घराट: उत्तराखंड के पारंपरिक पनचक्की की अनूठी विरासत / Gharat: The unique heritage of Uttarakhand's traditional watermill

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घराट: पहाड़ों का पारंपरिक चक्की और उसकी ऐतिहासिक विरासत

इतिहास की दृष्टि से घराट का महत्व

उत्तराखंड में घराट का उल्लेख सबसे पहले चंद शासनकाल के 1514 के ताम्रपत्र में मिलता है। यह प्रमाणित करता है कि पनचक्कियाँ उस समय से ही इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही थीं। हालांकि, प्रारंभिक समय में ये घराट व्यक्तिगत सम्पत्ति के रूप में देखे जाते थे, जिन पर कोई कर नहीं लिया जाता था।

ब्रिटिश शासनकाल में, घराटों पर कर लगाना शुरू हुआ।

  • 1842 में बैकेट के समझौते के दौरान, कमिश्नर लूसिंगटन के कार्यकाल में, पहली बार घराटों पर कर लगाया गया।
  • 1861 में रैम्जे के कार्यकाल में, पिसाई के हिसाब से घराटों पर कर लगाने की प्रक्रिया शुरू हुई।
  • 1922 से, सरकार ने घराटों पर वार्षिक आय के हिसाब से कर लगाना शुरू किया। यह कर 1 रुपया वार्षिक था, जिसे प्रधानों द्वारा एकत्र कर राजस्व में जमा किया जाता था।

वैसे तो यह पानी की चक्की देखने में बहुत शानदार नहीं है, लेकिन जो चीज आपको हैरान कर देगी, वह है इस सिस्टम की इंजीनियरिंग का कमाल। 17वीं शताब्दी में बनी (ऐसा कहा जाता है कि इसे 1744 ई. में बनाया गया था), इस अभिनव पानी की चक्की को एक भूमिगत चैनल से बहते पानी से उत्पन्न ऊर्जा का उपयोग करने के लिए डिज़ाइन किया गया था

सही ही कहा गया है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। जब भी किसी भी प्राणी को किसी वस्तु की आवश्यकता होती है, तो वह तन, मन, और धन से उसके समाधान को खोजने में लग जाता है। चाहे वह मनुष्य हो, पशु हो या पक्षी। समय की मांग उसके समाधान के लिए उसे बाध्य कर देती है। यहाँ पर हम अपने पूर्वजों के द्वारा किए गए आविष्कार का वर्णन करेंगे, चाहे वह कृषि यंत्र हो, घट या घराट हो, दूर-दूर से खेतों में पानी लाने वाले गूल हो, या जंगल में लकड़ी की चिराई करना हो। आज के समय में इन्हीं पुराने आविष्कारों के आधार पर ही जो हमारे पूर्वजों द्वारा किए गए थे, उन्हें विकसित रूप देकर बड़े से बड़े मशीनों का आविष्कार किया जा रहा है।

अगर हम अपने पूर्वजों को वैज्ञानिक कहें, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर या बार-बार प्रयास से अंततः सफलता हासिल कर ली और नए-नए आविष्कारों को जन्म दिया। उन्हीं आविष्कारों में से एक है - घराट।

घट या घराट क्या है?

पानी हमारे जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता और ऊर्जा का एक अनूठा स्रोत है। बहते हुए इस पानी की ताकत को हमारे पूर्वजों ने सदियों पहले ही पहचान लिया था और इसका बखूबी इस्तेमाल भी किया। प्राकृतिक संसाधन, पारंपरिक ज्ञान, और स्थानीय कौशल का एक ऐसा ही उदाहरण है घराट। ये घराट एक समय में पहाड़ों की धड़कन हुआ करती थी, जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ हमारी संस्कृति को भी दर्शाती थी।

पर्वतीय क्षेत्र में सदानीर नदियों के किनारे बनायी गई पानी से चलने वाली पनचक्कियों को घट या घराट कहते हैं, जिनका उपयोग आटा पीसने के लिए किया जाता था।

घराट का कार्य और बनावट

घराट में गूल द्वारा पानी लाकर घट के पंखुड़ियों में गिराया जाता है। पानी के तेज बहाव के कारण पंखुड़ियाँ घूमने लगती हैं, जिसके कारण चक्का भी साथ-साथ घूमने लगता है। यह प्रक्रिया आज के समय के डीजल या बिजली के चक्की के समान ही कार्य करती थी।

डीजल और बिजली के चक्कियों के आने से घराट अब अपनी पहचान लगभग खो चुके हैं। आज के समय में बहुत कम सक्रिय घराट देखने को मिलेंगे।

