Chandraprabha Aitwal (चंद्रप्रभा एटवाल)

Chandraprabha Aitwal (चंद्रप्रभा एटवाल)

विपरीत परिस्थितियों में भी उत्तराखण्ड की कई महिलाओं ने राष्ट्रीय पटल पर सशक्त हस्ताक्षर किये हैं. इनमें से एक हैं चंद्रप्रभा ऐतवाल. चंद्रप्रभा 24 दिसंबर 1941 को उत्तराखण्ड के सीमान्त जिले के दुर्गम कसबे धारचूला में जन्मीं. धारचूला आज भी एक दुर्गम क़स्बा है. उस वक़्त के धारचूला में जीवन और भी ज्यादा कठिन रहा होगा.
(Chandraprabha Aitwal Mountaineer)
Famous women of Uttarakhand Chandraprabha Aitwal



धारचूला के निवासियों के लिए उस वक़्त उच्च शिक्षा हासिल करना किसी तपस्या से कम नहीं था. आवागमन के साधन नहीं हुआ करते थे. बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी कई किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी होती थी. प्राथमिक शिक्षा हासिल करने के लिए घर से दूर पैदल जाना होता था. माध्यमिक शिक्षा के लिए तो घर से दूर कई तरह की सहायताओं पर निर्भर होना होता था. लड़कों तक के लिए शिक्षा हासिल करने की चुनौती बहुत बड़ी हुआ करती थी. किसी लड़की लिए यह और भी ज्यादा असंभव था. चंद्रप्रभा के कृषक पिता जीवन में शिक्षा के महत्त्व को समझते थे. उन्होंने हर हाल में चंद्रप्रभा की शिक्षा को जारी रखा. इंटरमीडिएट कि पढाई के लिए उन्हें नैनीताल भेजा गया.
यहीं से उनके खेल जीवन की शुरुआत भी हुई. राजकीय बालिका इंटर कॉलेज नैनीताल में विद्यालय स्तर में दौड़, भाला, गोला, डिस्कस फेंक आदि खेलों में इन्होंने उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की. 1963 में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, नैनीताल से बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की, सन् 1964 में आईटीआई अल्मोड़ा से सिलाई-कड़ाई में डिप्लोमा प्राप्त किया. फिर उन्होने सीपीएड की परीक्षा इल्लाहबाद से उत्तीर्ण की. कुछ समय बाद इन्हें सहायक अध्यापिका के रूप में राजकीय इंटर कॉलेज पिथौरागढ़ में नियुक्ति मिली. 1966 से 20 वर्ष तक अध्यापन कार्य किया.
इसी दौरान चंद्रप्रभा ने 1972 में पर्वतारोहण का बेसिक और 1975 में एडवांस कोर्स एनआईएम उत्तरकाशी से किया. 1980 में गुलमर्ग के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्कीइंग एंड माउंटनियरिंग से स्कीइंग का कोर्स पूरा किया. 1978 में ‘निम’ में ही प्रशिक्षक नियुक्त हुईं. 1983 तक उत्तरकाशी में प्रशिक्षक रहने के दौरान ही उन्होंने कई हिमालयी चोटियाँ फतह कीं.
1972 में बेबी शिवलिंग चोटी उत्तरकाशी (18130 फीट), 1975 में बन्दरपूंछ चोटी उत्तरकाशी 20720 फीट, 1975 में सितम्बर-अक्टूबर, केदार (22410 फीट), 1976 में कामेट ‘भारत जापानी अभियान’ (25447 फीट), 1977 में कमेट ‘भारतीया महिला अभियान’ (25447 फीट) विजित, 1979 में रत्तावन् (20320) फुट आदि इनके द्वारा विजित चोटियाँ हैं भारत न्यूजिलैंड ‘क्लाइंब थे माउंटन डाउन थे रिवर’ अभियान में शिकार विजेता रही. 1981 में चोन्द्कस (जापान) की चोटी का सफल आरोहण किया. 1981 में चुरी-गी-सावा (जापान) पर्वत शिखर पर विजय प्राप्त की. 1981 में तेतियाम (जापान) चोटी का सफल आरोहण किया. 1982 में 21890 फीट ऊँची गंगोत्री प्रथम पर विजय प्राप्त की. 1983 में 23860 फीट ऊँची माना पीक पर सफल आरोहण किया. 1984 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के अभियान के दौरान चंद्रप्रभा 27750 फीट तक पहुँचीं. आगे का अभियान मौसम की खराबी की वजह से रोकना पड़ा.
(Chandraprabha Aitwal Mountaineer)
1986 में दिओ तिब्ब्त (20787 फीट) नामक चोटी पर विजय प्राप्त की. 1988 में भागीरथी द्वितीय (21363 फीट) पर विजय प्राप्त की. 1989 में नन्दाकोट शिखर पर विजय प्राप्त की. 1990 में विघ्रुपन्थ (22345 फीट) शिखर पर विजय प्राप्त की. 1993 मार्च में भारत-नेपाल महिला अभियान (नई दिल्ली) की सदस्य के रूप में एवरेस्ट (29028 फीट) की चोटी तक आरोहण किया. 1998 में सुदर्शन (21473 फीट) तक फतह की. 1998 में ही चले एक दूसरे अभियान में सेफ (20331 फीट) नामक चोटी पर 57 वर्ष की उम्र में फतह की.
Famous women of Uttarakhand Chandraprabha Aitwal
1999 में जोगिन 1&3 (20548 फीट) नामक चोटियाँ फतह की. न केवल पर्वतारोहण के श्रेत्र में ही सुश्री ऐतवाल ने अपनी उपलब्धियों के झंडे गाड़े बल्कि अगस्त-अक्टूबर 1979 में अलकनंदा और गंगा नदी में रुद्रप्रयाग से हरिद्वार तक, 1984 में अलकनंदा नदी में ही भारत अमरीका अभियान दल के साथ नंदप्रयाग से देवप्रयाग तक एवं पुन: इसी वर्ष भागीरथी एवं गंगा नदी में इसी अभियान दल के साथ आपने देवप्रयाग से हरिद्वारतक रिवर राफ्टिंग भी की. इनकी उपलब्धियों को सरकारी सलाम भी मिला. 1981 में अर्जुन अवार्ड, 1990 में पदमश्री से नवाजी गयीं.
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