उत्तराखंड का लोक पर्व: घी संक्रांति (घी त्यार) - Folk Festival of Uttarakhand: Ghee Sankranti (Ghee Tyar)

उत्तराखंड का लोक पर्व: घी संक्रांति (घी त्यार)

उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, की संस्कृति में परंपराओं और लोकपर्वों का विशेष महत्व है। यहां के पर्व न केवल धार्मिक आस्था से जुड़े होते हैं, बल्कि इनके पीछे स्वास्थ्य, कृषि, और पारिवारिक संबंधों को सुदृढ़ करने की भी मंशा होती है। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण पर्व है घी संक्रांति जिसे घी त्यार भी कहा जाता है।

उत्तराखंड का लोक पर्व: घी संक्रांति (घी त्यार)

घी त्यार का महत्व और मान्यताएँ

घी संक्रांति के दिन घी खाना उत्तराखंड की एक महत्वपूर्ण परंपरा है। लोक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति इस दिन घी का सेवन नहीं करता, उसे अगले जन्म में घोंघा (गनेल) बनना पड़ता है। इसलिए, इस दिन भोजन के साथ घी का सेवन अनिवार्य माना जाता है। घी के साथ बने विभिन्न पकवानों को इस पर्व का अभिन्न अंग माना जाता है।

बुजुर्ग इस दिन छोटे बच्चों के सिर पर घी रखते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं, "जी राये जागी राये" (अर्थात स्वस्थ और दीर्घायु बने रहें)। उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों में घुटनों और कोहनी पर भी घी लगाया जाता है, जो आयुर्वेद के अनुसार स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है।

पौराणिक और आयुर्वेदिक महत्व

घी संक्रांति के दिन घी के सेवन से विभिन्न प्रकार के लाभ मिलते हैं, जो पौराणिक और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माने जाते हैं:

  1. ग्रहों के अशुभ प्रभाव से सुरक्षा: ऐसा माना जाता है कि इस दिन घी का सेवन करने से राहु-केतु जैसे ग्रहों के अशुभ प्रभावों से रक्षा होती है।

  2. त्वचा की रक्षा: घी को शरीर पर लगाने से बरसाती बीमारियों से त्वचा की रक्षा होती है। सिर में घी लगाने से सिर की खुश्की दूर होती है और मानसिक शांति मिलती है।

  3. स्वास्थ्य लाभ: घी का सेवन करने से कफ, पित्त दोष दूर होते हैं और शरीर बलिष्ठ बनता है। इसके अलावा, घी संक्रांति के दिन घी का सेवन करने से बुद्धि तीव्र होती है और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है।

ओलग देने की परंपरा

घी संक्रांति के दिन उत्तराखंड में ओलग देने की परंपरा है, जिसमें दूध, दही, फल, और सब्जियाँ उपहार स्वरूप एक-दूसरे को दी जाती हैं। यह परंपरा चंद राजाओं के समय से चली आ रही है, जब भूमिहीनों और समाज के वरिष्ठ लोगों को उपहार दिए जाते थे।

उपहारों में काठ के बर्तन, जिन्हें स्थानीय भाषा में ठेकी कहते हैं, में दही या दूध और अरबी के पत्ते, मौसमी सब्जियाँ, और फल शामिल होते हैं। ये उपहार पहले कुल देवताओं को अर्पित किए जाते हैं, फिर गाँव के प्रतिष्ठित लोगों और रिश्तेदारों को भेंट किए जाते हैं। इस परंपरा के कारण इस पर्व को ओलगिया त्यौहार या ओगी त्यार भी कहा जाता है।

घी त्यार के पारंपरिक पकवान

घी संक्रांति के दिन उत्तराखंड के पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं। इस दिन पूरी, बड़े, अरबी के पत्तों की सब्जी, खीर, पुए, और बेडू रोटी जैसे पकवान बनाए जाते हैं। बेडू रोटी को आटे में उड़द की पिसी हुई दाल मिलाकर बनाया जाता है। इस समय पहाड़ी खीरे का भी प्रचुर मात्रा में उपयोग होता है, और इस अवसर पर पहाड़ी खीरे का रायता भी विशेष रूप से तैयार किया जाता है।

उत्तराखंड का लोक पर्व: घी संक्रांति (घी त्यार)

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