गढ़वाल का राजा मानशाह राज्यकाल (Raja Manshah reign of Garhwal)

गढ़वाल का राजा  मानशाह राज्यकाल Gadhavaal ka raaja maanashaah raajyakaal

गढ़वाल का राजा  मानशाह राज्यकाल
गढ़वाल का राजा  मानशाह 
गढ़वाल का राजा  मानशाह सम्वत् 1591

डॉ शिवप्रसाद डबराल के अनुसार बलभद्र-शाह के बाद सन् 1591 में मानशाह ने गद्दी संभाली। मानशाह से सम्बन्धित साक्ष्य उपलब्ध है। देवप्रयाग के क्षेत्रफल मन्दिर के द्वार पर 1608 का अंतिम शिलालेख एवं इसी स्थल के रघुनाथ मन्दिर से प्राप्त शिलालेख (1610 ई०) मानशाह द्वारा उत्कीर्ण माने जाते हैं। इनके आधार पर फोस्टर महोदय की कृति 'दि अर्ली ट्रेवल्स इन इंडिया' में विलियम नामक यूरोपीय यात्री का वृतांत है जिसने गढ़वाल नरेश मानशाह का उल्लेख किया है। इसके अनुसार गढ़वाल राज्य गंगा एवं यमुना के मध्य फैला है और राजधानी 'श्रीनगर' है। इस राज्य की सीमा आगरा से 200 किलोमीटर दूर है। इस पूरे राज्य की लम्बाई 300 किमी और चौड़ाई 150 किमी0 है। यहाँ के शौर्यवान शासक सोने के बर्तनों में भोजन करते है। इसके आधार पर मानशाह का राज्यकाल 1591 से 1611 ई0 के मध्य बैठता है।
मानशाह के शासनकाल में कुमाऊँ के शासक लक्ष्मीचंद ने 1597-1620 ई0 के मध्य 7 आक्रमण किए किन्तु हर बार उसे पराजय का सामना करना पड़ा। बद्रीदत्त पांडे के अनुसार मानशाह के सेनापति 'नन्दी' ने तो चंद राजाओं की राजधानी पर भी अधिकार कर लिया था। राहुल सांकृत्यायन का कथन भी इस मत का सर्मथन करता है कि गढराज्य के सेनापति 'नंदी' ने चम्पावत हस्तगत कर लिया था। गढ़वाल के राजकवि भरत ने अपनी कृति 'मानोदय' में इस विजय का विरूद्ध गया है।

उतराखंड का राजा  मानशाह सम्वत् 1591
राजा का  मानशाह राज्यकाल

राजा मानशाह बलभद्र शाह के पुत्र तथा पंवार वंश के 44 क्रम के राजा थे। राजा मानशाह के समकालीन चंद राजा रुद्र चंद एव उसका पुत्र लक्ष्मी चंद वंश का राजा था। चंद राजा लक्ष्मी चंद ने मानशाह के शासन काल में पवार राज्य पर लगभग 8 बार आक्रमण किया। सन 1597 से 1602 तक छह बार गणराज्य पर आक्रमण किया तथा इन सभी आक्रमणों में लक्ष्मीचंद को हार का सामना करना पड़ा। सातवां हमला लक्ष्मी चंद ने पेनो गढ़ पर किया। पेनो गढ़ युद्ध का उल्लेख भरत कवि द्वारा लिखित मनोदय काव्य में किया । इस युद्ध में भी लक्ष्मीचंद को हार का सामना करना पड़ा। आठवीं बार का अंतिम आक्रमण 1605 मैं हुआ। इस युद्ध में मानसा का सेनापति खतड़वा सिंह था। लक्ष्मीचंद इस युद्ध में विजय रहा। लक्ष्मीचंद की इस विजय उत्सव को कुमाऊं में खतड़वा त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। इस युद्ध में लक्ष्मी चंद का सेनापति गेंडा सिंह था। राजा मानसा मुगल वंश के राजा अकबर तथा जाहागीर का समकालीन था। राजा मानसाह ने पश्चिमी तिब्बत का एक दावा प्रांत के शासक काकुआं मोर पर आक्रमण किया। तथा उसे पराजित कर आगे बढ़ कर मानसाह ने छपरांत के शासक के राजभवन से सुंदर स्वर्ण कलशों को लूटा था। तथा इन स्वर्ण कलश को मानसा ने गौरी मठ में समर्पित किया था।

काकुआं मोर से संधि के अनुसार वास्तविक कर के रूप में सवा सेर स्वर्ण तथा एक चोह सिंगीया मेढ़ा अर्थात चार सिंह वाला भेड़ कर प्रतिवर्ष लिया। मानशाह का प्रथम ताम्रपत्र देवप्रयाग के क्षेत्रपाल से मिला जो 1608 उत्कीर्ण था तथा दूसरा ताम्रपत्र देवप्रयाग के रघुनाथ मंदिर से मिला जो 1611 का उत्कीर्ण था । जीतू बगड़वाल राजा मानसा के समकालीन था जीतू बगड़वाल को मानसा ने भोट का फौजदार नियुक्त किया था।

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