उत्तराखंड के प्रमुख वन आंदोलन(Major Forest Movements of Uttrakhand)

उत्तराखंड के प्रमुख वन आंदोलन | Major Forest Movements of Uttrakhand in Hindi

उत्तराखंड के प्रमुख वन आंदोलन

उत्तराखंड में चिपको आंदोलन, तिलाड़ी,डुंडी पैतोली, खिराकोट, मैती, पाणी राखो, रक्षासूत्र, छीनो झपटो आदि आन्दोलन प्रमुख है।उत्तराखंड में वन आंदोलन का इतिहास गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। यहां के लोगों ने वनों की संरक्षण, प्रबंधन और स्थानीय जनसहयोग को लेकर लगातार संघर्ष किया है। राज्य में वन व्यवस्था का शुभारंभ 1823 में कमिश्नर ट्रेल द्वारा किया गया। रैम्जे ने 1858 में जंगलों की ठेका प्रथा को बंद करवा दिया।
1861 में वन व्यवस्था प्रारंभ हो गयी। 1864 में वन विभाग का गठन किया गया। 1869 में कुमाऊं वन प्रबंधन मेजर पियरसन के अधीन लाया गया। इस प्रबंधन के तहत गढ़वाल के वनों को चंडी के वन, उदयपुर के वन, कोटली दून व पाटली दून के रूप में चार भागों में बांटा गया। 1877 में प्रथम बार वनों की श्रेणियां बनाकर वन क्षेत्र की व्यवस्था की गयी। 1893 की नीति के तहत समस्त बेनाप भूमि को सरकार ने कब्जे में लेकर संरक्षित वन घोषित कर दिया। 1911-17 तक मि स्टाइफ द्वारा वन बंदोबस्त किया गया। 13 अप्रैल 1921 को फॉरेस्ट ग्रीवेन्स कमेटी का गठन किया गया। जिसके अध्यक्ष कमिश्नर विंढम थे। इसकी सिफारिश पर 1930 में कुमाऊं फारेस्ट कमेटी का गठन किया गया। 

उत्तराखंड में हुए वन आन्दोलन

रंवाई आन्दोलन (Ranwai Movement)

स्वतंत्रता से पूर्व टिहरी राज्य में राजा नरेन्द्रशाह के समय एक नया वन कानून लागू किया गया, जिसके तहत किसानो की भूमि को भी वन भूमि में शामिल किया जा सकता था। इस व्यवस्था के खिलाफ रंवाई की जनता ने आजाद पंचायत की घोषणा कर रियासत के खिलाफ विद्रोह शुरू किया। इस आन्दोलन के दौरान 30 मई, 1930 को दीवान चक्रधर जुयाल के आज्ञा से सेना ने आन्दोलनकारियों पर गोलियां चला दी जिससे सैकड़ों किसान शहीद हो गये। आज भी इस क्षेत्र में 30 मई को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।

चिपको आन्दोलन (Chipko Movement)

70 के दशक में बांज के पेड़ों कि अंधाधुंध कटाई के कारण हिमपुत्रियों (वहां कि महिलाओं) ने यह नारा दिया कि 'हीम पुत्रियों की ललकार, वन नीति बदले सरकार', वन जागे वनवासी जागे'। रेणी गाँव के जंगलों में गूंजे ये नारे आज भी सुनाई दे रहें हैं। इस आन्दोलन की शुरुआत 1972 से वनों की अंधाधुंध एवं अवैध कटाई को रोकने के उद्देश्य से शुरू हुई। चिपको आंदोलन कि शुरुआत 1974 में चमोली ज़िले के गोपेश्वर में 23 वर्षीय विधवा गौरी देवी द्वारा की गई, चिपको आन्दोलनकरी महिलाओं द्वारा 1977 में एक नारा ("क्या हैं इस जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार") दिया गया था, जो काफी प्रसिद्ध हुआ ।
चिपको आंदोलन को अपने शिखर पर पहुंचाने में पर्यावरणविद (Environmentalist) सुंदरलाल बहुगुणा और चंडीप्रसाद भट्ट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बहुगुणा जी ने "हिमालय बचाओ देश बचाओ" का नारा दिया। इस आंदोलन के लिए चमोली के चंडीप्रसाद भट्ट को 1982 में रेमन मेगसेस पुरस्कार (Ramon Magsaysay Award) से सम्मानित किया गया था। 

