बटुक भैरव साधना,श्री बटुक भैरव स्वरुपम्,Batuk Bhairav Sadhana, Shri Batuk Bhairav Tamas Swaroopam
बटुक भैरव साधना
पिछले अध्याय में आपको लक्ष्मी मंत्र के सिद्ध करने की पूरी विधि बताई गई है। यदि कोई साधक एकमंत्र सिद्ध कर ले तो उसे दूसरे उसी परिवार के अन्य मंत्रों को सिद्ध करने में विशेष कठिनाई नहीं होती। पहली बार 'की साधना ही कठिने होती है। उसके बाद तो साधक को विश्वास हो जाता है कि रास्ता ठीक है और इस पर चलने से मंजिल पर पहुँचेंगे जरूर। आप किसी से पहली बार मिलने जाते हैं तो उसका घर ढूंढने में देर लगती है रास्ता भी लम्बा प्रतीत होता है । परन्तु उसके बाद बिना पूछे बताये आप उस घर तक चले जाते हैं और रास्ता भी पहचाना हुआ लगता है। मंत्र सिद्धि के लिए कम से कम सवा लाख जप और उसका पूरा पुरश्चरण करने के लिए काफी धैर्य, परिश्रम, उत्साह, दृढ़ इच्छा शक्ति हो तभी साधक मंजिल तक यानी सिद्धि तक पहुँचता है और कभी-कभी यह भी हो सकता है कि कहीं न कहीं कोई बड़ी कमी रह जाने से परिश्रम व्यर्थ हो जाये और सफलता नहीं मिले, तो फिर दोबारा या तिबारा भी साधन करना पड़े।
Batuk Bhairav Sadhana, Shri Batuk Bhairav Tamas Swaroopam |
मंत्र की सिद्धि का चरम फल तो उस देवता के साक्षात् दर्शन होना है और यही चरम उपलब्धि है। | परन्तु इसके लिए बहुत लगन भक्ति श्रद्धा विश्वास से साधना की. आवश्यकता होती है और इस सफलता तक बहुत कम साधक पहुँच पाते हैं। इष्ट देवता का दर्शन लाभ मंत्र जप के द्वारा उन्हीं को होता है जो निष्काम भाव से साधना करते हैं, और मोक्ष प्राप्ति जिनका लक्ष्य होता है। धर्म अर्थ काम और मोक्ष इन चार पदार्थों मे से जो अर्थ तथा कामना से साधना करते हैं, उनको इष्टदेव का दर्शन प्रायः नहीं होता। जिस कामना को लेकर अनुष्ठान कर रहे हैं, वह यदि पूर्ण हो जाये तो समझ लेना चाहिए कि मंत्र साधना सिद्धि तक पहुँच गई है और अनुष्ठान सफल हो गया है। पिछले अध्याय में बताये गये लक्ष्मी मंत्र के बारे में ज्ञातव्य है कि साधक दारिद्रय मे छुटकारा पाने के लिए और धन का अभाव न रहे इसी लक्ष्य को सामने रखकर मंत्र की साधना आरम्भ करते हैं । यदि आपको जरूरत के मुताबिक पैसा मिलना आरम्भ हो जाये और धनाभाव समाप्त हो जाये उसके साधन बन जाएं तो समझो कि आपकी साधना सफलता की ओर जा रही है। आप निश्चित संख्या पूरी हो जाने पर भी उसको अपने नित्य नैमित्तिक साधन का अंग बना ते और मन्त्र का जाप यदाकदा पर्व आदि पर अवश्य करते रहे । तो इतनी भूमिका के बाद आपको अपना दूसरा अनुभूत मन्त्र प्रयोग बताता हूं। धन की कमी के कारण लक्ष्मी मन्त्र की कृपा से धनाभाव के कारण तो कभी कोई कष्ट नहीं उठाना पड़ा। एक औसत गृहस्थ की तरह सुविधापूर्वक जीवन यापन होता