उत्तराखण्ड(उत्तरांचल) राज्य आंदोलन (Uttarakhand (Uttaranchal) Statehood Movement )

उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन 

उत्तराखंड का सबसे बड़ा आंदोलन कौन सा है?
चिपको आंदोलन मूलत: उत्तराखण्ड के वनों की सुरक्षा के लिए वहां के लोगों द्वारा 1970 के दशक में आरम्भ किया गया आंदोलन है।
उत्तराखंड का बंटवारा कब हुआ था?
एक नये राज्य के रूप में उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के फलस्वरुप (उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000) उत्तराखण्ड की स्थापना 9 नवम्बर 2000 को हुई। अत: इस दिन को उत्तराखण्ड में स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। सन् 1969 तक देहरादून को छोड़कर उत्तराखण्ड के सभी जिले कुमाऊँ मण्डल के अधीन थे।
उत्तराखंड राज्य की स्थापना कब हुई थी?
उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तरांचल) का इतिहास पौराणिक है यह उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण 9 नवम्बर 2000 को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात भारत गणराज्य के सत्ताईस वें राज्य के रूप में किया गया था। सन 2000 से 2006 तक यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था।
उत्तराखंड का सबसे पुराना जिला कौन सा है?
नैनीताल जिला 1891 में कुमाऊं जिले से बना हुआ था और कुमाऊं जिला को उसके मुख्यालय के बाद अल्मोड़ा जिला का नाम दिया गया था।
उत्तराखंड का 13वां जिला कौन सा है?
उत्तराखंड के 13 जिलों के नाम हैं -अल्मोड़ा, नैनीताल, देहरादून, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, उधम सिंह नगर, बागेश्वर, टेहरी गढ़वाल, चमोली, हरिद्वार, पौरी गढ़वाल, पिथौरागढ, और चंपावत।
उत्तराखंड की सबसे पुरानी जाति कौन सी है?
खस" खशा' कस' खासिया ' खश (आर्य)' एक प्राचीन बाह्लीकी भाषा बोल्ने ( हिन्द-आर्य ) पाजाडि जाति थी । इनकि लिपि को ब्रह्म लिपि तथा खरोष्ठी लिपि कहा जाता है। भारत के उतर मे और नेपाल मे आज भि खस जनजाति पाइ जाति है जिनहे क्षेत्रि और ठकुरी भि कहि जाति है ।
उत्तराखंड की भाषा कौन सी है?
गढ़वाली और कुमाऊंनी
लेकिन राज्य की सबसे प्रमुख भाषा हिन्दी है। यह राज्य की आधिकारिक और कामकाज की भाषा होने के साथ-साथ अन्तरसमूहों के मध्य संवाद की भाषा भी है। राज्य की दूसरी प्रमुख राजभाषा संस्कृत है। उत्तराखंड में संस्कृत को द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त है।
उत्तराखंड  का दूसरा नाम क्या है?
उत्तरांचल, भारत का 27 वां राज्य, 9 नवंबर, 2000 को उत्तर प्रदेश से बना था। जनवरी 2007 में इसका नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया। स्थापना दिवस: 9 नवंबर 2000 (इस तारीख को उत्तर प्रदेश से निकलकर भारत गणराज्य का 27वां राज्य बना)।
उत्तराखण्ड(उत्तरांचल) राज्य आंदोलन

उत्तराखंड को एक राज्य बनाने की मांग पहली बार 5 और 6 मई 1938 के बीच श्रीनगर में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक विशेष सत्र में उठाई गई थी। आंदोलन ने गति पकड़ी और 1994 तक, एक अलग राज्य की मांग ने अंततः एक जनसमूह का रूप ले लिया। वह आंदोलन जिसके परिणामस्वरूप 9 नवंबर 2000 को भारत का 27वां राज्य बना।
1930 में पौढ़ी जेल में डिप्टी कमिश्नर इबटसन के द्वारा अनुसुया प्रसाद बहुगुणा के साथ कथित दुर्व्यवहार (जल में बाल नोच दिये) किया गया था। जिसके विरोध में कोटद्वार व दुगड्डा में सत्याग्रहियों द्वारा इबटसन का रास्ता रोककर उसे काले झंडे दिखाये गये थे। गढ़वाल की बारदोली के रूप में विख्यात गुजडू में प्रथम बार 1930 में कप्तान रामप्रसाद नौटियाल ने सेना से पदत्याग करने के उपरांत अपना संपूर्ण जीवन गुजडू की जनशक्ति को आर्थिक व राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये संगठित करने में लगा दिया था। 23 अप्रैल 1930 को पेशावर कांड हुआ था। 

जिसमें गढ़वाल के सैनिकों ने महान आदर्श प्रदर्शित किया और निहत्थे अफगान सैनिकों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया। अफगानी स्वतंत्रता सेनानी खान अब्दुल गफ्फार खां के नेतृत्व में आंदोलन कर रहे थे। 23 अप्रैल 1930 को उत्तेजित भीड़ ने मोटरसाइकिल पर सवार एक अंग्रेज पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी किंतु गढवाली सैनिकों ने घटना की अनदेखी कर दी थी। गढवाल सैनिकों के अंग्रेज कमांडर रिकेट ने उन्हें आदेश दिया कि भीड़ पर तीन राउंड फायर करो किंतु दूसरी ओर वीर चंद्र सिंह गढवाली ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए कहा "गढवाली सीज फायर" पूछे जाने पर वीर चंद्र सिंह गढवाली ने उत्तर दिया हम भारत की रक्षा हेतु सेना में भर्ती हुए थे न कि निहत्थे भाइयों पर गोली चलाने हेतु। चंद्र सिंह गढवाली 2/18 गढवाल रायफल के सैनिक थे। गांधी जी ने इन्हें पवनार आश्रम बुलाकर गढवाली नाम से सम्मानित किया। नोट:- चंद्र सिंह गढ़वाली की पत्नी का नाम भागीरथी देवी था। और राहुल सांकृत्यायन ने वीर चंद्र सिंह गढवाली पुस्तक लिखी है।

उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन

गढवाली बाद में साम्यवादी नेता पी सी जोशी से मिले और इन्होंने साम्यवाद का उत्तराखंड में प्रचार किया था। गढ़वाली ने पौढी में मार्क्सवादी दल का कार्यालय खोलकर पहली बार कम्यून की स्थापना की थी। पेशावर कांड से प्रभावित होकर मोतीलाल नेहरू ने सम्पूर्ण देश में 23 अप्रैल को गढवाल दिवस मनाने की घोषणा की थी। गढ़वाल में सविनय अवज्ञा आंदोलन को अंतिम रूप देने के उद्येश्य से जून 1930 में कोट सितोंस्यू पौढी में कांग्रेस का सम्मेलन बुलाया गया। सम्मेलन की अध्यक्षता पंडित गोबिंद बल्लभ पंत ने की। इस अधिवेशन  प्रस्ताव पारित कर पेशावर कांड में गढवाली सैनिकों के शौर्य की प्रशंसा की गयी। 26 जनवरी 1930 को टिहरी रियासत को छोड़कर समस्त उत्तराखंड में राष्ट्रीय झंडा फहराकर प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। उग्र राष्ट्रवादी आंदोलन में भी राज्य के कई युवकों ने सक्रिय योगदान दिया 1930 में गाड़ोदिया स्टोर डकैतो कांड में भवानी सिंह सहित राज्य के कई युवक थे। भवानी सिंह गड़ौदिया स्टोर डकैती में भाग लेकर चन्द्रषेखा आजाद के नेतृत्व में क्रांतिकारी दल को पिस्तौल की ट्रेनिंग देने के लिए दुगड्डा लाये थे। 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा शुरू की जो 24 दिनों के उपरांत 6 अप्रैल को गांधी जी नमक बनाकर नमक कानून भंग किया था।

डांडी यात्रा में उत्तराखण्ड का योगदान Contribution of Uttarakhand in Dandi Yatra

  1. कुमाऊं से भैरव दत्त जोशी, गोरखा वीर खड्ग बहादुर और ज्योतिराम कांडपाल भी शामिल हुए थे।
  2. जो गांधी जी के साथ जेल गये। इस यात्रा में उत्तराखंड (ज्योतिराम कांडपाल जी ने अध्यापक पद से इस्तीफा दिया और सीधे साबरमती आश्रम जाकर  भाग लिया था।
  3. गांधी जी के आदेशानुसार सरोजिनी नायडू के नेतृत्व में गुजरात में धरासाणा नामक स्थान के नमक पर धरना देने वाले उत्तराखंड के वे एकमात्र स्वयंसेवक थे। वहां उन्हें कठोर यंत्रणा व जेल की सजा हुयी। तत्पश्चात गांधी जी ने उन्हें कुमाऊं में आश्रम स्थापित कर स्वतंत्रता आंदोलन चलाने के लिए अनुरोध किया तदनुसार उन्होंने देघाट में उद्योग मंदिर आश्रम की स्थापना की और कताई बुनाई का कार्य चलाया था।
  4. कुमाऊनियों से प्रभावित होकर गांधी जी ने सक्रिय कार्यकर्ता शांतिलाल त्रिवेदी को भेजा । उनके प्रयासों से कौसानी के पास चनौदा में गांधी आश्रम की स्थापना की गयी। यह आश्रम सन् 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन का प्रमुख केंद्र था।
  5. 26 मई 1930 को विक्टर मोहन जोशी व शांतिलाल त्रिवेदी ने मिलकर अल्मोड़ा नगरपालिका में तिरंगा फहराया था।
  6. शांतिलाल त्रिवेदी ने मोहन लाल शाह को मातृभूमि का सत्यनिष्ठ सेवक की संज्ञा दी थी।
  7. कुमाऊं में नमक सत्याग्रह का नेतृत्व गोबिंद बल्लभ पंत व गढवाल में प्रताप सिंह नेगी को सौंपा गया था।
  8. नैनीताल में 27 मई 1930 को 6 हजार लोगों की उपस्थिति में बद्री दत्त पांडे द्वारा प्रभावशाली भाषण दिया गया तथा नमक बेचा गया। इससे पूर्व 23 मई को गोबिंद बल्लभ पंत ने मल्लीताल रामलीला मैदान में घोषणा की कि 25 तारीख को नमक बनाया जायेगा परंतु दुसरे ही दिन उन्हें गिरफतार कर लिया गया। इसकी प्रतिक्रिया में इंद्र सिंह नयाल ने सभा आयोजित कर नमक बनाकर बेचा। फलतः इन्हें भी गिरफतार कर लिया गया।
  9. नैनीताल की तरह अल्मोड़ा में भी नमक सत्याग्रह चला किंतु यह नमक सत्याग्रह कम झंडा सत्याग्रह अधिक हो गया।
  10. मानकर नमक बनाया और कानून का अल्मोड़ा में विक्टर मोहन जोशी के नेतृत्व में छात्रों द्वारा तिरंगे झंडे को लेकर सड़कों पर प्रदर्शन किया गया।
  11. इस अवधि में लोहाघाट व चंपावत तहसील में हर्षदेव औली के नेतृत्व में वन समस्याओं को लेकर आंदोलन उदयपुर पौढी के सत्याग्रहियों ने लूनी जल स्रोत को आंदोलन का प्रतीक उल्लंघन किया था
  12. अल्मोड़ा नगरपालिका के अध्यक्ष ओकले ने 25 जून 1930 को नगरपालिका में तिरंगा फहराया था।
  13. 28 अगस्त 1930 को जयानंद भारती तथा साथियों ने जहरीखाल राजकीय स्कूल में झंडा फहराया।
  14. सल्ट में सविनय अवज्ञा आंदोलन सर्वाधिक हिस्सेदारी वाला था, पूरे सल्ट में 65 में मात्र 4 गॉव ऐसे रहे जिनके मालगुजारों ने इस्तीफा नहीं दिया। प्रत्येक गांव में तिरंगा फहराया गया सल्ट में 404 ग्रामीण मोहान के पानोद जंगल में सत्याग्रह करने गये और स्वयं गोबिंद राम काला ने इस दमन का नेतृत्व किया।
  15. गढवाल का दुगडडा नामक स्थान राष्ट्रीय आंदोलन का गढ था जहां 1930 में विशाल कुमाऊ कांन्फरेंस आयोजित की गयी। इस सम्मेलन की अध्यक्षता गोबिंद बल्लभ पंत ने की।
  16. इंद्र सिंह ने हिन्दुस्तानी समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ, नौजवान भारत सभा तथा सन् 1933 मद्रास बम कांड भाग लिया और पकड़े जाने पर अंडमान में 20 वर्ष के कालापानी की सजा पायी थी।
  17. बच्चूलाल ने 28 अप्रैल 1933 में ऊंटी बैंक (मद्रास) डकैती में भाग लिया और पकड़े जाने पर अठारह वर्ष की  सजा पाई और अंडमान भेज दिया गया। बच्चूलाल ने शंभुनाथ आजाद की मदद की थी।