1977 का वन आंदोलन (Forest Movement of 1977)

वनों की नीलामी के विरोध में अक्टूबर 1977 में राज्य स्तरीय आंदोलन शुरू हुआ, व्यापक विरोध के बावजूद केवल नीलामी की तिथि संशोधित कर 27 नवंबर को तय हुई। जिसके विरोध में नैनीताल का शैले हॉल आंदोलनकारियों द्वारा फूक दिया गया। जिसके फलस्वरुप छात्रों की गिरफ्तारी हुई, फरवरी 1978 में संभवतया पहली बार उत्तराखंड बंद हुआ। द्वाराहाट के चोंचरी व पालड़ी (बागेश्वर) में जनता ने ढोल नगाड़ों के साथ वनो का कटान बंद कराया।

डूंगरी-पैंतोली आंदोलन (Dungi-Pantoli Movement)

चमोली जनपद के डूंगरी-पैंतोली में बाज का जंगल काटे जाने के विरोध में जनता द्वारा आंदोलन किया गया था। यहां बाज के जंगल को सरकार ने उद्यान विभाग को हस्तान्तरित कर दिया। महिलाओं के विरोध के बाद सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा। इसी आंदोलन को डूंगरी-पैंतोली आंदोलन के नाम से जाना जाता है।

मैती आंदोलन (Maiti Movement)

मैती शब्द का अर्थ मायका होता है, इस अनोखे आंदोलन के जनक कल्याण सिंह रावत थे। जिनके मन में 1996 में आंदोलन का विचार आया। उन्होंने कल्पना भी न थी कि ये आंदोलन इतना विस्तार पा लेगा। ग्वालदम इंटर कॉलेज की छात्राओं को शैक्षिक भ्रमण कार्यक्रम के दौरान बेदनी बुग्याल में वनों की देखभाल करते देख, श्री रावत ने यह महसूस किया कि पर्यावरण के संरक्षण में युवतियां ज्यादा बेहतर ढंग से कार्य कर सकती हैं, उसके बाद ही मैती आंदोलन संगठन और तमाम सारी बातों ने आकार लेना शुरू किया।

इस आंदोलन के कारण आज भी विवाह समारोह के दौरान वर-वधू द्वारा पौधा रोपने कि परंपरा तथा इसके बाद मायके पक्ष के लोगों के द्वारा पौधों की देखभाल की परंपरा विकसित हो चुकी है, विवाह के निमंत्रण पत्र पर बकायदा मैती कार्यक्रम छपता है और इसमें लोग पूरी दिलचस्पी लेते हैं।
उत्तराखंड के प्रमुख वन आंदोलन

चिपको आंदोलन(Chipko Movement)

शुरुआत-1972  / स्थान- चमोली

सन् 1972 में गोपेश्वर में सरकार द्वारा पेड़ों की अंधाधुंध कटाई का आदेश दिया गया। यहां इलाहाबाद की खेल कूद साम्रगी बनाने वाली कंपनी सायमंड को ठेका दिया गया था। जिसके विरोध में सन् 1973 ई. में विधवा महिला गौरा देवी पंत के नेतृत्व में आंदोलन चलाया। जिसे चिपको आंदोलन कहा जाता है। गौरा देवी के साथ 27 अन्य महिलाएं थी। गौरा देवी के गांव का नाम रेणी (चमोली) है। इनका जन्म 1925 में (लाता) चमोली में हुआ था। इस आंदोलन को बाद में शिखर पर पहुंचाने का कार्य सुंदर लाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट व कॉमरेड गोबिंद सिंह रावत ने किया। इसी कार्य के लिये चंडी प्रसाद भट्ट को 1982 में रैमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सुन्दरलाल बहुगुणा ने हिमालय बचाओं देश बचाओं का नारा दिया। कामरेड गोबिंद सिंह रावत ने झपटो छीनों आंदोलन को दिशा प्रदान की। इस आंदोलन का प्रारंभिक नारा "हिम पुत्रियों की ललकार वन नीति बदले सरकार, वन जागे वनवासी जागे" था। चिपकों आंदोलन का घोष वाक्य है -

क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार,
मिट्टी, पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार ।

सन् 1989 में इस आंदोलन को सम्यक जीविका पुरूस्कार से सम्मानित किया गया।

रंवाई / तिलाड़ी आंदोलन(Ranwai Movement)

