्रिटिश शासन ब्रिटिश गढ़वाल(British rule in Uttarakhand British Garhwal)
  18. उत्तराखण्ड में ब्रिटिश प्रशासनिक व्यवस्था(British Administrative System in Uttarakhand)
  19. उत्तराखण्ड में गोरखाओं का शासन | (Gorkha rule in Uttarakhand/Uttaranchal)
  20. टिहरी रियासत का इतिहास (History of Tehri State(Uttarakhand/uttaranchal)

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