खतड़ुआ: पशुधन की रक्षा और शीत ऋतु का स्वागत करने वाला पर्व - Khatarua: A festival to protect livestock and welcome the winter season
खतड़ुआ: पशुधन की रक्षा और शीत ऋतु का स्वागत करने वाला पर्व
खतड़ुआ उत्तराखंड का एक प्रमुख पर्व है, जो विशेष रूप से पशुधन की मंगलकामना और शीत ऋतु के आगमन के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व भाद्रपद महीने (सितंबर) के दौरान मनाया जाता है, जब पहाड़ों में ठंड की शुरुआत होने लगती है। यह त्योहार न केवल पशुधन की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जीवन में परिवर्तन के साथ नए मौसम का स्वागत भी करता है।
खतड़ुआ शब्द की उत्पत्ति
'खतड़ुआ' शब्द की उत्पत्ति 'खातड़' या 'खातड़ि' से मानी जाती है, जिसका अर्थ है रजाई या अन्य गर्म कपड़े। भाद्रपद की शुरुआत से ही ठंड धीरे-धीरे बढ़ने लगती है और लोग गर्म कपड़े निकालकर धूप में सुखाते हैं और उनका इस्तेमाल शुरू करते हैं। इसलिए, खतड़ुआ पर्व शीत ऋतु के आगमन का सूचक है।
पशुधन की विशेष देखभाल
खतड़ुआ के दिन ग्रामीण अपने पशुओं की विशेष देखभाल करते हैं। पशुओं के गोठ (गौशाला) को साफ-सुथरा किया जाता है, और पशुओं को स्नान करवाकर सजाया जाता है। इस दिन पशुओं को भरपेट हरी घास और विशेष पकवान खिलाए जाते हैं। शीत ऋतु में हरी घास की कमी होती है, इसलिए इस पर्व के दिन पशुओं को अच्छी तरह से भोजन दिया जाता है।
गौशाला में साफ-सफाई और खतड़ुआ की रस्म
शाम को घर की महिलाएं खतड़ुआ (मशाल) जलाकर गौशाला में सफाई करती हैं। मकड़ी के जाले साफ किए जाते हैं और मशाल को पूरे गौशाला में घुमाया जाता है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य पशुधन को बुरी बीमारियों से बचाने के लिए प्रार्थना करना होता है। इसके बाद महिलाएं मशाल को गांव के किसी चौराहे पर लेकर जाती हैं, जहां लकड़ियों का ढेर लगाया जाता है।
बुढी जलाने की परंपरा
लकड़ियों के ढेर को जलाकर उसे 'बुढी' कहा जाता है, जो पशुओं को लगने वाली बीमारियों का प्रतीक है, जैसे कि खुरपका और मुंहपका। इस जलती 'बुढी' में खतड़ुआ की मशालें समर्पित की जाती हैं और बच्चे जोर-जोर से गाते हैं:
इसका अर्थ होता है कि गाय की जीत हो और पशुधन को लगने वाली बीमारियों की हार हो। इस रस्म के बाद बच्चों में ककड़ी प्रसाद के रूप में बांटी जाती है, और पूरे गांव में आनंद और उमंग का माहौल होता है।
भ्रांतियों का निवारण
खतड़ुआ पर्व से संबंधित कई भ्रांतियां और मिथक भी प्रचलित हैं, जिनमें से एक यह है कि यह पर्व कुमाऊं के सेनापति गैड़ सिंह द्वारा गढ़वाल के खतड़ सिंह को हराने के बाद शुरू हुआ था। हालांकि, इतिहासकारों ने इस कथा को तर्कहीन और निराधार बताया है। खतड़ुआ पर्व का मूल उद्देश्य पशुधन की सुरक्षा और शीत ऋतु के आगमन का स्वागत करना है।
समृद्ध धरोहर का उत्सव
खतड़ुआ जैसे पारंपरिक पर्वों का जश्न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही सीमित नहीं होना चाहिए। हमें इन पर्वों को उनके मूल संदेश के साथ मनाते हुए नई पीढ़ियों तक पहुंचाना चाहिए ताकि हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर जीवित रह सके।
खतड़ुआ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं! 💐
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