शिल्पकार सुधार आंदोलन(Craftsman Reform Movement)

  1. कुमाऊं में छुआछूत को खत्म करने के उद्येश्य से सन् 1905 में टम्टा सुधारिणी सभा का गठन खुशीराम आर्य ने किया। आगे यही संस्था 1913 में शिल्पकार सुधारिणी सभा में परिवर्तित हो गयी।
  2. श्री कृष्ण टम्टा नगरपालिका अल्मोड़ा के सदस्य निर्वाचित हुये।
  3. इससे पहले भी कमिश्नर रैम्जे ने कुमाऊंवासी हीरा टम्टा को शिक्षित देखकर अंग्रेजी दफतर में नौकरी दी थी।
  4. सन् 1930 में नैनीताल के सुनकिया गांव में लाला लाजपत राय का आगमन हुआ और खुशीराम के नेतृत्व में शिल्पकारों द्वारा जनेऊ धारण करने तथा आर्य नाम स्वीकार करने का आंदोलन हुआ।
  5. सर्वप्रथम सन् 1906 में उत्तराखंड के मूल निवासियों को शिल्पकार नाम देने का प्रयास किया गया था।
  6. सन् 1911 में हरिप्रसाद ने दलितों के लिए शिल्पकार शब्द प्रयुक्त किया था और 1932 में मान्यता प्राप्त हुयी थी।
  7. शिल्पकार नेता खुशीराम का सम्पर्क आर्य समाज के प्रचारक राम प्रसाद जी से हुआ।
  8. सन् 1913 में खुशीराम आर्य ने कुमाऊ शिल्पकार सुधारिणी सभा का गठन अल्मोड़ा में किया।
  9. सन् 1925 में खुशीराम, हरिराम टम्टा, बचीराम आदि के नेतृत्व में पहली बार अल्मोड़ा में वृहद शिल्पकार सम्मेलन का आयोजन किया गया ।
  10. 1929 ई में अपने उत्तराखंड भ्रमण के दौरान गांधीजी अल्मोड़ा आये उन्होंने अल्मोड़ा में एक सभा को संबोधित करते हुये कहा था अस्पृश्यता हमारा कलंक है इस धब्बे को धोना हर एक हिंदू का कर्तव्य है।
  11. गांधी के प्रयासों से उत्तराखंड में हरिजन सेवक संघ की स्थापना की गयी जिसका अध्यक्ष इद्र सिंह नयाल को बनाया गया।
  12. गढवाल में दलितों की महत्वपूर्ण व बड़ी सभा का आयोजन श्रीनगर में 4-5 सितंबर 1935 में किया गया इसकी अध्यक्षता सी एच चौफिन ने की और शिल्पकार सभा की स्थापना की गयी।

सविनय अवज्ञा आंदोलन(Civil Disobedience Movement)

