गढ़वाली मुहावरे और लोकोक्तियाँ (Garhwali Idioms and Proverbs) Part 2

गढ़वाली मुहावरे और लोकोक्तियाँ (Garhwali Idioms and Proverbs)

गढ़वाली भाषा में मुहावरे और लोकोक्तियाँ एक विशेष महत्व रखते हैं, क्योंकि ये जीवन के अनुभवों को सीधे, सरल और रोचक तरीके से व्यक्त करते हैं। इन कहावतों का उपयोग हमारी दिनचर्या, समाज और संस्कृति में होता है। यहाँ हम कुछ प्रमुख गढ़वाली मुहावरों और लोकोक्तियों को प्रस्तुत कर रहे हैं, जो गढ़वाल के लोकजीवन का प्रतिबिंब हैं।

गढ़वाली मुहावरे (Garhwali Idioms)

  1. पढ़ाई लिखाई बल जाट, अर 16 दुनी आठ।

    • अर्थ: बेमतलब के ज्ञान या पढ़ाई का कोई उपयोग नहीं होता।
    • उदाहरण: अगर जीवन में सही दिशा नहीं है, तो पढ़ाई लिखाई भी बल जाट जैसी है।
  2. बिरालु मरयूं सबुन देखी, दूध खत्युँ कैन नि देखी।

    • अर्थ: लोग दूसरे की गलतियों को तो देखते हैं, लेकिन अपनी गलती को नजरअंदाज कर देते हैं।
    • उदाहरण: अपने दोषों पर ध्यान न देना, बिरालु मरयूं सबुन देखी जैसा है।
  3. भिंडि बिराल्युं मा मुसा नि मरियेंदन।

    • अर्थ: जब दो ताकतवर लोग लड़ते हैं, तो कमजोर को नुकसान होता है।
    • उदाहरण: बड़ी-बड़ी ताकतों के बीच छोटों का नुकसान हो जाता है, जैसे भिंडि बिराल्युं मा मुसा नि मरियेंदन।
  4. जै गौ जाण ही नी, वे गौं कु बाठु क्या पूछण।

    • अर्थ: जिस व्यक्ति को अपने घर का पता नहीं, वह दूसरे के घर का रास्ता क्या पूछेगा।
    • उदाहरण: अपनी समस्याओं का हल ढूंढने में असमर्थ व्यक्ति दूसरों की समस्याओं का हल कैसे देगा?
  5. मैं राणी, तू राणी, कु कुटलु, चीणा दाणी।

    • अर्थ: जब दोनों लोग बराबर होते हैं, तो काम कौन करेगा?
    • उदाहरण: जब दोनों काम करने से बच रहे हों, तो स्थिति 'मैं राणी, तू राणी' जैसी हो जाती है।
  6. पठालु फ़ुटु पर ठकुराण नी उठु।

    • अर्थ: जब स्थिति बहुत बिगड़ जाए, तब भी कुछ लोग अपनी आदतें नहीं छोड़ते।
    • उदाहरण: बड़ी समस्या होने पर भी वह कुछ नहीं करता, जैसे पठालु फ़ुटु पर ठकुराण नी उठु।
  7. जख कुखड़ा नि होन्दा, तख रात नि खुल्दी।

    • अर्थ: सही समय पर सही चीजों का होना जरूरी है।
    • उदाहरण: समय पर उचित कदम नहीं उठाया, तो जख कुखड़ा नि होन्दा, तख रात नि खुल्दी।
  8. बिगर अफ़ु मरयां, स्वर्ग नि जयेन्दु।

    • अर्थ: बिना कठिनाई और संघर्ष के सफलता नहीं मिलती।
    • उदाहरण: मेहनत के बिना स्वर्ग जैसी स्थिति हासिल नहीं होती, जैसे बिगर अफ़ु मरयां, स्वर्ग नि जयेन्दु।
  9. पैंसा नि पल्ला, दुई ब्यो कल्ला।

    • अर्थ: बिना पैसों के कोई भी काम नहीं हो सकता।
    • उदाहरण: किसी भी योजना को सफल करने के लिए पैसा जरूरी है, जैसे पैंसा नि पल्ला, दुई ब्यो कल्ला।
  10. एक कुंडी माछा, नौ कुंडी झोल।

    • अर्थ: थोड़ी चीज में बहुत अधिक विस्तार करना।
    • उदाहरण: बिना किसी ठोस काम के ही बहुत सारी बातें करना, जैसे एक कुंडी माछा, नौ कुंडी झोल।
  11. गोणी अपड़ु पुछ छोटु ही दिख्येन्दु।

    • अर्थ: किसी बड़े समूह में कमजोर या छोटा व्यक्ति ही हमेशा सामने दिखता है।
    • उदाहरण: जब बड़ी टीम होती है, तो कमजोरी हमेशा छोटे में ही नजर आती है, जैसे गोणी अपड़ु पुछ छोटु ही दिख्येन्दु।
  12. सासु बोल्दी बेटी कू, सुणान्दी ब्वारी कू।

    • अर्थ: सास अपनी बात सीधे बहू को न कहकर बेटी से कहती है ताकि बहू सुन ले।
    • उदाहरण: जब सास बहू से कुछ कहना चाहती है, तो सासु बोल्दी बेटी कू और सुणान्दी ब्वारी कू।
  13. फाडू मुंड, अफ़ु नि मुंड्येन्द।