रहा। मध्यम स्तर पर और सच पूछो तो इससे अधिक मैंने कभी इच्छा भी नहीं की। अगर कभी किसी लॉटरी के टिकट को लेकर इस मन्त्र का अनुष्ठान करता तो कह नहीं सकता कि सफल होता या नहीं, परन्तु आवश्यकता के लिये सदा उपयुक्त धन मिलता ही रहा। धन के अलावा जीवन में अन्य समस्यायें भी आती रहती हैं। कभी कोई दुष्ट प्रकृति का व्यक्ति आपको तंग कर सकता है। गलत आरोप लग सकते हैं, अकारण कोई शत्रुता मानकर उत्पात कर सकता है। परमसन्त तुलसीदास जी तक को जिन्हें संसारी प्रपंचों से कोई लगाव नहीं पां, अकारण तत्कालीन राजा ने कैद कर दिया था केवल इस कारण कि वह उसे कोई चमत्कार दिखा कर प्रभावित नहीं कर सके थे और तब उन्होने मजबूरी मे ही सही, हनुमान बाहुक की रचना की थी और उस राजा सूबेदार या बादशाह के किले पर बन्दरो की सेना आक्रमण कर दिया था। सभी के जीवन में इस प्रकार के अवसर आ सकते "हैं। दुष्ट जन अकारण सता सकते हैं या ग्रहो के विपरीत होने पर सकट आ सकते हैं तो उनसे बचने के लिए शास्त्रों ने और गुरुजों ने जो उपाय बताए हैं वह करने चाहिएं। श्री हनुमान जी और श्री बटुक भैरव जी दो ऐसे उम्र देवता हैं, जिनकी आराधना से ऐसे संकटों से मुक्ति प्राप्त होती है। तो पहले आपको श्री बटुक भैरव जी की साधना का एक अनुभूतमन्त्र प्रयोग बताता हूं। इसको मैंने अपने जीवन में कई बार किया है और सफलता के साथ किया है। एक बार मेरे दफ्तर के चपरासी ने अपने अफसर की कार ।
श्री बटुक भैरव तामस स्वरुपम्
साफ करने से इन्कार कर दिया, तो वे अफसर साहब उससे बहुत नाराज हो गये और उसको निकलवाने या तबादला कराने पर तुल गए। उस पर कई झूठे लांछन लगाकर उसकी रिपोर्ट कर दी। उसकी जांच करने बड़े दफ्तर से एक अफसर आए और उन्होंने उस दफ्तर की सुपरिन्टेडेन्ट होने के नाते सबसे पहले मेरा ही बयान लिया। मेरी अन्तरात्मा किसी प्रकार भी झूठी बात कहने के लिए तैयार नहीं हुई और मैंने सच बात लिखा दी। मेरे बयान के बाद उन जांच अधिकारी ने जांच वन्द कर दी कि कहीं मेरे मातहत काम करने वाले भी इसी प्रकार का बयान न दे दें और शिकायत करने वाले उन अफसर का ही विस्तरा गोल न हो जाए। एक अफसर अपने बिरादरी के दूसरे अफसर का इतना ख्यात तो रखता ही है। नतीजा यह हुआ कि सारी अफसर बिरादरी मेरे खिलाफ हो गई। वह चपरासी तो बच गया पर मुझे तबादलो बगैरा से काफी तग करने की कोशिशे काफी दिनो तक जारी रहीं। इस मन्त्र प्रयोग से यदि मेरे ऊपर देवी छत्रछाया न होती तो उस समय की अफसर बिरादरी के आक्रमणो का सामना करना मेरे लिए संभव न होता। एक बार तो मेरा तबादला राजस्थान के बाडमेर इलाके मे करवाया गया और आजा पत्र भी सबसे ऊंचे दफ्तर से जारी हुआ। मेरी पहुंच बड़े दफ्तर तो क्या किसी छोटे दफ्तर तक भी नहीं थी, परन्तु हां जगन्नियन्ता के यहा उनके दरबार मे थोड़ी बहुत थी और देवी सहायता से ही यह संभव हुआ कि वे आज्ञा पत्र रुके और सब अचम्भे से देखते रह गए कि यह सब कैसे हो गया।