नेतृत्वकर्ता-दयाराम रवाल्टा (कंसेरू गांव )

सन् 1930 ई में टिहरी में एक अध्यादेश जारी किया गया। जिसके अंतर्गत किसानों की भूमि को वन भूमि में मिलाने का प्रावधान था।इस अध्यादेश के विरोध में रवाई (टिहरी रियासत) की जनता ने दयाराम रवाल्टा के नेतृत्व में आंदोलन शुरूकर दिया। टिहरी की जनता ने आजाद पंचायत की स्थापना की जिसका अध्यक्ष दयाराम रवाल्टा को बनाया गया और उपाध्यक्ष राम सिंह को बनाया गया ।30 मई 1930 को दिवान चक्रधर जुयाल के आदेश पर सेना ने आंदोलनकारियों पर गोली चला दी जिसमें 379 निर्दोष किसान मारे गये। यह कांड तिलाड़ी कांड के रूप में विख्यात हुआ। तिलाड़ी का मैदान वर्तमान उत्तरकाशी में बड़कोट तहसील के अंतर्गत यमुना के किनारे है।

आज भी प्रतिवर्ष टिहरी में 30 मई को शहीद दिवस मनाया जाता है।चक्रधर जुयाल को जनरल डायर कहा जाता है तथा इस कांड को उत्तराखंड का जलियावाला बाग कांड कहा जाता है। विद्यासागर नौटियाल के उपन्यास "यमुना के बागी बेटे" में इस घटना का विवरण है।

डुंगी-पैंतोली आंदोलन(Dungi-Pantoli Movement)

प्रारंभ-1980  स्थान- चमोली
नेतृत्वकर्ता-मथुरा देवी

सन् 1980 में चमोली के डुंगी व पैंतोली गांव में बांज के वनों को सरकार द्वारा उद्यान विभाग को हस्तांतरित कर दिया गया । जिसके विरोध में गांव की महिलाओं ने आंदोलन किया और सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा।

कुंजणी वन आंदोलन(Kunjdi Van Movement)

प्रारंभ-1904, नेतृत्व कर्ता-अमर सिंह, शासक- कीर्तिशाह
क्षेत्र-टिहरी रियासत

यह आंदोलन कीर्तिशाह के समय अंग्रेज सरकार को सहायता देने के लिये बढाये गये टैक्स के कारण हुआ था। इसमें स्यूड़ व पार्थों गांव में हजारों किसानों ने घेरा डाला था।
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खास पट्टी वन आंदोलन(Khas Patti Van Aandolan)

प्रारंभ-1906-07, नेतृत्वकर्ता-बेलमती देवी, भगवान सिंह बिष्ट, भरोसाराम
क्षेत्र-टिहरी रियासत

इस आंदोलन का परिणाम यह हुआ कि कीर्तिशाह द्वारा किसानों हेतु बैंक ऑफ गढवाल का गठन किया गया था।

असहयोग वन आंदोलन(Non Cooperation Movement)

प्रारंभ-1919-22,  क्षेत्र-चमोली व पौड़ी

1915 में सौण्या सेर व बिसाउ प्रथा के खिलाफ गोपाल सिंह राणा ने आंदोलन शुरू किया था। ये आंदोलन का विस्तारित रूप था। गोपाल सिंह राणा को आधुनिक किसान आंदोलनों का जनक माना जाता है।

राजगढी वन आंदोलन(Rajgarhi Forest Movement)

प्रारंभ-1926-30 ई, राजगढी वर्तमान बड़कोट का पुराना नाम है जो कि उत्तरकाशी में है।

1926 में वर्किंग प्लान ऑफ टिहरी गढवाल स्टेट नामक कड़ा बंदोबस्त लाया गया। जिसे वन बंदोबस्त 1929 के नाम से जाना गया। इस कानून का सृजन तत्कालीन वन अधिकारी पद्मदत्त रतूड़ी ने किया था।

इस वंन बंदोबस्त के विरोध में आजाद पंचायत खड़ी की गयी। जिसको संगठित करने का श्रेय दयाराम सिंह रवाल्टा को जाता है।इसी आंदोलन के परिणामस्वरूप रवाई कांड हुआ था।आजाद पंचायत के अध्यक्ष दयाराम रवाल्टा थे व उपाध्यक्ष राम सिंह थे।

