बचपन का ऊ प्यारा दिन
प्रस्तावना
बचपन वह समय होता है जब जीवन सरल और खुशियों से भरा होता है। "बचपन का ऊ प्यारा दिन" कविता हमें उन सुनहरे दिनों की याद दिलाती है, जब हम खेलते-कूदते, बेफिक्र रहते थे। इस कविता में कवि जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" ने बचपन की मासूमियत और उसकी खुशियों को खूबसूरती से बयां किया है।
कविता: बचपन का ऊ प्यारा दिन
भावार्थ:
इस कविता में कवि ने बचपन की यादों को सजीव रूप में प्रस्तुत किया है। छोटे-छोटे खेल, दोस्तों के साथ बिताए गए पल, और ग्रामीण जीवन की मिठास को वह गहराई से चित्रित करते हैं। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे बचपन के दिन हमारे जीवन का सबसे खूबसूरत हिस्सा होते हैं।
कविता के अंश:
बचपन का ऊ प्यारा दिन
जब मनख्यौं का मन मा,
याद बणिक ऊभरिक औन्दा,
पापी पराण क्वांसु होन्दु,
कुजाणि क्यौकु खूब सतौंदा.
खैणा तिमलौं की डाळी मा बैठि,
"ऊ बचपन का दिन" खूब बितैन,
सैडा गौं की काखड़ी मुंगरी,
छोरों दगड़ि छकि छक्किक खैन.
पिल्ला, थुच्चि, कबड्डी अर गारा,
खूब खेलिन गुल्ली डंडा,
बण फुन्ड खाई हिंसर किन्गोड़,
घोलु फर हेरदा पोथलौं का अंडा.
गौं का बण फुन्ड गोरु चरैन,
छोरों का दगड़ा गोरछ्यो खाई,
आम की दाणी खाण का खातिर,
आम की डाळी ढुंग्यौन ढुंग्याई.
थेगळ्याँ लत्ता कपड़ा पैर्यन,
चुभ्यन नांगा खुट्यौं फर कांडा,
हिंवाळि काँठी बुरांश देखिन,
जब जाँदा चन्द्रबदनी का डांडा.
स्कूल्या दिन ऊ कथगा प्यारा,
आँगळिन लिख्दा माटा मा,
प्यारू बचपन आज खत्युं छ,
गौं का न्योड़ु स्कूल का बाटा मा.
हे बचपन! अब बिछड़िग्यौं हम,
याद औन्दि चून्दा छन तरबर आंसू,
बचपन की बात आज बतौणु,
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु".
बचपन की खुशियाँ
कवि ने इस कविता में बचपन के कई खूबसूरत पलों को उजागर किया है, जैसे कि दोस्तों के साथ खेलना, स्कूल की यादें, और गाँव की मासूमियत। यह यादें हमें अपने अतीत में ले जाती हैं और हमें हंसने-खिलखिलाने का मौका देती हैं।
निष्कर्ष
बचपन का यह प्यारा दिन हम सबके दिल में एक खास जगह रखता है। यह हमें यह याद दिलाता है कि जीवन की सच्ची खुशियाँ सरलता में होती हैं। हमें चाहिए कि हम उन यादों को संजोकर रखें और अपने बच्चों को भी इस तरह की खुशियाँ देने का प्रयास करें।
आपके विचार:
क्या आपको भी अपने बचपन के दिन याद हैं? क्या आपने भी ऐसे खेल खेले हैं? अपने अनुभव हमारे साथ साझा करें!
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