इन सब बातों से आप यह न समझें कि में अपना आत्म प्रचार कर रहा हूँ । इसमें मेरी कोई महत्ता नहीं है। यह सब उस मन्त्र का मनदेवता का प्रताप है और आपको इसलिए बता रहा हूं कि आपको मंत्र शक्ति पर विश्वास हो । दृष्टव्य- 'बटुक भैरव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र' काशी, मथुरा, दिल्ली आदि अनेको स्थानों का छपा हुआ आता है। इनमें से अधिकाश मे स्तोत्रो के क्रम तथा सख्या में भी अन्तर अब बुक कम्पनी, ३०१-चावड़ी बाजार पोस्ट बाक्स १३००, दिल्ली ११०००६ 'बटुक भैरव साधना' नामक पुस्तक प्रकाशित की है जिसने उपरोक्त स्तोत्र तथा भैरव साधना से सबधित समस्त पाठ शुद्ध करके प्रकाशित किए गए हैं। इस अध्याय में चुक कम्पनी की उपरोक्त पुस्तक की ही स्तोत्र संख्या आदि दी गई है। मेरे गुरुदेव के जीवन में भी ऐसे कितने ही अवसर आये थे और जिस प्रकार उन्होंने अपने शत्रुओं प्रतिद्वन्द्रियों के षड़यन्त्रों को विफल किया था मुझे बताया था । आप बाजार से श्री बटुक भैरव अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र की एक पुस्तक आइए । पुस्तक बहुत सरलसंस्कृत में है और यदि आप संस्कृत नहीं तो टीका सहित पुस्तक मिल जाये तो वह लें लें। वैसे में उसका भावार्य इस पाठ मे लिख रहा हूं। एक समय भगवान शंकर देवाधिदेव जगदगुरु कैलाश पर्वत पर माता पार्वती के साथ बैठे हुए थे।
माता पार्वती ने उनसे प्रश्न किया कि आप सब धर्म शास्त्रों के प्रणेता हैं कृपया कोई ऐसा मन्त्र बताइये जो आपदाओ से उद्धार करने वाला हो और सर्व सिद्धियों का देने वाला हो । तब भगवान शंकर ने कहा कि हे देवी सुनो मैं तुम्हें यह मंत्र बताता हूं, जो सब दुखों का दूर करने वाला, शत्रुओं का नाश करने वाला, मिरगी ज्वर आदि रोगों को दूर करने वाला, ग्रहों को शांत करने वाला, राजभोग देने पाता और आपदा विपदाओं से रक्षा करने वाला है, जो अभी तक किसी को ज्ञात नहीं था, जिसके स्मरण मात्र से भूत प्रेत पिशाच दूर भाग जाते हैं, वह मन्त्र यह है :- ॐ ह्रीं बटुकाय आपदउद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं इस मंत्र के जाप करने से अग्नि, चोर महामारी, भय दूर रहते हैं, आयु पूर्ण होती है, शरीर स्वस्थ रहता है, पुत्र पौत्र सम्पदा प्राप्त होती है, दारिद्रय दुर्भाग्य आपत्ति भय मिट जाता है। उस परम ब्रह्म परमात्मा के तीन मुख्य रूप है। ब्रह्मा जी संसार की उत्पत्ति का काम करते हैं, विष्णु भगवान पालन का तथा शिवजी सहार का कार्य संभालते हैं। जिस प्रकार आप जब दफ्तर जाते हैं तो आपका रूप स्वरूप कुछ और होता है, घर मे