पहाड़ के पत्थरों में भी प्राण हैं - Poem: Even the stones of the mountain have life

पहाड़ के पत्थरों में भी प्राण हैं

प्रस्तावना
यह कविता "पहाड़ के पत्थरों में भी प्राण हैं" उत्तराखंड की पर्वतीय संस्कृति और उसके इतिहास को समर्पित है। पहाड़ों के पत्थरों में छुपे रहस्यों और उनकी अदृश्य आत्मा को उजागर करने का प्रयास करती है।


कविता: पहाड़ के पत्थरों में भी प्राण हैं

बेसुध पड़े पहाड़ पर पत्थर,
लगते निष्प्राण हैं,
लेकिन, ऐसा नहीं है,
उनमें बसते भगवान हैं,
जरा, जा कर तो देखो,
जहाँ चार धाम हैं?

पर्वतों के पेट में,
या पीठ पर,
पत्थरों का राज है,
अतीत के गवाह हैं,
क्या हुआ था पहाड़ पर,
पहाड़ों के उठने से पहले,
और बाद में,
जहाँ प्यारा उत्तराखंड आज है,
जानता है हर पहाड़ का पत्थर,
यही तो एक राज है।

देवप्रयाग का रघुनाथ मंदिर जहाँ,
पत्थर पर ब्राह्मी लिपि में लिखा,
अतीत का राज है,
मूक हैं कहते नहीं,
लेकिन, पहाड़ के पत्थरों में,
आज अदृश्य प्राण है।


निष्कर्ष

यह कविता पहाड़ों की गहराइयों में छिपे अतीत और संस्कृति की आवाज़ है। हर पत्थर एक कहानी सुनाता है, जो पीढ़ियों से हमारे साथ चलती आई है। हमें बस ध्यान से सुनने की आवश्यकता है।

आपके विचार:
क्या आप भी मानते हैं कि पहाड़ों के पत्थरों में छिपे रहस्यों को जानना जरूरी है? अपने विचारों को साझा करें और इस कविता को दूसरों के साथ बांटें!

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