उत्तराखंड की सांस्कृतिक और पर्यावरणीय धरोहर: 'वृक्ष मानव' विश्वेश्वर दत्त सकलानी (Cultural and Environmental Heritage of Uttarakhand: 'Tree Manav' Vishweshwar Dutt Saklani)
उत्तराखंड की सांस्कृतिक और पर्यावरणीय धरोहर: 'वृक्ष मानव' विश्वेश्वर दत्त सकलानी
उत्तराखंड की भूमि अनेक महान विभूतियों की कर्मभूमि रही है, जिन्होंने अपने कार्यों से इस देवभूमि को गौरवान्वित किया। इन्हीं में से एक हैं विश्वेश्वर दत्त सकलानी, जिन्हें 'वृक्ष मानव,' 'वनऋषि,' और 'पहाड़ का मांझी' के रूप में जाना जाता है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनके समर्पण ने न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश को एक नई दिशा दी।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
विश्वेश्वर दत्त सकलानी का जन्म 2 जून 1922 को टिहरी जिले के सकलाना पट्टी के पुजारगांव में हुआ। बचपन से ही वे प्रकृति के प्रति प्रेम और वृक्षारोपण के प्रति समर्पित थे। उनके दादा ने उन्हें वृक्षों की महत्ता सिखाई और यही शिक्षा उनके जीवन का आधार बनी। अपने बड़े भाई नागेंद्र सकलानी, जो टिहरी रियासत के खिलाफ आंदोलन में शहीद हुए, से उन्होंने संघर्ष और समर्पण की प्रेरणा ली।
जीवन का टर्निंग पॉइंट
1958 में उनकी पत्नी शारदा देवी का असमय निधन उनके जीवन का बड़ा मोड़ साबित हुआ। इस गहरे दुख ने उन्हें वृक्षों से और भी गहरा जुड़ाव दिया, और उन्होंने पेड़ लगाना ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया।
वृक्षारोपण का सफर: संघर्ष और सफलता
अपने जीवनकाल में उन्होंने अकेले 50 लाख से अधिक वृक्ष लगाए। हालांकि इस कार्य में उन्हें ग्रामीणों के विरोध का सामना करना पड़ा, क्योंकि गांव के लोग वृक्षारोपण को पशुओं के लिए हानिकारक मानते थे। लेकिन उनकी लगन और प्रयासों से सकलाना घाटी हरे-भरे जंगलों से आच्छादित हो गई। यह क्षेत्र जलस्रोतों के पुनर्जीवन और पशुओं के लिए चारे की उपलब्धता में भी सहायक बना।
1200 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले उनके द्वारा लगाए गए वृक्षों ने पर्यावरण संरक्षण के महत्व को न केवल सिद्ध किया बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर छोड़ी।
सम्मान और पहचान
विश्वेश्वर दत्त सकलानी के योगदान को कई बार सम्मानित किया गया।
- 1986 में इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा प्रदान किया गया।
- हालांकि, वन विभाग द्वारा उन पर लगाए गए मुकदमे ने उन्हें विचलित नहीं किया। प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता विद्यासागर नौटियाल ने उनकी पैरवी की, और कोर्ट ने यह सिद्ध किया कि "पेड़ लगाना अपराध नहीं है।"
चिपको आंदोलन में योगदान
सत्तर के दशक में जब उत्तराखंड में वनों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई, तब भी सकलानी जी की भूमिका अहम रही। उन्होंने वनों को बचाने और जैव विविधता को संरक्षित करने में बढ़-चढ़कर भाग लिया।
आखिरी दिन और विरासत
2007 में उनकी आंखों की रोशनी चली गई, लेकिन इसके बावजूद उनका पर्यावरण संरक्षण का संकल्प अडिग रहा। 18 जनवरी 2019 को 96 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली।
प्रेरणा का स्रोत
विश्वेश्वर दत्त सकलानी का जीवन हमें सिखाता है कि यदि संकल्प दृढ़ हो, तो कोई भी बाधा हमारे उद्देश्य को रोक नहीं सकती। उनके लगाए गए वृक्ष आज भी हमें पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं।
"वृक्ष मानव की गाथा"
जंगलों की छांव में पला,
प्रकृति का सच्चा रखवाला।
पेड़ों को अपना धर्म बनाया,
हरित धरा को जीवन दिलाया।
सूनी घाटी में हरियाली लाई,
सूखे सपनों में नमी बसाई।
पत्तों की सरसराहट में गीत गाया,
मिट्टी के कण-कण में प्यार समाया।
पत्नी की याद ने जोश जगाया,
हर वृक्ष में उसका रूप दिखाया।
वन विभाग ने चाहा रोके,
पर धरा के इस सपूत ने न झुके।
पचास लाख वृक्षों का है साया,
सकलानी ने इसे अपना घर बनाया।
हर पत्ता, हर शाख़ बोलती है,
"यह धरती उनकी ऋणी है।"
कौन कहता है इंसान अकेला है?