दूसरी तरह का होता है। घर की सफाई या बागवानी करते हैं तो किसी और रूप में होते हैं। इसी प्रकार भगवान शंकर का जो भैरव रूप है उन्हीं में एक रूप बटुक भैरव नाम से बताया गया है। यह मन्त्र द्रायमल तंत्र में दिया हुआ है। इस बटुक भैरव स्तोत्र में आरम्भ में न्यास तथा ध्यान मन्त्र आदि मिला कर ४२ श्लोक है तथा मूल नामावती स्तोत्र (महात्म्य सहित ) में केवल २९ श्लोक हैं। दोनों का ही ठ अधिक से अधिक १०-१५ मिनट में हो जाता है और नित्य एक बार पाठ करना चाहिए। जिन दिनों इस मन्त्र का पुरश्चरण चल रहा हो उन दिनो नित्य एक पाठ अवश्य करें । इस मंत्र का पुरश्चरण केवल ३१ हजार आवृत्ति का है। इसकी पुरश्चरण विधि विस्तार से लिखते हैं। किसी भी मंत्र को सिन्द करने के लिए जो प्रारम्भिक बाते पिछले अध्यायो में बताई गई हैं वही सब इसके लिए भी लागू होती हैं। बटुक भैरवं जी का कोई चित्र मिल जाये तो उसे ले आजो, नहीं तो भगवान शकर और पार्वती का चित्र ले लो और उसे दक्षिण दिशा की ओर मुख कर के रखो अथवा ध्यान में बटुक भैरव जी की मूर्ति जैसी आगे चल कर ध्यान के श्लोकों मे बताई गई है निर्मित कर लें। तो सबसे पहले तो भोजपत्र पर इस मन्त्र को लिखकर चित्र के सामने रखो और मंत्र की दीक्षा ले लो।
आप चाहे तो इस प्रकार लिखा हुआ मन्त्र हम से लेकर दीक्षा ले सकते हैं। माता काले रंग के या लाल रंग के १०८ मनकों की तो। स्थान व समय जैसे पहले बताये हैं यही हो । आसन काले रंग का या लाल रंग का होना चाहिए। वस्त्र करते रंग के न हो सकें तो लाल के भी ठीक रहेगे। प्रसाद नेवैद्य मे लाल रंग के फल व मिष्ठान प्रयुक्त करें। पुष्प भी लाल रंग के चढ़ायें। इसमें लाल रंग का मिश्रण करने से जो हल्के शेड बनते हैं वे भी चल जाते हैं। जैसे गुलाबी सुनहरा आदि। मिठाई मे लड्डू भी हो सकता है और फूलों में लात या गुलाबी कमल का फूल सबसे उत्तम रहेगा। कनेर भी अच्छा है। दीपक मे बत्ती भी लाल या काले रंग की प्रयोग मे लायें। दीक्षा लेने के बाद शरीर शुद्धि के लिये इन मंत्रो से आचमन करो : ॐ भैरवाय नमः स्वाहा, ॐ भूतनाथाय नमः स्वाहा, ॐ बटुकनाथाय नमः स्वाहा कहकर तीन बार आचमन करो। और ॐ नमः शिवाय कहकर हाथ धो तो। इसके बाद ओश्म् अपवित्रो भवेत्रोवा मत्र से स्थान की शुद्धि कर लो। पांच बार प्राणायाम करके मंत्र का पाच बार जाप करो। इसके बाद, सकल्प बोलो। यह संकल्प पहले दिन ही बोला जाता है. उसके बाद नहीं । शिसाबंधन यज्ञोपवीत धारण उसी प्रकार से करों, जैसा पिछले अध्यायों मे बताया गया है। यज्ञोपवीत को रोली से रंग लो, और तिलक भी रोली या सिंदूर का धूमध्य मे लगाओ या भस्म को लगाओ । ओ३म् श्री गुरुभ्यो नमः कह कर गुरु का स्मरण करो और प्रणाम करो । गुरु के स्थान पर यदि आपने श्री रामकृष्ण