हिमाचल प्रदेश की खेती (Cultivation of Himachal Pradesh )

हिमाचल प्रदेश  की खेती 

चावल की खेती हिमाचल प्रदेश में की जाती है?
हिमाचल प्रदेश में एक महत्वपूर्ण फसल, चावल की खेती राज्य के 12 में से 10 जिलों में लगभग 80,000 हेक्टेयर में की जाती है।
हिमाचल प्रदेश की मुख्य फसल कौन सी है?
उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें गेहूं, मक्का, धान, चना, गन्ना, सरसों, आलू, सब्जियाँ आदि हैं। मध्य पहाड़ी क्षेत्र: कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 32% और कुल खेती योग्य क्षेत्र का लगभग 37% हिस्सा घेरता है। बोई जाने वाली प्रमुख फसलें गेहूं, मक्का, जौ, उड़द, सेम, धान आदि हैं।

हिमाचल प्रदेश  की खेती 

धान (कृषि उपकरण)

कृषि उपकरण उपकरण ट्रैक्टर खेती के लिए ट्रैक्टर प्रमुख कृषि मशीनरी है। खेत की तैयारी से लेकर मंडी में फसल ले जाने तक में ट्रैक्टर की अहम भूमिका रहती है। ट्रैक्टर से जोड़कर कई प्रकार के कृषि यंत्र जैसे कल्टीवेटर, रोटावेटर आदि चलाए जा सकते हैं। विशेषताएं: ट्रैक्टर...

धान (अंतर-फसल)

अंतर-फसल ऊना, बिलासपुर और हमीरपुर जिलों में तथा सिरमौर, कांगड़ा, सोलन व चम्बा जिलों के निचले क्षेत्रों में नीचे दिए गये फसल चक्र लाभदायक है:
(1) धान-गेहूं/ आलू/ अलसी (2) धान-आलू-प्याज / फ्रासबीन (3) धान-अलसी-मक्की का...

धान (जुताई व बिजाई)

जुताई व बिजाई ।. भूमि की तैयारी धान हर प्रकार की जमीन, चाहे वह रेतीली हो या चिकनी अथवा अम्लीय या क्षारीय, पर उगाया जाता है लेकिन पानी की सुविधा, चाहे सिंचाई से हो या निश्चित बारिश से, आवश्यक है। भारी जमीन जिसमें सिंचाई या बारिश का पानी खड़ा रह सके, धान के लिए उपयुक्त...

धान (उर्वरक)

उर्वरक तत्व उर्वरक (कि.ग्रा./है.) (कि.ग्रा./ है.) (कि.ग्रा./ बीघा) ना. फा. पो. यूरिया एस.एस.पी. एम.ओ.पी. यूरिया एस.एस.पी. एम.ओ.पी. अधिक उपज 90 40 40 195 250 65 16 20 5 स्थानीय 50 25 25 110 156 42 9 12 3 (कि. ग्रा./ कनाल) अधिक उपज

धान (जल प्रबंधन)

जल प्रबंधन धान की फसल में पानी की उपलब्धता का सीधा प्रभाव पड़ता है। फसल की बढ़ोतरी की सारी अवस्थाओं में पानी खड़ा रहना चाहिए। पानी की कमी के क्षेत्रों में खेतों का गीला रहना भी लाभदायक है। धान के खेतों में लगातार पानी रहने के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं: (1) फास्फोरस, लोहा...

मटर (किस्में)

किस्में विभिन्न क्षेत्रों के लिए मटर की उन्नत किस्में: अगेती किस्में: अरकलबौनी, झुर्रीदार, बीज गहरे हरे रंग व सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म, 8-9 दानों वाली अन्दर को मुड़ी हुई फलियां, अधिक उपज के लिए बीजाई सितम्बर के पहले पखवाड़े में करनी चाहिए। औसत पैदावार 50-60...

मटर

मटर परिचय : हरा मटर हिमाचल प्रदेश की एक प्रमुख बेमौसमी सब्ज़ी है। व्यावसायिक रूप से इसे सर्दियो में मध्यवर्ती व निचले क्षेत्रों में और गर्मियों में ऊंचे पर्वतीय व आर्द्र शीतोष्ण वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है। गर्मियों में पर्वतीय क्षेत्रों का वातावरण मटर की फसल के...

