सिद्ध गणपति मंदिर मंडी हिमाचल प्रदेश (Siddha Ganpati Temple Mandi Himachal Pradesh)
यह मंदिर छोटी काशी के नाम से विख्यात हिमाचल के मंडी जिले के एक कोने पर स्थित है। उत्तरी भारत का ये इकलौता सिद्ध मंदिर है।
सिद्ध गणपति मंदिर मंडी |
इस मंदिर में जो भगवान गणेश की मूर्ति है उसे 1686 ई में मंडी रियासत के तत्कालीन राजा सिद्ध सेन ने स्थापित करवाया था। राजा तंत्र विद्या में काफी रूचि रखते थे इसलिए उन्होंने इस मूर्ति की सिद्धि करवाई और इसे और ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए तांत्रिक शक्तियों से परिपूर्ण किया। बताया जाता है कि पश्चिम बंगाल की तरफ भगवान गणेश के ऐसे अनेकों मंदिर विराजमान हैं लेकिन उत्तरी भारत में यह इकलौता है। इस मंदिर में भगवान गणेश की जो मूर्ति है उस पर सिंधूर से लेप किया जाता है और मूर्ति के गले में हर वक्त नाग देवता भी विराजमान रहते हैं। सांप का तंत्र विद्या में पर्याप्त महत्व है और इसी के चलते जब राजा ने इस मूर्ति का निर्माण करवाया तो इसमें नाग देवता की छवि को भी उभारा गया, जिसके बाद इसकी सिद्धि करके इसे सिद्ध गणपति का नाम दिया गया। जानकारी के मुताबिक मंडी में सेन वंशज पश्चिम बंगाल से आए थे और इसी वंशज के राजा सिद्धसेन ने एक अन्य राज्य पर जीत का परचम लहराने की मनोकामना मांगी थी।
सिद्ध गणपति मंदिर मंडी |
जब उनकी मनोकामना पूरी हुई तो उसके बाद उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया। तांत्रिक प्रभाव वाले इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां पर लगातार 21 बुधवार आकर पूजा अर्चना करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
सिद्ध गणपति मंदिर क्षेत्रीय अस्पताल रोड, राष्ट्रीय राजमार्ग 70, मंडी, हिमाचल प्रदेश के पास स्थित है। जैसा कि नाम से पता चलता है यह मंदिर भगवान गणेश को समर्पित है जो भगवान शिव के पुत्र हैं। मंदिर का निर्माण तत्कालीन मंडी रियासत के शासक द्वारा किया गया था, जिनका नाम राजा सिद्धि सेन था। जबकि सिद्धि सेन ने मंदिर का निर्माण कराया था, इसलिए मंदिर को राजा के नाम से जाना जाता था।
सिद्ध गणपति मंदिर मंडी |
किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले हर साल अगस्त/सितंबर महीने की चतुर्थी पर भगवान गणेश को याद किया जाता है। सभी भक्त 10 दिनों तक भगवान गणेश की पूजा करते हैं और मंडी में सिद्ध गणपति के मंदिर में एक विशेष मेला आयोजित किया जाता है। साथ ही मंदिर में हर दिन सभी भक्तों के बीच प्रसाद भी वितरित किया जाता है। 10वें दिन की शाम को, बड़े उत्सव (संगीत और नृत्य के साथ) के साथ भगवान गणेश की मूर्ति (एक दिव्य आत्मा को व्यक्त करने वाली छवि) को पानी में (विक्टोरिया ब्रिज के नीचे ब्यास नदी में) विसर्जित कर दिया जाता है। भगवान की मूर्ति को पानी में विसर्जित करने के इस विशेष अवसर को गणपति विसर्जन के रूप में जाना जाता है। राज्य से 1000 से अधिक श्रद्धालु और आगंतुक इस विशेष अवसर को देखने, आनंद लेने और जश्न मनाने के लिए आते हैं। मंडी के स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं का मानना है कि इस गणपति विसर्जन के बाद भगवान अपने घर चले गए हैं.
