नवम कोष्टक का अर्घ्यशतक part 15 (navam koshtak ka arghyashtak)

 नवम कोष्टक का अर्घ्यशतक

कमल केतकी जुही चमेली नाना विधि के पुष्प मँगाय ।
देवी जी को अर्पण करके पुष्पांजलि कर मन हर्षाय ।।
पुष्पांजलिं क्षिपेत्
लीलावती की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।।१।।
ॐ आं को हीं लीलावत्यै नमः, अर्थ ।
ललामाभा की पूजा करूँ मन वय और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।।२।।
ॐ आं को ही ललामाभायै नमः, अर्ध ।
लोहमुद्रा की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।।३।।
ॐ आं कों हीं लोहमुद्रायै नमः, अर्थ ।
लिपिप्रिया की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। ।।
ॐ आं कों ही लिपिप्रियायै नमः, अर्ध ।
लोकेश्वरी की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। ।।
ॐ आं को ही लोकेश्वर्ये नमः, अर्घ ।
लोकमाता की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। ६ ।।
ॐ आं को हीं लोकमात्रे नमः, अर्ध ।
लब्धि की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। ।।
ॐ आं कों हीं लब्यै नमः, अर्थ।
 
 
 
 
 
 
लोकान्तपालिनी की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। ८ ।।
ॐ आं कों हीं लोकान्तपालिन्यै नमः, अर्घ ।
लीला की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। ६ ।।
ॐ आं कों हीं लीलायै नमः, अर्घ ।
ललामदा की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। १० ||
ॐ आं को ही ललामदायै नमः, अर्घ ।
लीला की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। ११ ।।
ॐ आं कों हीं लीलायै नमः, अर्घ ।
लावण्या की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। १२ ।।
ॐ आं कों ह्रीं लावण्यायै नमः, अर्घ ।
ललिता की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। १३ ।।
ॐ आं कों हीं ललितायै नमः, अर्घ ।
अर्थदा की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। १४ ||
ॐ आं कों ह्रीं अर्थदायै नमः, अर्घ ।
लोभघ्नी की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। १५ ।।
ॐ आं कों हीं लोभम्न्यै नमः, अर्घ ।
लम्बिनी की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। १६ ।।
ॐ आं को ही लम्बिन्यै नमः, अर्घ ।
लंका की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। १७ ।।
ॐ आं कों ह्रीं लंकायै नमः, अर्घ ।
 
 
 
 
लक्षणा की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। १८ ।।
ॐ आं कों ह्रीं लक्षणायै नमः, अर्घ ।
लक्षवर्जिता की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। १६ ।।
ॐ आं कों हीं लक्षवर्जितायै नमः, अर्ध ।
उमा की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। २० ।।
ॐ आं कों ह्रीं उमायै नमः, अर्घ ।
उर्वशी की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। २१ ।।
ॐ आं कों ह्रीं उर्वश्यै नमः, अर्घ ।
उदीची की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। २२ ।।
ॐ आं कों हीं उदीच्यै नमः, अर्घ ।
उद्योता की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। २३ ।।
ॐ आं कों हीं उद्योतायै नमः, अर्थ ।
उद्योतकारिणी की पूजा करूँ मन वच और शरीर ।
ज्ञान ध्यान वृद्धि करो हरो जगत की पीर ।। २४ ।।
ॐ आं कों ही उद्योतकारिण्यै नमः, अर्घ ।
उदारिणी जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। २५ ।।
ॐ आं कों हीं उदारिण्यै नमः, अर्घ ।
उद्धरोदक्या जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक से पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। २६ ।।
ॐ आं कों ह्रीं उद्धरोदक्यायै नमः, अर्ध ।
उद्धिज्या जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।।२७ ।।
ॐ आं को ह्रीं उद्धिज्यायै नमः, अर्घ ।
 
 
 
