जोगी पंगा - डेरा बाबा रुद्रानंद (Dera Baba Rudranand )
डेरा बाबा रुद्रानंद - बाबा रुद्रु जहां सांपों का ज़हर उतर जाता है
डेरा बाबा रुद्रानंद (Dera Baba Rudranand ) |
ब्रह्मचारियों की गद्दी डेरा बाबा रुद्रु नारी का स्थापना आज से 147 वर्ष से पूर्व रुद्रु नामक महात्मा द्वारा की गई थी। रुद्रु बड़साला गांव के ब्राह्मण परिवार से सम्बन्ध्ति थे।
डेरा बाबा रुद्रु की स्थापना के बारे में लोगों ने यूं बताया कि बचपन में गायें चराते तथा भगवान की भक्ति करते थे, रुद्रु जी युवावस्था की दहलीज में पहुंचे तो माता-पिता ने कहा कि तुम अब कोई कारोबार करो तो रुद्रु गांवों से देसी घी एकत्रित करके होशियारपुर (पंजाब) में बेचा करते थे।
डेरा बाबा रुद्रानंद (Dera Baba Rudranand ) |
एक दिन होशियारपुर को जाते समय चिड़ी घाटी आश्रम वनखंडी धर में उस आश्रम के प्रमुख साधु बाबा दयाल जी ने भंडारे के लिए रुद्रु से घी मांगा तो रुद्रु ने आधा देसी घी उन्हें दे दिया तथा रुद्रु घी देने के बाद अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ गए। जब रुद्रु ने होशियारपुर में घी बेचना शुरु किया तो घी समाप्त ही नहीं हो रहा था। काफी धनअर्जित हो गया था। इस दिन पूर्व दिनों से अधिक धन प्राप्त हुआ। शाम को रुद्रु वापस आकर उपरोक्त आश्रम में ठहरे तो बाबा दयाल जी ने रुद्रु को भोजन करवाया और रुद्रु की अज्ञान रुपी आंखें खुल गई।
उसी क्षण उन्हें ज्ञान हो गया व बाबा दयाल दास जी ने उन्हं अपना अन्नपूर्णा का आर्शीवाद दिया व कहा कि मैं तुम्हें दीक्षा नहीं दे सकता, क्योंकि मेरा जन्म जाट के घर का है। अतः तुम होशियारपुर जाओ, वहां पर वनारस काशी से ब्रह्मानंद जी आए हुए हैं। उनसे जाकर दीक्षा ले लिजिए। रुद्रु ने उनसे दीक्षा ली और नारी गांव में बसंत पंचमी के दिन 1850 में अपना धूना जलाया तथा वह धूना आज भी उसी ढ़ग से जल रहा है।
डेरा बाबा रुद्रु नारी में पांच पीपल हैं। उनके बारे में वहां ऐसा लिखा हुआ है कि यहां आज से 500 वर्ष पूर्व पांच योगेश्वर तपस्वी महात्माओं ने बढ़ते हुए कलियुग के पापों के भय से अपनी योग विद्या के द्वारा जीवित पांच पीपलों का रुप धारण किया है।
उपरोक्त पीपलों के नीचे जहरीले से जहरीले सांप का जहर उतर जाता है। जब तक जहर उतरे नहीं उतनी देर उस व्यक्ति को यहां पर लेटना पड़ता है। डेरे के कर्मचारी ने बताया कि इस तरह वर्ष भर में काफी संख्या में लोग यहां आते हैं।
यहां पर श्रधालुयों की सुविधा के लिए सदाव्रत लंगर आदि गुरु अमरयोगी बाबा रुद्रानंद जी के कर कमलों द्वारा सन् 1864 में स्थापित किया गया है।
डेरा बाबा रुद्रु में अखंड धूना के अतिरिक्त भगवान शंकर का विशाल शिव मन्दिर, राध कृषण का मन्दिर तथा फल-फूल से भरपूर एक सुंदर मनमोहक बागीचा है।
डेरा में निर्धन बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करने के लिए सन् 1905 में श्री बाबा रुद्रु सस्कृत विद्यापीठ की स्थापना की गई है। इस संस्कृत विद्यापीठ से वर्तमान डेरा के संचालक सुग्रीवानंद वेदान्तचार्य ने भी शिक्षा यहां से ग्रहण की है।
डेरा बाबा रुद्रानंद (Dera Baba Rudranand ) |
बाबा रुद्रा नंद के बाद डेरे के संचालक श्री परमानंद जी को बनाया गया। उनके बाद दो अन्य महात्माओं को डेरे का संचालक बनाया गया, मगर उनका राजतिलक नहीं हुआ फिर आत्मानंद जी को डेरे का महन्त बनाया गया। वर्तमान में सुग्रीवानंद वेदान्ताचार्य को 1952 में गद्दी पर बैठाया गया।
डेरा में पंच भीष्मा के दिन देसी घी सहित खिचड़ी का विशाल भंडारा किया जाता है। यहां प्रतिवर्ष 31 लाख गायत्री मंत्रों का जाप 151 पण्डितों की सहायता से करवाया जाता है।
डेरा बाबा रुद्रानंद (Dera Baba Rudranand ) |
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें