चौरासी मंदिर भरमौर(Chaurasi Temple Bharmour)

चौरासी मंदिर भरमौर  84 temple bharmour live darshan 

  • चौरासी मंदिर (Chaurasi Temple) हिमाचल प्रदेश के चम्बा ज़िले के भरमौर शहर के बीच स्थित एक हिन्दू धार्मिक स्थल है। 
  • यह लगभग 1400 वर्ष पुराना है। इसमें एक केन्द्र की परिमिति पर शिवलिंग पर आधारित चौरासी मंदिर बने हुए हैं 
  • जिनके कारण इसका नाम पड़ा। इनके बीच पारम्परिक उत्तर भारतीय शिखर वास्तुशैली में बना मणिमहेश मंदिर है।
  •  चौरासी मंदिर भरमौर का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक केन्द्र है।
चौरासी मंदिर भरमौर(Chaurasi Temple Bharmour)

  • माना जाता है कि भरमौर के राजा सहिल वर्मन ने मंदिर का निर्मान 84 सिद्धकों के नाम पर करवाया था। 
  • यह योगीजन कुरुक्षेत्र से आए थे 
  • और मणिमहेश झील व मणिमहेश कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए जा रहे थे। रास्ते में वे भरमौर में रुके और वहाँ साधना करी। 
  • उन्होंने निःसंतान राजा को दस पुत्रों और एक पुत्रि का वरदान दिया। आस्था है कि मणिमहेश झील का तीर्थ इस मंदिर के दर्शन करे बिना पूरा नहीं होता। यह मंदिर शिव और शक्ति को समर्पित है।
हिमाचल प्रदेश के कई प्राचीन स्थलों में से एक है चंबा जिले का भरमौर। चंबा से करीब 62 किमी. दूर स्थित इस जनजातीय क्षेत्र में यूं तो जनजीवन सामान्य है, लेकिन दिसंबर-जनवरी में बर्फबारी के दौरान यहां की जिंदगी मानो ठहर सी जाती है और मौसम के करवट लेते ही फिर रौनक बढ़ती चली जाती है। खासकर अगस्त-सितंबर में तो यहां का नजारा देखते ही बनता है, जब मणिमहेश यात्रा शुरू होती है। मई-जून की तपती गर्मी में भी देश-विदेश से पर्यटक यहां आते हैं। दोनों ओर से पहाडि़यों से घिरे भरमौर कस्बे का प्राकृतिक नजारा देखते ही हर कोई भाव-विभोर हो उठता है।
चौरासी मंदिर भरमौर(Chaurasi Temple Bharmour)
चौरासी मंदिर- भरमौर की खासियत यहां स्थापित चौरासी मंदिर हैं। इस स्थान को पहले ब्रह्मपुर कहा जाता था। मेरूवर्मन भरमौर का सबसे शक्तिशाली राजा था। मेरूवर्मन ने भरमौर में मणिमहेश मंदिर, लक्षणा देवी मंदिर, नरसिंह और गणेश मंदिर का निर्माण करवाया। इसके अलावा छतराड़ी में भी शक्ति देवी के मंदिर का निर्माण करवाया। चौरासी मंदिर परिसर में ही धर्मराज का मंदिर भी है। संसार में यह इकलौता मंदिर है, जो धर्मराज को समर्पित है। इस मंदिर में एक खाली कमरा है, जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है। कहा जाता है कि चित्रगुप्त यमराज के सचिव हैं, जो जीवात्मा के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। मान्यता है कि जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है, तब यमराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चौरासी मंदिर भरमौर शहर के केंद्र में स्थित है। चौरासी मंदिर परिसर में 84 बड़े और छोटे मंदिर हैं।
भगवान गणेश का मंदिर भरमौर के चौरासी मंदिर के प्रवेश द्वार के पास स्थित है । मंदिर का निर्माण वर्मन राजवंश के शासकों द्वारा किया गया था, जैसा कि मंदिर में लगाए गए एक शिलालेख में कहा गया है, मेरु वर्मन ने लगभग 7 वीं  शताब्दी ईस्वी में। गणेश के लकड़ी के मंदिर को संभवतः भरमौर के किरा आक्रमण के दौरान आग लगा दी गई थी और छवि को खंडित कर दिया गया था। पैर काटना. भगवान गणेश का मंदिर प्रवेश द्वार के पास ही है क्योंकि हिंदू धर्म में भगवान गणेश की पूजा किसी भी अन्य देवता से पहले और कोई भी काम शुरू करने से पहले की जाती है।