देखो, जहां-जहां हरियाली का मेला है।
वहां गूंजती है एक ही वाणी,
"वृक्ष मानव, विश्वेश्वर दत्त सकलानी।"
🌿 "जिन्होंने धरा को जीवन दिया,
उनका नाम सदा अमर रहेगा।" 🌿
निष्कर्ष
'वृक्ष मानव' के नाम से प्रसिद्ध सकलानी जी ने अपनी जीवन यात्रा में जो अद्वितीय योगदान दिया, वह मानवता के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है। उत्तराखंड के इस सपूत को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हम यह कह सकते हैं कि "जहां वृक्ष होते हैं, वहां जीवन होता है।"
🌳 सादर नमन इस महान पर्यावरणविद को, जिन्होंने प्रकृति को जीवन का आधार बनाया।
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1. विश्वेश्वर दत्त सकलानी कौन थे?
विश्वेश्वर दत्त सकलानी उत्तराखंड के टिहरी जिले के पर्यावरणविद् और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें 'वृक्ष मानव' के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अकेले ही लगभग 50 लाख वृक्ष लगाए और सकलाना घाटी को हरित क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया।
2. उन्होंने वृक्षारोपण कब और क्यों शुरू किया?
विश्वेश्वर दत्त सकलानी ने मात्र आठ वर्ष की उम्र में वृक्ष लगाना शुरू किया। उनकी पत्नी के असामयिक निधन ने उनके जीवन को एक नया उद्देश्य दिया, और उन्होंने इसे अपनी जीवन यात्रा का मुख्य हिस्सा बना लिया।
3. सकलानी जी द्वारा लगाए गए वृक्षों का महत्व क्या है?
उनके लगाए वृक्षों ने सकलाना घाटी में जल स्रोतों को पुनर्जीवित किया, जैव विविधता बढ़ाई और क्षेत्र को पर्यावरणीय दृष्टि से समृद्ध बनाया। यह उत्तराखंड की जलवायु और पारिस्थितिकी के लिए वरदान साबित हुआ।
4. क्या सकलानी जी को उनके योगदान के लिए कोई पुरस्कार मिला?
जी हां, 1986 में, उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा 'इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
5. सकलानी जी को 'वन विभाग' से क्या समस्याएं हुईं?
वन विभाग ने उनके वृक्षारोपण कार्यों को अतिक्रमण मानकर उन पर मुकदमा दर्ज किया। हालांकि, बाद में न्यायालय ने उनके पक्ष में फैसला दिया और वृक्षारोपण को अपराध नहीं माना।
6. सकलानी जी का पर्यावरण संरक्षण में क्या योगदान था?
उन्होंने जंगलों में वृक्षों की जैव विविधता बनाए रखने पर जोर दिया। उनके कार्यों ने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और चिपको आंदोलन जैसे अभियानों में योगदान दिया।
7. क्या उनके परिवार का कोई सदस्य स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल था?
हां, उनके बड़े भाई नागेंद्र सकलानी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्होंने टिहरी रियासत के खिलाफ आंदोलन में अपने प्राणों की आहुति दी।
8. उनकी प्रेरणा का स्रोत क्या था?
सकलानी जी को उनके दादा और परिवार से वृक्षों और पर्यावरण के प्रति लगाव मिला। उनकी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद यह लगाव उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य बन गया।
9. सकलानी जी की मृत्यु कब हुई?
विश्वेश्वर दत्त सकलानी का निधन 18 जनवरी 2019 को 96 वर्ष की आयु में हुआ।
10. सकलानी जी की विरासत क्या है?
उनके लगाए 50 लाख से अधिक वृक्ष और सकलाना घाटी का हरित परिदृश्य उनकी सबसे बड़ी विरासत हैं। उनका जीवन और कार्य पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रेरणा का स्रोत हैं।
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