परमहंस जी की तस्वीर या चित्र रखा है तो ठीक है नहीं तो शिवजी को ही गुरु मानकर प्रणाम करो । तत्व मुद्रा मध्यमा अनामिका और अंगूठे को मिलाकर अन्य उगलियों का अलग करके बनाई जाती है । तत्य मुद्रा बनाकर शरीर के निम्न अंगों का स्पर्श करो। ओम् गुरुभ्यो नमः कहकर बांये कंधे का, ओ३म् गं गणपत्ये नमः कहकर भैरवाय नमः कहकर बांई जांघ का ओ३म् बं बटुकाय तथा ओ३म् नमः शिवाय अस्त्राय फट् कहकर दाई हथेली से बाएं हाथ की कोहनी से हथेली तक के अंग का तथा बांये हाथ की हथेली से दांई कोहनी से हथेली तक के अंग का स्पर्श करो। ओ३म् नमः शिवाय को तीन बार कहते हुए तीन बार ताली बजाओ। इसके बाद बटुक भैरव जी के इष्टमंत्र को कहते हुए दशो दिशाओं का दिग्बंधन करो। इसके बाद तीन बार एड़ी से पृथ्वी पर हल्के से आघात करो और जैसा कि पिछले अध्याय में बताया गया है काल भैरव का प्रार्थना मंत्र ( तीक्ष्ण दंष्ट्र ) बोलो। अब श्री बटुक भैरव का ध्यान करो और आहान करो। श्री बटुक भैरव जी के सात्विक, राजसिक तथा तामसिक रूपों के ध्यान मंत्र श्लोक बटुक भैरव स्तोत्र पुस्तक में दिए हुए हैं। यदि उम्र कार्य के लिए भैरव साधना कर रहे हो तो उनके तामसिक रूप का ध्यान मन्त्र इस प्रकार है :-
- करकलित कपाली कुण्डली दण्डपाणिस्तरुण तिमिर नीतव्यात यज्ञोपवीती ।
- क्रतुसमयसपर्या विघ्न विच्छेद हेतुर्जयति बटुक नाथः सिद्धिया साधकानाम् ।
बाल रवि के समान जिनकी अरुण कान्ति है, तीन नयन हैं, नीलग्रीवा (गरदन) है, जो बर्फ के सफेद शिलाखण्ड पर विराजमान हैं। मुण्डमाला गले में है। पीले रंग के घुंघराले बाल है, पैरो में किंकणी और नूपुर हैं। हाथों में शूल खडग दण्ड और कपात है, दिगम्बर वेश है। नीले रंग के सर्पों का यज्ञोपवीत है, शूल में (यानी त्रिशूल में ) उमरू बंधा हुआ है, बड़े-बड़े दांत हैं गले में सर्प पड़े हुए हैं। हाथो में नागपाश (फोड़ा) है, मस्तक पर चन्द्रमा है, ऐसे साधकों को सिद्धि देने वाले श्री बटुकनाथ जी मेरे ऊपर कृपालु हों। इस प्रकार ध्यान करके उनकी मूर्ति को ध्यान में लाओ। इसके बाद पोडशोपचार से बटुक भैरव जी की पूजा करो ! प्रत्येक उपचार के साथ अपना बटुक भैरव इष्टमंत्र बोलते जाओ। षोडशोपचार पूजा विधि विस्तार से पिछले अध्याय में बताई गई है इसमें ७, ८, व ९ वें उपचार मे लाल, नीले, काले रंग के वस्त्र कलावा मौती यज्ञोपवीत लाल चंदन सिंदू विल्वपत्र पूर्वा इसी रंग के पुष्प पुष्पमाला आदि का प्रयोग किया जाता है। दीपक चित्र के दक्षिण भाग में रखते हैं। नैवैद्य अर्पण करते समय ग्रास मुद्रा और शूललडन दण्ड मुद्राएं बनाते हैं- नैवैद्य में भांग की बर्फी जरूर रखनी चाहिए। बाजार में नहीं मिले तो घर पर बना सकते हैं।