पनचक्की का ऐतिहासिक महत्व

पनचक्की का अर्थ: "पर्वतीय क्षेत्र में आटा पीसने की पनचक्की का उपयोग अत्यंत प्राचीन है। पानी से चलने के कारण इसे ‘घट’ या ‘घराट’ कहते हैं। पनचक्कियाँ प्रायः सदानीरा नदियों के तट पर बनाई जाती हैं। गूल द्वारा नदी से पानी लेकर उसे लकड़ी के पनाले में प्रवाहित किया जाता है, जिससे पानी में तेज प्रवाह उत्पन्न हो जाता है।"

घराट के पीछे का विज्ञान

घट या घराट का विज्ञान सरल लेकिन अद्वितीय है। पानी का प्राकृतिक बहाव एक बड़े पहिये को घुमाता है, जो घराट के अंदर लगे पिसाई वाले पत्थरों को घुमाने का कार्य करता है। इस प्रक्रिया से अनाज को पिसकर आटा बनाया जाता है, जो स्थानीय निवासियों की दैनिक जरूरतों को पूरा करता था।

घराट की सांस्कृतिक धरोहर

घराट न केवल तकनीकी दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का भी महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। गांवों में यह जगह सामाजिक सभा के रूप में भी काम करती थी, जहां लोग अपनी दैनिक जरूरतों के लिए इकट्ठे होते थे। यह स्थान गांव की संस्कृति और समाजिकता का भी प्रतीक है।

आधुनिक युग में घराट की स्थिति

आज के आधुनिक युग में, बिजली और डीजल से चलने वाली मशीनों ने घराट की जगह ले ली है। लेकिन फिर भी, घराट का महत्व कम नहीं हुआ है। यह आज भी पर्यावरण-संबंधी जागरूकता और सतत् विकास के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।

घराट का पुनरुद्धार

हाल के वर्षों में, कुछ स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने पारंपरिक घराटों के पुनरुद्धार के प्रयास किए हैं। यह पर्यावरण के अनुकूल और ऊर्जा की बचत करने वाले इन उपकरणों को फिर से जीवंत करने की दिशा में एक कदम है।

घराट का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

राज्य में सबसे पहले चंद शासनकाल के 1514 के ताम्रपत्र में घराटों (पनचक्कियों) का उल्लेख मिलता है। यह उल्लेख इस बात का प्रमाण है कि घराट तब से ही पहाड़ों के जीवन का अभिन्न हिस्सा रहे हैं।

घराटों पर कर और प्रशासनिक नियंत्रण:

  1. 1842: ब्रिटिश शासनकाल में पहली बार घराटों पर कर लगाने का निर्णय लिया गया, बैकेट के समझौते के दौरान (कमिश्नर लूसिंगटन के कार्यकाल में)। यह वह समय था जब घराट व्यक्तिगत संपत्ति नहीं मानी जाती थी, और इस पर कर नहीं लिया जाता था।

  2. 1861: ब्रिटिश काल में पिसाई के हिसाब से घराटों पर कर लगाया गया। यह रैम्जे के कार्यकाल में बैकेट के बंदोबस्त में किया गया। इस प्रकार की व्यवस्था ने घराटों के आर्थिक मूल्य को प्रभावित किया।

  3. 1922: सरकार ने घराटों पर सालाना आय के हिसाब से कर लगाना आरम्भ किया। इस कर का वार्षिक मूल्य 1 रुपया था, जिसे प्रधानों द्वारा एकत्र किया जाता था और राजस्व में जमा किया जाता था।

घराट का महत्व और हमारी भूमिका

घराट के महत्व को समझना और इन्हें संरक्षण देना हम सभी की जिम्मेदारी है। यह हमारे पूर्वजों की बौद्धिक संपदा का प्रतीक है, और इन्हें सहेजकर रखना हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का एक तरीका है।

निष्कर्ष

घराट केवल एक उपकरण नहीं है; यह हमारी संस्कृति, परंपरा, और ज्ञान का प्रतिबिंब है। हमें इसे संरक्षित करने और आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे संजोने की आवश्यकता है, ताकि वे भी हमारे पूर्वजों के इस अद्भुत आविष्कार से प्रेरणा ले सकें।


आशा है कि यह ब्लॉग आपके पाठकों के लिए रोचक और ज्ञानवर्धक होगा। यदि आप किसी बदलाव या अतिरिक्त जानकारी की आवश्यकता महसूस करते हैं, तो मुझे बताएं।

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