कामेश्वर महादेव मंदिर (kaameshvar mahaadev mandir)
कामेश्वर महादेव मंदिर (Kameshwar Mahadev Temple) |
- कामेश्वर महादेव मंदिर साहो और चमेसणी (चम्पावती) मंदिर चम्बा की स्थापना साहिल वर्मन ने की थी।
- यह मंदिर 1100 साल पुराना है और चंबा रियासत के राजा साहिल वर्मन ने इसका निर्माण करवाया था। इस मंदिर के निर्माण से संबंधित शारदा शिलालेख समीप के सराहन गांव से प्राप्त हुआ है।
- शिलालेख के अनुसार चंद्रशेखर मंदिर का निर्माण सात्यकि नामक स्थानीय राजा ने करवाया था। राजा की एक अत्यंत रूपवती रानी थी,
- जिसका नाम सोमप्रभा था और सोमप्रभा के सौंदर्य का वर्णन भी इस शिलालेख में एक छंद के रूप में मिलता है।
- भगवान शिव की साधना स्थली काम दहन भूमि बलिया जिले के चितबड़ागांव में स्थित कामेश्वर धाम करो जहां भगवान श्री राम लक्ष्मण विश्वामित्र जी के साथ आए थे. उसी कामेश्वर धाम कारो का यह मुख्य प्रवेश द्वार है. यह धार्मिक स्थल शिव पुराण और बाल्मीकि रामायण में भी वर्णित है. यह जनपद के लिए एक ऐतिहासिक धरोहर है.
- इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय बताते हैं की श्रीमद् बाल्मीकि रामायण के बालकांड के अध्याय 23 में इस आम के वृक्ष का उल्लेख मिलता है. यह वहीं आम का वृक्ष है जिसकी वोट में खड़े होकर देवसेनापति कामदेव ने समाधारित शिव के ऊपर बाण चलाए जिससे उनका तीसरा नेत्र खुला और कामदेव जलकर भस्म हो गए. यह वृक्ष आज भी जला हुआ है. इस वृक्ष की आयु के संदर्भ में अभी तक जो लिखित प्रमाण मिले हैं यह पेड़ भगवान राम के आने से पहले सतयुग के समय में भी था. जब भगवान शंकर ने कामदेव को जलाया था.
- यह जो आप जाली में देख रहे हैं इसके अंदर महर्षि विश्वामित्र, राम और लक्ष्मण की प्रतिमाएं आपको दिखाई दे रही है. यह वहीं स्थान है जहां अयोध्या से सिद्धाआश्रम जाते समय विश्वामित्र और राम लक्ष्मण जी ने यहां विश्राम किया था.
- श्री कामेश्वर धाम कारो जो भगवान शंकर की साधना स्थली है. यहीं पर भगवान शंकर ने कामदेव का दहन किया था. उस पर संक्षिप्त रूप से इस पुस्तक में डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकीय ने प्रकाश डाला है. उन सभी तथ्यों को छांटकर इसमें लिखा गया है जो शिव पुराण और वाल्मीकि रामायण में इस धाम को लेकर वर्णित किया गया है.
कामेश्वर महादेव मंदिर |
मंदिर में स्थापित है नंदी की रहस्यमयी मूर्ति
चंद्रशेखर मंदिर साहो में स्थापित नंदी बैल की मूर्ति आज भी रहस्य बनी हुई है। पत्थर की इस मूर्ति में नंदी के गले में बंधी घंटी टन की आवाज देती है। कई वैज्ञानिक भी इस टन की आवाज का रहस्य जानने के लिए यहां माथापच्ची कर चुके हैं, लेकिन नतीजा कोई नहीं निकला। लिहाजा आज दिन तक यह रहस्य बना हुआ है कि एक पत्थर की घंटी को बजाने के बाद भी यह धातु जैसी आवाज क्यों देती है। हालांकि कहा यह भी जाता है कि चट्टान को लेकर नंदी बैल की मूर्ति बनाई गई थी, लेकिन आज भी नंदी की इस मूर्ति को लेकर कई किवंदतियां हैं। बहरहाल, चंबा के इस मंदिर में विराजमान नंदी बैल की मूर्ति आज भी एक शोध का विषय बनी हुई है। रोचक पहलू यह है कि यह प्राचीन मंदिर खुद में कई पौराणिक कथाओं को समेटे हुए है।
जन्माष्टमी और राधा अष्टमी पर भी होता है पवित्र स्नान
साहो के चंद्रशेखर मंदिर में उत्तरी भारत की प्रसिद्ध मणिमहेश यात्रा के दौरान जन्माष्टमी और राधा अष्टमी पर होने वाले पवित्र स्नान की तरह यहां पर भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं। वहीं, कई श्रद्धालु मणिमहेश यात्रा पर डल झील में स्नान करने के बाद चंद्रशेखर मंदिर स्थित तालाब में भी डुबकी लगाते हैं।
कामेश्वर महादेव मंदिर (Kameshwar Mahadev Temple) |
चंद्रशेखर भगवान की स्थापना को लेकर यह कथा भी है प्रचलित
कहते हैं कि एक समय में साल नदी के समीप एक साधु कुटिया बनाकर रहा करते थे। वह प्रतिदिन ब्रह्मा मुहुर्त में उठकर नदी में स्नान करने के लिए जाया करते थे। कुछ दिनों बाद उन्होंने गौर किया कि कोई उनसे पहले भी स्नान कर जाता है, क्योंकि नदी के किनारे चट्टान पर भीगे पैरों के निशान स्पष्ट दिखाई देते थे। सन्यासी को आश्चर्य हुआ कि कौन ऐसा व्यक्ति है, जो उनसे पहले स्नान कर चला जाता है। यह क्रम दो-तीन दिन तक चलता रहा, पर स्नान पर पहले पहुंचने के बाद भी वह यह राज नहीं जान पाए थे। यह सारी रचना भगवान शिव की रची हुई थी। मुनि ने वहां ध्यानमग्न होने का निर्णय लिया। ध्यान टूटने पर उन्होंने तीन मूर्तियों को नदी में छलांग लगाते देखा। उचित समय जानकर मुनि ने अलख जगाई। फलस्वरूप एक मूर्ति वहां से कैलाश पर्वत भरमौर की ओर चली गई, जो मणिमहेश के रूप में विख्यात है। दूसरी ने चंद्रगुप्त के लिंग के रूप में नदी में डुबकी लगाई और लुढ़कते हुए चंबा नगरी में घुम्बर ऋषि के आश्रम के समीप रावी और साल नदी के पास ठहर गई। जबकि तीसरी चंद्रशेखर की वहीं स्नान चैकी पर शिविलंग शिला में बदल गई। इस प्रकार तीनों मूर्तियां भगवान शिव की प्रतिमूर्तियां थीं, जो शिवलिंग में परिवर्तित हो गईं।
ऐसे पहुंचें चंद्रशेखर मंदिर
ऐतिहासिक चंद्रशेखर मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को सबसे पहले चंबा मुख्यालय पहुंचना पड़ता है। अन्य राज्यों से आने वाले लोग वाया पठानकोट होते हुए यहां पहुंच सकते हैं। जिला मुख्यालय की पठानकोट से दूरी करीब 119 किलोमीटर है। यहां से लोग बसों या टैक्सी के माध्यम से सफर कर सकते हैं। वहीं, जिला मुख्यालय चंबा से चंद्रशेखर मंदिर की दूरी करीब 18 किलोमीटर है। यहां भी बस या टैक्सी के माध्यम से पहुंचा जा सकता है।
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