रशुलांण दीबा | जय मां दीबा भगवती || जय मां दीबा भगवती (Rashulan Diba | Jai Maa Diba Bhagwati || Jai Maa Diba Bhagwati)
रशुलांण दीबा | जय मां दीबा भगवती || जय मां दीबा भगवती (Rashulan Diba | Jai Maa Diba Bhagwati || Jai Maa Diba Bhagwati)
जय मां दीबा भगवती |
रशुलन दीबा इस देवी के चमत्कार की कहानी पढ़कर आप भी हो जाओगे हैरान!
माँ रशुलन दीबा आज भी अपने अनोखे चमत्कार के लिए विख्यात है माता के मंदिर के इर्द गिर्द ऐसी शक्तियां हैं कि हर कोई हैरान हो जाता है। माँ रशुलन दीबा का ये मंदिर पौड़ी के पट्टी किमगडी गढ़ पोखरा ब्लॉक के झलपड़ी गावं के ऊपर घने जंगल से होते हुए रशुलन दीबा माता मंदिर पड़ता है।यदि आप भी दीबा माता के दर्शन को आना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले पौड़ी जिले के कोटद्वार शहर पहुँचना पड़ता है। कोटद्वार से निकलते हुए आपको अब सतपुली बाज़ार पहुँचना होता है इसके लिए बस और टेक्सी दोनों मिल जाती हैं रास्ते में घुमखाल, लेंसडॉन छावनी के मनमोहक रास्तों से गुजरना होता है।
इसके अलवा ऋषिकेश की और से आने वाला रास्ता जो देवप्रयाग होते हुए सतपुली पहुंचता है ये रास्ता तब के लिए है। जब आप ऋषिकेश से ऊपर की और आ रहे होंगे सतपुली से आपको चौबट्टाखाल गवानी आना पड़ता है। जहाँ से झालपड़ी गावं नजदीक पड़ता है झालपड़ी गावं से रास्ता यह करीब 15 किलोमीटर दूरी पर है।
झाल्पड़ी गावं से रास्ता जंगल के रास्ते होकर दुर्गम पहाड़ी से होकर माता के मंदिर पहुंचता है। जीवन का यह पल यादगार होता है लोग यहाँ का सफ़र रात में करते हैं क्योंकि माना जाता है की यहाँ से सूर्य भगवान के अद्दभुत, अकल्पनीय दर्शन होते हैं।
सुबह के 4 बजे सूर्योदय के दर्शन
इस जगह पर सुबह के 4 बजे सूर्योदय के दर्शन होते है। हिमालय और कैलाश पर्वत के बीच से जब सूरज निकलता है, तो वह तीन रंगों में अपना स्वरूप बदलता है भगवान सूर्य का यह रूप अनोखा होता है। जिसमे पहले लाल रंग, फिर केसरिया और अंत में चमकीले सुनहरे रंग में आता है। भगवान सूर्य के इस विलक्षण रूप को देखने के लिए लोग यहाँ रात को ही बसेरा लगा देते हैं। इतना ही नहीं माता रानी के आशीर्वाद से रात को यहाँ के जंगलों से आदमी अकेला भी गुजर जाता है।
गॉव से काफी दूर इस मंदिर में गावं ख़त्म होते ही आदमी को अपनी सुविधा पे जाना होता है। लोग यहाँ उपरी जगह पर खाने और रहने के इनजाम के साथ जाते हैं यहाँ पर मई और जून के महीने में जाना उचित माना जाता है। इन महीनों में भी यहाँ पर बड़ी कडाके की ठंड पड़ती है इसलिए अपने साथ कम्बल और गर्म कपड़ों की व्यवस्था के साथ जाना पड़ता है।
रशुलांण दीबा पूजा अर्चना
माता के मंदिर की लोग पूजा अर्चना करते हैं और नारियल और गुड यहाँ का प्रसाद होता है। माता के मंदिर में रशूली नाम के वृक्ष के पते में प्रसाद लेना शुभ माना जाता है। लेकिन इस पेड़ को लेकर एक मान्यता है कि इस पेड़ पर कभी हथियार नहीं चलाया जाता है। इसलिए लोग इस पेड़ की पत्तियों को हाथ से तोड़कर माता का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
मान्यता
मान्यता यह भी है कि जब बहुत साल पहले गढ़वाल पर गोरखाओं का आक्रमण हुआ था, तो माँ ने अपने भक्तों को आवाज लगा कर सचेत किया था कहा ये भी जाता है कि गोरखा इस मंदिर से वापिस लौट गए थे। उस समय में माता ने गोरखाओं को वापिस जाने के लिए कहा था।
