रशुलांण दीबा | जय मां दीबा भगवती || जय मां दीबा भगवती (Rashulan Diba | Jai Maa Diba Bhagwati || Jai Maa Diba Bhagwati)
रशुलांण दीबा | जय मां दीबा भगवती || जय मां दीबा भगवती (Rashulan Diba | Jai Maa Diba Bhagwati || Jai Maa Diba Bhagwati)
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जय मां दीबा भगवती |
सुबह के 4 बजे सूर्योदय के दर्शन
रशुलांण दीबा पूजा अर्चना
कुछ अन्य धारणाओं के अनुसार :
मात्र एक गागर का पानी अनेकों श्रढालुओ की प्यास बुझा देता
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जय मां दीबा भगवती |
- घुत्तू घनसाली के भूटिया और मर्छ्या जनजाति के लोग यहाँ अपनी बकरियां चराने के लिए आते थे और माँ दीबा के दर्शन कर आशीर्वाद लेना नहीं भूलते थे और माँ के नाम का सुमिरन करते रहते थे जिसकी वजह से वे कई रातों तक जंगलो में सुरक्षित रहते थे |
- बलि हेतु बकरों को रात को जहाँ से यात्रा की चढ़ाई शुरू होती है खुला छोड़ दिया जाता है और बकरे सुबह मंदिर तक अपने आप पहुँच जाते है |
- दीबा माँ भक्तो को सफ़ेद बालो वाली एक बूढी औरत के रूप में दर्शन दे चुकी है |
- दीबा माँ पाणीरौला वाले पानी के स्रोत (पंदेरे) में स्नान करने के लिए आती थी | इस पंदेरे में जूठा बर्तन, कपडे आदि नहीं धोये जाते है |
- यदि कोई किसान अपने बैलों को खेत में ज्यादा देर तक जुताई में रखता है तो दोपहर बाद दीबा माँ बैलो को खोलने के लिए आवाज देती थी |
- गाँव में दीबा माँ के नाम की एक सीमा बांध दी जाती थी जिसे गढ़वाली में (केर) कहते है | उस सीमा के अंदर यदि कोई अशुद्धी होती थी तो गाँव के आस पास बाघ दिखाई देने लगता है फिर कुन्ज और धूप बत्ती दिखाकर बाघ केर का एक चक्कर लगाकर चला जाता था |यदि कोई दर्शनार्थी के परिवार में मिर्त्यु या नये बच्चे के जन्म के कारण अछुता है ओर शुद्धीकरण नहीं हुआ है तो वह कितना भी प्रयास कर ले माँ के दर्शन नहीं कर पाता |
- यदि कोई दर्शनार्थी छोटा बच्चा, बुजुर्ग अवस्था या अस्वस्थ है और यात्रा कर रहा है तो उसे चढ़ाई चढने में किसी प्रकार की समस्या नहीं होती है |
- पहले यहाँ की यात्रा बहुत कम लोग करते थे और जो भी करते थे नियमबद्ध तरीके से करते थे | जब भी छेत्र के किसी गाँव में दीबा माँ की पूजाई होती थी तो पूरी जात के साथ नजदीक गाँवों के ज्यादातर लोग भी उसी समय यात्रा करते थे | उस समय संसाधनों की बहुत कमी थी | मोटर मार्ग केवल गवानी तक ही था तो लोग जहाँ से उनको नजदीक पड़ता था वही से चढाई शुरू कर लेते थे | कुछ लोग झलपाडी गावं के बजाय ड्वीला गाँव होते हुए भी यात्रा कर लेते थे | उस समय रुसैईदांग आखिरी पड़ाव था जहाँ पर यात्री अपना खाना, पीना और शौच कर अपने चप्पल वही पर छोड़ जाते थे और नंगे पाँव यात्रा करते थे | आज के समय मे बहुत दूर दूर से लोग यहाँ की यात्रा कर रहे है और यात्रियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढती जा रही है | यात्री अपना खाना पीना और चप्पले रुसैईदांग में न छोड़कर मंदिर के निकट बने शेड तक लेकर जा रहे है | साथ ही पहले किसी खास बर्ग के लोगों को यहाँ की यात्रा वर्जित थी पर आधिनिकता के दौर में सभी बर्ग के लोग यहाँ यात्रा कर रहें है |
- स्थानीय जन प्रतिनिधियों द्वारा इस मंदिर को पर्यटन विकास से जोड़ने कि कवायत तेज हो रही है जिससे क्षेत्र का विकास के साथ साथ स्थानीय लोगो को भी रोजगार कर अवसर मिलेगा | मंदिर तक पहुँचने हेतु सुगम परिवहन जिसमे पक्का रास्ता, रोप वे, बिजली, स्टीट लाइट्स, सोलर लाइट्स, विश्राम घर, यात्री शेड, पेयजल, शौचालय, होटल आदि की ब्यवस्था के साथ साथ पुलिस सुरक्षा, पर्यटन सूचना एवं सुविधा केंद्र, मोबाइल एवं इन्टरनेट नेटवर्क, ऑनलाइन टिकट बुकिंग, आदि हो जाने पर हर सृधालू हर सीजन में यहाँ की यात्रा कर सकेंगे | मंदिर से नजदीक बाजार गढकोट, चौबट्टाखाल और पोखड़ा में हैलीपैड हेतु उचित समतल मैदान है जहाँ से हैलीकॉप्टर सेवा शुरू हो सकती है | स्थानीय टूर ऑपरेटर के रूप में भी अच्छा रोजगार प्राप्त हो सकता है क्यूंकि आजकल तकनीकी युग में पर्यटक यात्री पैकेज टूर में जयादा रूचि रखते है और अपनी यात्रा की सारी जिम्मेदारी टूर ऑपरेटर पर छोड़ देते है टूर पैकेज में होने पर टूर ऑपरेटर रास्ते में पड़ने वाले सिद्धबलि मंदिर, दुर्गा माता मंदिर, लैंसडाउन, भैरवगढ़ी, ताडकेश्वर मंदिर, ज्वाल्पा देवी मंदिर, एकेश्वर महादेव, जन्दा देवी, साथ में जैसे चोंद्कोटगढ़, चेत्रगढ़, लंगूर गढ़ के भर्मण आदि को अपने पैकेज में शामिल कर सकते है ज्यादा दिन के टूर पैकेज से स्वाभाविक रूप से हर सम्बंधित ब्यवसाय ज्यादा तररकी करेंगे |
- इस सम्बद्ध में उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री श्री सतपाल महाराज जी ने भी इस मंदिर को पर्यटन से जोड़ने को आश्वासन दिया है।
माँ दीबा भगवती की कृपा सभी भक्तो पर बनी रहे |
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FQCs (Frequently Asked Questions) हैं जो "रशुलांण दीबा" के बारे में उपयोगकर्ताओं द्वारा अक्सर पूछे जा सकते हैं:
1. रशुलांण दीबा माता का मंदिर कहाँ स्थित है?
