उत्तराखंड का अमृतफल: हिसालू (Rubus Ellipticus ) का वनौषधि के रूप में परिचय - Amritphal of Uttarakhand: Hisalu

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उत्तराखंड का अमृतफल: हिसालू (Rubus Ellipticus ) का वनौषधि के रूप में परिचय

उत्तराखंड के हरे-भरे पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला हिसालू, जिसे वैज्ञानिक रूप से Rubus Ellipticus या हिमालयन रास्पबेरी के नाम से जाना जाता है, एक अद्भुत जंगली फल है। इसका चमकीला नारंगी और पीला रंग इसे देखने में आकर्षक बनाता है, और इसका स्वाद उतना ही लाजवाब होता है। हालांकि, इस फल को तोड़ना बेहद कठिन होता है, क्योंकि इसकी झाड़ियाँ काँटों से भरी होती हैं, जो अक्सर हाथों को घायल कर देती हैं। लेकिन इसके पौष्टिक गुण और स्वास्थ्य लाभ इसे एक अमृतफल के रूप में मान्यता दिलाते हैं।

 हिसालू  - hisalu

कुमाऊंनी लोककथा में हिसालू

हिसालू के महत्व को कुमाऊंनी कवि गुमानी पंत जी ने अपने लोककाव्य में भी स्थान दिया है। उन्होंने हिसालू की काँटों भरी प्रकृति का वर्णन करते हुए कहा है:

"हिसालू कि जात बड़ी रिसालू,
जां जां ले जाछा उधेड़ी खाछ।
ये बात को कोई नको नि मानो,
कि दुध्याल कि लात सौणी पडंछ।"

इसका अर्थ है कि हिसालू की नस्ल नाराज़गी भरी है, यह जहां भी जाता है, वहां पर खरोंच छोड़ जाता है। लेकिन इस फल के स्वाद और महत्व के कारण लोग इसकी कठिनाई को नजरअंदाज करते हैं, जैसे दूध देने वाली गाय की लातें भी सहन करनी पड़ती हैं।

हिसालू के औषधीय गुण

हिसालू एक शक्तिशाली वनौषधि के रूप में पहचाना जाता है, और यह कई रोगों के उपचार में उपयोगी है। इसके विभिन्न हिस्सों से कई प्रकार की औषधीय तैयारियां की जाती हैं:

 हिसाऊ/हिसालू/हिसारु/हिसर
  1. बुखार और गले के दर्द में लाभदायक:
    हिसालू के फलों से प्राप्त रस बुखार, खांसी, और गले के दर्द में बहुत ही लाभदायक होता है।

  2. पेट संबंधी बीमारियों के लिए:
    हिसालू की जड़ से प्राप्त रस का प्रयोग पेट से संबंधित बीमारियों को दूर करने में किया जाता है।

  3. पेप्टिक अल्सर में उपचार:
    हिसालू की पत्तियों की कोंपलों को ब्राह्मी और दूर्वा के साथ मिलाकर तैयार किए गए स्वरस का उपयोग पेप्टिक अल्सर के उपचार में किया जाता है।

  4. एन्टीऑक्सिडेंट गुण:
    हिसालू के फलों में भरपूर मात्रा में एन्टीऑक्सिडेंट होते हैं, जो शरीर के लिए बहुत लाभकारी होते हैं। यह फल प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करने के लिए जाना जाता है।

  5. किडनी टॉनिक:
    हिसालू का नियमित उपयोग किडनी के लिए टॉनिक के रूप में भी किया जाता है और यह पॉली यूरिया (अधिक मूत्र) जैसी समस्याओं में लाभदायक होता है।

  6. बिस्तर गीला करने की समस्या:
    यह बच्चों द्वारा नियमित बिस्तर गीला करने की समस्या में भी उपयोगी साबित होता है।

  7. तिब्बती चिकित्सा में उपयोग:
    हिसालू की छाल का प्रयोग तिब्बती चिकित्सा पद्धति में सुगंध और कामोत्तेजना बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही, इसका एंटी डायबिटीक प्रभाव भी देखा गया है, जिससे यह मधुमेह रोगियों के लिए भी फायदेमंद है।

हिसालू के पोषक तत्व

हिसालू में विटामिन C और एंटीऑक्सिडेंट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो इसे एक बेहतरीन प्रतिरक्षा-बढ़ाने वाला फल बनाते हैं। इसे मूत्र संबंधी विकारों और योनि स्राव के विकारों के उपचार में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसका नियमित सेवन बुखार, पेट दर्द, और खांसी जैसी समस्याओं को दूर करता है।

निष्कर्ष

हिसालू न केवल एक स्वादिष्ट फल है, बल्कि इसका औषधीय महत्व इसे और भी खास बनाता है। उत्तराखंड के जंगलों में पाया जाने वाला यह जंगली फल कई बीमारियों के उपचार में सहायक है। इसकी कठिनाईयों के बावजूद लोग इसे बहुत पसंद करते हैं, और इसके औषधीय गुण इसे अमृतफल के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं।

कविता:
"पहाड़ की गोद में पला,
हिसालू का फल अमृत जला।
काँटों में छुपा इसका प्यार,
स्वास्थ्य के लिए यह अनमोल उपहार।"

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