  1. सन् 1931 में ही चौंदास क्षेत्र पिथौरागढ के परमल सिंह हयांकी ने अपने क्षेत्र को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ा।
  2. सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय संयुक्त प्रांत के गवर्नर सर मैलकम हेली थे। हेली का पौढी में अमन सभा के अनुरोध पर आगमन हुआ ।
  3. अमन सभा की स्थापना प्रशासन के सहयोग से लैंसडाउन में नवंबर 1930 में हुयी थी। इसे प्रशासन ने कांग्रेस के प्रतिपक्ष में स्थापित किया था ।
  4. 6 सितंबर 1932 को पौढ़ी मे गवर्नर का दरबार लगा जिसमें जयानंद भारती ने तिरंगा फहराया और हेली की ओर मंच पर बढे। उन्होंने जोर से कहा मैकलम हेली गो बैक, भारत माता की जय । अमन सभा मुर्दाबाद कांग्रेस जिंदाबाद ।
  5. सन् 1932 में कर बंदी आंदोलन विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार और शराब भट्टियों पर धरना देने का आंदोलन ऋशिकेश से आरंभ हुआ था।
  6. गढवाल कांग्रेस कमेटी के आमंत्रण पर पंडित जवाहर लाल नेहरू 1936 में दुगड्डा पहुंचे। सभा की अध्यक्षता प्रताप सिंह नेगी की।
  7. सन् 1938 में जवाहर लाल नेहरू व विजयलक्ष्मी पंडित ने श्रीनगर में आयोजित एक सम्मेलन में भाग लिया था।
  8. प्रताप सिंह नेगी अध्यक्ष तथा भाष्करानंद मैठाणी स्वागताध्यक्ष चुने गये थे।
  9. इस सम्मेलन में टिहरी व ब्रिटिश गढवाल के एकीकरण का प्रस्ताव पारित किया गया था।
  10. गढवाल जागृत संघ की स्थापना 1939 में की गयी जिसके अध्यक्ष प्रताप सिंह नेगी चुने गये व उमानंद बड़थ्वाल संगठन के मंत्री चुने गये थे।
  11. गढवाल कांग्रेस कमेटी के प्रयत्नों से 1 दिसंबर 1939 को पौढी में किसान दिवस मनाया गया था।

उत्तराखंड में भारत छोड़ो आंदोलन(Quit India Movement in Uttarakhand)(1942)

  1. अगस्त 1942 में उत्तराखंड में जगह जगह हड़तालें व प्रदर्शन हुये थे ।
  2. 1942 के आंदोलन का सर्वप्रथम प्रभाव अल्मोंड़ा शहर पर पड़ा जहां विधार्थियों ने पुलिस पर पत्थरों से प्रहार किया। जिसमें कुमाऊं कमिश्नर एक्टन के सिर में चोट लगी। इस कारण अल्मोड़ा शहर पर 6 हजार रूपये का जुर्माना किया गया था।
  3. अल्मोंड़ा जिले में सर्वप्रथम 19 अगस्त 1942 को देघाट नामक स्थान पर पुलिस ने जनता पर गोलियां चलाई थी। जिसमें हरिकृष्ण व हीरामणि नामक दो व्यक्ति शहीद हो गये। ये उत्तराखंड से शहीद होने वाले पहले व्यक्ति थे।
  4. अल्मोड़ा के धामधों (सालम) में 25 अगस्त 1942 को सेना व जनता के बीच पत्थर व गोलियों का युद्ध हुआ इस संघर्ष में दो प्रमुख नेता टीका सिंह व नरसिंह धानक शहीद हो गये थे।
  5. सालम का शेर राम सिंह आजाद को कहा जाता हैं। लंबे समय से फरार राम सिंह आजाद ने अपनी गिरफतारी बद्रीनाथ में दी। आजाद के पक्ष में गोपाल स्वरूप पाठक ने वकालत की थी।
  6. जाट सेना ने मेहरबान सिंह के नेतृत्व में सालम में जनता पर गोली चलाई थी।
  7. सालम की भांति सल्ट (खुमाड़) में भी 5 सितंबर 1942 को 5000 लोगों की जनसभा चल रही थी। जहां रानीखेत तहसील के एस डी एम जॉनसन ने गोलियां चलाई जिसमें गंगाराम व खीमादेव नाम के दो सगे भाई घटनास्थल पर ही शहीद हो गये व बुरी तरह घायल चूड़ामणि व बहादुर सिंह चार दिन बाद शहीद हुये थे।
  8. स्वतंत्रता आंदोलन में सल्ट की भूमिका के लिये इसे महात्मा गांधी ने कुमाऊ की बारदोली कहा। आज भी खुमाड़ में प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को शहीद स्मृति दिवस मनाया जाता है।
  9. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सिलांगी पौढ़ी में सदानंद कुकरेती ने राष्ट्रीय विधालय खोला था।
  10. देवकी नंदन पांडे व भगीरथ पांडे ने ताड़ीखेत में प्रेम विधालय की स्थापना की थी।
  11. डाडामंडी के अंतर्गत मिडिल स्कूल मटियाली के प्रधानाचार्य उमराव सिंह रावत का सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद आंदोलन में सक्रिय सहयोग रहा था।
  12. धूलिया के इन प्रयत्नों से उनकी लिखी पुस्तक 'अंग्रजों को भारत से निकाल दो' का उद्देश्य गढवाल में अगस्त आंदोलन को नई स्फूर्ति प्रदान करना था। इस पुस्तक का प्रकाशन सुरक्षा की दृष्टि से बम्बई में किया गया था।
  13. 19 सितंबर 1942 को छवाण सिंह नेगी ने एक हजार स्वयंसेवकों के साथ लैंसडाउन छावनी की ओर और छावनी पर आक्रमण किया था।
  14. अगस्त आंदोलन पौढी के डाडामंडी में भी हुआ जहां 8 अक्टूबर 1942 को आदित्यराम दुड़पुड़ी तथा मायाराम बड़थ्वाल को गिरफतार किया गया था।
  15. भारत छोड़ो आंदोलन के अंतर्गत एक घटना सियासैंण चमोली में घटी यहां आंदोलनकारी नेता नारायण सिंह सियासैंण के वन विभाग के विश्राम गृह में आग लगा दी थी। जिसमें नारायण सिंह ने एकला चलो रे की नीति के अनुरूप अकेले ही सियासैण अभियान के लिये कूच किया था।
  16. देश के प्रमुख शैक्षिक केंद्र बनारस के प्राध्यापक डा कुशलानंद गैरोला के नेतृत्व में छात्रों ने बनारस में तोड़फो की बाद में चंद्र सिंह गढवाली ने भी इनका साथ दिया।