धारणाओं के मुताबिक घुत्तू घनसाली के भूटिया और मर्छ्या जनजाति के लोग यहाँ माँ दीबा के दर्शन के लिए आते हैं जिनमे भूटिया जनजाति के लोग बकरियां चराने जब यहाँ आते हैं। तो माता का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते हैं क्योंकि जंगलों में रहकर वो माँ के नाम का सुमिरन करते हैं जिसकी वजह से रात रात जंगलों में वो सुरक्षित रहते हैं।
पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने इस मंदिर को पर्यटन से जोड़ने को आश्वासन दिया है। अब जल्दी ही मंदिर को पर्यटन से जोड़े जाने की कवायत तेज हो गयी हैं। माँ देवी की कृपा सब पर बनी रही यही मनोकामना हम करते हैं।
कुछ अन्य धारणाओं के अनुसार :
यहाँ के प्रसाद रसूली पेड़ के पत्ते हैं | बताया जाता है कि चौथान क्षेत्र से श्रीकोट बारात उसी रास्ते आयी थी जहा बर्तमान में माता का मंदिर है | और जो बारात वापसी में बर्फ़बारी में दब गयी थी वही रसूली के पेड़ है और उस समय बारातियों की संख्या के बराबर मनुष्यों की आकृति में पेड़ दिखे थे , उनमें से कोई ऐसा लगता था मानो कोई ढोल पकड़ा, कोई दमाऊं तो कुछ मानो नाच रहे हों के रूप में दिखाई दिये | जो कि अब भी उन्ही रसूली के पेड़ो में दिखती है इसलिए इन पेड़ो पर हथियार से काटने पर खून जैसा निकलता है | मंदिर के आस पास के पेड़ केवल भंडारी जाती के लोग ही काट सकते है यदि कोई अन्य लोग काटें तो पेड़ो से खून निकलता है।
चोपड़ा एवं श्रीकोट के भंडारी लोग आज भी पुराने मंदिर में ही पूजा करते है और रशूली के पत्तो से ही मंदिर की छत बनाते है |
मात्र एक गागर का पानी अनेकों श्रढालुओ की प्यास बुझा देता
जय मां दीबा भगवती |
रास्ते पर पानी के स्रोत से मात्र एक गागर (गगरी) पानी इस मन्दिर तक ले जाते हैं और मात्र एक गागर का पानी अनेकों श्रढालुओ की प्यास बुझा देता है और उसी जल से लोग भण्डारा भी करते हैं । गढ़वाली में कह सकते है कि इस गागर का पाणी ‘फारा’ होता है। और जिस गागर में पानी भरकर मंदिर तक ले जाया जाता है उसे पानी भरने के स्थान से मंदिर तक कही भी नीचे जमीन पर नहीं रखा जाता है सब श्रढालु पानी भरी गागर को एक एक कर अपने कंधे में रखकर मंदिर तक ले जाते है और मंदिर में भी उस गागर को एक ही जगह पर रखा जाता, उसको वहाँ से हिलाते तक नहीं है और मात्र एक गागर का पाणी अनेकों श्रढालुओ की प्यास बुझा देता है
- घुत्तू घनसाली के भूटिया और मर्छ्या जनजाति के लोग यहाँ अपनी बकरियां चराने के लिए आते थे और माँ दीबा के दर्शन कर आशीर्वाद लेना नहीं भूलते थे और माँ के नाम का सुमिरन करते रहते थे जिसकी वजह से वे कई रातों तक जंगलो में सुरक्षित रहते थे |
- बलि हेतु बकरों को रात को जहाँ से यात्रा की चढ़ाई शुरू होती है खुला छोड़ दिया जाता है और बकरे सुबह मंदिर तक अपने आप पहुँच जाते है |
- दीबा माँ भक्तो को सफ़ेद बालो वाली एक बूढी औरत के रूप में दर्शन दे चुकी है |
- दीबा माँ पाणीरौला वाले पानी के स्रोत (पंदेरे) में स्नान करने के लिए आती थी | इस पंदेरे में जूठा बर्तन, कपडे आदि नहीं धोये जाते है |
- यदि कोई किसान अपने बैलों को खेत में ज्यादा देर तक जुताई में रखता है तो दोपहर बाद दीबा माँ बैलो को खोलने के लिए आवाज देती थी |
