तीलू रौतेली को शूरता-वीरता में गढ़वाल की लक्ष्मीबाई (Tilu Rauteli was awarded Laxmibai of Garhwal in bravery )

अपने पिता और भाई के साथ किये गये दुव्यवहार का बदला लेने के लिए तीलू ने अपने, जीवन को आहति दे दी


नायक प्रायः अति मानवीय शक्ति सम्पन्न पाये गये हैं। कहीं-कहीं दुराचार और नृशसंता के घृणित उदाहरण भी हैं। वीयांगनाओं की कथाओं में जोतर माला, पत्थर माला, ध्यानमाला, अमरावती, चन्द्रावली, सुरमा, संरूकुमैण, नौरूंगी रजूला, और बरूणा की प्रेम गाथाएं हैं। लेकिन इन सबसे. अलग तीलू रौतेली (कुमारी) की वीरगाथा भी है। तीलू रौतेली को शूरता-वीरता में गढ़वाल की लक्ष्मीबाई कहा गया है। अपने पिता और भाई के साथ किये गये दुव्यवहार का बदला लेने के लिए तीलू ने अपने, जीवन को आहति दे दी थी। पन्द्रह वर्ष. की अवस्था में उसने तलवार थाम ली थी और बाइस वर्ष. की अवस्था में वह अपने पिता और भाइयों का बदला लेकर स्वर्ग, सिधार गई थी। इस वीर युवती की गाथा आज सारे गढ़वाल के घरों में गूँजती मिलती है। प्रस्तुत हैं तीलू के शौय की वीर गाथा 

तीलू रौतेली को शूरता-वीरता में गढ़वाल की लक्ष्मीबाई 

गाथा तिलू कुमारी (रौतेली)
ओ काँठा को. कोथिग उरयो, 
ओ; तिलु कौतिक जौला,
धका घें घें तिलू रौतेली धका घें घें। 
द्वी बीर मेरा रणसूर ह्वेला,
भगत पता को बदलो'
लेक कौतिक खेलला, 
अहो रणसूरा बाजा बजी गेनारौतेली,
बोइयों को गीत तुम रणखेतू बतावा, 
तीलू रौतेली बोदा रणसाज सजावा,
ईजा मैंण यू बीरू टीका लगावासाज सजाबा,
में तीलू बोलद जौका भाई होला जैकी बैण होली, 
ओ. रणखेतू जाला
बल्‍लू पहरी तु मुल्क जाइका धाई लगैदे
बीरों की भ्रकुटी तनी गे तीलू रौतेली। 
ओ. अब बूढ़ो, सलाण नाचण लाग
अब नई जवानी आइई गे,
ले देंवकी ठी सखी संग चली गे ओ खैरागढ़ मा युद्ध लगी गे 
खड़कू रौत तब मरी गे,
औ कांडा को; कौथिग उरो.
तिलू रौतेली तुम पुराणा हथियार पुजावा
अपनी ढाल कटार तलवार सजावा
घमड़ू की हुड़की बजण बेदे
ओ; रणसूर साज सजीक आगे, तीलू रौतेली
दीवा को उस्टान करयाल
रण जीति घर आइक गाडूलू छतर दे
पहुंची गे तीलू टकोली भीन
यख द्विं कत्यरो, मारियाल
तब तोलू पहुंचे, गे सल्‍्ड महादेव
ओ; सरिंगनी शावला
शार्दूला तीलू अब बढ़ीगे मिलण भेण
यख वख मारी कै की बढ़ीगै चौखुटिया देघाट 
बिजय मिल पर तीलू छिरीमे
वेल्लू देवकी रणखेतूमा घखी काम थैना
इतनामा शिबबू पोखिरियाल मदद लेक आइये
जब शार्दूला लड़क-लड़द पहुंची गे कालिंका खाल
सराई खेत आइगे घमसाण युद्ध
शार्दला की मार से; कत्यूरा रण छोड़ी भागीगे
यूं कत्यूरों. क खून से; तर्षण देइका कौतिक खेललो 
रणभूत पितरों. की यख तपण दिउला
यख शिबू पोखिरियाल तपृण देण लगो. गे
सराई सेज नाम तबी से पड़े
यो. कौथिग तलवारियों को होलो.
ये ताई खेलला मर्दात्ता मस्ताना रणबांकुरा जवान 
सरदारा चेला तुम रणखेत चलो,
ओ. रणसिंध रण भेरी नगाड़ा बजीगे
ओ. शिब्बू ब्वाड़ा तपृण करण खैरागढ़ चली गे 
अच शादुला पहुंची गे खैरागढ़
यखर जीतू कत्यूरा मारी राजुला
जै रौतेली आगे, बढ़ी गे
रणजीति सिंघर्णी दुबटा मां नाण लंगीगे 
रामू रजवार घात पाई गे
राजुला तु रणखण्डी छई
अपणों काम कैकी नाम नाम धरीगे 
कौतिक जाबका खेलणौं छयो खेली याले 
याद तौ की जुग जुग रहली
तू साक्षी रैली खाटुली कि देवी
तू साक्षी रैली सल्ड महादेव
तू साक्षी रैली प्रंचनाम देव
तू साक्षी रैली कालिका को देवी
तू साक्षी रैली लंगूरिया भैरों
तू अमर रैली तीलू सिंघर्णी शादूला
जब तक भूमि सूरज आसमान
तीलू रौतेला की तब तक याद रैली।