धान (कीट प्रबंधन)

कीट प्रबंधन आक्रमण / लक्षण नियंत्रण टिड्डे: इसके शिशु व प्रौढ़ नर्म पत्तों, टहनियों व दुधिया दानों से रस चूसते हैं। इससे बीज में चूसने वाले स्थान पर भूरा/ काला धब्बा पड़ जाता है तथा पैदावार में कमी आ जाती है। 1. कीट के प्रकट होते ही 1250 मि.ली. क्लोरपाईरिफॉस 20 ई.सी....

धान (कटाई व भंडारण)

कटाई व भंडारण पौधों के पत्तों का पीला पड़ना फसल के पकने का संकेत देता है। कटाई से 7-10 दिन पहले खेत से पानी निकाल दें। दानों को झड़ने अथवा गिरने से बचाने के लिए फसल को तैयार होते ही काट लें। मार्केटिंग मूल्य वर्धित...

धान (रोग प्रबंधन)

रोग प्रबंधन आक्रमण / लक्षण नियंत्रण ब्लास्ट: नर्सरी व दौजियां निकलने की अवस्थाओं में पत्तों पर छोटे भूरे से नीले रंग के, जलसिक्त, नाव के आकार के धब्बे बनते हैं। पुराने धब्बों के मध्य भाग भूरे से हल्के स्लेटी रंग के हो जाते हैं। ऐसे धब्बे, तनों पर्णच्छद....

धान (किस्में)

किस्में विभिन्न क्षेत्रों के लिए धान की अनुमोदित किस्में: किस्में विशेषताएँ सुकारा धान-1 यह एक मध्यम ऊंचाई (88-110 सेंटीमीटर), जल्दी तैयार होने वाली किस्म (110-120 दिन) है। इस किस्म के पौधे सीधे, मध्यम बालियां, दाने लम्बे, पतले, व बिना बालों के होते हैं।...

धान (चावल)

धान (चावल) परिचय : हिमाचल प्रदेश में धान एक मुख्य अन्न की फसल है। कागंडा व मण्डी जिलों में जहां प्रदेश की लगभग 65 प्रतिशत धान की खेती होती है, वहां पर इसकी उपज बढ़ाने की काफी क्षमता है जिससे प्रदेश में धान के उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो सकती है। हिमाचल प्रदेश में धान की...

आलू (कृषि उपकरण)

कृषि उपकरण उपकरण ट्रैक्टर खेती के लिए ट्रैक्टर प्रमुख कृषि मशीनरी है। खेत की तैयारी से लेकर मंडी में फसल ले जाने तक में ट्रैक्टर की अहम भूमिका रहती है। ट्रैक्टर से जोड़कर कई प्रकार के कृषि यंत्र जैसे कल्टीवेटर, रोटावेटर आदि चलाए जा सकते हैं। विशेषताएं: ट्रैक्टर...

आलू (जुताई व बिजाई)

जुताई व बिजाई ।. भूमि की तैयारी अच्छे निकास वाली, उपजाऊ दोमट मिटटी आलू की फसल के लिए सबसे उत्तम है यद्यपि अच्छे प्रबंध द्वारा इसे विभिन्न प्रकार की भूमियों में भी उगाया जा सकता है। एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2-3 जुताईयां देसी हल से करनी चाहिए ताकि आलू की...

आलू (अंतर-फसल)

अंतर-फसल लाहौल स्पिति में अधिक पैदावार लेने के लिये आलू-राजमाश / मटर / फ्रासबीन के 1:1 अंतर फसल अपनाने की सिफारिश की जाती...

आलू (खरपतवारों की रोकथाम)

खरपतवारों की रोकथाम आलु की फसल को जब खरपतवारों के साथ बढ़ना पड़ता है तो उपज में बहुत अधिक कमी आ जाती है। अतः यह आवश्यक है कि फसल को प्रारंभिक अवस्था में खरपतवारों से मुक्त रखा जाए। निराई-गुड़ाई उचित रूप से एवं कम खर्च से तभी हो सकती है यदि फसल की बिजाई पंक्तियों में...

आलू (जल प्रबंधन)

जल प्रबंधन आलू की फसल में सिंचाई की संख्या एवं समय, मिटटी की बनावट, मौसम, फसल की वृद्धि की अवस्था तथा उगाई गई किस्म पर निर्भर करती है। फिर भी कुछ क्रांतिक अवस्थाओं में जैसे कि भूमि के अंदर तने से भूस्तारी तथा आलुओं के बनते तथा बढ़ते समय सिंचाई करना बहुत आवश्यक होता...