- गाँव में दीबा माँ के नाम की एक सीमा बांध दी जाती थी जिसे गढ़वाली में (केर) कहते है | उस सीमा के अंदर यदि कोई अशुद्धी होती थी तो गाँव के आस पास बाघ दिखाई देने लगता है फिर कुन्ज और धूप बत्ती दिखाकर बाघ केर का एक चक्कर लगाकर चला जाता था |यदि कोई दर्शनार्थी के परिवार में मिर्त्यु या नये बच्चे के जन्म के कारण अछुता है ओर शुद्धीकरण नहीं हुआ है तो वह कितना भी प्रयास कर ले माँ के दर्शन नहीं कर पाता |
- यदि कोई दर्शनार्थी छोटा बच्चा, बुजुर्ग अवस्था या अस्वस्थ है और यात्रा कर रहा है तो उसे चढ़ाई चढने में किसी प्रकार की समस्या नहीं होती है |
- पहले यहाँ की यात्रा बहुत कम लोग करते थे और जो भी करते थे नियमबद्ध तरीके से करते थे | जब भी छेत्र के किसी गाँव में दीबा माँ की पूजाई होती थी तो पूरी जात के साथ नजदीक गाँवों के ज्यादातर लोग भी उसी समय यात्रा करते थे | उस समय संसाधनों की बहुत कमी थी | मोटर मार्ग केवल गवानी तक ही था तो लोग जहाँ से उनको नजदीक पड़ता था वही से चढाई शुरू कर लेते थे | कुछ लोग झलपाडी गावं के बजाय ड्वीला गाँव होते हुए भी यात्रा कर लेते थे | उस समय रुसैईदांग आखिरी पड़ाव था जहाँ पर यात्री अपना खाना, पीना और शौच कर अपने चप्पल वही पर छोड़ जाते थे और नंगे पाँव यात्रा करते थे | आज के समय मे बहुत दूर दूर से लोग यहाँ की यात्रा कर रहे है और यात्रियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढती जा रही है | यात्री अपना खाना पीना और चप्पले रुसैईदांग में न छोड़कर मंदिर के निकट बने शेड तक लेकर जा रहे है | साथ ही पहले किसी खास बर्ग के लोगों को यहाँ की यात्रा वर्जित थी पर आधिनिकता के दौर में सभी बर्ग के लोग यहाँ यात्रा कर रहें है |
- स्थानीय जन प्रतिनिधियों द्वारा इस मंदिर को पर्यटन विकास से जोड़ने कि कवायत तेज हो रही है जिससे क्षेत्र का विकास के साथ साथ स्थानीय लोगो को भी रोजगार कर अवसर मिलेगा | मंदिर तक पहुँचने हेतु सुगम परिवहन जिसमे पक्का रास्ता, रोप वे, बिजली, स्टीट लाइट्स, सोलर लाइट्स, विश्राम घर, यात्री शेड, पेयजल, शौचालय, होटल आदि की ब्यवस्था के साथ साथ पुलिस सुरक्षा, पर्यटन सूचना एवं सुविधा केंद्र, मोबाइल एवं इन्टरनेट नेटवर्क, ऑनलाइन टिकट बुकिंग, आदि हो जाने पर हर सृधालू हर सीजन में यहाँ की यात्रा कर सकेंगे | मंदिर से नजदीक बाजार गढकोट, चौबट्टाखाल और पोखड़ा में हैलीपैड हेतु उचित समतल मैदान है जहाँ से हैलीकॉप्टर सेवा शुरू हो सकती है | स्थानीय टूर ऑपरेटर के रूप में भी अच्छा रोजगार प्राप्त हो सकता है क्यूंकि आजकल तकनीकी युग में पर्यटक यात्री पैकेज टूर में जयादा रूचि रखते है और अपनी यात्रा की सारी जिम्मेदारी टूर ऑपरेटर पर छोड़ देते है टूर पैकेज में होने पर टूर ऑपरेटर रास्ते में पड़ने वाले सिद्धबलि मंदिर, दुर्गा माता मंदिर, लैंसडाउन, भैरवगढ़ी, ताडकेश्वर मंदिर, ज्वाल्पा देवी मंदिर, एकेश्वर महादेव, जन्दा देवी, साथ में जैसे चोंद्कोटगढ़, चेत्रगढ़, लंगूर गढ़ के भर्मण आदि को अपने पैकेज में शामिल कर सकते है ज्यादा दिन के टूर पैकेज से स्वाभाविक रूप से हर सम्बंधित ब्यवसाय ज्यादा तररकी करेंगे |
- इस सम्बद्ध में उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री श्री सतपाल महाराज जी ने भी इस मंदिर को पर्यटन से जोड़ने को आश्वासन दिया है।
माँ दीबा भगवती की कृपा सभी भक्तो पर बनी रहे |
मंदिर पहुचने के रास्ते :
झलपाडी गावं से
कोटद्वार रेलवे स्टेशन से दुगड्डा, गुमखाल, सतपुली, पाठीसैन, जन्दादेवी, नौगौंखाल, चौबट्टाखाल, पंचवटी से गवानी पहुँचाना पड़ता है |
ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से ब्यासी, तीन धारा, देवप्रयाग होते हुए सतपुली पहुंचना पड़ता है फिर सतपुली से पाठीसैन, जन्दादेवी, नौगौंखाल, चौबट्टाखाल, पंचवटी से गवानी पहुँचाना पड़ता है |
गवानी से एक विशेष लिंक रोड से कुटियाखाल, धारागाँव से होते हुए झलपाडी गावं तक पहुँचती है इसके बाद की यात्रा पैदल ही करनी पड़ती है
फरसारी – सत्यनगर मल्ला से :
कोटद्वार रेलवे स्टेशन से दुगड्डा , गुमखाल , सतपुली, रीठाखाल, संगलाकोटी, पोखड़ा, मटगल, बगडी, घनियाखाल, वेदीखाल, नंदाखेत, फरसारी से लिंक रोड गढ़कोट, ख्वाड, सत्यनगर तल्ला, सत्यनगर मल्ला पहुचना पड़ता है |
राम नगर, गर्जियादेवी, मोहन, चिमटाखाल, मर्चुला, सल्ड महादेव, खीरडीखाल, अदालीखाल, जड़ाऊंखांद, धुमाकोट, कोठिला, मैठाणाखाल, बीरोंखाल, पडिंडा, स्युंसी, बैजरो, फरसारी से लिंक रोड गढ़कोट, ख्वाड, सत्यनगर तल्ला, सत्यनगर मल्ला पहुचना पड़ता है |
फिर सत्यनगर मल्ला यात्रा पैदल ही करनी पड़ती है |
पोखड़ा गावं से :
कोटद्वार रेलवे स्टेशन से दुगड्डा , गुमखाल , सतपुली, रीठाखाल, संगलाकोटी, पोखड़ा, पहुचना पड़ता है| फिर पोखड़ा से पैदल यात्रा ही करनी पड़ती है |
माता काली / कालिका / महाकाली मंत्र आरती पूजा चालीसा इत्यधि
- माँ काली मंत्र को सिद्ध करने की सरल विधि (maan kaalee mantr ko siddh karane kee saral vidhi)
- काली मंत्र (Maa Kali mantra)
- माँ काली चालीसा का पाठ ! Maa Kali Chalisa Ka Paath
- काली अष्टोत्तर, काली मंत्र, मां काली के 108 मंत्र (Kali Ashtottara, Kali Mantra, 108 mantras of Maa Kali)
- महाकाली के क्रोध (wrath of mahakali)
- मां काली स्टेटस / मां काली स्टेटस 2 लाइन /माँ काली स्टेटस इन हिंदी -Maa Kali Status/Maa Kali Status 2 Line/Maa Kali Status in Hindi
- काली मां का संदेश मां काली स्टेटस -Kali Maa Message Maa Kali Status
- मां काली स्टेटस शायरी - माँ काली स्टेटस इन हिंदी - माँ काली स्टेटस (Maa Kali Status Shayari - Maa Kali Status in Hindi - Maa Kali Status)
- मां काली का बीज मंत्र (Beej Mantra of Maa Kali,)
- श्री महाकाली आरती | Shree Mahakali Aarti
- श्री भगवती स्तोत्र | श्री भगवती स्तोत्र (Shri Bhagwati Stotra Sri Bhagwati Stotra)
- श्री काली चालीसा (Shree Kali Chalisa)
- मां काली की आरती (Kali Mata Aarti)
- अम्बे माता आरती (Ambe Mata Aarti)
- माँ काली चालीसा का महत्व (Significance of Maa Kali Chalisa)
- मां काली की आरती / महाकाली माता आरती ( Maa Kali Ki Aarti Mahakali Mata Aarti)
- कालिंका माता मंत्र, कालिका-यी मंत्र, बीज मंत्र, महा काली मंत्र (Kalinka Mata Mantra, Kalika-Yi Mantra, Beej Mantra, Maha Kali Mantra)
पौड़ी गढ़वाल मंदिर (उत्तराखंड / उत्तराँचल / जय देव भूमि )Pauri Garhwal Temple (Uttarakhand / Uttarachal / Jai Dev Bhoomi)
- प्राचीन श्री सिद्धबली धाम कोटद्वार | हनुमान मंदिर | संकट मोचन (Ancient Shri Siddhabali Dham Kotdwar. Hanuman Temple crisis response)
- श्री सिद्धबली हनुमान मंदिर, गोरखनाथ और बजरंगबली की कहानी (Story of Shri Siddhabali Hanuman Temple, Gorakhnath and Bajrangbali)
- माँ राज राजेश्वरी मन्दिर Gaura Devi Temple Uttarakhand Devalgarh Pauri
- श्री राजराजेश्वरी सिद्धपीठ पौड़ी गढ़वाल (देवलगढ़ का उत्तराखण्ड) Shri Rajrajeshwari Siddhapeeth Pauri Garhwal (Dewalgarh of Uttarakhand)