आजाद हिंद फौज में उत्तराखंड का योगदान(Contribution of Uttarakhand in Azad Hind Fauj)

  1. उत्तराखंड के निवासियों का सर्वाधिक योगदान नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा भारत की स्वतंत्रता के लिये गठित आजाद हिंद फौज में रहा था।
  2. चंद्र सिंह नेगी को आजाद हिंद फौज का सिंगापुर में ऑफीसर्स ट्रेनिंग स्कूल का कमांडर नियुक्त किया गया था।
  3. मेजर देव सिंह दानू को सुभाष चंद्र बोस का पर्सनल एडजुटैन्ट (अंगरक्षक) नियुक्त किया गया था।
  4. नेताजी ने कैप्टन बुद्धि सिंह रावत को अपना निजी सहायक नियुक्त किया था ।
  5. कर्नल पितृशरण रतूड़ी को सुभाष रेजीमेंट की प्रथम बटालियन का कमांडर तथा मेजर पदम सिंह को तीसरी बटालियन का कमांडर नियुक्त किया गया था।
  6. नेताजी सुबाष चन्द्र बोस ने कमांडर रतूड़ी को सरदार-ए-जंग की उपाधि से नवाजा।
  7. इन्हें सन् 1944 में बर्मा कैम्पेन में अदम्य शौर्य दिखाने के लिये सरदार ए जंग से सम्मानित किया गया था।
  8. 21 सितंबर 1942 को गढवाल रायफल की 2/18 तथा 5/18 आजाद हिंद फौज में शामिल हो गयी।
  9. इन दो बटालियनों में 2500 सैनिक थे जिनमें से 800 सैनिक देश के लिये शहीद हो गये थे।
  10. आजाद हिंद फौज में कुल 23266 भारतीय सैनिक थे जिनमें 12 प्रतिशत उत्तराखंड से थे।

अन्य आंदोलन(Other Movements)

  1. 30 मई 1930 को टिहरी में रवाई कांड हुआ ।
  2. रवाई कांड के बाद 1935 में सकलाना पट्टी के उनियाल गांव में सत्य प्रकाश रतुड़ी ने बाल सभा की स्थापना की। इस सभा का उद्देश्य छात्रों में राष्ट्रीयता की भावना भरना था।
  3. 22 मार्च 1938 को दिल्ली में गढदेश सेवा संघ की स्थापना श्रीदेव सुमन के नेतृत्व में की गयी थी।
  4. श्रीदेव सुमन का मूल नाम श्रीदत्त बड़ोनी था।
  5. गढदेश सेवा संघ को 1942 से हिमालय सेवा संघ के नाम से जाना जाता है।
  6. 23 जनवरी 1939 को देहरादून के चक्कूवाला में श्रीदेव सुमन के नेतृत्व में टिहरी राज्य प्रजामंडल की स्थापना हुयी।
  7. इसके अलावा गोबिंदराम भट्ट, तोताराम गैरोला, महिमानंद डोभाल तथा श्यामचंद्र नेगी इसके संस्थापक सदस्य थे।
  8. 25 जुलाई 1944 को 84 दिन की भूख हड़ताल के बाद श्रीदेव सुमन की मृत्यु हो गयी।
  9. सन् 1946 में आजाद हिंद फौज के सदस्यों द्वारा 25 जुलाई को सर्वप्रथम सुमन दिवस मनाया गया।

कनकटा बैल बनाम भ्रष्टाचार आंदोलन(Kankata Bull Vs Corruption Movement)

  1. अल्मोड़ा के बडियार रैत (लमगड़ा) गांव में एक कनकटा बैल आंदोलन हुआ।

कोटा खर्रा आंदोलन(Kota Kharra Movement)

  1. इस आंदोलन का उद्देश राज्य के तराई भाबर क्षेत्रों में सीलिंग कानून को लागु करवाकर भूमिहीन व किसानों को भूमि वितरण कराना था।

शराब विरोधी आंदोलन(Anti-Liquor Movement)

  1. 1984 में उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी ने इस आंदोलन का नेतृत्व संभालते हुये नशा नहीं रोजगार दो का नारा दिया।

विश्वविद्यालय आंदोलन(University Movement)

  1. इस आंदोलन को देखते हुये एन डी तिवारी ने उ प्र विधानसभा में 1955-56 में विश्वविद्यालय संबंधी एक प्रस्ताव रखा। जिसके परिणामस्वरूप 1973 में कुमाऊ विश्वविद्यालय की स्थापना नैनीताल में तथा गढवाल विश्वविद्यालयी की स्थापना श्रीनगर में की गयी।

पृथक राज्य आंदोलन(Separate State Movement)