 
उदकवासिनी जगत् चन्द्र भक्कि खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद । ।२८ ।।
ॐ आं कों ह्रीं उदकवासिन्यै नमः, अर्घ ।
उदाहारा जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजें हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। २६ ।।
 ॐ आं कों ह्रीं उदाहारायै नमः, अर्घ ।
उत्तमा जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजें हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ३० ।।
ॐ आं कों हीं उत्तमायै नमः, अर्घ ।
उत्तमा जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ३१ ।।
ॐ आं को हीं उत्तमायै नमः, अर्ध ।
ओषधि उदधितारिणी जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ३२ ।।
ॐ आं कों ह्रीं ओष्ध्यै नमः, अर्घ ।
उदधितारिणी जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक से पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ३३ ।।
ॐ आं कों हीं उदधितारिण्यै नमः, अर्ध ।
उत्तरा जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ३४ ।।
ॐ आं कों ह्रीं उत्तरायै नमः, अर्ध ।
उत्तरवादिनी जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
बसु द्रव्यादिक ले पूजें हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ३५ ।।
ॐ आं कों हीं उत्तरवादिन्यै नमः, अर्ध ।
उद्धरा जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजें हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ३६ ।।
ॐ आं कों हीं उद्धरायै नमः, अर्घ ।
उद्धरनिवासिनी जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ३७ ।।
ॐ आं कों हीं उदरनिवासिन्यै नमः, अर्ध ।
 
 
 
 
उत्कलिनी जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ३८ ।।
ॐ आं कों ह्रीं उत्कलिन्यै नमः, अर्घ ।
उत्कलिन्या जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ४० ।।
ॐ आं कों ह्रीं उत्तीणायै नमः, अर्घ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद  ।। ३६ ।।
ॐ आं कों ह्रीं उत्कलिन्यायै नमः, अर्घ ।
उत्कीर्णा जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
उत्कररूपिणी जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ४१ ।।
ॐ आं को हीं उत्कररूपिण्यै नमः, अर्घ ।
ॐकारा जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ४२ ।।
ॐ आं कों ह्रीं ॐकारायै नमः, अर्घ ।
ओंकारूपा जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ४३ ।।
ॐ आं कों ह्रीं ओंकारूपायै नमः, अर्घ ।
अम्बिका जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ४४ ।।
ॐ आं कों हीं अम्बिकायै नमः, अर्घ ।
अम्बरचारिणी जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
दसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ४५ ।।
ॐ आं कों हीं अम्बरचारिण्यै नमः, अर्प ।
अमोघाशायुजा जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ४६ ।।
ॐ आं कों ह्रीं अमोघाशायुजायै नमः, अर्घ ।
अन्ता जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ४७ ।।
ॐ आं को ह्रीं अन्तायै नमः, अर्ध ।
 
 
 
 
अणिमादिगुणसंयुता जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रष्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ४८ ।।
ॐ आं को हीं अणिमादिगुणसंयुतायै नमः, अर्थ ।
अनादिनिधना जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ४६ ।।
ॐ आं कों हीं अनादिनिधनायै नमः, अर्घ ।
अनन्ता जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ५० ।।
ॐ आं कों हीं अनन्तायै नमः, अर्ष ।
कोदण्डपरिहासिनी की भक्ति वश पूजा करें ।
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ५१ ।।
ॐ आं कों ह्रीं दण्डपरिहासिन्यै नमः, अर्घ । अर्पणा की भक्ति वश पूजा करें।
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ५२ ।।
ॐ आं कों हीं अर्पणायै नमः, अर्घ ।
अर्था की भक्ति वश पूजा करें।
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ५३ ।।
ॐ आं कों हीं अर्थाय नमः, अर्घ ।
बिन्दुधरा की भक्ति वश पूजा करें।
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ५४ ।।
ॐ आं कों हीं बिन्दुधरायै नमः, अर्घ ।
अलोका की भक्ति वश पूजा करें।
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ५५ ।।
ॐ आं कों हीं अलोकायै नमः, अर्ध ।
अलल्यालिवांगना की भक्ति वन पूजा करें
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ५६ ।।
ॐ आं कों हीं अलल्यात्तिवांगनायै नमः, अर्घ ।
आनन्दा की भक्ति वश पूजा करें ।
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ५७ ।।
ॐ आं कों हीं आनन्दायै नमः, अर्घ ।
 