- राहु मंदिर (दुनिया का एक मात्र राहु मंदिर ) पौड़ी गढ़वाल (Rahu Temple (The only Rahu temple in the world) Pauri Garhwal)
- कालिंका मंदिर गढ़वाल या अल्मोडा(Kalinka Mandir Garhwal or Almora)
- सिद्धपीठ मां भुवनेश्वरी मंदिर, चंद्रकूट (Sidhpeeth Maa Bhuvaneshwari Temple, Chandrakoot)
- जय माँ कालिंका! गढ़ और कुमाऊ देवी (Jai Maa Kalinka! Garh and Kumaon Devi)
- माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर(Maa Jwalpa Devi Temple) maa jwalpa devi mandir
- नागदेव मन्दिर पौड़ी गढ़वाल (Nagdev Temple Pauri Garhwal)
- कंडोलिया देवता मंदिर, पौडी गढ़वाल (कंडोलिया मंदिर) Kandolia Devta Temple, Pauri Garhwal (Kandolia Temple)
- श्री कोटेश्वर महादेव मंदिर (महाबगढ़ महादेव) पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड (Shri Koteshwar Mahadev Temple (Mahabgarh Mahadev) Pauri Garhwal Uttarakhand)
- श्री कमलेश्वर महादेव मंदिर, श्रीनगर (Shri Kamleshwar Mahadev Temple, Srinagar Uttarakhand)
- जय रशुलांण दीबा माँ (Jai Rashulan Diba Maa)
- दीबा माँ मंदिर (माँ रशुलांण (रंशुली) दीबा) (Diba Maa Temple (Maa Rashulan (Ranshuli) Diba))
- रशुलांण दीबा | जय मां दीबा भगवती || जय मां दीबा भगवती (Rashulan Diba | Jai Maa Diba Bhagwati || Jai Maa Diba Bhagwati)
- नीलकंठ महादेव मंदिर,पौड़ी गढ़वाल,उत्तराखंड (Neelkanth Mahadev Temple in Rishikesh Uttarakhand)
- नीलकंठ महादेव मंदिर, ऋषिकेश (Neelkanth Mahadev, Rishikesh)
- दीबा देवी मंदिर पौड़ी गढ़वाल (Diba Devi Temple Pauri Garhwal )
- दीबा देवी मंदिर पौड़ी गढ़वाल(उत्तराखंड) (Diba Devi Temple Pauri Garhwal (Uttarakhand))
- माँ धारी देवी पुराने मंदिर की फोटो /Photo of Maa Dhari Devi old temple
- माँ धारी देवी मंदिर श्रीनगर पौड़ी गढ़वाल (Maa Dhari Devi Temple Srinagar Pauri Garhwal)
- माँ धारी देवी मंदिर श्रीनगर पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड (Maa Dhari Devi Temple Srinagar Pauri Garhwal Uttarakhand)
- माँ धारी देवी मंदिर श्रीनगर पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड (Maa Dhari Devi Temple Srinagar Pauri Garhwal Uttarakhand)
- दुर्गा देवी मंदिर: कोटद्वार - पौड़ी रोड, उत्तराखंड (Durga Devi temple: Kotwara - Pauri road, Uttarakhand)
- दुर्गा देवी मंदिर कोटद्वार पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड (Durga Devi Temple Kotdwar Pauri Garhwal Uttarakhand)
- तारकेश्वर महादेव मंदिर (Tarakeshwar Mahadev Temple Pauri Garhwal)
- तारकेश्वर महादेव मंदिर पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड (Tarakeshwar Mahadev Temple Pauri Garhwal Uttarakhand)
- बिनसर महादेव मंदिर (Binsar Mahadev Temple Pauri Garhwal)
- बिनसर महादेव मंदिर पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड (Binsar Mahadev Temple Pauri Garhwal Uttarakhand)
- क्यूंकालेश्वर/कंकालेश्वर महादेव मंदिर पौड़ी गढ़वाल (Kyunkaleshwar/Kankaleshwar Mahadev Temple Pauri Garhwal)
- क्यूंकालेश्वर मंदिर (Kyunkaleshwar Temple, Pauri Garhwal)
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें