बृजराज बिहारी मंदिर नूरपुर काँगड़ा (Brijraj Bihari Temple Noorpur Kangra)

बृजराज बिहारी मंदिर नूरपुर काँगड़ाbrjaraaj bihaaree mandir noorapur kaangada, Himachal Pradesh

बृजराज बिहारी मंदिर नूरपुर काँगड़ा
हिमाचल प्रदेश में वैसे तो कई देवी-देवताओं के मंदिर है जिनका इतिहास बहुत पुराना है. लेकिन हिमाचल के नूरपुर के प्राचीन किला मैदान में स्थित भगवान श्री बृजराज स्वामी जी का यह मंदिर बेहद की खास है. पूरे विश्व में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां श्री कृष्ण की मूर्ती राधा जी के साथ नहीं बल्कि मीरा बाई के साथ स्थापित है. ये दोनों मूर्तियां इतनी अलौकिक और आकर्षक है कि जिनके दर्शन मात्र से व्यक्ति की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है. मूर्तियां ऐसी बनी हैं मानों जैसे स्वयं भगवान श्री कृष्ण आप के समक्ष खड़े हों. जन्माष्टमी के दिन इस मंदिर की अलौकिकता और सुंदरता बढ़ जाती है.
बृजराज बिहारी मंदिर नूरपुर काँगड़ा
हिमाचल प्रदेश में देवी-देवताओं का वास होने के कारण हिमाचल को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। हिमाचल प्रदेश में कई देवी-देवताओं के स्थल हैं तथा इन्हीं देवस्थलों में नूरपुर के ऐतिहासिक  एवं प्राचीन किले में स्थित भगवान श्रीबृजराज स्वामी का मंदिर भी सुप्रसिद्ध है। स्वामी बृजराज मंदिर प्रदेशवासियों सहित क्षेत्रवासियोंं व बाहरी राज्यों से आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था व श्रद्धा का प्रतीक है। इस मंदिर में सालभर हिमाचल के अलावा बाहरी राज्यों से श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। स्वामी बृजराज मंदिर नूरपुर विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा नहीं,बल्कि मीराबाई की मूर्ति विराजमान है। भगवान श्रीकृष्ण व मीराबाई की प्रतिमाएं ऐसी प्रतीत होती हैं जैसे साक्षात भगवान कृष्ण व मीराबाई खड़े हों। कथा के अनुसार इस मंदिर का इतिहास काफी रोचक है। एक बार नूरपुर के राजा जगत सिंह अपने राज पुरोहित के साथ चितौड़गढ़ के राजा के निमंत्रण पर वहां गए। चितौड़गढ़ के राजा ने जगत सिंह व उसके पुरोहित को एक आलीशान महल में ठहराया। जिस महल में राजा जगत सिंह व पुरोहित को ठहराया गया था, उसके साथ ही एक मंदिर था। रात को सोए हुए राजा जगत सिंह को उस मंदिर में घुंघरुओं के बजने व संगीत की धुन सुनाई दी। धुन को सुनकर राजा ने जैसे ही मंदिर में झांक कर देखा तो एक औरत भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने भजन गाते हुए नाच रही थी। राजा जगत सिंह ने सुबह उठकर सारी बात राज पुरोहित को सुनाई जिस पर राज पुरोहित ने राजा जगत सिंह को सुझाव दिया कि वह चितौड़गढ़ के राजा से उक्त मूर्तियां उपहार स्वरूप मांग लें। राजा जगत सिंह ने वैसा ही किया तथा चितौड़गढ़ के राजा ने दोनों मूर्तियां राजा जगत सिंह को उपहार स्वरूप खुशी-खुशी दे दीं। इसी के साथ एक मौलश्री का पेड़ भी उपहार में दिया। राजा जगत सिंह ने वापस अपने राज दरबार में पहंुचकर इन मूर्तियों को दरबार-ए-खास में स्थापित किया। श्री कृष्ण की मूर्ति राजस्थानी शैली की काले संगमरमर से बनी हुई है व अष्टधातु से बनी मीराबाई की मूर्ति आज भी नूरपुर के किले में विराजमान है। लोग मंदिर में दूरदराज से आशीर्वाद लेने आते हैं।  इस मंदिर में जन्माष्टमी धूमधाम के साथ मनाई जाती है। पहले नूरपुर का नाम धमेड़ी था, लेकिन बेगम नूरजहां के आने उपरांत इसका नाम नूरपुर पड़ गया। मंदिर में वर्षभर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है।
बृजराज बिहारी मंदिर नूरपुर काँगड़ा

बृजराज बिहारी मंदिर का इतिहास

ये बात है 1629 से 1623 ई. जब चितौडग़ढ के राजा के निमंत्रण पर नूरपुर के राजा जगत सिंह अपने राज पुरोहित के साथ वहां पहुंचे. जिस महल में राजा जगत सिंह व उनके पुरोहितों को रात्रि विश्राम के लिए ठहराया गया था, उसके बगल में एक मंदिर था. रात में राजा को उस मंदिर से घुंघरूओं तथा संगीत की आवाजें सुनाई दी. जब उन्होंने महल की खिड़की से बाहर झांका तो मंदिर में एक औरत कमरे में श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने भजन गाते हुए नाच रही थी. उस मंदिर में श्री कृष्ण व मीरा की मूर्तियां साक्षात थी. जब नूरपुर के राजा ने पूरी बात अपने पुरोहितों को बताई तो वापसी के वक्त उन्होंने इन मूर्तियों को उपहार स्वरूप मांग लिया. चितौडग़ढ़ के राजा ने उन्हें प्रसन्नता के साथ मूर्तियां भेंट कर दी. इसके बाद नूरपुर के राजा ने अपने दरबार को मंदिर में बदल कर वहां इन दोनों मूर्तियों को स्थापित कर दी.

बृजराज बिहारी मंदिर मंदिर में आते हैं श्री कृष्ण

मान्यता है कि इस मंदिर में हर रात भगवान श्री कृष्ण आते हैं. इसलिए रोजना इस मंदिर में पूजा-पाठ होता है और रात के समय मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं. मंदिर बंद करने से पहले मूर्तियों के समक्ष शयनासन, चरण पादुकाएं व एक गिलास पानी से भरा रखा जाता है. सुबह जब मंदिर का दरवाजा खोला जाता है तो शयनासन पर सिलवटों होती हैं और पानी की गिलास गिरा होता है. माना जाता है कि रात में श्रीकृष्ण व मीराबाई यहां विश्राम करते हैं

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