 
 
 
अणिमादिगुणसंयुता जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रष्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ४८ ।।
ॐ आं को हीं अणिमादिगुणसंयुतायै नमः, अर्थ ।
अनादिनिधना जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ४६ ।।
ॐ आं कों हीं अनादिनिधनायै नमः, अर्घ ।
अनन्ता जगत् चन्द्र भविक खेत की मेघ ।
वसु द्रव्यादिक ले पूजूँ हूँ ज्ञानानंद अमंद ।। ५० ।।
ॐ आं कों हीं अनन्तायै नमः, अर्ष ।
कोदण्डपरिहासिनी की भक्ति वश पूजा करें ।
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ५१ ।।
ॐ आं कों ह्रीं दण्डपरिहासिन्यै नमः, अर्घ ।
अर्पणा की भक्ति वश पूजा करें।
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ५२ ।।
ॐ आं कों हीं अर्पणायै नमः, अर्घ ।
अर्था की भक्ति वश पूजा करें।
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ५३ ।।
ॐ आं कों हीं अर्थाय नमः, अर्घ ।
बिन्दुधरा की भक्ति वश पूजा करें।
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ५४ ।।
ॐ आं कों हीं बिन्दुधरायै नमः, अर्घ ।
अलोका की भक्ति वश पूजा करें।
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ५५ ।।
ॐ आं कों हीं अलोकायै नमः, अर्ध ।
अलल्यालिवांगना की भक्ति वन पूजा करें
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें । । ५६ ।।
ॐ आं कों हीं अलल्यात्तिवांगनायै नमः, अर्घ ।
आनन्दा की भक्ति वश पूजा करें ।
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ५७ ।।
ॐ आं कों हीं आनन्दायै नमः, अर्घ ।
 
 
 
 
 
आनन्दा की भक्ति वश पूजा करें।
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ६८ ।।
ॐ आं कों हीं अजरायै नमः, अर्घ ।
अरजस् की भक्ति वश पूजा करें।
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ६६ ।।
ॐ आं कों ह्रीं अरजसे नमः, अर्घ । अंहकारा की भक्ति वश पूजा करें।
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें  ॥ ७० ।।
ॐ आं कों हीं अंहकारायै नमः, अर्घ ।
अराति की भक्ति वश पूजा करें
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ७१ ।।
ॐ आं कों हीं अरात्यै नमः, अर्घ ।
अन्तदा की भक्ति वश पूजा करें।
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ७२ ।।
ॐ आं कों ह्रीं अन्तदायै नमः, अर्घ ।
अनुरूप की भक्ति वश पूजा करें ।
ज्ञान व्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ७३ ।।
ॐ आं कों हीं अनुरूपायै नमः, अर्ध ।
अर्थमूला की भक्ति वश पूजा करें
ज्ञान ध्यान समृद्धि पाकर सुख शान्ति में झूला करें ।। ७४ ।।
ॐ आं को हीं अर्थमूलायै नमः, अर्घ ।
कीड़ा कीड़ा करो सब जगत में घूम ।
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम ।। ७५ ।।
ॐ आं कों ह्रीं कीड़ाये नमः, अर्घ ।
कैरवा कीड़ा करो सब जगत में घूम।
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम ।। ७६ ।।
ॐ आं कों ह्रीं कैरवायै नमः, अर्घ ।
पालिनी कीड़ा करो सब जगत में घूम ।
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम ।। ७७ ।।
ॐ आं कों हीं पालिन्यै नमः, अर्थ ।
 
 
 