  1. उत्तराखंड को पृथक राज्य बनाने की मांग सर्वप्रथम सन् 1938 में श्रीनगर में आयोजित राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में उठाई गयी। स्थानीय नेताओं की इस मांग को अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहे जवाहर लाल नेहरू ने समर्थन दिया था।
  2. सन् 1946 में हल्द्वानी में बद्रीदत्त पांडे की अध्यक्षता में हुये कांग्रेस के एक सम्मेलन में उत्तरांचल के पर्वतीय भू-भाग को एक विशेष वर्ग में रखने की मांग उठाई।
  3. सन् 1950 में हिमांचल व उत्तरांचल को मिलाकर एक वृहद हिमालयी राज्य बनाने के उद्येश्य से पर्वतीय विकास जन समिति नामक संगठन का विकास नयी दिल्ली में किया गया था ।
  4. 1950 में पर्वतीय राज्य परिषद की स्थापना की गयी।
  5. पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग सर्वप्रथम सन् 1952 में भारत के कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन महासचिव पी सी जोशी नेभारत सरकार को ज्ञापन सौपकर उठाई।
  6. सन् 1955 में फजल अली आयोग ने उ प्र के पुनर्गठन की बात इस क्षेत्र को पृथक राज्य बनाने के दृष्टिकोण से की थी। लेकिन उ प्र के नेताओं ने इसे स्वीकार नहीं किया।
  7. सन् 1956 में राज्य पुनर्गठन प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र के लिये अलग राज्य के विषय में विचार किया था।
  8. सन् 1957 में टिहरी के पूर्व नरेश मानवेंद्र शाह ने पृथक राज्य के लिये आंदोलन छेड़ा था। जिसे 1962 में चीनी आक्रमण के कारण राष्ट्रीय हित के लिये वापस ले लिया गया।
  9. सन् 1957 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष टी टी कृष्णाचारी ने पहाड़ी क्षेत्रों की समस्याओं पर विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया था।
  10. सन् 1957 में उत्तराखंड राज्य परिषद् की स्थापना हुयी जो कुछ समय बाद टूट गयी।
  11. 24 व 25 जून 1967 में रामनगर में आयोजित सम्मेलन में पर्वतीय राज्य परिषद का गठन किया गया इसके अध्यक्ष दयाकृष्ण पांडे, उपाध्यक्ष गोविंद सिंह मेहरा और महासचिव नारायण दत्त सुंदरियाल थे।
  12. सन् 1968 में ऋषि बल्लभ सुंदरियाल के नेतृत्व में दिल्ली में पृथक राज्य की मांग के लिये प्रदर्शन हुआ।
  13. 1969 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने इस क्षेत्र के विकास को ध्यान में रखते हुये पर्वतीय विकास परिषद गठन किया गया।
  14. 12 मई 1970 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पहाड़ी जिलों के पिछड़ेपन व गरीबी को देखते हुये इस क्षेत्रों की पृथक प्रशासनिक ईकाई का सुझाव दिया था।
  15. 30 अक्टूबर 1970 को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पी सी जोशी ने कुमांऊ राष्ट्रीय मोर्चा का गठन किया और पृथक उत्तराखंड की मांग दुहराई।
  16. सन् 1972 में नैनीताल में उत्तरांचल परिषद् का भी गठन किया गया।
  17. सन् 1972 में उत्तरांचल परिषद् के कार्यकर्ताओं ने नई दिल्ली स्थित वोट क्लब पर धरना दिया।
  18. सन् 1973 ई में इस परिषद ने दिल्ली चलो का नारा दिया। चमोली के विधायक प्रताप सिंह नेगी के नेतृत्व में बद्रीनाथ से वोट क्लब तक की पदयात्रा की गयी।
  19. 1973 में पृथक पर्वतीय राज्य परिषद की स्थापना की गयी।
  20. सन् 1976 में उत्तराखंड युवा परिषद का गठन किया गया।
  21. सन् 1979 में जनता पार्टी की सरकार के सांसद त्रेपन सिंह नेगी के नेतृत्व में उत्तरांचल राज्य परिषद की स्थापना की गयी और प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को अलग राज्य की मांग के लिए एक ज्ञापन दिया गया।
  22. सन् 1979 में ही 25 जुलाई को मसूरी में आयोजित पर्वतीय जन विकास सम्मेलन में उत्तराखंड क्रांति दल का गठन किया गया। इसके प्रथम अध्यक्ष कुमाऊ विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डा देवीदत्त पंत बनाये गये।
  23. सन् 1984 में ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन ने राज्य की मांग को लेकर गढ़वाल में 900 किमी की साइकिल यात्रा के माध्यम से जन जागरूकता फैलाया।
  24. 1987 में उत्तराखंड क्रांति दल का विभाजन हो गया और दल की बागडोर युवा नेता काशी सिंह ऐरी के हाथ में आ गयी।
  25. सन् 1987 में यू के डी उपाध्यक्ष त्रिवेंद्र पंवार ने राज्य की मांग को लेकर संसद में एक पत्र बम फेंका था।
  26. सन् 1987 में ही भाजपा ने लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में अल्मोंड़ा के पार्टी सम्मेलन में उ प्र के पर्वतीय क्षेत्र को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग को स्वीकार किया गया और प्रस्तावित राज्य का नाम उत्तराखंड बजाए उत्तरांचल स्वीकार किया गया था।
  27. 30-31 मई 1988 को भाजपा के सोबन सिंह जीना की अध्यक्षता में उत्तरांचल उत्थान परिषद का गठन किया गया।
  28. फरवरी 1989 में सभी संगठनों ने संयुक्त आंदोलन चलाने लिए उत्तरांचल संयुक्त संघर्ष समिति का गठन किया । इसके अध्यक्ष द्वारिका प्रसाद उनियाल चुने गये थे।
  29. 25 मई 1989 को उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी व उत्तराखंड प्रगतिशील युवा मंच द्वारा देहरादून व हल्द्वानी में रेत रोको आंदोलन आयोजित किया गया था।
  30. 1990 में जसवंत सिंह बिष्ट ने उत्तराखंड कांति दल के विधायक के रूप में उ प्र विधानसभा में पृथक राज्य की पहला प्रस्ताव रखा।
  31. वामपंथी लोगों द्वारा 1991 में उत्तराखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया गया था।
