2 अक्टूबर 1994: उत्तराखंड का काला दिन - जानिए पूरी कहानी, चश्मदीद की जुबानी - October 2, 1994: Black day in Uttarakhand - Know the full story, eyewitness

2 अक्टूबर 1994: उत्तराखंड का काला दिन - जानिए पूरी कहानी, चश्मदीद की जुबानी

उत्तराखंड के निर्माण के पीछे संघर्ष की एक लंबी गाथा छिपी है। 100 सालों की लड़ाई, अनगिनत बलिदानों और अनेक उतार-चढ़ावों के बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा मिला। लेकिन इस संघर्ष के दौरान 2 अक्टूबर 1994 को घटित एक वीभत्स घटना को उत्तराखंड के इतिहास में एक काले दिन के रूप में याद किया जाता है।

उत्तराखंड राज्य की मांग और 1994 की घटनाएँ

उत्तराखंड राज्य की मांग सबसे पहले 1897 में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के सामने रखी गई थी, और 1979 में उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना के बाद यह मांग और भी प्रबल हुई। 90 के दशक तक यह मांग अपने चरम पर पहुँच चुकी थी, और आंदोलनकारी "कोदा-झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे" और "आज दो अभी दो उत्तराखंड राज्य दो" जैसे नारों के साथ सड़कों पर उतर आए थे।

इस दौरान उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने राज्य निर्माण की मांग को नकारात्मक रूप से लिया। पहाड़ के लोगों को नज़रअंदाज़ करने वाली उनकी इस सोच ने आंदोलनकारियों के आक्रोश को और भड़काया। 2 अक्टूबर 1994 को, गांधी जयंती के अवसर पर दिल्ली के रामलीला मैदान में एक बड़ा प्रदर्शन आयोजित किया गया था।

रामपुर तिराहा कांड: चश्मदीद की जुबानी

उस काले दिन की घटना को अपनी आँखों से देखने वाले सुरेन्द्र कुकरेती, जो उत्तराखंड आंदोलनकारी मंच के अध्यक्ष और उत्तराखंड क्रांति दल के केन्द्रीय कार्यकारी अध्यक्ष हैं, ने घटना का ब्योरा दिया। वह बताते हैं कि किस तरह आंदोलनकारी गन्ने के खेतों में गोलियों की आवाज़ के बीच जान बचाने के लिए भाग रहे थे। उस समय पुलिस और पीएसी के जवानों द्वारा महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा था। कई महिलाओं के साथ दुष्कर्म हुआ और पुलिस की गोलियों से कई आंदोलनकारियों की जान चली गई।

उनके अनुसार, आंदोलनकारियों की लगभग 300 बसें और सैकड़ों गाड़ियाँ उस दिन रामपुर तिराहा पर रुकी थीं, जहाँ पुलिस ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया था। पुलिस की ओर से गोलियाँ चलाई गईं, और कई आंदोलनकारी मारे गए। महिलाओं के साथ जो अत्याचार हुए, वे उस दिन की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक थीं। पुलिस की वर्दी में गुंडों ने गन्ने के खेतों में छिपी महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया।

शहीद और पीड़ित

इस वीभत्स कांड में 7 लोगों की शहादत हुई और 16 महिलाओं के साथ दुष्कर्म हुआ। शहीदों के नाम इस प्रकार हैं:

  1. सूर्यप्रकाश थपलियाल
  2. राजेश लखेड़ा
  3. रविन्द्र रावत
  4. राजेश नेगी
  5. सतेन्द्र चौहान
  6. गिरीश भद्री
  7. अशोक कुमार कशिव

कानूनी लड़ाई और न्याय की मांग

7 अक्टूबर 1994 को संयुक्त संघर्ष समिति ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की, और 6 दिसंबर 1994 को कोर्ट ने सीबीआई से इस घटना की जांच रिपोर्ट मांगी। सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में घटना में महिलाओं से छेड़छाड़, दुष्कर्म और हत्याओं की पुष्टि की। लेकिन तब से अब तक, इस मामले में दोषियों को सजा नहीं मिली और पीड़ितों को न्याय नहीं मिल सका।

आज के परिप्रेक्ष्य में

उत्तराखंड राज्य तो बना, लेकिन जिस उद्देश्य के लिए यह राज्य बना था, वह आज भी अधूरा है। राज्य के मुद्दे जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पलायन, और जल-जंगल-जमीन आज भी जस के तस हैं।

इसलिए 2 अक्टूबर 1994 का दिन उत्तराखंड के लिए एक काला दिन कहलाता है। यह वह दिन है जिसने राज्य के संघर्ष को एक नई दिशा दी, लेकिन इस दिन का खून और आँसू आज भी उत्तराखंड के इतिहास का एक गहरा दर्द बने हुए हैं।

जय उत्तराखंड!

टिप्पणियाँ

Dharmendra Rawat ने कहा…
Nice बहुत बढ़िया भैजी