अनोकहाससुता कीड़ा करो सब जगत में घूम । जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम । । ७८ ।।
ॐ आं कों ह्रीं अनोकहाससुतायै नमः, अर्घ । अभिया कीड़ा करो सब जगत में घूम ।
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम । ७६ ।। ॐ आं कों ह्रीं अभिद्यायै नमः, अर्घ । अच्छेद्या कीड़ा करो सब जगत में घूम।
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम । ।८० ।। ॐ आं को हीं अच्छेद्यायै नमः, अर्घ ।
आकाशगमिनी कीड़ा करो सब जगत में घूम । जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम । ।८१ ।। ॐ आं कों हीं आकाशगमिन्यै नमः, अर्ध ।
* अन्तरा कीड़ा करो सब जगत में घूम । जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम । ।८२ ।। ॐ आं कों ही अन्तरायै नमः, अर्घ ।
आराधिता कीड़ा करो सब जगत में घूम । जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम ।।८३ ।। ॐ आं कों ह्रीं आराधितायै नमः, अर्घ ।
आधारा कीड़ा करो सब जगत में घूम । जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम ।।८४ ।। ॐ आं कों ह्रीं आधारायै नमः, अर्ध ।
उद्ग्धा कीड़ा करो सब जगत में घूम । जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम । ।८५ ।। ॐ आं कों हीं उद्ग्धायै नमः, अर्ध ।
गंधजालिनी कीड़ा करो सब जगत में घूम। जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम । । ८६ ।। ॐ आं कों हीं गंधजालिन्यै नमः, अर्घ ।
अलका कीड़ा करो सब जगत में घूम। जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम । । ८७ ।। ॐ आं कों ह्रीं अलकायै नमः, अर्थ ।
 
 
 
 
अलम्बना कीड़ा करो सब जगत में घूम ।
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम ।। ८८ ।।
ॐ आं कों ह्रीं अलम्बनायै नमः, अर्घ ।
अलंघ्या कीड़ा करो सब जगत में घूम ।
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम || ८६ ||
ॐ आं कों हीं अलंप्यायै नमः, अर्घ ।
शीता कीड़ा करो सब जगत में घूम ।
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम ।। ६० ।।
ॐ आं कों ह्रीं शीतायै नमः, अर्थ ।
शेखरधारिणी कीड़ा करो सब जगत में घूम ।
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम ।। ६१।।
ॐ आं कों ह्रीं शेखरधारिण्यै नमः, अर्प ।
आकर्षणा कीड़ा करो सब जगत में घूम ।
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम ।। ६२ ।।
ॐ आं कों ह्रीं आकर्षणायै नमः, अर्ध ।
अधरा कीड़ा करो सब जगत में घूम
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम ।। ६३ ।।
ॐ आं कों हीं अधरायै नमः, अर्घ ।
अरागा कीड़ा करो सब जगत में घूम ।
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम ।। ६४ ।।
ॐ आं को हीं अरागायै नमः, अर्ध ।
मोदजा कीड़ा करो सब जगत में घूम ।
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम ।। ६५ ।।
ॐ आं कों ही मोदजायै नमः, अर्घ ।
मोदधारिणी कीड़ा करो सब जगत में घूम ।
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम ।। ६६ ।।
ॐ आं कों ह्रीं मोदधारिण्यै नमः, अर्ध ।
अहिनाथा कीड़ा करो सब जगत में घूम ।
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम । ।६७ ।।
ॐ आं कों हीं अहिनाथायै नमः, अर्घ ।
 
 
 
अहिप्रिया कीड़ा करो सब जगत में घूम ।
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम ।। ६८ ।।
ॐ आं कों हीं अहिप्रियायै नमः, अर्घ ।
अहिप्राणा कीड़ा करो सब जगत में घूम ।
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम ।। ६६ ।।
ॐ आं कों हीं अहिप्राणायै नमः, अर्घ ।
अहोश्वरी कीड़ा करो सब जगत में घूम
जल फलादि से पूजकर भक्त मचावे धूम ।।१०० ।।
ॐ आं कों ह्रीं अहोश्वर्ये नमः, अर्घ ।
मंत्रजाप १०८ लोंगों से
ॐ ह्रीं श्री पद्द्मावतीदेव्यै नमः। मम इच्छितफलप्राप्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।
पूर्ण अर्घ ।
जलफलादि मिलाय मनोहरं, अरघ धारत ही सब सुख करं ।
जजत हों माँ के गुण गायके, चरण अम्बुज प्रीति लगायके ।।
ॐ आं को हीं लीलावत्यादि अहोश्वर्यन्त शतनामधारिण्यै अर्घ्य समर्पयामि
शांति धारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।

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