सोंगघाटी आंदोलन(Songghati Movement)

प्रारंभ-1974, 
देहरादून व टिहरी में विस्तारित सोंग नदी के हेवल घाटी में 1961 में खनन के विरोध के रूप में दर्ज यह आंदोलन मई 1974 में विशाल जुलूस के साथ शुरू हुआ। 5 जून 1974 को लखनऊ में वार्ता के साथ यह आंदोलन समाप्त हो गया। हेवलघाटी वन सुरक्षा समिति का गठन 27 जून 1977 को किया गया था।
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पर्वतीय वन संघर्ष समिति(Parwati Van Sangharsh Samiti)

गठन- 4 सितंबर 1974 अल्मोड़ा में, अध्यक्ष-गोबिंद सिंह

इस समिति द्वारा सबसे बड़ा आंदोलन 1977 में हुआ जिसमें वनों की नीलामी के विरोध में नैनीताल के शैलेहॉल को फूंक दिया गया।

बद्रीनाथ आंदोलन( Badrinath Movement)

स्थान- चमोली

1973 में बिड़ला परिवार ने बद्रीनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के लिये पहल शुरू की। जिसके परिणामस्वरूप 1974 में स्थानीय लोगों ने बद्रीनाथ बचाओ आंदोलन शुरू किया। प्रथम बार उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 1939 में बद्रीनाथ मंदिर कानून बनाया गया था।

खीराकोट वन आंदोलन (Khirakot Forest Movement)

प्रारंभ-1978, स्थान- अल्मोड़ा, - नेतृत्वकर्ता-मालती देवी

यह आंदोलन खड़िया खदान मालिकों के विरूद्ध था। अल्मोड़ा व कौसानी के बीच स्थित खीराकोट गांव की महिलाओं ने देखा की उनके खेत खलिहान खड़िया खनन के कारण लगातार कम हो रहे हैं। कानपुर की कटियार मिनरल्स कंपनी यहां खड़िया खनन का कर रही थी । सन् 1981 की बात है जब यहां खेत मूसलाधार बारिस के कारण बर्फ की चादर जैसी ओढे दिख रहे थे जो वास्तव में बर्फ नहीं थी बल्कि खड़िया युक्त पानी खेतों में बहकर आ गया और खेत पूरी तरह बर्फ की तरह सफेद हो गये।

इससे लोगों ने अपने खेतों को बचाने के लिये खनन को बंद कराने की ठानी और मालती देवी के नेतृत्व में महिलाऐं एकजुट हुयी । मालती देवी लक्ष्मी आश्रम से जुड़ी महिला राधा बहन (राधा भट्ट) से मिलने पहुंची। राधा बहन ने उनका साथ दिया। बाद में चंडी प्रसाद भट्ट जी के द्वारा भी ग्रामीणों का साथ दिया गया।

पाणी राखो आंदोलन(Pani Rakho Movement)

शुरुआत-1989, स्थान-पौड़ी गढवाल

इस आंदोलन की शुरूआत 1989 में पौड़ी गढवाल के उफरैखाल से हुयी थी। इस आंदोलन के प्रवर्तक सचिदानंद भारती हैं। सचिदानंद भारती गाडखर्क गांव ब्लाक बीरोंखाल पौढ़ी के रहने वाले हैं। इनके द्वारा एक संगठन "दूधातोली लोक विकास संस्थान की स्थापना 1982 में गयी थी। 

4 अगस्त 1987 को गोपेश्वर में डाल्यों का दगड्या नामक संगठन की स्थापना सचिदानंद भारती ने की। ये सेवानिवृत्त शिक्षक हैं। इस आंदोलन के तहत इन्होंने छोटे छोटे चाल खाल बनाये इन्हें उन्होंने जल तलैया नाम दिया। इनके आस- पास बांज, बुरांस, उतीस के पेड़ लगाये। परिणामस्वरूप 10 साल बाद सूखा गधेरा सदानीरा नदी में तब्दील हो गया। जिस नदी का नाम गाड़गंगा है। इनके द्वारा अब तक 15 लाख से भी अधिक पेड़ लगाये गये हैं। सच्चिदानंद भारती को दिल्ली के पूर्व जल संसाधन मंत्री कपिल मिश्रा द्वारा 2015 में भगीरथ प्रयास सम्मान से नवाजा गया।

