"त्वे आण प्वाडलू" - उत्तराखंड की धरोहर - "Tve Aan Padlu" - Heritage of Uttarakhand

"त्वे आण प्वाडलू" - उत्तराखंड की धरोहर

प्रस्तावना
उत्तराखंड की धरती की ख़ुशबू, संस्कृति और यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को बयां करती एक अद्भुत कविता "त्वे आण प्वाडलू" है। यह कविता हमें उस प्यार और लगाव को याद दिलाती है जो हम अपनी मातृभूमि से रखते हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में हम इस कविता के भावार्थ, उसके सुंदर चित्रण और उत्तराखंड की संस्कृति की गहराई में जाएंगे।


कविता: त्वे आण प्वाडलू

भावार्थ:
यह कविता बसंत ऋतु की ख़ुशबू और उत्तराखंड की सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करती है। इसमें कवि ने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ त्योहारों की रौनक और ग्रामीण जीवन की सजीवता को भी छूने की कोशिश की है। यहाँ प्रस्तुत हैं कविता के कुछ महत्वपूर्ण अंश:


कविता के अंश:

रंगली बसंत का रंग उडी जाण से पहली
फ्योंली और बुरांश का मुरझाण से पहली
रुमझुम बरखा का रुम्झुमाण से पहली
त्वे आण प्वाडलू

बस्गाल्य्या गद्नियुं का रौलियाँण से पहली
डालीयूँ मा चखुलियुं का च्खुलियाँण से पहली
फूलों फर भोंरा - पोतलियूं का मंडराण से पहली
त्वे आण प्वाडलू

उलैरय्या होली का हुल्करा कक्खी ख्वै जाण से पहली
दम्कद्दा भेलौं का बग्वाल मा बुझ जाण से पहली
हिन्सोला ,किन्गोड़ा और डांडीयों मा काफुल प़क जाण से पहली
त्वे आण प्वाडलू

छुंयाल धारा- पंदेरोउन का बिस्गान से पहली
गीतांग ग्वेर्रऊ का गीत छलेएजाण से पहली
बांझी पुंगडीयों का डीश, खुदेड घ्गुगती का घुराण से पहली
त्वे आण प्वाडलू

मालू , गुईराल , पयें और कुलैं बाटू देखेंण लग्गयाँ
और धई जन सी लगाण लग्गयाँ त्वे
खुदेड आग मा तेरी , उन्हका फुक्के जआण से पहली
त्वे आण प्वाडलू

आज चली जा कतागा भी दूर मी से किल्लेय भी
मेरु लाटा ! पर कभी मी से मुख ना लुक्केय
पर जब भी त्वे मेरी खुद लागली ,त्वे मेरी सौं
मुंड उठा की ,छाती ठोक्की की और हत्थ जोड़ी की
त्वे आण प्वाडलू
त्वे आण प्वाडलू
त्वे आण प्वाडलू


उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर

कविता में उल्लिखित विभिन्न त्योहारों, जैसे कि होली और बग्वाल, उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करते हैं। यहाँ का हर त्योहार अपनी विशेषता और उल्लास के लिए जाना जाता है। यह कविता हमें यह याद दिलाती है कि अपनी जड़ों से जुड़े रहना कितना महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

"त्वे आण प्वाडलू" उत्तराखंड की धरती के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम को प्रकट करती है। यह हमें अपने गांव, अपनी संस्कृति और अपनी मातृभूमि से जुड़े रहने का एक संदेश देती है। आज भी, उत्तराखंड के लोग अपनी धरोहर को संजोने और अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित हैं।

इस कविता के माध्यम से हम अपनी मातृभूमि को सलाम करते हैं और यह आशा करते हैं कि हम हमेशा अपने संस्कृति और परंपराओं का सम्मान करें।


आपके विचार:
क्या आपको यह कविता आपकी संस्कृति से जुड़ी लगती है? अपने विचार साझा करें और बताएं कि यह कविता आपके लिए क्या मायने रखती है!

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