  32. 1991 के चुनावों में भाजपा ने पृथक राज्य की स्थापना को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया।
  33. जुलाई 1992 में उत्तराखंड कांति दल ने पृथक राज्य के संबंध में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज जारी किया तथा गैरसैंड़ को प्रस्तावित राज्य की राजधानी घोषित कर दिया था।
  34. इस दस्तावेज को यू के डी का पहला ब्लू प्रिंट माना गया।
  35. 1992 में काशी सिंह ऐरी ने गैरसैंण में प्रस्तावित राजधानी की नींव डाली और उसका नाम चंद्रनगर घोषित किया गया था।
  36. सिंह यादव ने रमाशंकर कौशिक की अध्यक्षता में उत्तराखंड राज्य की संरचना व राजधानी पर विचार करने के लिए कौशिक समिति का गठन किया ।
  37. कौशिक समिति ने मई 1994 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  38. मुलायम सिंह यादव सरकार ने कौशिक समिति की सिफारिशों को 21 जून 1994 को स्वीकार कर लिया और 8 पहाड़ी जिलों को मिलाकर पृथक उत्तराखंड राज्य के गठन से संबंधित प्रस्ताव को विधानसभा में सर्वसम्मति से पास कर केंद्र के पास भेज दिया।
  39. 1994 के जून माह में मुलायम सिंह यादव सरकार ने सरकारी नौकरियों में एवं शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण की नयी व्यवस्था लागू की जिसमें कुल सीटों के 50 प्रतिशत सीट ( 27% OBC,21% SC, 2%ST) आरक्षित होने की व्यवस्था थी।
  40. इस आरक्षण नीति के खिलाफ पौड़ी के वयोवृद्व नेता इंद्रमणि बड़ौनी ने आमरण अनशन किया था।
  41. नोट:- इंद्रमणि बड़ौनी को उत्तराखंड का गांधी कहा जाता है।
  42. 8 अगस्त 1994 को पौड़ी में जीत बहादुर गुरंग शहीद हुये ।
  43. 1 सितंबर 1994 को पृथक राज्य की मांग हेतु शांतिपूर्वक रैली में शामिल आंदोलनकारियों पर खटीमा में पुलिस ने गोलियां चलाई जिसमें 8 लोग मारे गये। 1 प्रताप सिंह 2 भूवन सिंह 3 सलीम अहमद 4 भगवान सिंह सिरोला 5 धर्मानंद भट्ट 6 गोपीचंद 7 परमजीत सिंह 8 रामपाल
  44. इस घटना के दूसरे दिन 2 सितंबर को मसूरी में झूलाघर पर विरोध प्रकट करने के लिए आयोजित रैली में उत्तेजित लोगों ने पुलिस पर हमला कर दिया। इस घटना में पुलिस उपाधीक्षक उमाकांत त्रिपाठी मारे गये।
  45. इसमें 1 राम सिंह बंगारी 2 धनपत सिंह 3 मदनमोहन ममगाई 4 बलवीर सिंह नेगी 5 उमाशंकर त्रिपाठी 6 जेठ सिंह 7 बेलमती चौहान 8 हंसा धनाई मारे गये। इनमें दो महिलायें हंसा धनाई व बेलमती चौहान भी मरी थी।
  46. 27 प्रतिशत आरक्षण के विरोध में 18 सितंबर 1994 को छात्र युवा संघर्ष समिति का गठन रामनगर में हुआ। इस सम्मेलन में 1 व 2 अक्टूबर को दिल्ली में प्रदर्शन करने का निर्णय लिया गया।
  47. 2 अक्टू को दिल्ली में आयोजित रैली में भाग लेने जा रहे आंदोलनकारियों पर मुजफरनगर (रामपुर तिराहा) में गोलियां चलाई गयी। जिसमें 6 लोगों की मृत्यु हुयी। 1 रवींद्र रावत 2 गिरीश कुमार भद्री 3 सत्येंद्र सिंह चौहान 4 सूर्यप्रकाश थपलियाल 5 राजेश लखेड़ा 6 अशोक कुमार कोशिव ।
  48. 3 अक्टूबर 1994 को इस घटना का देहरादून में विरोध किया गया जिसमें 4 लोग मारे गये।
  49. 1. राजेश रावत 2. दीपक वालिया  3. बलवंत सिंह जगवाण 4. जयानंद बहुगुणा ।
  50. 3 अक्टूबर 1994 को कोटद्वार में भी पृथ्वी सिंह बिष्ट व राकेश देवरानी शहीद हुये।
  51. 3 अक्टूबर 1994 को नैनीताल में प्रताप सिंह बिष्ट शहीद हुये।
  52. इस कृत्य की कूर शासक की क्रूर शाजिश कहकर पूरे विश्व में निंदा हुयी।
  53. 26 जनवरी 1995 को गणतंत्र दिवस की परेड में सुरक्षा घेरे को पार कर कौशल्या डबराल व सुशीला बलूनी के नेतृत्व में 45 महिला व नवयुवकों का दल सक्रिय हुआ। राष्ट्रपति के भाषण के मध्य में जय उत्तराखंड के नारे लगाये गये ।
  54. 10 नवंबर 1995 को श्रीनगर स्थित श्रीयंत्र टापू पर आमरण अनशन पर बैठे आंदोलनकारियों पर पुलिस लाठीचार्ज में यशोधर बैंजवाल व राजेश रावत की मृत्यु हुयी ।
  55. 15 अगस्त 1996 को लाल किले की प्राचीर से तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा ने उत्तराखंड राज्य का निर्माण करने की घोषणा की।
  56. 1998 में राष्ट्रपति के माध्यम से उत्तराखंड राज्य संबंधी विधेयक उ प्र विधानसभा में भेजा गया।
  57. इस विधेयक में कुल 26 संशोधन करने के बाद उ प्र सरकार ने पुनः केंद्र को भेज दिया जिसे भाजपा सरकार ने 22 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया लेकिन सरकार के गिर जाने से पेश न हो सका।
  58. 27 जुलाई 2000 को उ प्र पुनर्गठन विधेयक 2000 लोकसभा में प्रस्तुत हुआ।
  59. 29 जुलाई को जार्ज कमेटी के सदस्यों ने पंतनगर का दौरा किया व उ सिन को प्रस्तावित राज्य में शामिल करने का निर्णय लिया।
  60. 1 अगस्त 2000 को उत्तरांचल विधेयक लोकसभा में व 10 अगस्त को राज्यसभा में पारित हुआ।
  61. 28 अगस्त को राष्ट्रपति के आर नारायण ने उ प्र पुनर्गठन विधेयक को अपनी मंजूरी प्रदान की।
  62. 9 नवंबर 2000 को 27 वें राज्य के रूप में उत्तरांचल राज्य का गठन हुआ।
  63. देहरादून को इसकी अस्थायी राजधानी बनाया गया था।
  64. दिसंबर 2006 में उत्तरांचल नाम परिवर्तन विधेयक 2006 संसद के दोनों सदनों में पारित करने के बाद 1 जनवरी 2007 से इसका नाम उत्तराखंड हो गया।
  65. नोट:- सबसे पहले उत्तराखंड को पृथक राज्य बनाने की मांग 1938 में श्रीदेव सुमन ने की थी।
1. लोग
उत्तराखंड कई जातीय समूहों का घर है, जिनमें से प्रत्येक की अपनी संस्कृति है। इन समूहों में जौनसारी, भोटिया, बक्सा, थारू और राजी शामिल हैं। कभी-कभी, इस राज्य के लोगों को "पहाड़ी" कहा जाता है।