देवभूमि गौरव गाथाओं से भरी पड़ी है। यहां की मातृशक्ति का धैर्य, साहस और पराक्रमण इतिहास से लेकर वर्तमान तक नजर आता है। ऐसी ही एक वीरांगाना तीलू रौतेली की आज जंयती है। जिनके साहस और शैर्य की चर्चा देशभर में होनी चाहिए थी उनके पराक्रम की कहानियां सूबे में सिमटकर रह गईं हैं। पिता, भाई और मंगेतर की शहादत का बदला लेने के लिए उन्‍होंने जिस पराक्रमण और शौर्य का परिचय दिया था, वैसी दूसरी मिशाल नजर नहीं आती। रानी लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, चांदबीबी, जियारानी जैसी पराक्रमी महिलाओं के साथ उनका सम्‍मान से लिया जाता है। तो चलिए जानते हैं कौन थी तीलू रौतेली और उनकी गौरव गाथा के बारे में...।

15 वर्ष की उम्र में सीख ली घुड़सवारी और तलवारबाजी

तीलू रौतेली का मूल नाम तिलोत्तमा देवी था। इनका जन्म आठ अगस्त 1661 को ग्राम गुराड़, चौंदकोट (पौड़ी गढ़वाल) के भूप सिंह रावत (गोर्ला) और मैणावती रानी के घर में हुआ। भूप सिंह गढ़वाल नरेश फतहशाह के दरबार में सम्मानित थोकदार थे। तीलू के दो भाई भगतु और पत्वा थे। 15 वर्ष की उम्र में ईडा, चौंदकोट के थोकदार भूम्या सिंह नेगी के पुत्र भवानी सिंह के साथ धूमधाम से तीलू की सगाई कर दी गई। 15 वर्ष की होते-होते गुरु शिबू पोखरियाल ने तीलू को घुड़सवारी और तलवार बाजी में निपुण कर दिया था। उस समय गढ़नरेशों और कत्यूरियों में पारस्परिक प्रतिद्वंदिता चल रही थी। कत्यूरी नरेश धामदेव ने जब खैरागढ़ पर आक्रमण किया तो गढ़नरेश मानशाह वहां की रक्षा की जिम्मेदारी भूप सिंह को सौंपकर खुद चांदपुर गढ़ी में आ गया। भूप सिंह ने डटकर आक्रमणकारियों का मुकाबला किया परंतु इस युद्ध में वे अपने दोनों बेटों और तीलू के मंगेतर के साथ वीरतापूर्वक लड़ते हुए शहीद हो गए।