आलू (उर्वरक)

उर्वरक तत्व (कि.ग्रा/है.)* उर्वरक (कि.ग्रा/है.) ना. फा. पो. यूरिया एसएसपी एमओपी 120 80 60 260 500 100 उर्वरक (कि.ग्रा/बीघा) नोट:- यदि गोबर की खाद उपलब्ध हो तो खेत तैयार करते समय 25 टन प्रति हैक्टेयर डालें और अच्छी तरह से मिट्टी में मिलायें।... 21 40 8

आलू (किस्में)

किस्में आलू की अनुमोदित किस्में कुफरी चंद्रमुखी यह जल्दी तैयार होने वाली किस्म है और मैदानी क्षेत्रों से लेकर पर्वतीय क्षेत्रों तक उगाने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 110-130 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके पौधे मध्यम लम्बाई के, शीघ्र बढ़ने वाले व फूल हल्के गुलाबी रंग...

आलू

आलू परिचय : आलू की फसल हिमाचल प्रदेश की आर्थिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखती है क्योंकि यहां की जलवायु बीज के आलू उत्पादन के लिए अनुकूल है। प्रदेश के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में जहां समशीतोष्ण जलवायु के साथ-साथ तेज हवा और कम आर्द्रता होती है और तेले का प्रकोप भी...

आलू (कीट प्रबंधन)

कीट प्रबंधन आक्रमण / लक्षण नियंत्रण सफेद सुंडी, कटुआ कीट व वॉयर वर्मः कटुआ पौधों को जमीन की सतह से काट देता है जबकि सफेद सुंडी व वॉयर वर्म आलुओं को खाते हैं। सफेद सुंडी कटुआ कीट वॉयर वर्म भृंगों एवं सुंडियों के लिए एकीकृत रोकथाम प्रणाली अपनाएं। व्यस्क भृंग की रोकथाम...
आलू (रोग प्रबंधन)
रोग प्रबंधन आक्रमण / लक्षण नियंत्रण अगेता झुलसाः पत्तों पर गोल चक्र रूप में भूरे धब्बे बनते हैं जिसके कारण अधिक बिमारी होने पर पत्ते शीघ्र गिर जाते हैं। फसल पर बिमारी के आते ही जिनेव / मेन्कोजेब (डाईथेन जैड-78/ इंडोफिल जैड-78) (0.2%) या डाईथेन एम-45/ इंडोफिल...

रागी

स्थानीय नामः रागी, मंडल, मंडुआ, कोदरा, कोदा प्रमुख खेती वाले क्षेत्रः सिरमौर, शिमला, कुल्लू, मंडी, सोलन, चंबा, कांगड़ा, लाहौल-स्पीति और किन्नौर फिंगर मिलेट (Eleusine Coracana), जिसे रागी, मंडल के रूप में भी जाना जाता है, हिमाचल प्रदश में उगाई जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण...

गेहूं (कटाई व भंडारण)

कटाई व भंडारण जब गेहूँ के पौधे पीले पड़ जाये तथा बालियां सूख जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिये। जब दानों में 15 से 20 प्रतिशत नमी हो तो कटाई का उचित समय होता है। कटाई के पश्चात् फसल को 3 से 4 दिन सूखाना चाहिये। इसके बाद गेहूँ की आधुनिक यंत्रो जैसे ट्रैक्टर चलित...

गेहूं (कृषि उपकरण)

कृषि उपकरण उपकरण ट्रैक्टर खेती के लिए ट्रैक्टर प्रमुख कृषि मशीनरी है। खेत की तैयारी से लेकर मंडी में फसल ले जाने तक में ट्रैक्टर की अहम भूमिका रहती है। ट्रैक्टर से जोड़कर कई प्रकार के कृषि यंत्र जैसे कल्टीवेटर, रोटावेटर आदि चलाए जा सकते हैं। विशेषताएं: ट्रैक्टर...

गेहूं (उर्वरक)

उर्वरक क्षेत्र तत्व (कि.ग्रा/है.) * उर्वरक (कि.ग्रा/है.) ना. फा. पो. यूरिया डीएपी ** या एसएसपी एमओपी सिंचित 120 60 30 260 130 375 50 असिंचित 80 40 40 175 85 250 65 उर्वरक (कि.ग्रा/बीघा) सिंचित 10 30 4 असिंचित 7 20 5 * इन तत्वों को अन्य उर्वरकों द्वारा भी दिया जा सकता है...

गेहूं (जल प्रबंधन)

जल प्रबंधन पानी की उपलब्धता के आधार पर गेहूं की अच्छी उपज लेने के लिए निम्नलिखित सिंचाई की व्यवस्था करनी चाहिए- गेहूं की फसल में जो संभव सिंचाईयां दी जा सकें फसल की बढ़ौतरी की विभिन्न अवस्थाएं जब सिंचाई देनी चाहिए मूसल जड़ें निकलने पर दौजियां निकलने की अंतिम अवस्था पर...