नदी बचाओ आंदोलन (Nadi bachao Movement)

प्रारंभ-1991, नेतृत्वकर्ता-सुरेश भाई

टिहरी बांध के विरोध के साथ ही विष्णुप्रयाग परियोजना को निजी हाथों में दिये जाने के विरूद्ध 1991 में यह आंदोलन सुरेश भाई के नेतृत्व में हुआ।

वर्ष 2008 को राज्य के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नदी बचाओ वर्ष के रूप में मनाया ।

रक्षासूत्र आंदोलन(Rakshasutra Movement)

प्रारंभ-1994, प्रवर्तक-सुरेश भाई

इस आंदोलन के अंतर्गत टिहरी के भिलंगना क्षेत्र के अंतर्गत रयारा के जंगलों को सरकार ने काटने का आदेश दे दिया। रयारा क्षेत्र के गांव डालगांव, खवाड़ा, भेटी, भिगुन, तिनगढ आदि इस आंदोलन से जुड़े। इस आंदोलन में महिलाओं ने पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधकर बचाया। इस आंदोलन का प्रमुख नारा ऊंचाई पर पेड़ टिके रहेंगे नदी ग्लेशियर बने रहेंगे था।

मैती आंदोलन(Maiti Movement)

प्रारंभ-1996, नेतृत्वकर्ता-कल्याण सिंह रावत 'मैती'
इस आंदोलन की शुरूआत चमोली से हुयी थी ।
यह एक भावनात्मक आंदोलन है। इस आंदोलन में विवाह के दौरान दूल्हा दुल्हन द्वारा मायके में वृक्षारोपण किया जाता है। जिनकी देखभाल की जिम्मेदारी मायके वालों की होती है। इस आंदोलन में केवल अविवाहित स्त्रियां ही भाग लेती हैं। जब भी गढ़वाल में किसी लड़की की शादी होती है तो मैती बहनों द्वारा दूल्हा दुल्हन को गांव के किसी निश्चित स्थान पर लेजाकर पौधा दिया जाता है वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ दूल्हा इस पौधे को रोपित करता है।
उत्तराखंड के प्रमुख वन आंदोलन
आज चमोली जनपद के कई गांवों में मैती संगठन मौजूद हैं। यह गांव की बहनों का संगठन है। गांव की सबसे मुखर व जागरूक लड़की मैती संगठन की अध्यक्ष बनती है जिसे दीदी के नाम से जाना जाता है। मैती संगठन के बाकी सदस्यों को मैती बहन के नाम से पुकारा जाता है। शादी की रस्म के बाद दुल्हा दुल्हन द्वारा रोपे गये पौधे की रक्षा यही मैती बहनें करती हैं। यह आदोलन आंज देश विदेश में भी फैल चुका है कनाडा में मैती आंदोलन की खबर पढकर वहां की पूर्व प्रधानमंत्री फलोरा डोनाल्ड आंदोलन के प्रवर्तक कल्याण सिंह रावत से मिलने गौचर आ गयी। वे मैती आंदोल से इतना प्रभावित हुयी की उन्होंने कनाडा में भी इसका प्रचार प्रसार शुरू कर दिया। कल्याण सिंह रावत को इसकी प्रेरणा नेपाल में चल रहे मैती आंदोलन से मिली। कल्याण सिंह रावत राजकीय इण्टर कॉलेज ग्वालदम में जीव विज्ञान के प्रवक्ता हैं। इनका जन्म 19 अक्टूबर 1953 कों बनौली गांव चमोली में हुआ था।

छीनों झपटो आंदोलन(Chhino Jhapto Movement)

प्रारंभ- 21 जून 1998, नेतृत्वकर्ता-गोबिंद सिंह रावत

रैणी, लाता, तोलमा आदि गांवों की जनता ने वनों पर परंपरागत हक बहाल करने व नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क का प्रबंध ग्रामीणों को सौंपने की मांग को लेकर लाता गांव में धरना प्रारंभ किया। 21 जून 1998 को लोग अपनेपालतू जानवरों के साथ नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क में घुस गये । कोट मल्ला रूद्रप्रयाग के जगत सिंह चौधरी 'जंगली' ने मिश्रित वन खेती मॉडल तैयार किया है। विश्वेश्वर दत्त सकलानी को वृक्ष मानव कहा जाता है।

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