सर्वोपद्रव शान्तिकरण मंत्र, महामंत्र, मंगलाष्टक - par 4(Sarvopadva Shantikaran Mantra, Mahamantra, Mangalashtak)

सर्वोपद्रव शान्तिकरण मंत्
मंत्र -  ॐ अरहंताणं जिणाणं भगवंताणं महापभावाणं होउ नमो, ॐ माई साहिं तो सव्व दुःखहरौ, जोहिजिणाणपभावो पर मिट्ठीगंच जंच माहप्पं संघ मि जोणु भावो अवयर उज्लं मिसोइथ

विधि- 
इस मंत्र से पानी २१ बार मंत्रित कर पिलाने से सर्व प्रकार के रोग, डाकिनी, शाकिनी, भूत, प्रेत इत्यादि शांत होते हैं।

मंत्र - ॐ ह्री श्री क्लीं ब्लूं ऐं अहं नमः ।
विधि - इस मंत्र का सवा लाख जाप करें तो सर्व प्रकार के कार्य सिद्ध होते हैं। सर्व रोग शांत होते हैं।

मंत्र - ॐ क्षां क्षीं क्षू क्षे क्षीं क्षः क्षेत्रपालाय नमः ।
विधि - इस मंत्र का साढ़े बारह हजार जाप करने से क्षेत्रपाल . प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देते हैं।

मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं क्रीं ॐ घंटाकर्ण महावीर लक्ष्मीं पूरय पूरय सुख सौभाग्यं कुरु कुरु स्वाहा । 
विधि - धनतेरस की रात को ४० माला, चौदस को ४२ माला और दिवाली के दिन ४३ माला उत्तर दिशा की ओर मुख करके लाल माला से लाल वस्त्र पहनकर करें तो लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

मंत्र - ॐ आं कों ह्रीं क्लीं ह्यौं पद्मावत्यै नमः । -
विधि - इस मंत्र का सवा लाख विधिपूर्वक जप करने से देवी जी प्रत्यक्ष दर्शन देती हैं और साढ़े बारह हजार जाप करने से स्वप्न में दर्शन देती हैं।

मंत्र - ॐ ऐं श्रीं क्लीं वद्वद् वाग्वादिनी ह्रीं सरस्वत्यै नमः ।
विधि - इस मंत्र की ५ माला नित्य फेरने से अतिशय बुद्धिमान होता है। विद्या बहुत आती है।
सरसों, हींग, नीम के पत्ते, वच और सर्प की केंचुली, इन सबको कूटकर धूप बना लें व उस धूप को खेने से शाकिनी आदि दोष दूर होते हैं।

सफेद आक ( अर्क) की जड़ को कान में बाँधने से सर्प विष दूर होता है। श्वेत कंटकारि की जड़ को पुष्य नक्षत्र में लेकर एक वर्ण वाली गाय के दूध के साथ पीवे तो बंध्या भी पुत्रवती होती है।

महामंत्र

णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, 
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ।

मंगलाष्ट

श्रीमन्नम्रसुरासुरेंद्रमुकुट प्रयोतरत्नप्रभा
भास्वत्पादनखेन्दवः प्रवचनाबोधी-न्दवः स्थायिन: ।
 ये सर्वे जिनसिद्ध सूर्यानुगतास्ते पाटकाः साधवः
स्तुत्या योगिजनेश्व पंचगुरवः कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम् ।। १ ।।
सम्यग्दर्शनयोधवृत्तममलं रत्नत्रयं पावनं
मुक्ति श्रीनगराधिनाथजिनपत्युक्तोपवर्गप्रदः 
धर्मः सूक्तिसुधा च चैत्यमखिलं चैत्यालयं श्रूयालयं
प्रोक्तं च त्रिविधं चतुर्विधममी कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम् ।। २ ।।
 नाभेयादिजिनाधिपास्त्रिभुवनख्याताश्चतुर्विंशतिः
श्रीमन्तो भरतेश्वरप्रभृतयो ये चक्रिणो द्वादश ।
ये विष्णु प्रतिविष्णु-लांगलधराः सप्तोत्तराः विंशति
स्त्रैकाल्ये प्रथितास्त्रिपष्टिपुरुषाः कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम् । । ३ । । 
देव्योऽष्टौ च जयादिका द्विगुणिता विद्यादिका देवताः
श्रीतीर्थंकरमातृकाश्य जनका यक्षाश्च यक्ष्यस्तथा । 
द्वात्रिंशस्त्रिदशाविपास्तिथिसुरा दिक्कन्यकाश्याष्टथा, 
दिक्पाला दश चेत्यमी सुरगणाः कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम् ।। ४ ।। 
ये सर्वोषधयः सुतपसो वृद्धिंगताः पंच ये,
ये चाष्टांगमहानिमित्त कुशला येऽष्टविधाश्वारणाः । 
पंचज्ञानथरास्त्रयोऽपि वलिनो ये बुद्धिकृदीश्वराः
सप्तेते सकलार्पिता गणभृतः कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम् ।। ५ ।।
कैलासे वृषभस्य निर्वृतिमहां वीरस्य पावापुरे, 
चम्पायां वसुपूज्यसज्जनपतेः सम्मेदलेऽर्हतां । 
शेषाणामपि बोर्जयंतशिखरे नेमीश्वरस्यार्हतो, 
निर्वाणावनयः प्रसिद्धविभवाः कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम् ।। ६ ।।
ज्योतिर्व्यन्तरभावनामरगृहे मेरी कुलदी तथा, 
जम्बूशाल्मलियेत्यशास्त्रिषु तथा वक्षाररूप्यादिषु । 
इष्वाकारगिरौ च कुण्डलनगे द्वीपे च नन्दीश्वरे, 
शैले ये मनुजोत्तरे जिनगृहाः कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम् ।। ७।। 
ये गर्भावतरोत्सवो भगवतां जन्माभिषेकोत्सवो, 
यो जातः परिनिष्क्रमेण विभवो यः केवलज्ञानभाक् । 
यः कैवल्यपुरप्रवेशमहिमा संभावितः स्वर्गिभिः, 
कल्याणानि च तानि पंच सततं कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम् ।। ८  ।। 
इत्थं श्रीजिनमंगलाष्टकमिदं सौभाग्यसम्पठांद 
कल्याणेषु महोत्सवेषु सुधियस्तीर्थकंराणामुषः । 
ये शृण्वन्ति पठन्ति तैश्य सुजनैर्धर्मार्थकामान्विता
लक्ष्मीराश्रयते व्यपायरहिता निर्वाणलक्ष्मी ।। ६ ।। 
।। इति श्रीमंगलाष्टकम् ।।

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