वापसी का सफर (A Poem on Returning to Roots)

वापसी का सफर
(A Poem on Returning to Roots)


हमारे बुज़ुर्ग हमसे थे वैज्ञानिक रूप से बहुत आगे,

थक कर लौट आना पड़ा, उनकी राह पर चलने के बारे में सोचते हैं हम अब समझ कर।

मिट्टी के बर्तनों से स्टील और प्लास्टिक तक,
फिर कैंसर के खौफ में, दोबारा मिट्टी के बर्तन ले आते हैं हम।

अंगूठाछाप से दस्तखत पर,
फिर अंगूठाछाप की स्कैनिंग में लौट आते हैं हम।

फटे हुए कपड़े से साफ सुथरे, प्रेस किए कपड़े,
फैशन के नाम पर, अब अपनी पैंटें फाड़ते हैं हम।

सूती से टैरीलीन, टैरीकॉट तक की यात्रा,
फिर सूती कपड़ों की ओर वापसी की ओर बढ़ते हैं हम।

ज़िंदगी की मेहनत से थक कर पढ़ना-लिखना,
IIM MBA के बाद आर्गेनिक खेती पर पसीना बहाते हैं हम।

क़ुदरती से प्रोसेस्ड फूड तक का सफर,
अब बीमारियों से बचने के लिए, क़ुदरती भोजन की ओर लौटते हैं हम।

पुरानी चीज़ों को नकारकर ब्रांडेड पर,
फिर जी भर जाने पर, पुरानी चीज़ों की ओर लौटते हैं हम।

बच्चों को इंफेक्शन से डराकर मिट्टी में न खेलने देना,
अब घर में बंद कर फिसड्डी बना देना, और फिर इम्यूनिटी के नाम पर मिट्टी में खेलने देना।

गांव, जंगल से डिस्को और चमक-धमक की ओर,
अब मन की शांति और स्वास्थ्य के लिए, शहर से जंगल की ओर लौटते हैं हम।

इससे निष्कर्ष यही निकलता है कि टेक्नोलॉजी ने जो दिया,
उससे बेहतर तो प्रकृति ने पहले से दे रखा था,
सूर्य पूजा की परंपरा ही इसका प्रमाण है,
जो इस धरती और ब्रह्मांड को ऊर्जा का एकमात्र स्रोत है।

आज लोग इस आदि पूजा के प्रति जागरूक हो रहे हैं,
विदेशों में भी यह पूजा होने लगी है।
ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी भी सूर्य पूजा करते हैं,
सूर्य ही सनातन है, सनातन ही धर्म है,
धर्म ही हमारी परंपरा है।

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ज्ञान बढ़ाने से ज्ञान ही बढ़ता है।

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