गेहूं (खरपतवारों की रोकथाम)

खरपतवारों की रोकथाम ।. हाथ द्वारा निकालनाः यदि पर्याप्त श्रमिक उपलब्ध हों तो एक निराई-गुडाई फसल उगने के एक महीने बाद करने से खरपतवारों के नियंत्रण के साथ-साथ बारानी खेती में नमी संरक्षण मेंसहायक सिद्ध होती है। ।।. रासायनिक रोकथाम: 1. गेहूं में घास जैसे खरपतवारों के...

गेहूं (कीट प्रबंधन)

कीट प्रबंधन आक्रमण / लक्षण नियंत्रण दीमकः निचले पर्वतीय क्षेत्रों केअसिंचित इलाकों में अंकुरित पौधों को क्षति पहुंचाती है। बीज का क्लोरपाईरीफॉस 20 ई.सी. (4 मि.ली. / कि.ग्रा. बीज) से उपचार करें दो लीटर क्लोरपाईरीफॉस 20 ई.सी. को 25 कि.ग्रा. रेत में मिलाकर प्रति हैक्टेयर...

गेहूं (रोग प्रबंधन)

रोग प्रबंधन आक्रमण / लक्षण नियंत्रण पीला रतुआः पत्तों और उनके आवरणों पर छोटे-छोटे पीले फफोले कतारों में शिराओं के मध्य प्रकट होते हैं। रोग का प्रकोप अधिक होने पर पौधों को हाथ से छूने पर धारियों से फफूंद के बीजाणु पीले रंग की तरह हाथ में लगते हैं। तापमान में वृद्धि के...


हिमाचल प्रदेश में धान एक मुख्य अन्न की फसल है। कागंडा व मण्डी जिलों में जहां प्रदेश की लगभग 65 प्रतिशत धान की खेती होती है, वहां पर इसकी उपज बढ़ाने की काफी क्षमता है जिससे प्रदेश में धान के उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो सकती है।
हिमाचल प्रदेश में धान की कम उपज के मुख्य कारण उर्वरकों का कम प्रयोग, खरपतवारों का अपर्याप्त नियंत्रण, खेतों में सिंचाई के पानी का कम तापमान, फसल में फूल आने के समय कम व्यापक तापमान, झुलसा रोग का अधिक प्रकोप व धान की खेती का वर्षा पर निर्भर होना है।
स्थानीय नाम : चौल
वैज्ञातनक नाम : ओराइजा सैटाइवा





बासमती चावल की घरेलू बाजार के अलावा विदेशी बाजार में भी बहुत अच्छी मांग है। पूसा-1121 और पूसा-1718 किस्मों के चावल में अनाज और खाना पकाने के गुणों का संयोजन होता है। आसान पाचनशक्ति और अच्छी सुगंध के कारण ये किस्में जीआई के तहत भी संरक्षित है। हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, जम्मू -कश्मीर और पश्चिमी राज्यों के इंडो-गैंगेटिक भागों में इनकी भरपूर खेती होती है। प्रदेश  में पूसा बासमती-1121 ने खरीफ 2019 के दौरान 3500 हेक्टेयर (लगभग 20 प्रतिशत) बासमती क्षेत्र को कवर किया था। अच्छी सुगंध व खाना पकाने के बाद उच्च विस्तार वाली पूसा बासमती-1121 एक असाधारण किस्म है जिसमें चावल पकाने के बाद दाने की लंबाई 22 मिमी तक होना इसकी  प्रमुख विशेषता है। पारंपरिक बासमती की 2.5 टन प्रति हेक्टेयर की तुलना में इसकी औसत उपज 4.5 टन प्रति हेक्टेयर है। पूसा-1121 बासमती पर शोध में अभी भी कीटों और रोगों के प्रतिरोध पर कार्य प्रगति पर है ताकि कीटनाशक अवशेषों की समस्या का स्थायी रूप से समाधान हो सके और इसके उत्पादन को टिकाऊ बनाया जा सके। इसके अलावा उच्च क्षेत्रों में कम तापमान की शुरुआत से पहले इसकी परिपक्वता को आगे बढ़ाने के लिए छोटी अवधि के जीन भी उपयोग में लाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि पूसा बासमती 1121 का ही एक उन्नत संस्करण जो कि पूसा बासमती-1718 है।

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