गढ़वाल का राजा मानशाह राज्यकाल (Raja Manshah reign of Garhwal)

गढ़वाल के राजा मानशाह का राज्यकाल (1591-1611) गढ़वाल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। मानशाह, राजा बलभद्र शाह के पुत्र और पंवार वंश के 44वें राजा थे। उनकी शासनकाल की शुरुआत 1591 ई. में हुई, और वह एक सक्षम शासक, कुशल योद्धा, और कुशल प्रशासक के रूप में प्रसिद्ध हुए।

मानशाह का शासनकाल

डॉ. शिवप्रसाद डबराल के अनुसार, बलभद्र शाह के बाद मानशाह ने सन् 1591 में गढ़वाल की गद्दी संभाली। उनके शासनकाल के कई प्रमाण मिले हैं, जिनमें देवप्रयाग के क्षेत्रपाल मंदिर के 1608 के शिलालेख और रघुनाथ मंदिर के 1611 के शिलालेख शामिल हैं। मानशाह के राज्यकाल का उल्लेख यूरोपीय यात्री विलियम के वृतांत में भी मिलता है, जिसमें गढ़वाल के शौर्य और सामरिक विस्तार का वर्णन किया गया है।

गढ़वाल राज्य उस समय गंगा और यमुना नदियों के बीच स्थित था, जिसकी राजधानी श्रीनगर थी। राज्य की सीमाएँ आगरा से 200 किलोमीटर दूर थीं और राज्य का विस्तार 300 किमी लम्बाई और 150 किमी चौड़ाई में फैला हुआ था।

कुमाऊं के साथ संघर्ष

मानशाह के शासनकाल में कुमाऊं के शासक लक्ष्मीचंद ने 1597 से 1620 ई. के बीच गढ़वाल पर सात आक्रमण किए। हर बार मानशाह की सेना ने कुमाऊं की सेना को पराजित किया। गढ़वाल के सेनापति नंदी ने तो चम्पावत पर भी अधिकार कर लिया था। इस विजय का उल्लेख गढ़वाल के राजकवि भरत ने अपनी कृति 'मानोदय' में किया है।

पेनो गढ़ युद्ध, जिसे भरत कवि ने अपने काव्य में वर्णित किया, गढ़वाल और कुमाऊं के बीच लड़ा गया प्रमुख युद्ध था। इस युद्ध में भी कुमाऊं के राजा लक्ष्मीचंद को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, अंतिम युद्ध 1605 ई. में हुआ, जिसमें कुमाऊं की सेना विजयी रही और लक्ष्मीचंद ने गढ़वाल पर अधिकार किया। इस विजय की स्मृति में कुमाऊं में 'खतड़वा' त्योहार मनाया जाता है।

तिब्बत के साथ संबंध

राजा मानशाह ने तिब्बत के पश्चिमी भाग पर भी अपना अधिकार स्थापित किया। उन्होंने काकुआं मोर के खिलाफ आक्रमण किया और उसे पराजित किया। इस विजय के बाद, उन्होंने तिब्बत के छपरांत प्रांत से सुंदर स्वर्ण कलशों को लूटा और उन्हें गौरी मठ में समर्पित किया। संधि के अनुसार, काकुआं मोर ने प्रति वर्ष सवा सेर सोना और एक चार-सिंह वाला भेड़ कर के रूप में गढ़वाल को दिया।

देवप्रयाग के शिलालेख

मानशाह के शासनकाल के दौरान, दो महत्वपूर्ण ताम्रपत्र शिलालेख प्राप्त हुए। पहला शिलालेख 1608 ई. में देवप्रयाग के क्षेत्रपाल मंदिर से मिला, और दूसरा 1611 ई. में रघुनाथ मंदिर से प्राप्त हुआ। ये शिलालेख मानशाह के शासनकाल की पुष्टि करते हैं और उनके द्वारा किए गए धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान को दर्शाते हैं।

जीतू बगड़वाल

मानशाह के समकालीन जीतू बगड़वाल भी एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थे। मानशाह ने जीतू बगड़वाल को भोट (तिब्बत) का फौजदार नियुक्त किया था। जीतू बगड़वाल की वीरता और निष्ठा की कहानियाँ गढ़वाल के लोककथाओं में आज भी सुनाई देती हैं।

निष्कर्ष

राजा मानशाह का राज्यकाल गढ़वाल के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण था। उनके शासनकाल में गढ़वाल ने न केवल कुमाऊं पर विजय प्राप्त की बल्कि तिब्बत के कुछ हिस्सों पर भी अपना अधिकार स्थापित किया। उनकी वीरता, प्रशासनिक क्षमता और सांस्कृतिक योगदानों ने गढ़वाल राज्य को समृद्ध और शक्तिशाली बनाया।

यह ब्लॉग पोस्ट राजा मानशाह के शासनकाल के विभिन्न पहलुओं को उजागर करता है और गढ़वाल के समृद्ध इतिहास की एक झलक प्रस्तुत करता है।

टिप्पणियाँ