पान सुपारी के स्थान पर भांग धतूरा आक पोस्त अर्पण करते हैं। पुष्पों मे भी आक के फूल विशेष प्रिय है। बटुक भैरव मंत्र का करन्यास :ओश्म् ह्रीं नमः अंगुष्ठाभ्यां नमः दोनों तर्जनीओं से अंगुष्ठमूलं का स्पर्श करो। ओम् बटुकाय तर्जनीभ्यां नमः दोनों अंगूठों से तर्जनी मूल का स्पर्श करो। ओ३म् आपदुद्धारणाय मध्यमाभ्यां नमः " मध्यमा मूतों का स्पर्श करो। ओ३म् कुरु कुरु अनामिकाभ्यां नमः " अनामिका मूलों का स्पर्श करो। ओ३म् बटुकाम कनिष्ठिकाभ्यां नमः 'कनिष्ठिका भूतो का स्पर्श करो। ओम ह्रीं ओम् नमः शिवाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ""कहकर दोनों हाथों से हथेलियों के अगले पिछले भागों का स्पर्श करो। करन्यास के बाद हृदयादिन्यास, उसके बाद अक्षरन्यास उसके बाद दिग न्यास किया जाता है। जो निम्न प्रकार से हैं
हृदयादिन्यास :
ओश्य ही बटुकाय हृदयाय नमः कहकर हृदय प्रदेश का स्पर्श करो। ॐ आपद् उद्धारणाय शिरसे स्वाहा कहकर ललाट का स्पर्श करो। ओ३म् कुरु कुरु बटुकाय शिखाये चौपट् कहकर शिलास्थान का स्पर्श करो। ओरेम ही नमः कवचाय हुम् कहकर दोनों हाथों से दोनों बाहुओं का स्पर्श करो। औरम् नमः शिवाय नेत्रत्रयाय वौषट् कहकर सीधे हाथ की उंगलियों से तीनों नेत्रो को बारी बारी से स्पर्श करो। ओरम ही बटुकाम आप उद्धारणाय कुछ कुछ बटुकाय ओ३म् हीं नमः शिवाय अस्त्राय फट् कहकर बांई हथेली सीधे हाथ से ताली बजाकर पद की ध्वनि निकालो।
अक्षरन्यास :
- ओ३म् ह्रीं नमः शिखायाम् कहकर दाहिने हाथ के अंगूठ से शिखा स्पर्श ।
- ओ३म् बटुकाय नमः दक्षिण नेत्रे 'की उंगलियो के प्रथम पर्व से सीधी आंख का स्पर्श ओ३म् आपद उद्धारणाय नमः वामनेत्रे " बांई आंख का "
- ओ३म् कुरु कुरु नमः दक्षिण कर्णे "दायें कान का"
- ओ३म् बटुकाय नमः बाम कर्णे ' बाये"
- ओम ह्रीं नमः दक्षिणनासा लुटे " दाये नथुने का"
- ओ३म् ही नमः बाम नासा पुटे " बांये नथुने का'"
- ओम् नमः शिवाय मुखे “ मुख का"
- ओ३म् नमः शिवाय गुह्ये “ गुह्य अंग का"
- दिगन्यास :"
- ओम् ह्रीं प्राच्ये नमः कहकर" पूर्व दिशा में चुटकी बजाते हुए न्यास करो ।
- ओ३म् बटुकाय आग्नेय्यै नमः " अग्नि कोण में"
- ओ३म् आपदुद्धारणाय दक्षिणायै नमः कहकर दक्षिण दिशा में “
- ओ३म् कुरु-कुरु नैऋत्य नमः कहकर नैऋत्य कोण मे “
- ओम् बटुकाय प्रतीच्यै नमः “ पश्चिम दिशा में "
- ओ३म् बटुकाय वायव्ये नमः “ वायव्य कोण में "
- ओ३म् ह्रीं उदीच्यै नमः “ उत्तर दिशा में " "
- ओम् हीं ऐशान्यै नमः “ ईशान कोण मे"
- ओम् ह्रीं शिवाय ऊर्ध्वायै नमः कहकर " आकाश की ओर"
- ओ३म् ह्रीं शिवाय नमः भूम्यै नमः " पृथ्वी की ओर "
