श्री देव सुमन: बलिदान दिवस और ऐतिहासिक योगदान
श्री देव सुमन: जीवन परिचय और बलिदान
श्री देव सुमन (25 मई 1916 - 25 जुलाई 1944) उत्तराखंड की धरती पर जन्मे एक महान स्वतंत्रता सेनानी और जननायक थे। उन्होंने टिहरी गढ़वाल राज्य में ब्रिटिश और स्थानीय राजशाही के खिलाफ संघर्ष किया और अपनी शहादत से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा दी।
श्री देव सुमन की मृत्यु की जांच के लिए गठित कमेटी
हिमाचल की धामी रियासत में 16 जुलाई 1939 को हुए गोलीकांड की जांच के लिए अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की ओर से एक जांच समिति गठित की गई थी, जिसमें श्री देव सुमन को मंत्री बनाया गया। इस समिति ने घटनाओं की गहराई से जांच की और सुमन की भूमिका को महत्वपूर्ण माना।
बलिदान दिवस और उनकी शहादत
श्री देव सुमन ने 84 दिनों तक जेल में आमरण अनशन किया, जिससे उनकी स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ गई। 25 जुलाई 1944 को उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनके बलिदान दिवस को हर साल 25 जुलाई को 'सुमन दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, टिहरी गढ़वाल में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जहां स्कूलों के बच्चे प्रभात फेरी निकालते हैं और सुमन के बलिदान को याद करते हैं।
श्री देव सुमन की शहादत और उसका प्रभाव
श्री देव सुमन की शहादत ने टिहरी गढ़वाल राज्य में राजशाही के खिलाफ जन आंदोलन को तेज कर दिया। उनकी शहादत के बाद, टिहरी रियासत को प्रजामंडल को वैधानिक मान्यता देने पर मजबूर होना पड़ा। 1 अगस्त 1949 को टिहरी गढ़वाल राज्य का भारतीय गणराज्य में विलय हो गया।
श्री देव सुमन की कार्यशैली और योगदान
सुमन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद 1930 में 'नमक सत्याग्रह' आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने पंडित नेहरू को गढ़वाल राज्य की समस्याओं से परिचित कराया और 'जिला गढ़वाल' और 'राज्य गढ़वाल' की एकता का नारा बुलंद किया। 23 जनवरी 1939 को वे देहरादून में स्थापित 'टिहरी राज्य प्रजा मंडल' के संयोजक मंत्री बने और स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रदूत बने।
निष्कर्ष
श्री देव सुमन का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक अमूल्य हिस्सा है। उनके संघर्ष और शहादत ने टिहरी गढ़वाल राज्य के लोगों को जागरूक किया और स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। उनके बलिदान को सम्मानित करने के लिए 'सुमन दिवस' के रूप में मनाया जाता है, जो उनके अमर योगदान की एक सजीव याद है।
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