पहाड़ की नारी
प्रस्तावना
यह कविता "पहाड़ की नारी" उत्तराखंड की महिलाओं की मेहनत, संघर्ष, और बलिदान को उजागर करती है। पहाड़ी महिलाएं न केवल परिवार का आधार होती हैं, बल्कि वे अपने समाज और संस्कृति की संरक्षक भी होती हैं।
कविता: पहाड़ की नारी
कमर तोड़ मेहनत करना,
सिर पर ढोना बोझ भारी,
पहाड़ों पर उतरते चढ़ते,
बीतता है जीवन तेरा,
हे पहाड़ की नारी..
घने और खतरनाक जंगलों से,
घास, पात और लकड़ी लाना,
कभी कभी बाघ और रीछ से,
जान बचाने के लिए भिड़ जाना...
सामाजिक बुराईयों से,
मिलकर संघर्ष करना,
घर परिवार की देख रेख,
समर्पित भाव से करना....
सीमाओं की रक्षा में,
आजीविका के लिए प्रवास में,
गए जीवनसाथी की इंतज़ार में,
बीत जाता है तेरा जटिल जीवन,
तू महान है पहाड़ की नारी....
संघर्ष आपका सफल रहा,
तभी तो शैल पुत्र,
आज ऊंचा कर रहे हैं,
आपका और जन्मभूमि का नाम,
देश और दुनियां में,
कवि, लेखक, खिलाड़ी, सैनिक अफसर,
पर्यावरण रक्षक और अफसर बनकर,
तू सचमुच महान है,
और तेरा संघर्ष,
हे "पहाड़ की नारी".
निष्कर्ष
यह कविता पहाड़ की नारी के संघर्षों और उनकी उपलब्धियों को सम्मानित करती है। उनके परिश्रम और समर्पण के बिना, हमारे समाज की संरचना अधूरी है। पहाड़ी महिलाएं असली ताकत हैं, जो अपनी कठिनाइयों के बावजूद हर चुनौती का सामना करती हैं।
आपके विचार:
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