शहीद श्रीदेव सुमन: उत्तराखंड के महान स्वतंत्रता सेनानी - Shaheed Sridev Suman: The Great Freedom Fighter of Uttarakhand

शहीद श्रीदेव सुमन: उत्तराखंड के महान स्वतंत्रता सेनानी

श्रीदेव सुमन का प्रारंभिक जीवन
श्रीदेव सुमन का जन्म 25 मई 1916 को टिहरी गढ़वाल जिले के जौल गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम हरीराम बड़ोनी था, जो एक प्रसिद्ध वैद्य थे। माता का नाम तारा देवी था। श्रीदेव सुमन के बचपन का नाम श्रीदत्त था। जब वह मात्र 3 वर्ष के थे, उनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता की इस असमय मृत्यु के बाद उनकी मां ने अपने बच्चों का पालन-पोषण किया और उन्हें शिक्षा दी। श्रीदेव सुमन को अपने पिता से लोक सेवा का गुण और माता से दृढ़ निश्चय का संस्कार विरासत में मिला था।

शिक्षा और प्रारंभिक संघर्ष
श्रीदेव सुमन की प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव और चंबाखाल में हुई। उन्होंने 1931 में टिहरी से हिंदी मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1930 में, जब वे देहरादून गए, तब उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया और उन्हें 14-15 दिन के कारावास की सजा दी गई। इसके बाद उन्होंने देहरादून के नेशनल हिंदू स्कूल में अध्यापन कार्य किया और अपने अध्ययन को भी जारी रखा। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से 'रत्न', 'भूषण' और 'प्रभाकर' की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। इसके बाद उन्होंने हिंदी साहित्य सम्मेलन से 'विशारद' और 'साहित्य रत्न' की परीक्षाएँ भी पास कीं।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
श्रीदेव सुमन का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान अविस्मरणीय है। 1930 में मात्र 14 वर्ष की आयु में उन्होंने नमक सत्याग्रह में भाग लिया, जिसमें उन्हें 15 दिन का कारावास हुआ। 1937 में उन्होंने 'सुमन सौरभ' नाम से कविताओं का प्रकाशन किया। श्रीदेव सुमन ने 1938 में दिल्ली में 'गढ़ देश सेवा संघ' की स्थापना की, जिसका उद्देश्य उत्तराखंड के लोगों को संगठित करना और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना था।

टिहरी राज्य प्रजामंडल का गठन
श्रीदेव सुमन के प्रयासों से 23 जनवरी 1939 को देहरादून में 'टिहरी राज्य प्रजामंडल' की स्थापना हुई। इस संगठन ने टिहरी रियासत के लोगों को अंग्रेजी शासन के खिलाफ संगठित किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने टिहरी रियासत के कैदखानों की आलोचना की और कहा कि इनसे दुनिया में रियासत की कोई इज्जत नहीं बढ़ सकती।

राजद्रोह का मुकदमा और आमरण अनशन
21 फरवरी 1944 को श्रीदेव सुमन पर राजद्रोह का मुकदमा चला। इसके बाद, 3 मई 1944 को उन्होंने आमरण अनशन शुरू किया। 84 दिनों तक भूख हड़ताल करने के बाद 25 जुलाई 1944 को श्रीदेव सुमन की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद भी उनका संघर्ष और बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रेरणा स्रोत बना रहा।

श्रीदेव सुमन का विचार और दर्शन
श्रीदेव सुमन का एक प्रसिद्ध कथन था, "तुम मुझे तोड़ सकते हो, मोड़ नहीं सकते।" यह वाक्य उनके दृढ़ निश्चय और अडिग संकल्प का प्रतीक है। वे हमेशा सत्य और न्याय के लिए खड़े रहे और उनके इस अदम्य साहस ने उन्हें अमर कर दिया।

स्मृति और सम्मान
पहला श्रीदेव सुमन स्मृति दिवस 25 जुलाई 1946 को मनाया गया। उनके बलिदान को याद करते हुए उत्तराखंड के लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। श्रीदेव सुमन का नाम उत्तराखंड के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है और वे सदैव एक प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।

शहीद श्रीदेव सुमन का जीवन एक अद्वितीय साहस और बलिदान की कहानी है। उन्होंने अपने जीवन को देश की आजादी के लिए समर्पित किया और अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से यह साबित किया कि सत्य और न्याय के लिए खड़ा होना ही सच्ची वीरता है। उनके योगदान को याद करते हुए हम उन्हें नमन करते हैं और उनके बलिदान को हमेशा याद रखेंगे।

शहीद श्रीदेव सुमन पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न और उनके उत्तर

  1. श्रीदेव सुमन का जन्म कब और कहां हुआ था?

    • श्रीदेव सुमन का जन्म 25 मई 1916 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के जौल गांव में हुआ था।
  2. श्रीदेव सुमन के माता-पिता के नाम क्या थे?

    • उनके पिता का नाम हरीराम बड़ोनी था, जो एक वैद्य थे, और उनकी माता का नाम तारा देवी था।
  3. श्रीदेव सुमन के बचपन का नाम क्या था?

    • श्रीदेव सुमन के बचपन का नाम श्रीदत्त था।
  4. श्रीदेव सुमन ने स्वतंत्रता संग्राम में कब भाग लिया और क्या योगदान दिया?

