भैलो: उत्तराखंड की अनूठी परंपरा (Bhailo: The unique tradition of Uttarakhand)

भैलो: उत्तराखंड की अनूठी परंपरा

भैलो, उत्तराखंड के पारंपरिक त्योहार बग्वाल (दीपावली) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो यहां की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह अनोखी परंपरा, जहां आग से जलती हुई रस्सी को घुमाकर खेला जाता है, उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में सदियों से मनाई जाती रही है।

भैलो का अर्थ और महत्व

"भैलो" एक रस्सी होती है जो विशेष रूप से पेड़ों की छाल या जंगली बेलों से बनाई जाती है। इगास बग्वाल के दिन, लोग इस रस्सी के दोनों छोरों में आग लगा देते हैं और उसे घुमाकर भैलो खेलते हैं। यह रस्सी पारंपरिक रूप से चीड़, देवदार, भीमल या हींसर की लकड़ी से बनाई जाती है, जिसमें से चीड़ की लकड़ी अत्यधिक ज्वलनशील होती है और इसे "दली" या "छिल्ला" कहा जाता है।

बरसों पुरानी परंपरा

भैलो खेलना एक प्राचीन परंपरा है जो उत्तराखंड के लगभग हर गांव में देखने को मिलती है। दीपावली के दिन गांव के लोग ढोल-दमाऊं की थाप पर एकत्रित होकर पारंपरिक भैलो खेलते हैं। यह खेल, जहां लोग ढोल-दमाऊं की थाप पर थिरकते हैं, गीत गाते हैं, और भैलो घुमाते हैं, मनोरंजन का एक साधन होने के साथ-साथ धार्मिक आस्था का भी प्रतीक है।

भैलो बनाने और खेलने की प्रक्रिया

बग्वाल के पर्व से पहले गांव के लोग जंगल से दली, छिल्ला, सुरमाड़ी, मालू जैसी जड़ी-बूटियां और बेलों को ढोल-बाजों के साथ लेकर आते हैं। इन बेलों और लकड़ियों को गांव के चौक पर इकट्ठा किया जाता है। सुरमाड़ी, मालू की बेलों या बाबला, स्येलू की रस्सियों से दली और छिल्ला को बांधकर एक बड़े भैलो का निर्माण किया जाता है।

फिर भैलो को जलाकर गांव के सभी लोग पास के खुले स्थान पर एकत्रित होते हैं और ढोल-दमाऊं की थाप पर नृत्य करते हुए भैलो घुमाते हैं। इसे "भैलो नृत्य" भी कहा जाता है। इस दौरान विभिन्न प्रकार के करतब और मुद्राएं बनाई जाती हैं, जो देखने में बहुत आकर्षक लगती हैं।

भैलो खेलते समय गीत और व्यंग्य

भैलो खेलते समय लोग पारंपरिक गीत गाते हैं और हास्य-विनोद भी करते हैं। इसमें निकटवर्ती गांवों के लोगों को गीतों के माध्यम से छेड़ा जाता है, और गीतों में मनोरंजक तुकबंदी की जाती है। एक ओर खुद को राम की सेना और दूसरी ओर अगल-बगल के गांवों को रावण की सेना मानकर मजाक किया जाता है, जैसे:

"फलां गौं वाला रावण की सेना, हम छना राम की सेना।"

इस तरह के व्यंग्यात्मक गीत भैलो खेलने की परंपरा को और भी आनंदमय बना देते हैं।

भैलो गीत और उनके शब्द

भैलो के दौरान गाए जाने वाले कुछ लोकप्रिय गीत इस प्रकार हैं:

सुख करी भैलो, धर्म को द्वारी, भैलो
धर्म की खोली, भैलो जै-जस करी
सूना का संगाड़ भैलो, रूपा को द्वार दे भैलो
खरक दे गौड़ी-भैंस्यों को, भैलो, खोड़ दे बाखर्यों को, भैलो
हर्रों-तर्यों करी, भैलो.

भैलो रे भैलो, खेला रे भैलो
बग्वाल की राति खेला भैलो
बग्वाल की राति लछमी को बास
जगमग भैलो की हर जगा सुवास
स्वाला पकोड़ों की हुई च रस्याल
सबकु ऐन इनी रंगमती बग्वाल
नाच रे नाचा खेला रे भैलो
अगनी की पूजा, मन करा उजालो
भैलो रे भैलो।

इन गीतों में भैलो के महत्व, ईश्वर की आराधना और गांव की समृद्धि की कामना व्यक्त की जाती है।

अन्य लोककलाएँ और परंपराएँ

भैलो खेल के साथ-साथ इस अवसर पर कई अन्य लोककलाओं की प्रस्तुतियाँ भी होती हैं। इनमें मंडाण, चांचड़ी-थड़्या जैसे लोकनृत्य, दीप जलाना और आतिशबाजी शामिल है। कुछ क्षेत्रों में विशेष रूप से कद्दू, काखड़ी, और मुंगरी जैसी फसलें एकत्रित कर उन्हें भेंट चढ़ाने की परंपरा भी है। इसके साथ ही भीम अवतार की लघु प्रस्तुति दी जाती है, जो त्योहार में रंग भरने का काम करती है।

भैलो का आधुनिक संदेश

इस पर्व पर उत्तराखंड के लोग इको-फ्रेंडली दिवाली मनाने की अपील भी करते हैं, ताकि पर्यावरण का संरक्षण करते हुए पर्व का आनंद लिया जा सके।

अंत में, आप सभी को भैलो और बग्वाल पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ। उत्तराखंड की इस अनोखी परंपरा का आनंद लें और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखें।

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