कत्‍यूरों से लड़ते हुए शहीद हो गए भाई, पिता और मंगेतर

कत्यूरियों का शासनकाल उत्तराखण्ड में आठवीं शताब्दी तक शासन रहा। उसके बाद गढवाल में पवार और कुमाऊं में कत्यूरियों के साथ चंद वंश का शासन रहा। धीरे-धीरे कुमांऊ में चंद वंश प्रभावशाली होते रहे और कत्यूरी इधर-उधर बिखरने लगे। उन्होंने चारों ओर लूटपाट और उत्पात मचाकर अशांति फैलाना शुरू किया। तीलू रौतेली के समय गढ़वाल एवं कुमाऊँ में छोटे-छोटे राजा, भड व थोकदारी की प्रथा थी। सीमाओं का क्षेत्रफल राजाओं द्वारा जीते गए भू-भाग से निर्धारित होता था । आज यह भू-भाग इस राजा के अधीन है तो कल किसी और राजा के अधीन। कत्यूरी राजा धामशाही ने गढवाल व कुमाऊं के सीमांत क्षेत्र खैरागढ (कालागढ के पास) में अपना अधिपत्य जमा लिया था। प्रजा इनके अत्याचारों से दुखी थी। कत्यूरी नरेश धामदेव ने जब खैरागढ़ पर आक्रमण किया तो गढ़नरेश मानशाह वहां की रक्षा की जिम्मेदारी भूप सिंह को सौंपकर खुद चांदपुर गढ़ी में आ गया। भूप सिंह ने डटकर आक्रमणकारियों का मुकाबला किया परंतु इस युद्ध में वे अपने दोनों बेटों और तीलू के मंगेतर के साथ वीरतापूर्वक लड़ते हुए शहीद हो गए।

सात वर्ष तक युद्ध कर जीत लिए 13 किले

पिता भाई और मंगेतर की शहादत के बाद 15 वर्षीय वीरबाला तीलू रौतेली ने कमान संभाली। तीलू ने अपने मामा रामू भण्डारी, सलाहकार शिवदत्त पोखरियाल व सहेलियों देवकी और बेलू आदि के संग मिलकर एक सेना का गठन किया । इस सेना के सेनापति महाराष्ट्र से छत्रपति शिवाजी के सेनानायक श्री गुरु गौरीनाथ थे। उनके मार्गदर्शन से हजारों युवकों ने प्रशिक्षण लेकर छापामार युद्ध कौशल सीखा। तीलू अपनी सहेलियों देवकी व वेलू के साथ मिलकर दुश्मनों को पराजित करने हेतु निकल पडी। उन्होंने सात वर्ष तक लड़ते हुए खैरागढ, टकौलीगढ़, इंडियाकोट भौनखाल, उमरागढी, सल्टमहादेव, मासीगढ़, सराईखेत, उफराईखाल, कलिंकाखाल, डुमैलागढ, भलंगभौण व चौखुटिया सहित 13किलों पर विजय पाई। 15 मई 1683 को विजयोल्लास में तीलू अपने अस्त्र शस्त्र को तट (नयार नदी) पर रखकर नदी में नहाने उतरी, तभी दुश्मन के एक सैनिक ने उसे धोखे से मार दिया। हालांकि तीलू रौतेली पर कई पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं तथा कई नाट्य मंचित भी हो चुके हैं, परन्तु इस महान नायिका का परिचय पहाड की कंदराओं से बाहर नहीं निकल पा रहा है।

(1)

एक दिन कुंवर त्वीकू राति का बीरवैमा
नागु का सुरजू वाला सुपीनो; ह्वे गये
राति हवे थोड़ा तिन स्वीर्णों जम्ये भौत
पॉछीगे सुरजू जैकी ताता लूहागढ़
सुपिना मा देखे तिन राणी जोत माला

(2)
दे ख्याले सुरजू तिन रा्णी को बंगला। 
जैं राणी को होला आज ठैठाब को रंग
सुतरी पक्नंग जैं को: नेलू झमकार
कवा सुली सेज जैको घाव ड़िया घांड
हिमा च सुरीज जैको पीठी चूंदरमा
कमरी दिखेद़ं जैकी कुमाली सी ठांण
विणोरी दिखेंद जै कि डांडा सी चुडीणा
सिदोली दिखेंद जै कि धौली जैसों फाट
  • तीलू रौतेली पेंशन योजना कब शुरू की गयी 
A.     1 जनवरी 2014
B.     1 अप्रैल 2014
C.     1 जून 2014
D.     1  जुलाई 2014

Ans B. 1 अप्रैल 2014

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