भगवान गणेश मंदिर चौरासी मंदिर-

गणेश मंदिर में गणेश की कांस्य प्रतिमा स्थापित है। यह शानदार छवि आदमकद है, जिसके दोनों पैर गायब हैं। भगवान एक सिंह सिंहासन पर बैठे हैं और एक सांप को एक पवित्र धागे (यज्ञोपवीत) के रूप में धारण करते हैं। तीन आंखों वाले भगवान के गुणों के रूप में उनके हाथ में एक माला, उनका दांत, उभरा हुआ दांत और मिठाई (लड्डुओं) की एक थाली है। देवता को बाघ की खाल का जैकेट (व्याघ्रचर्म) पहने हुए दिखाया गया है, जिसमें से उनके पेट की मांसपेशियां और गहरी नाभि दिखाई देती है। शरीर गठीला और गठीला है और विस्मयकारी प्रतीत होता है। शरीर में एक वर्गाकार कक्ष है जो संकीर्ण बरामदे (परदक्षण पथ) से घिरा हुआ है और इसके ऊपर अपेक्षाकृत हाल ही में निर्मित ढलान वाली स्लेट की छत है। यह मंदिर चौरासी परिसर के प्रवेश द्वार के पास स्थित है। 
हड़सर का गौरी-शंकर मंदिर- भरमौर से करीब 13 किमी. दूर मणिमहेश यात्रा के आरंभिक पड़ाव हड़सर पर गौरी-शंकर मंदिर है। मणिमहेश यात्रा के दौरान तो सुबह से शाम तक मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है और अधिकांश श्रद्धालु गौरी-शंकर मंदिर में माथा टेकने के बाद ही अपनी यात्रा शुरू करते हैं। इसके साथ ही हड़सर गांव के पुजारी ही मणिमहेश स्थित गौरी कुंड और शिव कुंड में पूजा-अर्चना के लिए बैठते हैं और श्रद्धालुओं में प्रसाद आदि बांटते हैं। गांव के एक छोर पर हनुमान और दूसरे छोर पर पूर्व की ओर चोली माता का मंदिर भी है।
भरमाणी देवी मंदिर- भरमौर से 5 किमी. की दूरी पर स्थित है भरमाणी मंदिर। मणिमहेश यात्रा के दौरान यहां काफी भीड़ रहती है। लोग यहां बने कुंड में स्नान करते हैं, जिसका पानी गर्मियों में भी लोगों को कंपकंपा देता है। यह भी मान्यता है कि मणिमहेश यात्रा से पूर्व मां भरमाणी के दर्शन करना अनिवार्य है, अन्यथा यात्रा संपूर्ण नहीं हो पाती।
कार्तिक स्वामी मंदिर- जैविक गांव कुगती से करीब 5 किमी. दूर स्थित है कार्तिक स्वामी का मंदिर। यूं तो यह मंदिर नवंबर-दिसंबर में बर्फबारी के बाद बंद रहता है और परंपरा के अनुसार इसके कपाट हर साल बैसाखी के दिन 13 या 14 अप्रैल को संक्रांति के दिन खोले जाते हैं। मंदिर से करीब 500 मीटर की दूरी पर देवी मराली का मंदिर है। यहां पर लोग मन्नत पूरी होने पर त्रिशूल व कड़ाह आदि चढ़ाते हैं।

टिप्पणियाँ