सिद्धपीठ मां भुवनेश्वरी मंदिर, चंद्रकूट (Sidhpeeth Maa Bhuvaneshwari Temple, Chandrakoot)

सिद्धपीठ मां भुवनेश्वरी मंदिर, चंद्रकूट (Sidhpeeth Maa Bhuvaneshwari Temple, Chandrakoot)

उत्तराखंड में भुवनेश्वरी शक्तिपीठ पहला ऐसा मंदिर है, जहां माता रानी का सामूहिक पूजन उपासना अनेक ब्रहमाचारियों के द्वारा प्रतिदिन  होती है। इसके अलावा इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां देवी की श्रृंग के रूप में पूजा होती है।
सिद्धपीठ मां भुवनेश्वरी मंदिर, चंद्रकूट

स्कन्द पुराण 

        चन्द्रकूट स्थिते देवी भवानी भयमोचनी।
        नमः शिवायै शान्ताये शांकरी भुवनेश्वरी ।।
कोट ब्लाक  में सीता माता की पवित्र  धरती पर चन्द्रकूट नामक पर्वत की चोटी पर आदि शक्ति मां भुवनेश्वरी का मंदिर स्थित है। इस चोटी से दूर तक के क्षेत्र ऐसे नजर आते हैं जैसे जगत की महारानी ऊंचे सिंहासन पर बैठ कर न्याय कर रही हों। इस मंदिर की कई विशेषताएं हैं।
सिद्धपीठ मां भुवनेश्वरी मंदिर, चंद्रकूट
  1. यहां श्रृंग की पूजा होती है और कहा जाता है कि यह दुनियां का अंतिम छोर है। मंदिर में पहाड़ की प्राचीन परंपराएं वर्तमान में भी विद्यमान हैं। इस मंदिर में नित्य धूयेल होती है, यानि ढोल और दमाऊ के साथ देवी की दोपहर में आरती होती है। 
  2. ढोल-दमाऊ व शंख-घंटी तथा ब्रहमाचारियों व असंख्य श्रध्दालुओं  के साथ मंदिर की 7-9 परिक्रमाएं होती है। विषम संख्या में परिक्रमा में स्थानीय लोगों की भी भीड़ जुटती है। स्कंध पुराण में उल्लेख आया है कि ब्रहमा के मानस पुत्र दक्ष प्रजापति के यज्ञ में पार्वती का शरीर शांत होने पर शिव ने हरिद्वार कनखल में प्रजापति को सबक सिखाया। पार्वती के सती हो जाने पर उनका जला शरीर लेकर वे आकाश मार्ग से गुजरे और तब विष्णु ने जले शव के 51 टुकड़े कर दिए। इसके बाद शिव ने इस पर्वत पर विश्राम किया। 
  3. शरद व चैत्र के नवरात्र पर यहां धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही पूजा अर्चना व देवी स्तुति में माहौल आध्यात्म से सराबोर होता है। बुधवार को नवमी तिथि पर यहां विशेष पूजा अर्चना के साथ ही श्रद्धालुओं ने सुख एवं शांति की कामना की। भुवनेश्वरी शक्ति पीठ एक बार पहुंचने वाला बार-बार आता है।
  4. इस मन्दिर के मूल पुजारी जुयाल परिवार के हैं पर नवरात्री पर्व हो या अन्य धार्मिक अनुष्ठान समितियों तथा स्थानीय लोगो का पूर्ण सहयोग माता रानी के प्रति समर्पित होता है।
सिद्धपीठ मां भुवनेश्वरी मंदिर, चंद्रकूट


सिद्धपीठ मां भुवनेश्वरी मंदिर, चंद्रकूट

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सिद्धपीठ मां भुवनेश्वरी मंदिर, चंद्रकूट के लिए FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल):

प्रश्न 1: सिद्धपीठ मां भुवनेश्वरी मंदिर कहाँ स्थित है?
उत्तर: सिद्धपीठ मां भुवनेश्वरी मंदिर उत्तराखंड के कोट ब्लॉक में चंद्रकूट पर्वत की चोटी पर स्थित है।

प्रश्न 2: इस मंदिर की विशेषता क्या है?
उत्तर: इस मंदिर में देवी भुवनेश्वरी की पूजा श्रृंग के रूप में की जाती है। यहां नित्य ढोल-दमाऊ के साथ देवी की आरती और धूयेल होती है।

प्रश्न 3: यहां कौन-कौन से धार्मिक आयोजन होते हैं?
उत्तर: शरद और चैत्र नवरात्र के दौरान यहां विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। साथ ही हर बुधवार को नवमी तिथि पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।

प्रश्न 4: सिद्धपीठ मां भुवनेश्वरी मंदिर का पौराणिक महत्व क्या है?
उत्तर: स्कंध पुराण के अनुसार, पार्वती के सती होने के बाद भगवान शिव ने इस पर्वत पर विश्राम किया था। यह स्थान पवित्र और दिव्य शक्तियों से परिपूर्ण है।

प्रश्न 5: इस मंदिर में परिक्रमा का क्या महत्व है?
उत्तर: मंदिर में 7-9 बार विषम संख्या में परिक्रमा की जाती है। परिक्रमा के दौरान ढोल-दमाऊ, शंख-घंटी और ब्रह्मचारियों के साथ श्रद्धालु शामिल होते हैं।

प्रश्न 6: क्या यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कोई विशेष नियम हैं?
उत्तर: मंदिर में आने वाले श्रद्धालु धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान बड़ी संख्या में लोग देवी की आराधना के लिए आते हैं।

प्रश्न 7: इस मंदिर के पुजारी कौन हैं?
उत्तर: इस मंदिर के मूल पुजारी जुयाल परिवार के हैं। साथ ही, नवरात्रि और अन्य अनुष्ठानों में समितियों और स्थानीय लोगों का पूर्ण सहयोग होता है।

प्रश्न 8: इस मंदिर का इतिहास क्या है?
उत्तर: यह स्थान आदिशक्ति मां भुवनेश्वरी का शक्तिपीठ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने सती के शरीर के 51 टुकड़े किए थे, जिसमें से एक टुकड़ा यहां गिरा था।

प्रश्न 9: इस मंदिर में क्या खास परंपराएं हैं?
उत्तर: मंदिर में पहाड़ों की प्राचीन परंपराएं आज भी विद्यमान हैं। यहां देवी की नित्य आरती, धूयेल और विशेष पूजा विधियां आयोजित की जाती हैं।

प्रश्न 10: यहां कौन-कौन से पर्व मनाए जाते हैं?
उत्तर: शरद और चैत्र नवरात्रि के अलावा, अन्य प्रमुख हिंदू त्योहारों पर भी यहां भव्य पूजा और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं।

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