    • अर्थ: स्थिति कितनी भी कठिन हो, उसे संभालने की क्षमता नहीं होती।
    • उदाहरण: उसने बहुत कोशिश की, लेकिन स्थिति को संभाल नहीं पाया, जैसे फाडू मुंड, अफ़ु नि मुंड्येन्द।
  14. लुखु की साटि बिसैंई, म्यारा चौंल बिसैंई।

    • अर्थ: जिसके पास बहुत कम होता है, उसे थोड़ी भी हानि बर्दाश्त नहीं होती।
    • उदाहरण: जब कोई गरीब व्यक्ति थोड़ा भी खो देता है, तो उसके लिए वह बहुत बड़ी हानि होती है, जैसे लुखु की साटि बिसैंई।
  15. हाथा की त्येरी, तवा की म्यरी।

    • अर्थ: हाथ में जितना है, उतना ही उसका महत्व है।
    • उदाहरण: किसी के पास जो होता है, वही उसकी असली संपत्ति होती है, जैसे हाथा की त्येरी, तवा की म्यरी।
  16. कखी डालु ढली, खक गोजु मारी।

    • अर्थ: बिना सोचे-समझे किया गया काम हमेशा नुकसानदायक होता है।
    • उदाहरण: जल्दबाजी में निर्णय लेना कखी डालु ढली जैसा होता है।
  17. जन मेरी गौड़ी रमाण च, तन दुधार भी होन्दी।

    • अर्थ: अपने घर की चीजें हमेशा सबसे बेहतर लगती हैं।
    • उदाहरण: अपनी चीजें हमेशा दूसरों की तुलना में अधिक पसंद आती हैं, जैसे जन मेरी गौड़ी रमाण च, तन दुधार भी होन्दी।

गढ़वाली मुहावरे (Garhwali Idioms)

  1. ना गोरी भली ना स्वाली।

    • अर्थ: कोई भी बात ठीक नहीं लगती, किसी चीज़ से संतुष्टि नहीं होती।
    • उदाहरण: उसे न तो कोई योजना पसंद आई, ना गोरी भली ना स्वाली।
  2. राजौं का घौर मोतियुं कु अकाल।

    • अर्थ: बड़े लोगों के यहाँ भी कभी-कभी संकट या कमी हो जाती है।
    • उदाहरण: अमीरों के घर भी मोतियुं का अकाल हो सकता है, जैसे राजौं का घौर मोतियुं कु अकाल।
  3. जख मिली घलकी, उखी ढलकी।

    • अर्थ: बिना कारण या प्रयोजन किए गए काम में सही परिणाम नहीं मिलता।
    • उदाहरण: बिना मेहनत के कुछ करने से सही परिणाम नहीं मिलता, जैसे जख मिली घलकी, उखी ढलकी।
  4. भैंसा का घिच्चा फ्योली कु फूल।

    • अर्थ: कोई चीज़ जिसका महत्व न हो, उसकी तुलना किसी कीमती चीज से करना।
    • उदाहरण: किसी साधारण वस्तु को कीमती मान लेना भैंसा का घिच्चा फ्योली कु फूल जैसा है।
  5. सब दिन चंगु, त्योहार कु दिन नंगु।

    • अर्थ: हमेशा अच्छा समय बिताने वाला व्यक्ति, खास दिन पर मुसीबत में फँस जाता है।
    • उदाहरण: वह हमेशा सुख में रहता था, लेकिन त्योहार के दिन ही उसकी परेशानी आई, जैसे सब दिन चंगु, त्योहार कु दिन नंगु।
  6. त्येरु लुकणु छुटी, म्यरु भुकण छुटी।

    • अर्थ: जब किसी की एक गलती पकड़ी जाती है, तो दूसरा भी उसकी गलती दिखाता है।
    • उदाहरण: उसने अपनी गलती छुपाई, लेकिन मेरी गलती भी सबको दिखाई, जैसे त्येरु लुकणु छुटी, म्यरु भुकण छुटी।
  7. कुक्कूर मा कपास और बांदर मा नरियूल।

    • अर्थ: किसी के पास वह चीज़ हो, जिसकी उसे ज़रूरत नहीं है।
    • उदाहरण: उसके पास एक महंगी घड़ी है, लेकिन समय देखना भी नहीं आता, जैसे कुक्कूर मा कपास और बांदर मा नरियूल।
  8. सारी ढेबरी मुंडी माँडी, अर पुछ्ड़ी दाँ न्याउँ (म्याउँ)।

    • अर्थ: किसी काम में सारी मेहनत दिखावे की हो और असल परिणाम बहुत कम निकले।
    • उदाहरण: बहुत सारी तैयारी की, लेकिन अंत में नतीजा कुछ खास नहीं निकला, जैसे सारी ढेबरी मुंडी माँडी, अर पुछ्ड़ी दाँ न्याउँ (म्याउँ)।

निष्कर्ष

गढ़वाली भाषा की मुहावरे और लोकोक्तियाँ हमारे जीवन की विविधता, संघर्ष और अनुभवों को गहराई से समझाने में मदद करती हैं। ये मुहावरे न केवल हमारी भाषा की समृद्धि को दर्शाते हैं, बल्कि हमारे जीवन को सिखाने वाली महत्वपूर्ण बातें भी बतलाते हैं। इनका सही उपयोग करके हम अपनी संवाद क्षमता को और अधिक प्रभावशाली बना सकते हैं।

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