इसके बाद माता की पूजा करो और गोमुखी मे माला को रखकर जप आरम्भ कर दो। जप जिहा से, कण्ठ से और यदि अभ्यास हो गया है तो प्राणायाम द्वारा सुरत से करो। इस मन्त्र का पुरश्चरण ३१००० मंत्र का है। इसका दशांश हवन दशांश तर्पण दशांश मार्जन तथा दशांश ब्राह्मण भोजन करना होता है। कुल माला जप के लिए ३१००० की २८७ बनती है जो ११ दिन में करनी है तो २६-२७ बनती है, २१ दिन में करनी है तो १३-१४ बनेगी ओर ३१ दिन का पुरश्चरण करना है तो ९-१० माला रोज के हिसाब से तथा ४१ दिन के पुरश्चरण में ७-८ माला के हिसाब से करना चाहिए। जो नियम रखो उतनी माला रोज कर लेना चाहिए तथा अन्तिम दिन शेष को पूरा कर लेना चाहिए। तर्पण हवन आदि के लिए समय बचाकर रखना चाहिए। यह भी हो सकता है कि दस दिन में जप समाप्त कर लिया जाए और अन्तिम दिन हवन आदि पूरा कर दिया जाए। यदि नित्य कुछ हवन का नियम बनाओ तो शेष को अन्तिम दिन कर देना चाहिये। तात्पर्य यह है कि जितने दिन का पुरश्चरण निर्धारित करो यह सब संख्यायें उतने दिनो मे पूरी कर लेनी चाहिएं। जैसा कि पहले बताया गया है यदि निश्चित सख्या में हवन तर्पण ब्राह्मण भोजन नहीं हो सके तो जौ के आटे की गोलियां बनाकर | मछलियो को खिला देनी चाहिए। उन गोलियो मे साफ सफेद कागज पढ़ अनार की कलम से लाल चन्दन मिली अष्टगन्ध की स्याही से, मंत्र को लिखकर आटे के अन्दर रख देना चाहिए।हवन में आहुतियों से पहले यदि आप बटुक भैरव स्तोत्र के प्रत्येक मन्त्र को बोलते हुए उसके पहले ओ३म् तथा बाद मे स्वाहा लगाकर भी आहुतिया दे तो अच्छा रहेगा। शिवजी के १०८ नामो में प्रधान नामो के साथ भी स्वाहा लगाकर हवन करना चाहिए। जैसे व बटुकाय नमः स्वाहा, भं भैरवाय नमः वादा, ओम् भुं भूतनाथाय नमः स्वाहा आदि । श्लोक की आहुति इस प्रकार दी जाती है ओम ह्रीं अति तीक्ष्ण महाकाय कल्पान्त दहनोपम। भैरवाय मस्तुभ्यमनुज्ञां दातुमर्हति स्वाहा ।बटुक भैरव मूत नामावली स्तोत्र में केवल २९ श्लोक हैं। प्रत्येक की हुति इसी प्रकार से दे। इसी प्रकार तर्पण मे स्वाहा के स्थान पर तृप्यन्ताम् गाट तर्पण किया जाता है। पूर्णाहुति उसी प्रकार की जाती है जैसे लक्ष्मी त्र में बताई गई है। इसमें लक्ष्मणा के स्थान पर लौंग, इलायची डालते || हवन सामग्री में काले तिल, सरसो, गूगल, लोबान, सौंफ, सुरमा दार्थों को और मिलाया जाता है। अन्य सामग्री चावल, जौ, चीनी, घी आदि आदि धूप, अगरबत्ती, मेवा आदि तो होता ही है। समिधा में अन्य लकड़ियों साथ आक की लकड़ी विशेष रूप से ली जाती है। धतूरे व भाग के बीज - हुति के समय गोले में ढ़ाते जाते हैं। पूर्णाहुति के समय यदि ताबे के सिक्के या टुकड़े डवन मे डाल दिए जाएं तो बाद मे उन्हें निकाल कर र सेना चाहिए। बच्चों वलियों के गले में पहनाने से भूत प्रेत बाधा दूर हो कार में मंत्र पढ़कर जल छिड़कने से होता है । "करते रहना चाहिए। जब आप इसको अपने या अपने किसी प्रमा, हितप के लिए प्रयोग में लाना चाहें