2. भाषाएँ
भूमि की भाषा विज्ञान सीधे उसके लोगों को प्रतिबिंबित करता है, और उत्तराखंड इस पहलू में भी ऐसा ही है। यहां बोली जाने वाली आम भाषाओं में हिंदी, गढ़वाली, कुमाऊंनी, जौनसारी और भोटिया आदि शामिल हैं। राज्य आपके बच्चों को विभिन्न संस्कृतियों और जीवन के तरीकों से परिचित कराने के लिए एक शानदार जगह है।

  1. उत्तराखंड का इतिहास Uttarakhand history
  2. उत्तराखण्ड(उत्तरांचल) राज्य आंदोलन (Uttarakhand (Uttaranchal) Statehood Movement )
  3. उत्तराखंड में पंचायती राज व्यवस्था (Panchayatiraj System in Uttarakhand)
  4. उत्तराखंड राज्य का गठन/ उत्तराखंड का सामान्य परिचय (Formation of Uttarakhand State General Introduction of Uttarakhand)
  5. उत्तराखंड के मंडल | Divisions of Uttarakhand
  6. उत्तराखण्ड का इतिहास जानने के स्त्रोत(Sources of knowing the history of Uttarakhand)
  7. उत्तराखण्ड में देवकालीन शासन व्यवस्था | Vedic Administration in Uttarakhand
  8. उत्तराखण्ड में शासन करने वाली प्रथम राजनैतिक वंश:कुणिन्द राजवंश | First Political Dynasty to Rule in Uttarakhand:Kunind Dynasty
  9. कार्तिकेयपुर या कत्यूरी राजवंश | Kartikeyapur or Katyuri Dynasty
  10. उत्तराखण्ड में चंद राजवंश का इतिहास | History of Chand Dynasty in Uttarakhand
  11. उत्तराखंड के प्रमुख वन आंदोलन(Major Forest Movements of Uttrakhand)
  12. उत्तराखंड के सभी प्रमुख आयोग (All Important Commissions of Uttarakhand)
  13. पशुपालन और डेयरी उद्योग उत्तराखंड / Animal Husbandry and Dairy Industry in Uttarakhand
  14. उत्तराखण्ड के प्रमुख वैद्य , उत्तराखण्ड वन आंदोलन 1921 /Chief Vaidya of Uttarakhand, Uttarakhand Forest Movement 1921
  15. चंद राजवंश का प्रशासन(Administration of Chand Dynasty)
  16. पंवार या परमार वंश के शासक | Rulers of Panwar and Parmar Dynasty
  17. उत्तराखण्ड में ब्रिटिश शासन ब्रिटिश गढ़वाल(British rule in Uttarakhand British Garhwal)
  18. उत्तराखण्ड में ब्रिटिश प्रशासनिक व्यवस्था(British Administrative System in Uttarakhand)
  19. उत्तराखण्ड में गोरखाओं का शासन | (Gorkha rule in Uttarakhand/Uttaranchal)
  20. टिहरी रियासत का इतिहास (History of Tehri State(Uttarakhand/uttaranchal)

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