रशुलांण दीबा माता का मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी जिले के पट्टी किमगडी गढ़ पोखरा ब्लॉक के झलपड़ी गांव के ऊपर स्थित है। यह मंदिर घने जंगलों से होते हुए पहाड़ी रास्तों पर पहुंचा जा सकता है।
2. रशुलांण दीबा माता के दर्शन के लिए जाने का सबसे अच्छा समय कब है?
रशुलांण दीबा माता के दर्शन के लिए सबसे अच्छा समय मई और जून के महीने होते हैं। इन महीनों में यहां ठंड काफी होती है, इसलिए गर्म कपड़े और कम्बल साथ लेकर जाना चाहिए।
3. रशुलांण दीबा माता के दर्शन का रास्ता कैसे तय करें?
रशुलांण दीबा माता के दर्शन के लिए आपको पहले कोटद्वार शहर पहुंचना होगा, फिर वहां से सतपुली बाजार और उसके बाद चौबट्टाखाल, गवानी, और झलपड़ी गांव तक जाना होता है। इसके बाद यात्रा पैदल ही करनी पड़ती है।
4. क्या रशुलांण दीबा माता के मंदिर में कोई विशेष धार्मिक मान्यता है?
हां, रशुलांण दीबा माता के मंदिर से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएं हैं। माना जाता है कि जब गोरखाओं ने गढ़वाल पर आक्रमण किया था, तब माता ने अपने भक्तों को सचेत किया और गोरखाओं को वापस लौटा दिया था। इसके अलावा, रसूली पेड़ से जुड़े कई चमत्कारी किस्से भी प्रचलित हैं।
5. माता के मंदिर में प्रसाद के रूप में क्या चढ़ाया जाता है?
माता के मंदिर में नारियल और गुड़ प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाते हैं। इसके अलावा, रसूली पेड़ की पत्तियों को भी शुभ माना जाता है, जो माता का प्रसाद लेने के लिए उपयोग की जाती हैं।
6. क्या इस मंदिर में चढ़ाई कठिन है?
मंदिर तक पहुँचने के लिए चढ़ाई की आवश्यकता होती है, लेकिन यदि कोई भक्त बीमार है, छोटा बच्चा है या बुजुर्ग है, तो भी वह बिना किसी परेशानी के चढ़ाई कर सकता है। यहां यात्रा करना सुरक्षित है, और माता के आशीर्वाद से सभी भक्त सुरक्षित रहते हैं।
7. रशुलांण दीबा माता के मंदिर में पानी की विशेषता क्या है?
मंदिर तक पहुँचने के रास्ते में एक पानी का स्रोत है, जहां से एक गागर पानी भरकर भक्त मंदिर तक लाते हैं। इस पानी से कई लोगों की प्यास बुझ जाती है, और इसे 'फारा' कहा जाता है। यह जल बहुत ही पवित्र माना जाता है और सभी भक्त इसे ध्यानपूर्वक ले जाते हैं।
8. क्या रशुलांण दीबा माता के मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है?
जी हां, उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री ने रशुलांण दीबा माता के मंदिर को पर्यटन स्थल से जोड़ने का आश्वासन दिया है। इसके लिए मंदिर तक सुगम परिवहन, रोपवे, शौचालय, विश्राम घर, सोलर लाइट्स, और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था की जा रही है।
9. क्या इस मंदिर में बकरियों को बलि दी जाती है?
हां, कुछ मान्यताओं के अनुसार यहां बकरियों को बलि दी जाती है। बकरियों को रात में यात्रा की चढ़ाई शुरू होते ही खुले में छोड़ दिया जाता है, और ये बकरियां स्वाभाविक रूप से सुबह मंदिर तक पहुँच जाती हैं।
10. क्या रशुलांण दीबा माता भक्तों को दर्शन देती हैं?
हां, कई भक्तों ने बताया है कि दीबा माता उन्हें सफेद बालों वाली एक बुज़ुर्ग महिला के रूप में दर्शन देती हैं। यह एक चमत्कारी अनुभव होता है, जो भक्तों के मन को शांति और आशीर्वाद से भर देता है।
जय माँ दीबा भगवती!
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