    • श्रीदेव सुमन ने 1930 में 14 वर्ष की आयु में नमक सत्याग्रह में भाग लिया। उन्होंने 1938 में दिल्ली में 'गढ़ देश सेवा संघ' की स्थापना की और 1939 में 'टिहरी राज्य प्रजामंडल' की स्थापना के माध्यम से टिहरी रियासत के लोगों को संगठित किया।
  5. श्रीदेव सुमन ने अपनी कविताओं का संकलन किस नाम से प्रकाशित किया था?

    • श्रीदेव सुमन ने 1937 में 'सुमन सौरभ' नाम से कविताओं का संकलन प्रकाशित कराया।
  6. श्रीदेव सुमन पर कब और क्यों मुकदमा चला?

    • 21 फरवरी 1944 को श्रीदेव सुमन पर राजद्रोह का मुकदमा चला।
  7. श्रीदेव सुमन ने आमरण अनशन कब शुरू किया और इसका परिणाम क्या हुआ?

    • श्रीदेव सुमन ने 3 मई 1944 को आमरण अनशन शुरू किया, जो 25 जुलाई 1944 तक चला। 84 दिन की भूख हड़ताल के बाद उनकी मृत्यु हो गई।
  8. श्रीदेव सुमन के बारे में पंडित नेहरू का क्या कथन था?

    • पंडित जवाहरलाल नेहरू ने टिहरी रियासत के कैदखानों की आलोचना करते हुए कहा था कि "टिहरी राज्य के कैदखाने दुनिया भर में मशहूर होंगे, परन्तु इससे दुनिया में रियासत की कोई इज्जत नहीं बढ़ सकती।"
  9. श्रीदेव सुमन की स्मृति में कब और कैसे सम्मानित किया गया?

    • पहला श्रीदेव सुमन स्मृति दिवस 25 जुलाई 1946 को मनाया गया। इसके अलावा, उनके सम्मान में 2021 में डाक विभाग ने एक विशेष लिफाफा भी जारी किया।
  10. श्रीदेव सुमन का एक प्रसिद्ध कथन क्या था?

    • श्रीदेव सुमन का प्रसिद्ध कथन था, "तुम मुझे तोड़ सकते हो, मोड़ नहीं सकते।"
  11. श्रीदेव सुमन की शिक्षा कहां हुई थी?

    • उनकी प्रारंभिक शिक्षा जौल गांव और चम्बाखाल में हुई। इसके बाद उन्होंने देहरादून, लाहौर, और दिल्ली में भी शिक्षा प्राप्त की और विभिन्न परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं।
  12. श्रीदेव सुमन के जीवन का मुख्य उद्देश्य क्या था?

    • श्रीदेव सुमन का मुख्य उद्देश्य टिहरी रियासत के अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष करना और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेना था।

इन प्रश्नों और उत्तरों के माध्यम से श्रीदेव सुमन के जीवन और उनके योगदान के विभिन्न पहलुओं को समझा जा सकता है।

उत्तराखंड से संबंधित प्रमुख पृष्ठ

भारत और उत्तराखंड का संपूर्ण परिचय

यह पृष्ठ भारत और उत्तराखंड के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक परिचय के साथ अल्मोड़ा के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।

पहाड़ी कविता और शब्दकोश

यह पृष्ठ पहाड़ी कविता और शब्दकोश का संग्रह है, जो उत्तराखंड की स्थानीय भाषाओं और अभिव्यक्तियों को संजोने का प्रयास है।

उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं

यह पृष्ठ उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाओं की सूची और उनके योगदान को प्रस्तुत करता है, जिन्होंने राज्य और समाज में विशेष योगदान दिया है।

टिप्पणियाँ

उत्तराखंड के नायक और सांस्कृतिक धरोहर

उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानी और उनका योगदान

उत्तराखंड के उन स्वतंत्रता सेनानियों की सूची और उनके योगदान, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई।

पहाड़ी कविता और शब्दकोश

उत्तराखंड की पारंपरिक पहाड़ी कविताएँ और शब्दों का संकलन, जो इस क्षेत्र की भाषा और संस्कृति को दर्शाते हैं।

गढ़वाल राइफल्स: एक गौरवशाली इतिहास

गढ़वाल राइफल्स के गौरवशाली इतिहास, योगदान और उत्तराखंड के वीर सैनिकों के बारे में जानकारी।

कुमाऊं रेजिमेंट: एक गौरवशाली इतिहास

कुमाऊँ रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित पैदल सेना रेजिमेंटों में से एक है। इस रेजिमेंट की स्थापना 18वीं शताब्दी में हुई थी

लोकप्रिय पोस्ट

केदारनाथ स्टेटस हिंदी में 2 लाइन(kedarnath status in hindi 2 line) something

जी रया जागी रया लिखित में , | हरेला पर्व की शुभकामनायें (Ji Raya Jagi Raya in writing, | Happy Harela Festival )

हिमाचल प्रदेश की वादियां शायरी 2 Line( Himachal Pradesh Ki Vadiyan Shayari )

हिमाचल प्रदेश पर शायरी स्टेटस कोट्स इन हिंदी(Shayari Status Quotes on Himachal Pradesh in Hindi)

महाकाल महादेव शिव शायरी दो लाइन स्टेटस इन हिंदी (Mahadev Status | Mahakal Status)

हिमाचल प्रदेश पर शायरी (Shayari on Himachal Pradesh )

गढ़वाली लोक साहित्य का इतिहास एवं स्वरूप (History and nature of Garhwali folk literature)