तो अनुष्ठान रूप में इसका प्रयोग करे। कार्य की गम्भीरता के हिसाब से संख्या पूरी होते ही यह कार्य सिद्ध होगा । अनुष्ठान करते समय दीपक जलाकर केवल जाप किया जाता है और घोड़ा हवन भी । यदि कोई भारी आपत्ति विपत्ति आ गई हो तो अखण्ड जाप किया जाता है। व्रत रखकर । कम से कम २४ घण्टे का। नहीं तो मामूली सहज कार्यो के लिए नित्य २-३ घंटे का जप अनुष्ठान काफी होता है। अनुष्ठान के दिनों मे या पुरश्चरण केनों में तात्विक जीवन संयम से रहना ब्रह्मचर्य से रहा जाता है। सात्विक भोजन किया जाता है, जमीन पर सोया जाता है, यम नियमों का पालन किया जाता है। पहले इस मंत्र की ३१००० आवृत्तियाँ करके उपरोक्त प्रकार से सिद्ध कर लीजिएगा। माताओं की गिनती करते जाते हैं। और यों कुछ अधिक हो जाए तो कोई हानि नहीं होती, अच्छा ही रहता है। जब भी आप पर कोई आपत्ति, विपत्ति आये, भगवान करे न आये, पर आ ही जाये, तब उस समय या किसी से कोई काम निकालना हो, किसी को अपने अनुकूल करना हो, परीक्षा साक्षात्कार में प्रभावित करके सफल होना हो, अथवा किसी भी उचित कार्य के लिए देवी सहायता लेनी हो तो बैठकर या चलते फिरते मन में इस मंत्र का निरंतर जाप आरम्भ कर दीजिए। यदि आपकी प्रार्थना उचित व न्यायोचित कार्य के लिए हैं तो बहुत शीघ्र सफलता प्राप्त होगी। मैंने इसे अपने जीवन में कई बार प्रयुक्त किया है और देर से या सवेद से सफल अवश्य रहा हू । जितनी भी परीक्षायें दीं इन्टरव्यू दिये कभी असफल नहीं हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान महमाई बढ़ जाने पर स्टेट की नौकरी में गुजर नहीं होती थी, तो मैं पक्की आठ वर्ष की सेवा को छोड़कर हवाई सेना में भर्ती हो गया था। वहां कुछ ठीक से मन नहीं लगा तो किसी प्रकार डिस्चार्ज लेकर चला जाया। उस समय सेना में से निकलना बहुत मुश्किल था, पर भगवती की कृपा से छुटकारा मिल गया था। तब मैं दिल्ली मे नौकरी की तलाश मे फिरने लगा। उस समय मैंने इस बटुक भैरव मन्त्र का निरन्तर जप आरंभ किया और चमत्कार यह हुआ कि २४ घंटे के अन्दर ही बहुत उत्तम नौकरी तथा एक पार्ट टाइम काम एक ही दिन मिल गए और काम ठीक से चलने लगा। और भी अनेक बार इसी मंत्र की कृपा से बाधा व कठिनाईयो को पार किया है। इस मार्ग मे सफलता का र यही है कि कुछ मंत्रो को ही छाँट लिया जाये और उनका अधिक से अधिक जप करके शक्ति का भंडार जप संख्या का भंडार इकट्ठा किया जाय । बजाय इसके कि बहुत से मन्त्रों को सिद्ध करो, २०४ मत्र ही काफी होते हैं। उन्हीं से सब प्रकार की बाघा कठिनाई दूर की जा सकती है। उन मत्रो को यथा अवसर और जब भी समय मिले जप करते रहने से उनमें शक्ति पैदा होती है और मनोकामना पूरी होती है।
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