मंडी जिले में आपको हजारों पुराने मंदिर और नए मंदिर मिलेंगे । मंडी के लोग इस बात पर गर्व करते हैं कि जहां बनारस ( काशी ) में 80 मंदिर हैं, वहीं मंडी में 81 मंदिर हैं। मंडी अपने 81 पुराने पत्थर के मंदिरों के लिए जाना जाता है और इसे अक्सर 'हिमाचल का वाराणसी' कहा जाता है। मंडी को 'पहाड़ियों की काशी' या ' छोटी काशी ' के रूप में भी जाना जाता है। शहर में पुराने महलों के अवशेष और उल्लेखनीय उदाहरण हैं। मंदिरों के लिए औपनिवेशिक वास्तुकला । भूतनाथ , त्रिलोकीनाथ , पंचवक्त्र और श्यामकाली के मंदिर अधिक प्रसिद्ध हैं। मंडी में सप्ताह भर चलने वाला अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्रि मेला हर साल क्षेत्र का प्रमुख आकर्षण है।
- मंडी (नीरज शर्मा): इन दिनों देश भर में गणेश उत्सव की धूम देखने को मिल रही है। जगह-जगह भगवान गणेश की महिमाओं का गुणगान हो रहा है। तो चलिए हम आज आपको एक ऐसे गणेश मंदिर के बारे में बताते हैं जो तांत्रिक शक्तियों से परिपूर्ण हैं। बताया जा रहा है कि छोटी काशी के नाम से विख्यात हिमाचल के मंडी जिले के एक कोने पर स्थित है। उत्तरी भारत का ये इकलौता सिद्ध मंदिर है। पहले आपको बताते हैं कि इसे उत्तरी भारत का इकलौता सिद्ध गणपति मंदिर क्यों कहते हैं।
- इस मंदिर में जो भगवान गणेश की मूर्ति है उसे 1686 ई में मंडी रियासत के तत्कालीन राजा सिद्ध सेन ने स्थापित करवाया था। राजा तंत्र विद्या में काफी रूचि रखते थे इसलिए उन्होंने इस मूर्ति की सिद्धि करवाई और इसे और ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए तांत्रिक शक्तियों से परिपूर्ण किया। बताया जाता है कि पश्चिम बंगाल की तरफ भगवान गणेश के ऐसे अनेकों मंदिर विराजमान हैं लेकिन उत्तरी भारत में यह इकलौता है। इस मंदिर में भगवान गणेश की जो मूर्ति है उस पर सिंधूर से लेप किया जाता है और मूर्ति के गले में हर वक्त नाग देवता भी विराजमान रहते हैं।
- मंदिर के इतिहास पर किताब लिख चुके पूर्व विधायक दीनानाथ शास्त्री बताते हैं कि सांप का तंत्र विद्या में पर्याप्त महत्व है और इसी के चलते जब राजा ने इस मूर्ति का निर्माण करवाया तो इसमें नाग देवता की छवि को भी उभारा गया, जिसके बाद इसकी सिद्धि करके इसे सिद्ध गणपति का नाम दिया गया। जानकारी के मुताबिक मंडी में सेन वंशज पश्चिम बंगाल से आए थे और इसी वंशज के राजा सिद्धसेन ने एक अन्य राज्य पर जीत का परचम लहराने की मनोकामना मांगी थी।
- जब उनकी मनोकामना पूरी हुई तो उसके बाद उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया। तांत्रिक प्रभाव वाले इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां पर लगातार 21 बुधवार आकर पूजा अर्चना करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। मंडी जिला के लोगों की इस मंदिर के प्रति अटूट आस्था है और यहां पर वर्षों से गणेश उत्सव को हर्षोल्लास से मनाने की परंपरा रही है। गणेश उत्सव के दौरान प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर मंत्री तक इस मंदिर में आना नहीं भूलते।
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