उत्तराखंड का राज्य वृक्ष: बुरांश (Rhododendron arboreum)

उत्तराखंड का राज्य वृक्ष: बुरांश (Rhododendron arboreum)

उत्तराखंड का राज्य वृक्ष बुरांश, जिसे वानस्पतिक नाम Rhododendron arboreum से जाना जाता है, पर्यावरण, संस्कृति और औषधीय दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह वृक्ष हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों में पाया जाता है और अपने सुंदर, लाल, गुलाबी, और सफेद फूलों के लिए प्रसिद्ध है। बुरांश के फूल फरवरी माह से खिलने शुरू हो जाते हैं और मार्च तक अपने पूरे सौंदर्य में नजर आते हैं।

प्रमुख स्थान

उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में बेरीनाग, चौकोड़ी, डीडीहाट जैसे स्थानों और गढ़वाल के बद्रीनाथ, केदारनाथ, उत्तरकाशी, ग्वालदम आदि स्थानों पर बुरांश के वृक्ष विशेष रूप से पाए जाते हैं। कश्मीर से लेकर अन्य हिमालयी क्षेत्रों में भी यह वृक्ष सामान्य रूप से दिखाई देता है।

बुरांश का पर्यावरणीय महत्व

बुरांश का वृक्ष सदा हरा-भरा रहता है और शून्य तापमान में भी जीवित रहने की क्षमता रखता है। इसकी ऊंचाई 10 से 15 फीट और मोटाई 4 से 5 फीट तक हो सकती है। यह वृक्ष न केवल हिमालयी जलवायु में खुद को ढालता है, बल्कि जल धारण की अत्यधिक क्षमता के कारण पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह चीड़ और बांज के जंगलों में भी उगता है और आसपास की भूमि को अधिक उपजाऊ बनाता है।

बुरांश की जल शोषण क्षमता अन्य वृक्षों की तुलना में अधिक होती है, जिससे यह हिमालयी क्षेत्र के जलचक्र को स्थिर रखने में मदद करता है। दुर्भाग्यवश, अवैध कटाई और जंगलों के सूखने के कारण इसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है, जिससे पहाड़ी क्षेत्र की जैव विविधता भी खतरे में पड़ गई है।

औषधीय गुण और उपयोग

बुरांश का सफेद फूल औषधीय दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि सफेद बुरांश का फूल खाने से गले में फंसी मछली की हड्डी गल जाती है। इसके फूलों का जूस, जो अब बाजार में भी उपलब्ध है, हृदय रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी है। बुरांश के तने और पत्तियों में भी औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसकी लकड़ी से दूध और दही रखने के लिए बर्तन बनाए जाते हैं, और पत्तों का उपयोग जानवरों के बिछावन के रूप में किया जाता है।

सांस्कृतिक महत्व

बुरांश का उल्लेख उत्तराखंड के लोकगीतों और लोकनृत्यों में भी मिलता है। पहाड़ी महिलाओं को जंगल में घास काटते समय अपने प्रियतम की याद दिलाने में इसके पुष्प की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लोकगीतों में बुरांश का जिक्र इस प्रकार है:

"फूल फूल बुरूंसी उ डाना,
मेरा आँखा सुआ डबडबाना।"

यह वृक्ष उत्तराखंड के प्रसिद्ध झोड़ा नृत्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत ने अपनी कविताओं में बुरांश के सौंदर्य का वर्णन किया है। रामायण में वर्णित अशोक वाटिका में भी बुरांश के फूलों का जिक्र मिलता है।

त्योहारों में बुरांश

कुमाऊँ में वसंत ऋतु के आगमन पर मनाए जाने वाले फूलदेई पर्व में बुरांश के फूलों का विशेष महत्व है। इस त्यौहार में बच्चों द्वारा बुरांश के फूलों के साथ सरसों के पीले फूल मंदिरों और घरों की देहली पर चढ़ाए जाते हैं। यह फूल वसंत ऋतु के स्वागत और नव वर्ष की शुभकामनाओं के प्रतीक होते हैं।

संरक्षण की आवश्यकता

आज के समय में बुरांश के वृक्षों के संरक्षण की अत्यधिक आवश्यकता है। बढ़ते अवैध कटाई और जलवायु परिवर्तन के कारण इन वृक्षों की संख्या घट रही है, जिससे पर्यावरण और सांस्कृतिक धरोहरों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। सरकार और स्थानीय निवासियों को मिलकर इसके संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए ताकि यह अमूल्य धरोहर बची रह सके।

निष्कर्ष:
बुरांश न केवल उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है, बल्कि यह राज्य की संस्कृति, पर्यावरण और पारंपरिक चिकित्सा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे संरक्षित करना और इसके महत्व को समझना हमारी जिम्मेदारी है।

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